SC/ST Act के अंतर्गत प्रकरण में की गयी कमियों का विचारण

Shadab Salim

5 May 2025 11:10 AM IST

  • SC/ST Act के अंतर्गत प्रकरण में की गयी कमियों का विचारण

    SC/ST Act से जुड़े एक प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया है कि मामले के तथ्यों पर बिना किसी हिचकिचाहट के यह कहा जा सकता है कि अभियोजन सशक्त और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करके अभिकथित अपराध को साबित करने में विपन्न रूप में विफल हुआ है। अन्य शब्दों में वर्तमान मामला मुख्य अभियोजन साक्षियों के साक्ष्य अनेक विरोधों के साथ अस्थिर तथा कमजोर चरण पर आधारित है। पुनः अधिकांश अभियोजन साक्षीगण विद्रोही हो गये हैं और अभियोजन मामले का कोई स्वतन्त्र साक्षी समर्थन नहीं किया है।

    रूचिकर रूप में, कोई पहचान परीक्षण परेड नहीं करायी गयी थी, हालांकि एक साक्षी यह कहता है कि यह अभियुक्त को चेहरे के द्वारा पहचान सकता है, प्रारम्भ में अभियुक्त के रूप में केवल पाँच व्यक्ति नामित किए गये थे, परन्तु उत्पश्चात् कुल 11 व्यक्ति आरोपित किए गये थे और उनमें से अधिकांश को अवर न्यायालय के द्वारा पहले ही दोषमुक्त कर दिया गया है।

    अभिलेख पर सामग्री यह दर्शाती है कि अभियुक्त के कब्जे से लाठी (डंडा) भी बरामद किया गया था, परन्तु यह दर्शाने के लिए कोई साक्ष्य नहीं था कि पीड़ित व्यक्ति के विरुद्ध हमले में लाठी से प्रहार कौन किया था। अ० सा० 5 के अनुसार अभियुक्तों में से कोई लाठी से हमला नहीं किया था। अवर न्यायालय अ० सा० 1 और 5 के साक्ष्य में विरोधों और कमियों पर विचार करने में विफल हुए हैं।

    उनके जो मुख्य साक्षीगण हैं, के कथनों में वर्तमान अभियुक्त के द्वारा निभायी गयी भूमिका के बारे में कोई सम्पुष्टि नहीं यो शव परीक्षा रिपोर्ट तथा अ० सा० 7 का साक्ष्य पीड़ित व्यक्ति के द्वारा ऐसी किसी उपगत क्षति को प्रकट नहीं करता है, जो घूंसों, तमाचों और पैरों के द्वारा पिटाई से परिणामित हुई हो, क्योंकि क्षतियाँ दृश्यमान नहीं है।

    अभियोजन पीड़ित व्यक्ति पर आक्रमण करने के लिए बड़ी संख्या में हमलावरों को अभियुक्त बनाया था, परन्तु साक्षीगण, हालांकि उनके साक्ष्य कमियों से भरे हैं, फिर ये इसके बारे में बताने में समर्थ नहीं हो सके थे कि वर्तमान अपीलार्थीगण मृतक पर उसकी मृत्यु को अग्रसर करते हुए क्षतियाँ कैसे कारित किए थे। ऐसे परिदृश्य में अपीलार्थीगण को दोषसिद्ध करना न्याय के हित में नहीं होगा, क्योंकि दाण्डिक विचारण में सबूत का मापदण्ड युक्तियुक्त संदेह से परे सबूत होता है और अभियोजन उन मापदण्डों में अभियुक्त के दोष को साबित नहीं कर सका था।

    रिक्तियों और कमियों का महत्व इस तथ्य के बारे में कोई विवाद नहीं है कि अभियोजन मामले को साबित करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर विश्वास व्यक्त करता है। यह उल्लेख किया जा सकता है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य का मूल्य उसके संचयी प्रभाव पर स्थित होता है, अर्थात् परिस्थितिजन्य साक्ष्य का एकल भाग हल्के से केवल इस सम्भावना को बढ़ा सकता है कि अभियुक्त दोषी है, जबकि अनेक ऐसे साक्ष्य को एक साथ लेने पर यह दोषसिद्धि का न्यायसंगत ठहराने के लिए पर्याप्त प्रमाणक बल ले जा सकता है, यदि ऐसा परिस्थितिजन्य साक्ष्य इस प्रकार संयाचित केवल एक परिकल्पना में परिणामित घटनाओं की अभंग श्रृंखला को बनाता है।

    इस ही के साथ भास्करराव एवं अन्य दिलीप उत्तमराव मनकार एवं एक अन्य लक्ष्मण भाऊराव भगत, बाबाराव लक्ष्मणराव आधव, प्रभाकर मारूति महादेवराव कोसारे; रविन्द्र एवं एक अन्य विष्णु भाऊराव भगत एवं एक अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य, ए० आई० आर० 2018 एस० सी० 2222 के मामले में अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही गई है:-

