राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 49 से 52 : ग्राम सेवकों की सजा, नियंत्रण, न्यायिक प्रक्रिया और भूमि निरीक्षण संबंधी अधिकार
Himanshu Mishra
6 May 2025 7:41 PM IST

राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 ग्रामीण प्रशासन की आधारभूत संरचना को कानूनी रूप से व्यवस्थित करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत ग्राम सेवकों, पटवारियों, लम्बरदारों और अन्य भू-राजस्व अधिकारियों के अधिकार, कर्तव्य, दायित्व और दंड का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।
विशेष रूप से धारा 49 से 52 में ग्राम सेवकों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई, चौकीदारों के नियंत्रण, न्यायिक कार्यवाही के स्थान और भूमि में प्रवेश व सर्वेक्षण से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं।
इस लेख में हम इन चार धाराओं की व्याख्या सरल और सुलभ भाषा में करेंगे, जिससे आम नागरिक, ग्राम सेवक, राजस्व अधिकारी तथा ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े हर व्यक्ति को इन कानूनी प्रावधानों को समझने में सुविधा हो। साथ ही हम संबंधित पूर्ववर्ती धाराओं से इनका संबंध भी स्पष्ट करेंगे ताकि अधिनियम की समग्रता को समझा जा सके।
धारा 49 : ग्राम सेवक और लम्बरदार के विरुद्ध दंड, निलंबन और पद से हटाना
इस धारा में यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई ग्राम सेवक अपने कर्तव्यों को ठीक से नहीं निभाता, तो तहसीलदार द्वारा उस पर अधिकतम बीस रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। यद्यपि आज की आर्थिक दृष्टि से बीस रुपये बहुत कम राशि है, परंतु इस धारा का उद्देश्य मात्र आर्थिक दंड देना नहीं है, बल्कि यह संकेत देना है कि ग्राम सेवक की जवाबदेही तय है और उसका आचरण निगरानी के अधीन है।
यहाँ यह समझना आवश्यक है कि 'कर्तव्यों का सही रूप से निर्वहन न करना' का आशय उस स्थिति से है जब ग्राम सेवक या लम्बरदार जानबूझकर या लापरवाहीवश अपने उत्तरदायित्वों की पूर्ति में चूक करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी गाँव में सफाईकर्मी (ग्राम सेवक) लगातार अनुपस्थित रहता है या आदेश के बावजूद गाँव की सफाई नहीं करता, तो तहसीलदार उसके विरुद्ध धारा 49(1) के अंतर्गत जुर्माना लगा सकता है।
धारा 49(2) में अधिक गंभीर मामलों के लिए प्रावधान किया गया है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई ग्राम सेवक या लम्बरदार निम्नलिखित में से किसी स्थिति में पाया जाता है –
पहला, वह कार्य करने के लिए इच्छुक नहीं है या शारीरिक रूप से अयोग्य है;
दूसरा, वह गंभीर अनुशासनहीनता (gross misconduct) या निरंतर लापरवाही का दोषी है;
तीसरा, वह किसी अन्य कारण से अपने पद पर बने रहने के योग्य नहीं है –
तो उसे निलंबित, पद से हटाया या सेवा से समाप्त किया जा सकता है।
परंतु यह कार्रवाई करने से पहले संबंधित व्यक्ति को अपने पक्ष में सफाई देने का अवसर देना आवश्यक है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत “Audi alteram partem” (दूसरे पक्ष को भी सुना जाए) का पालन सुनिश्चित करता है।
यह धारा पूर्ववर्ती धारा 46 से जुड़ी हुई है, जहाँ ग्राम सेवकों के कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। यदि कोई ग्राम सेवक उन कर्तव्यों का उल्लंघन करता है, तो वही आचरण धारा 49 के तहत दंडनीय माना जाएगा।
धारा 50 : ग्राम चौकीदारों को पुलिस अधिकारियों के अधीन रखने की शक्ति
इस धारा के अनुसार राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह किसी विशेष क्षेत्र में ग्राम चौकीदारों की नियुक्ति और दंड देने की शक्ति पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) या निरीक्षक (Inspector of Police) को सौंप दे। अर्थात् धारा 47 से 49 में जो शक्तियाँ तहसीलदार को दी गई थीं, उन्हें सरकार आवश्यकता अनुसार पुलिस अधिकारियों को हस्तांतरित कर सकती है।
यह व्यवस्था विशेष रूप से उन क्षेत्रों में लागू की जा सकती है जहाँ कानून व्यवस्था बनाए रखने हेतु ग्राम चौकीदारों का कार्य सीधे पुलिस पर्यवेक्षण में लाना आवश्यक समझा जाए।
