क्या व्यावसायिक संस्था भी उपभोक्ता हो सकती है उपभोक्ता संरक्षण के तहत?
Himanshu Mishra
6 May 2025 7:37 PM IST

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की समझ (Understanding the Consumer Protection Act, 1986)
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 एक ऐसा कानून है जिसे उपभोक्ताओं (Consumers) के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया था। इस अधिनियम (Act) का मुख्य उद्देश्य यह है कि आम आदमी को धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार व्यवहार (Unfair Trade Practices) से बचाया जाए और उन्हें न्याय की आसान पहुँच (Access to Justice) मिले।
यह अधिनियम एक सामाजिक कल्याण कानून (Social-Welfare Legislation) माना जाता है, इसलिए अदालतें इसके प्रावधानों (Provisions) की व्याख्या (Interpretation) उपभोक्ताओं के हित में करती हैं।
उपभोक्ताओं के पक्ष में उदार व्याख्या (Liberal Interpretation Favouring Consumers)
National Insurance Co. Ltd. v. Harsolia Motors नामक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उपभोक्ता कानून (Consumer Law) की व्याख्या उदार (Liberal) और रचनात्मक (Constructive) तरीके से की जानी चाहिए। इसका मतलब यह है कि जब कानून के किसी प्रावधान में अस्पष्टता (Ambiguity) हो, तब उसकी व्याख्या उपभोक्ता के पक्ष में की जानी चाहिए। ऐसा करने से इस कानून के उद्देश्य की पूर्ति होती है, जो कि उपभोक्ता की रक्षा करना है।
'उपभोक्ता' की परिभाषा (Definition of 'Consumer') अधिनियम के अनुसार
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(d) के अनुसार उपभोक्ता वह व्यक्ति होता है जो किसी वस्तु को मूल्य (Consideration) देकर खरीदता है या सेवा (Service) प्राप्त करता है, लेकिन पुनर्विक्रय (Resale) या व्यावसायिक उद्देश्य (Commercial Purpose) के लिए नहीं। वर्षों से यह विवाद रहा है कि क्या कोई कंपनी या व्यावसायिक संस्था (Commercial Entity) उपभोक्ता मानी जा सकती है। यहाँ महत्वपूर्ण प्रश्न यह होता है कि वस्तु या सेवा किस उद्देश्य से ली गई है।
व्यावसायिक उद्देश्य की पहचान के लिए दोहरा परीक्षण (Two-Fold Test for Commercial Purpose)
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह तय करने के लिए दोहरा परीक्षण (Two-Fold Test) दिया कि कोई व्यक्ति या संस्था उपभोक्ता मानी जाएगी या नहीं। पहला परीक्षण यह देखता है कि वस्तु को पुनर्विक्रय या व्यावसायिक गतिविधि के लिए खरीदा गया या नहीं। दूसरा यह देखता है कि सेवा को किसी व्यावसायिक उद्देश्य से लिया गया या नहीं। यदि उत्तर 'हाँ' है, तो उस व्यक्ति को उपभोक्ता नहीं माना जाएगा।
उदाहरण के लिए, यदि कोई फैक्टरी उत्पादन के लिए कच्चा माल खरीदती है, तो वह व्यावसायिक उद्देश्य से हुआ और वह उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं आएगा। लेकिन यदि वही फैक्टरी अपने ऑफिस के रसोईघर (Kitchen) के लिए एक फ्रिज खरीदती है, तो वह लाभ कमाने के उद्देश्य से नहीं है, इसलिए वह उपभोक्ता के रूप में संरक्षित रहेगी।
'व्यावसायिक उद्देश्य' का सीमित और सटीक अर्थ (Clarification on the Meaning of 'Commercial Purpose')
कोर्ट ने कहा कि 'व्यावसायिक उद्देश्य' (Commercial Purpose) को बहुत व्यापक (Broad) तरीके से नहीं देखा जाना चाहिए। यदि कोई वस्तु या सेवा किसी ऐसे कार्य के लिए उपयोग में लाई गई है जिसका सीधा उद्देश्य लाभ (Profit) कमाना नहीं है, तो उसे व्यावसायिक उद्देश्य नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि व्यावसायिक उद्देश्य का तात्पर्य लाभ कमाने की मंशा से है। यदि ऐसा उद्देश्य न हो, तो व्यक्ति या संस्था को उपभोक्ता माना जा सकता है।
उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति यदि अपनी चिकित्सा (Medical Treatment) के लिए डॉक्टर की सेवा लेता है, तो यह व्यक्तिगत उपयोग के लिए है और इसमें लाभ कमाने का कोई उद्देश्य नहीं है। लेकिन यदि कोई अस्पताल डॉक्टर को सेवा में लेता है, तो वह अपने व्यवसाय का हिस्सा है और वह व्यावसायिक उद्देश्य माना जाएगा।
बीमा अनुबंधों (Insurance Contracts) में इन सिद्धांतों का उपयोग (Application to Insurance Contracts)
इस मामले का एक मुख्य विषय यह था कि क्या बीमा पॉलिसी (Insurance Policy) लेना व्यावसायिक गतिविधि (Commercial Activity) मानी जाएगी? कोर्ट ने कहा कि बीमा केवल जोखिम (Risk) को कवर करने के लिए लिया जाता है, न कि लाभ कमाने के लिए। बीमा कंपनी केवल हानि होने पर हर्जाना (Compensation) देती है, इसमें बीमा धारक (Insured) को कोई लाभ नहीं मिलता।
इसलिए, अगर कोई व्यावसायिक संस्था भी बीमा खरीदती है, तो वह लाभ कमाने के उद्देश्य से नहीं होती, बल्कि जोखिम को कवर करने के लिए होती है। अतः ऐसी संस्थाएं भी उपभोक्ता मानी जाएँगी, विशेषकर बीमा सेवा के संदर्भ में।
राष्ट्रीय और राज्य आयोगों (National and State Commissions) की भूमिका
शुरुआत में राज्य आयोग (State Commission) ने कहा कि बीमा लेने वाली कंपनी एक व्यावसायिक संस्था है, इसलिए वह उपभोक्ता नहीं है। लेकिन राष्ट्रीय आयोग (National Commission) ने इस निर्णय को पलट दिया और सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय आयोग के निर्णय को सही माना। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर मामला उसके विशेष तथ्यों (Specific Facts) पर आधारित होना चाहिए।
इसका अर्थ यह है कि सभी व्यावसायिक संस्थाएं अपने आप उपभोक्ता संरक्षण कानून से बाहर नहीं हो जातीं। यह निर्भर करता है कि वस्तु या सेवा का उपयोग किस उद्देश्य से हुआ।
महत्वपूर्ण पूर्व निर्णयों (Judicial Precedents) का उल्लेख
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में कई पुराने निर्णयों का उल्लेख किया। Laxmi Engineering Works v. P.S.G. Industrial Institute (1995) मामले में कहा गया था कि यदि कोई व्यावसायिक संस्था किसी वस्तु को अपने व्यक्तिगत उपयोग (Personal Use) के लिए लेती है, तो वह उपभोक्ता हो सकती है।
साथ ही Karcher Cleaning Systems Pvt. Ltd. v. M/s. PIT-Stop Car Care और Kavita Ahuja v. Shipra Estate Developers Ltd. जैसे मामलों का भी उल्लेख किया गया जहाँ अदालतों ने उपभोक्ता शब्द की उदार व्याख्या की थी।
National Insurance Co. Ltd. v. Harsolia Motors के निर्णय ने उपभोक्ता कानून की मूल भावना को और मजबूत किया है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि व्यावसायिक संस्थाओं को भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण मिल सकता है, यदि उनका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं बल्कि केवल सुरक्षा (Protection) है।
यह निर्णय उन लोगों और संस्थाओं को ताकत देता है जो बीमा जैसी सेवाएँ केवल जोखिम से सुरक्षा के लिए लेते हैं, न कि व्यापार के लाभ के लिए। यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें उपभोक्ता मंच (Consumer Forum) में न्याय की सुविधा से वंचित न किया जाए।
सारांश में, यह निर्णय उपभोक्ता कानून के सामाजिक और कल्याणकारी उद्देश्य को आगे बढ़ाता है और यह सुनिश्चित करता है कि अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके, चाहे वे व्यक्ति हों या संस्थाएँ।