    अभियुक्त वास्तव में अपराध का प्रतिनिधित रूप में दोषी होता है, हालांकि वह अपराध कारित करने में प्रत्यक्ष रूप में लिप्त न हो, परन्तु वह अन्य अभियुक्त के द्वारा कारित किया गया हो, यदि उसे उसके सामान्य उद्देश्य में भाग लेते हुए विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होना साबित किया गया हो। यह स्पष्ट है कि अ० सा० 1 (मृतक की पत्नी) परिवादिनी के अनुसार प्रथम सूचना रिपोर्ट (प्रदर्श 55) में उसके द्वारा ऐसे अनेक व्यक्तियों का उल्लेख किया गया था, जो उसके घर में घुसे हैं, वे संख्या में चार थे, जबकि 20 से 25 व्यक्ति घर के बाहर एकत्र हुए थे और उनमें से सभी मृतक पर हमला किए थे। लेकिन मुख्य परीक्षा में उसने यह अभिसाक्ष्य दिया था कि कुल 15 हमलावर थे, जो उसके पति पर आक्रमण किए थे। हालांकि वह अपने अभिसाक्ष्य में हमलावरों का नाम बताने में विफल हुई थी, फिर भी उसने यह बताया था कि वह सभी हमलावरों को जानती थी।

    अभियोजन साक्षियों के कथनों में सुधारों और विरोधों के साथ अभियोजन मामले में पूर्वगामी रिक्तियों तथा कमियों का उल्लेख करते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि अभियुक्तगण वास्तविक रूप में विधि विरुद्ध जमाव गठित किए थे और मृतक पर हमला किए थे, वह भी मार के आशय से हमला किए थे, जिससे कि दाण्डिक विधि के प्रावधानों को आकर्षित किया जा सके। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में यह पर्याप्त रूप में स्पष्ट है कि अभियुक्त का दोष युक्तियुक्त संदेह से परे साबित नहीं हुआ था।

    सुप्रीम कोर्ट का यह विचारित विचार है कि विचारण न्यायालय ने मामले पर 11 महत्वपूर्ण परिस्थितियों पर विचार करते हुए शुद्ध रीति में विचार किया है और भलीभांति कारणयुक्त निर्णय प्रदान किया है, तद्द्द्वारा अभियुक्त को दोषमुक्त किया है, जिसमें उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था। हमारे विचार में उच्च न्यायालय के लिए विचारण न्यायालय के द्वारा पारित की गयी दोषमुक्ति के आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए कोई विवशकारी कारण तथा सारवान आधार नहीं हैं।

    एक अन्य प्रकरण में कहा गया है कि इस प्रतिपादना में कोई विवाद नहीं हो सकता है कि किसी जाति से सम्बन्धित किसी व्यक्ति के द्वारा मात्र उस समय एकपक्षीय अभिकथन, जब ऐसा अभिकथन स्पष्ट रूप में अभिप्रेरित तथा मिथ्या हो, किसी व्यक्ति को स्वतन्त्र सन्निरीक्षण के बिना उसकी स्वतन्त्रता से वंचित करने के लिए पर्याप्त नहीं समझा जा सकता है।

    इस प्रकार, अग्रिम जमानत के लिए प्रावधान के अपवर्जन को संभाव्यतः किसी युक्तियुक्त निर्वाचन के द्वारा उस समय प्रयोज्यनीय नहीं हो सकता है, जब कोई मामला नहीं बनता है अथवा अभिकथन अभिव्यक्त रूप में मिथ्या अथवा अभिप्रेरित हो। यदि ऐसा निर्वाचन नहीं किया जाता है, तब लोक सेवकों के लिए अपने सद्भावपूर्वक कार्यों को करना कठिन हो सकता है और दिए गये मामलों में उन्हें अत्याचार अधिनियम के अधीन पंजीकृत किए जाने वाले मिथ्या मामले की धमकी से विधि की किसो संरक्षण के बिना ब्लैकमेल किया जा सकता है।

    यह सभ्य समाज में परिदृश्य नहीं हो सकता है। इसी प्रकार गैर-लोक सेवक को भी अपने सिविल अधिकारों को समर्पण करने के लिए ब्लैकमेल किया जा सकता है। यह विधि का आशय नहीं है। ऐसी विधि न्यायिक सन्निरीक्षण पर खरी नहीं उतर सकती है। यह अनुसरित को जाने वाली निष्पक्ष और युक्तियुक्त प्रक्रिया के गारण्टीकृत मौलिक अधिकारों के परे होगी, यदि व्यक्ति को उसके प्राण तथा स्वतन्त्रता से वंचित किया जाता है।

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