राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 53 से 56 : अधिकारियों को मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति

Himanshu Mishra

7 May 2025 8:17 PM IST

  • राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 53 से 56 : अधिकारियों को मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति

    राजस्व प्रशासन में न्याय और कार्यप्रणाली की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए प्रकरणों के स्थानांतरण, समेकन (consolidation), उपस्थितियों और कार्यवाही की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से तय की गई है। राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 53 से 56 तक इन्हीं पहलुओं से संबंधित हैं। ये धाराएं यह सुनिश्चित करती हैं कि एक ही प्रकृति के प्रकरण एक ही अधिकारी द्वारा देखे जाएं, पक्षकारों को सुनवाई का पूरा अवसर मिले और न्यायिक प्रक्रिया सरल और व्यवस्थित हो।

    धारा 53 – सरकार और अन्य अधिकारियों को मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति

    इस धारा के अंतर्गत राज्य सरकार, भू-अभिलेख निदेशक (Director of Land Records) और आयुक्त (Commissioner) को यह अधिकार दिया गया है कि वे ऐसे सभी गैर-न्यायिक मामले (non-judicial cases), जिनका संबंध किसी भू-सुधार या बंदोबस्त से न हो, एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी को स्थानांतरित कर सकते हैं।

    इसके अतिरिक्त, भूमि मंडल (Board), बंदोबस्त आयुक्त (Settlement Commissioner), और भू-अभिलेख निदेशक को न्यायिक और बंदोबस्त संबंधी मामलों को भी एक राजस्व न्यायालय या अधिकारी से दूसरे के पास स्थानांतरित करने की शक्ति प्राप्त है।

    उदाहरण

    मान लीजिए, किसी जिले के तहसीलदार के पास भूमि रिकॉर्ड में गड़बड़ी से संबंधित मामला चल रहा है, लेकिन कार्यभार अधिक होने के कारण वह समय से निर्णय नहीं दे पा रहा है। ऐसी स्थिति में आयुक्त इस मामले को किसी अन्य सक्षम तहसीलदार को स्थानांतरित कर सकते हैं ताकि न्याय शीघ्रता से हो।

    धारा 54 – अधीनस्थ अधिकारियों के बीच मामलों को भेजने और वापस लेने की शक्ति

    यह धारा विभिन्न स्तर के अधिकारियों जैसे कि आयुक्त, कलेक्टर, उपखंड अधिकारी (Sub-Divisional Officer), तहसीलदार, भू-अभिलेख अधिकारी और बंदोबस्त अधिकारी को यह शक्ति देती है कि वे किसी भी मामले या मामलों के समूह को अपने रिकॉर्ड से किसी अधीनस्थ अधिकारी को जांच या निर्णय हेतु सौंप सकते हैं।

    उन्हें यह अधिकार भी है कि वे ऐसे मामलों को वापस लेकर स्वयं निर्णय लें या किसी अन्य सक्षम अधिकारी को भेजें।

    महत्वपूर्ण प्रावधान

    यदि किसी अधीनस्थ अधिकारी ने मामले की जांच कर एक रिपोर्ट तैयार की है और वह रिपोर्ट किसी उच्च अधिकारी के पास निर्णय हेतु भेजी गई है, तो वह अधिकारी अंतिम आदेश देने से पहले पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देगा।

    उदाहरण

    मान लीजिए, उपखंड अधिकारी के समक्ष एक भूमि विवाद का मामला लंबित है। वह इसे जांच हेतु अपने अधीनस्थ नायब तहसीलदार को सौंप देता है। नायब तहसीलदार अपनी रिपोर्ट बनाकर उपखंड अधिकारी को भेजता है। अब उपखंड अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अंतिम आदेश देने से पहले दोनों पक्षों को सुने।

    धारा 55 – मामलों का समेकन (Consolidation of cases)

