राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 45 से 48 तक : ग्राम सेवकों के वेतन की सुरक्षा, कर्तव्य, नियुक्ति की प्रक्रिया और अयोग्यता

Himanshu Mishra

5 May 2025 3:04 PM

  • राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 45 से 48 तक : ग्राम सेवकों के वेतन की सुरक्षा, कर्तव्य, नियुक्ति की प्रक्रिया और अयोग्यता

    राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 45 से 48 तक ग्राम सेवकों की सेवा शर्तों को सुरक्षित और व्यवस्थित करने हेतु बनाई गई हैं। इन धाराओं में ग्राम सेवकों के वेतन पर कानूनी सुरक्षा, उनके कर्तव्य, नियुक्ति की विधि तथा किन व्यक्तियों को नियुक्त नहीं किया जा सकता – इन सभी विषयों को स्पष्ट किया गया है। इस लेख में हम इन चारों धाराओं की सरल हिंदी में व्याख्या करेंगे ताकि आमजन और ग्राम प्रशासन से जुड़े सभी व्यक्ति इसे सहजता से समझ सकें।

    धारा 45 : वेतन की कुर्की से संरक्षण

    धारा 45 के अनुसार, ग्राम सेवकों को मिलने वाला पारिश्रमिक, चाहे वह ज़मीन के रूप में हो, ज़मीन में हिस्सेदारी के रूप में हो या किसी अन्य रूप में हो, उसे किसी भी स्थिति में जब्त नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ यह है कि ग्राम सेवकों के पारिश्रमिक पर ऋण का बोझ डाला नहीं जा सकता, न ही उसे गिरवी रखा जा सकता है, सिवाय उन स्थितियों के जो राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 (Rajasthan Tenancy Act) में स्पष्ट रूप से बताई गई हों।

    इस धारा के अनुसार किसी भी न्यायालय को यह अधिकार नहीं है कि वह ग्राम सेवक के पारिश्रमिक को कुर्क (attach) या नीलाम कर सके। यह प्रावधान ग्राम सेवकों को वित्तीय उत्पीड़न से बचाने और उनकी नौकरी में स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

    उदाहरण : यदि किसी गाँव के चौकीदार को उसका पारिश्रमिक ज़मीन के रूप में मिला है, और उसके ऊपर किसी साहूकार का कर्ज है, तो वह साहूकार उस ज़मीन को कुर्क नहीं करवा सकता। यह ग्राम सेवक की सेवा को सुरक्षित रखने का उपाय है।

    धारा 46 : ग्राम सेवकों के कर्तव्य

    इस धारा को दो भागों में विभाजित किया गया है।

    पहला उपखंड कहता है कि जो ग्राम सेवक चौकीदार नहीं है, उन्हें वह सभी कार्य करने होंगे जो इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों में निर्धारित किए जाएंगे। जैसे – सफाई व्यवस्था, राजस्व अधिकारियों की सहायता, गाँव में सरकारी योजनाओं की सूचना देना आदि।

    दूसरा उपखंड विशेष रूप से ग्राम चौकीदारों पर लागू होता है। चौकीदार को वही अधिकार और कर्तव्य निभाने होंगे जो उससे पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) द्वारा अपेक्षित होंगे। इसका उद्देश्य गाँव में कानून व्यवस्था बनाए रखना और पुलिस प्रशासन के साथ सहयोग सुनिश्चित करना है।

    प्रसंग : चौकीदार को पुलिस अधीक्षक द्वारा निर्देश मिलता है कि वह गाँव में रात को पहरा दे और संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट करे। यह उसका विधिवत कर्तव्य होगा और उसे इसे निभाना होगा।

    धारा 47 : नियुक्ति कैसे की जाएगी

    यह धारा नियुक्ति की समयसीमा और प्रक्रिया को स्पष्ट करती है। जब भी कलेक्टर यह निर्देश देता है कि किसी गाँव या गाँवों के समूह में ग्राम सेवक नियुक्त किया जाए, या जब किसी पद पर रिक्ति उत्पन्न होती है, तो संबंधित तहसीलदार को छह सप्ताह (छह हफ्तों) के भीतर उस पद पर नियुक्ति करनी होगी।

    इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गाँव में आवश्यक सेवाएँ निरंतर चलती रहें और रिक्तियाँ लंबे समय तक खाली न रहें। तहसीलदार की नियुक्ति प्रक्रिया नियमों के अनुरूप होनी चाहिए और यह जिम्मेदारीपूर्ण ढंग से समयसीमा में पूर्ण की जानी चाहिए।

    उदाहरण : किसी गाँव में बलाई के पद पर मृत्यु से रिक्ति हो जाती है। तहसीलदार को यह जानकारी मिलने के छह सप्ताह के भीतर नए बलाई की नियुक्ति करनी होगी ताकि गाँव की सफाई व्यवस्था बाधित न हो।

    धारा 48 : नियुक्ति के लिए अयोग्यता (Disqualifications)

    यह धारा स्पष्ट रूप से बताती है कि किन व्यक्तियों को ग्राम सेवक के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता। ऐसे चार मुख्य आधार हैं जिनके अनुसार कोई भी व्यक्ति इस पद के लिए अयोग्य माना जाएगा –

    पहला, यदि व्यक्ति ने अभी तक वयस्कता प्राप्त नहीं की है यानी वह 18 वर्ष का नहीं हुआ है, तो वह नियुक्त नहीं हो सकता।

    दूसरा, यदि वह शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम है और अपने कर्तव्यों को निभाने में असमर्थ है, तो उसे नियुक्त नहीं किया जा सकता।

    तीसरा, यदि वह व्यक्ति उस क्षेत्र में नहीं रहता है जहाँ उसे ग्राम सेवक के रूप में नियुक्त किया जाना है, तो वह पात्र नहीं होगा।

    चौथा, यदि उस व्यक्ति को किसी अपराध में दोषी ठहराया गया है जो नैतिक अधमता (moral turpitude) से संबंधित है, तो वह ग्राम सेवक नहीं बन सकता।

    प्रसंग :

    • यदि कोई 17 वर्षीय युवक ग्राम सेवक की नौकरी के लिए आवेदन करता है, तो उसे आयु के आधार पर अयोग्य ठहराया जाएगा।

    • यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ है और उसे न्यायालय से इस आधार पर अभिभावक नियुक्त किया गया है, तो वह भी नियुक्ति योग्य नहीं होगा।

    • यदि कोई व्यक्ति पास के शहर में रहता है और गाँव में नहीं रहता, तो वह गाँव के ग्राम सेवक पद के लिए अयोग्य होगा।

    • यदि किसी व्यक्ति को चोरी या धोखाधड़ी जैसे नैतिक अधमता वाले अपराध में सजा मिली है, तो वह भी नियुक्त नहीं हो सकता।

    धारा 45 से 48 तक राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 में ग्राम सेवकों की सेवा सुरक्षा, कर्तव्यों, नियुक्ति की समयसीमा तथा अयोग्यता की स्पष्ट रूपरेखा दी गई है। यह प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि ग्राम सेवकों को आर्थिक उत्पीड़न से सुरक्षा मिले, वे अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाएँ और उनकी नियुक्ति एक तय प्रक्रिया और योग्यताओं के आधार पर हो।

    इन धाराओं से स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार ग्राम स्तर पर प्रशासन को सशक्त, पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने हेतु प्रतिबद्ध है। ग्राम सेवकों की भूमिका केवल औपचारिक नहीं है, बल्कि ग्रामीण प्रशासन, कानून व्यवस्था, राजस्व प्रणाली और स्थानीय जनसेवा में उनकी भागीदारी अनिवार्य है। अतः इन प्रावधानों का पालन और समझ ग्रामीण विकास की नींव को मजबूत करता है।

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