न्याय के हित में सुप्रीम कोर्ट द्वारा केस ट्रांसफर करने की शक्ति और प्रक्रिया: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 446

Himanshu Mishra

5 May 2025 2:52 PM

  • न्याय के हित में सुप्रीम कोर्ट द्वारा केस ट्रांसफर करने की शक्ति और प्रक्रिया: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 446

    धारा 446 का संबंध ऐसे मामलों से है जिनमें Supreme Court (सुप्रीम कोर्ट) को यह लगता है कि किसी आपराधिक केस (Criminal Case) या अपील (Appeal) को एक High Court (हाई कोर्ट) से दूसरी High Court या एक Criminal Court (आपराधिक न्यायालय) से दूसरे राज्य उसी स्तर की या उच्च स्तर की Criminal Court में ट्रांसफर (Transfer) करना न्याय के हित में (In the interest of justice) होगा।

    यह प्रावधान (Provision) यह सुनिश्चित करता है कि न केवल न्याय किया जाए बल्कि ऐसा होता हुआ भी दिखे। यदि किसी भी पक्ष को यह डर हो कि उसे निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) नहीं मिलेगी, तो वह सुप्रीम कोर्ट से केस ट्रांसफर करने की मांग कर सकता है।

    धारा 446(1): सुप्रीम कोर्ट द्वारा केस ट्रांसफर की शक्ति (Power of Supreme Court to Transfer Cases)

    "जब सुप्रीम कोर्ट को यह प्रतीत होता है कि इस धारा के अंतर्गत कोई आदेश देना न्याय के हित में आवश्यक है, तो वह किसी विशेष केस या अपील को एक हाई कोर्ट से दूसरी हाई कोर्ट या किसी एक हाई कोर्ट के अधीनस्थ आपराधिक न्यायालय से किसी अन्य हाई कोर्ट के अधीनस्थ समान या उच्च अधिकार क्षेत्र के न्यायालय में ट्रांसफर कर सकता है।"

    इसका क्या मतलब है? (Meaning)

    इस उपधारा के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति दी गई है कि वह किसी भी आपराधिक केस या अपील को निम्नलिखित में से एक से दूसरी जगह ट्रांसफर कर सकता है:

    1. एक High Court से दूसरी High Court

    2. एक Criminal Court (जो किसी High Court के अधीन है) से दूसरी Criminal Court (दूसरे High Court के अधीन, और समान या उच्च स्तर की)

    परन्तु यह ट्रांसफर केवल तभी किया जाएगा जब सुप्रीम कोर्ट को लगे कि यह कदम Ends of Justice (न्याय के उद्देश्य) को पूरा करने के लिए जरूरी है।

    उदाहरण 1 (Illustration)

    मान लीजिए कोई आपराधिक केस राज्य A की हाई कोर्ट में चल रहा है। आरोपी को यह डर है कि वहां की मीडिया, राजनीति या स्थानीय दबाव के कारण उसे निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिलेगी। वह सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन देकर यह अनुरोध कर सकता है कि केस को राज्य B की हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया जाए। यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि डर वाजिब है, तो वह ट्रांसफर का आदेश दे सकता है।

    उदाहरण 2

    अगर राज्य X की एक सेशन कोर्ट (Sessions Court) में कोई हाई-प्रोफाइल मर्डर केस चल रहा है और शिकायतकर्ता को लगता है कि आरोपी के प्रभाव के कारण न्यायालय का वातावरण पक्षपाती (Biased) हो गया है, तो वह सुप्रीम कोर्ट से केस को दूसरे राज्य की समान स्तर की अदालत में ट्रांसफर करने की मांग कर सकता है।

    धारा 446(2): आवेदन कौन कर सकता है और कैसे किया जाए? (Who Can Apply and What is the Procedure)

    "सुप्रीम कोर्ट इस धारा के अंतर्गत केवल तब कार्य करेगा जब आवेदन अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया (Attorney-General of India) या किसी संबंधित पक्ष (Interested Party) द्वारा किया गया हो। प्रत्येक आवेदन मोशन (Motion) के रूप में किया जाएगा और यदि आवेदनकर्ता अटॉर्नी जनरल या राज्य के एडवोकेट जनरल (Advocate-General) नहीं हैं, तो यह आवेदन हलफनामा (Affidavit) या सत्यापन (Affirmation) द्वारा समर्थित होना चाहिए।"

    कौन आवेदन कर सकता है? (Eligible Applicants)

    इस धारा के तहत सुप्रीम कोर्ट में आवेदन करने वाले दो प्रकार के लोग हो सकते हैं:

    1. Attorney-General of India: ये बिना किसी हलफनामे के आवेदन कर सकते हैं।

    2. Interested Party (रुचि रखने वाला पक्ष): इसमें आरोपी, शिकायतकर्ता, या पीड़ित शामिल हो सकते हैं। लेकिन उन्हें अपने आवेदन के साथ एक Affidavit (हलफनामा) देना होगा जिसमें वह कारण बताए कि ट्रांसफर क्यों जरूरी है।

    मोशन (Motion) क्या होता है?