हालाँकि, इस धारा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी ग्राम चौकीदार को दंडित किया जाता है, तो वह एक माह के भीतर जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate) के समक्ष अपील कर सकता है।
इसका उद्देश्य यह है कि ग्राम चौकीदारों को पूर्णतः पुलिस के नियंत्रण में देकर उनके साथ मनमानी न हो, और यदि उन्हें अनुचित रूप से हटाया या दंडित किया जाए, तो वे निष्पक्ष अधिकारी के समक्ष अपनी बात रख सकें।
यह प्रावधान धारा 46(2) से संबंधित है, जहाँ ग्राम चौकीदारों को पुलिस अधीक्षक के निर्देशों के अनुसार कार्य करने की जिम्मेदारी दी गई है। धारा 50 उसी कार्य प्रणाली को विधिक स्वरूप देती है।
धारा 51 : न्यायालय की कार्यवाही या जाँच करने का स्थान
धारा 51 में राजस्व अधिकारियों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपने कार्यक्षेत्र (jurisdiction) की सीमाओं के भीतर कहीं भी न्यायिक कार्यवाही (court proceedings) कर सकते हैं या जाँच (inquiry) कर सकते हैं।
इसमें यह छूट दी गई है कि राजस्व अधिकारी अपनी सुविधा और आवश्यकता अनुसार अपने क्षेत्र के किसी भी स्थान पर मामलों की सुनवाई या जाँच कर सकते हैं, जिससे प्रशासनिक कार्य कुशलता से किया जा सके।
हालांकि, यदि कोई अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर किसी मामले की सुनवाई या जाँच करता है, तो उसके लिए उसे विशेष कारण लिखित रूप में दर्ज करने होंगे। यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करने के लिए है कि अधिकारी अनुचित या मनमानी तरीके से कार्य न करें।
प्रसंग : यदि किसी तहसीलदार का कार्यक्षेत्र झुंझुनूं तहसील तक सीमित है, तो वह केवल उसी क्षेत्र में मामलों की सुनवाई कर सकता है। यदि उसे सीकर में जाकर कोई जाँच करनी है, तो उसे लिखित रूप में कारण बताना होगा।
इस प्रावधान को हम धारा 15 और धारा 20-A से जोड़ सकते हैं जहाँ अधिकारियों की शक्तियों और सीमाओं का वर्णन मिलता है।
धारा 52 : भूमि में प्रवेश और सर्वेक्षण करने की शक्ति
यह धारा अत्यंत व्यावहारिक और उपयोगी है, विशेषकर तब जब भूमि का सीमांकन, सर्वेक्षण या राजस्व संबंधित कोई कार्य करना हो। धारा 52 के अनुसार, सभी राजस्व अधिकारी, ग्राम अधिकारी, उनके कर्मचारी और कार्यरत व्यक्ति यदि उन्हें मौखिक या लिखित रूप से अधिकृत किया गया हो, तो वे किसी भी भूमि पर प्रवेश कर सकते हैं, सर्वे कर सकते हैं, सीमा रेखा निर्धारित कर सकते हैं और अधिनियम के अंतर्गत अपने कार्य कर सकते हैं।
हालाँकि, इस धारा में एक महत्वपूर्ण अपवाद जोड़ा गया है। यदि किसी स्थान पर कोई मकान, आंगन या बगीचा है जो किसी व्यक्ति के निवास से जुड़ा हुआ है, तो वहाँ प्रवेश करने के लिए –
पहला, उस निवासी की सहमति आवश्यक होगी,
या
दूसरा, उसे कम से कम 24 घंटे पहले सूचना देना आवश्यक होगा।
साथ ही, इस प्रवेश के दौरान संबंधित व्यक्ति की सामाजिक और धार्मिक भावनाओं का भी आदर करना होगा।
उदाहरण : यदि कोई पटवारी किसी किसान की ज़मीन का सीमांकन करने जाता है, और वह ज़मीन उस किसान के घर से लगी हुई है, तो वह पटवारी केवल तब ही घर में प्रवेश कर सकता है जब या तो किसान ने अनुमति दी हो या उसे पहले से सूचना दी गई हो।
यह व्यवस्था नागरिकों की निजता के अधिकार का संरक्षण करती है और यह सुनिश्चित करती है कि प्रशासनिक कार्यवाही सम्मानजनक ढंग से की जाए।
धारा 49 से 52 राजस्थान भू राजस्व अधिनियम के प्रशासनिक पक्ष को मज़बूत बनाती हैं। इन धाराओं के माध्यम से ग्राम सेवकों, चौकीदारों और राजस्व अधिकारियों की जिम्मेदारियाँ, सीमाएँ और अधिकार स्पष्ट किए गए हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया है कि नागरिकों के मूल अधिकारों जैसे कि प्राकृतिक न्याय, अपील का अधिकार और निजता की रक्षा की जाए।
इन प्रावधानों का पालन न केवल ग्रामीण प्रशासन को दक्ष बनाता है बल्कि गाँव स्तर पर पारदर्शिता, जवाबदेही और संवेदनशीलता को भी स्थापित करता है। पूर्ववर्ती धाराएं जैसे धारा 45 (वेतन की सुरक्षा), धारा 46 (कर्तव्य), धारा 47 (नियुक्ति) और धारा 48 (अयोग्यता) इन धाराओं से पूर्णतः जुड़ी हुई हैं और इनका संयुक्त रूप से अध्ययन ग्रामीण प्रशासनिक ढाँचे को समझने के लिए आवश्यक है।