    यह धारा कहती है कि यदि एक या अधिक ऐसे मामले लंबित हैं जिनमें मुख्य रूप से एक जैसे प्रश्नों का निर्णय किया जाना है और जो एक ही कारण पर आधारित हैं, तो ऐसे मामलों को एक न्यायालय में समेकित कर एक ही निर्णय द्वारा निपटाया जा सकता है।

    इसके लिए संबंधित पक्ष आवेदन कर सकते हैं। संबंधित उच्च न्यायालय यह तय करेगा कि कौन-सा न्यायालय इन मामलों को सुनेगा और एक ही निर्णय देगा।

    उदाहरण

    मान लीजिए, एक ही गाँव के तीन किसानों ने भूमि रिकॉर्ड में गड़बड़ी की शिकायत अलग-अलग तहसीलदारों के समक्ष की है। सभी मामलों में तथ्य समान हैं – जैसे भूमि का नक्शा गलत दर्ज होना। ऐसे में इन मामलों को एक जगह पर स्थानांतरित करके एक साथ निपटाया जा सकता है ताकि समय और संसाधनों की बचत हो और निर्णयों में विरोधाभास न हो।

    धारा 56 – उपस्थिति और आवेदन कौन कर सकता है

    इस धारा के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी व्यक्ति राजस्व न्यायालय या अधिकारी के समक्ष निम्नलिखित तरीकों से उपस्थित हो सकता है या आवेदन दे सकता है:

    1. स्वयं व्यक्तिगत रूप से

    2. किसी मान्यता प्राप्त एजेंट (Recognised Agent) के माध्यम से

    3. अधिवक्ता (Legal Practitioner) के माध्यम से जो उस न्यायालय या अधिकारी के समक्ष कार्य करने में सक्षम हो

    लेकिन यदि न्यायालय या अधिकारी चाहे तो किसी भी पक्षकार को, चाहे उसने एजेंट या वकील नियुक्त किया हो, व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दे सकता है।

    उदाहरण

    रामलाल नामक किसान ने अपने खेत के सीमांकन को लेकर तहसीलदार के पास शिकायत दर्ज करवाई है। रामलाल की ओर से उसका बेटा, जो उसका एजेंट है, उपस्थित होता है। लेकिन यदि तहसीलदार को लगता है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए रामलाल की व्यक्तिगत उपस्थिति ज़रूरी है, तो वह उसे बुला सकता है।

    पूर्व की धाराओं से संबंध

    इस अध्याय की धाराएं, विशेष रूप से धारा 53 और 54, राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम के पहले के प्रावधानों जैसे कि धारा 51 (न्यायालय कहाँ लगाया जाए) और धारा 52 (भूमि पर जाकर जांच करने की शक्ति) से भी जुड़ी हुई हैं। धारा 51 में कहा गया है कि अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी भी स्थान पर न्यायालय लगा सकता है और धारा 52 में उसे भूमि पर जाकर निरीक्षण और सीमांकन की अनुमति दी गई है।

    ऐसे में यदि कोई मामला तहसीलदार से कलेक्टर को स्थानांतरित होता है, तो कलेक्टर अपने क्षेत्र में किसी भी उपयुक्त स्थान पर सुनवाई कर सकता है और ज़रूरत पड़ने पर भूमि पर जाकर जांच भी कर सकता है।

    राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 53 से 56 तक की व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि राजस्व से संबंधित मामलों में न्यायिक और प्रशासनिक प्रक्रिया सुगम, तर्कसंगत और निष्पक्ष हो। एक जैसे मामलों का समेकन, सक्षम अधिकारी को स्थानांतरण, और व्यक्तिगत अथवा अधिकृत प्रतिनिधियों के माध्यम से कार्यवाही की अनुमति – ये सभी प्रावधान राजस्व न्याय प्रणाली को अधिक सुदृढ़ और पारदर्शी बनाते हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य न केवल न्यायिक दक्षता को बढ़ाना है, बल्कि पक्षकारों को समय पर और प्रभावी न्याय दिलाना भी है।

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