    मोशन एक औपचारिक याचिका (Formal Petition) होती है जो कोर्ट के सामने रखी जाती है। इसमें पूरा विवरण होना चाहिए कि ट्रांसफर की आवश्यकता क्यों है, और न्याय में बाधा कैसे आ रही है।

    उदाहरण (Illustration)

    अगर किसी रेप केस की पीड़िता को लगता है कि स्थानीय अदालत में केस निष्पक्ष तरीके से नहीं चल रहा है, तो वह सुप्रीम कोर्ट में एक मोशन फाइल कर सकती है जिसमें केस को दूसरी कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग हो। उसे यह मोशन एक हलफनामे के साथ फाइल करना होगा।

    दूसरी ओर, अगर Attorney-General किसी राजनीतिक रूप से संवेदनशील (Politically Sensitive) केस को एक तटस्थ राज्य में ट्रांसफर करना चाहते हैं, तो उन्हें हलफनामा देने की आवश्यकता नहीं होगी।

    धारा 446(3): निराधार (Frivolous) या तंग करने वाले (Vexatious) आवेदन पर दंड (Penalty)

    "यदि कोई आवेदन खारिज कर दिया जाता है और सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि आवेदन निराधार या तंग करने वाला था, तो वह आदेश दे सकता है कि आवेदनकर्ता उस व्यक्ति को, जिसने उस आवेदन का विरोध किया था, उचित मुआवजा (Compensation) दे।"

    इसका क्या अर्थ है? (Meaning)

    अगर कोई व्यक्ति गलत मंशा (Wrong Intentions) से या बिना किसी उचित कारण के सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर का आवेदन करता है और वह खारिज हो जाता है, तो कोर्ट उसे दंडित कर सकता है। यह दंड Compensation (मुआवजा) के रूप में हो सकता है जो उसे उस व्यक्ति को देना होगा जिसने उस आवेदन का विरोध किया था।

    Frivolous और Vexatious आवेदन क्या होते हैं?

    • Frivolous आवेदन वह होता है जिसमें कोई ठोस आधार नहीं होता – मतलब बेबुनियाद।

    • Vexatious आवेदन वह होता है जो केवल दूसरे पक्ष को परेशान करने या कार्यवाही में देरी करने के लिए किया गया हो।

    उदाहरण (Illustration)

    मान लीजिए कोई आरोपी सिर्फ इसलिए केस ट्रांसफर का आवेदन करता है क्योंकि उसे जज पसंद नहीं है, न कि किसी वास्तविक खतरे या पक्षपात के कारण। सुप्रीम कोर्ट आवेदन को खारिज कर देता है और यह पाता है कि यह आवेदन केवल देरी और परेशान करने के लिए किया गया था। ऐसे में कोर्ट आरोपी को आदेश दे सकता है कि वह शिकायतकर्ता को ₹25,000 का मुआवजा दे।

    धारा 446 का महत्व (Importance of Section 446)

    यह धारा भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में न्याय की निष्पक्षता (Fairness of Justice System) को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। कई बार स्थानीय परिस्थितियाँ जैसे:

    • राजनीतिक प्रभाव (Political Influence)

    • साम्प्रदायिक तनाव (Communal Tensions)

    • गवाहों को धमकी (Threats to Witnesses)

    • मीडिया ट्रायल (Media Trial)

    • स्थानीय पूर्वाग्रह (Local Bias)

    न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के पास यह शक्ति होना कि वह केस को किसी दूसरे राज्य की अदालत में ट्रांसफर कर सके, न्यायिक प्रक्रिया में जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए जरूरी है।

    धारा 446, Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 की एक बेहद महत्वपूर्ण और संतुलित व्यवस्था है। यह सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देती है कि वह उपयुक्त परिस्थिति में आपराधिक मामलों और अपीलों को एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट में ट्रांसफर कर सके, ताकि पक्षों को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) मिल सके।

    लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी इस धारा का दुरुपयोग न कर सके – इसलिए इसके लिए हलफनामा अनिवार्य किया गया है और गलत मंशा से आवेदन करने वालों को दंड देने का प्रावधान भी रखा गया है।

    इसका उद्देश्य केवल इतना है कि न्याय हमेशा निष्पक्ष और निर्भीक तरीके से हो – और हर व्यक्ति को यह भरोसा हो कि न्याय प्रणाली उसके अधिकारों की रक्षा करेगी, चाहे वह किसी भी राज्य में क्यों न हो।

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