राजस्थान न्यायालय शुल्क और वादों के मूल्य निर्धारण अधिनियम 1961 की धारा 56 के अंतर्गत कम शुल्क चुकाने की स्थिति में विधिक प्रक्रिया

Himanshu Mishra

7 May 2025 8:11 PM IST

  • राजस्थान न्यायालय शुल्क और वादों के मूल्य निर्धारण अधिनियम 1961 की धारा 56 के अंतर्गत कम शुल्क चुकाने की स्थिति में विधिक प्रक्रिया

    राजस्थान न्यायालय शुल्क और वादों के मूल्य निर्धारण अधिनियम, 1961 की धारा 56 (Section 56) उन परिस्थितियों को संबोधित करती है जहाँ वसीयत (Probate) या उत्तराधिकार पत्र (Letters of Administration) के लिए कम शुल्क का भुगतान किया गया हो।

    यह धारा सुनिश्चित करती है कि यदि किसी त्रुटि या अज्ञानता के कारण कम शुल्क का भुगतान हुआ है, तो उसे कैसे सुधारा जा सकता है और यदि जानबूझकर ऐसा किया गया है, तो क्या दंड निर्धारित है।

    धारा 56(1): त्रुटि के कारण कम शुल्क का भुगतान

    यदि किसी वसीयत या उत्तराधिकार पत्र पर कम शुल्क का भुगतान किसी त्रुटि या अज्ञानता के कारण हुआ है, तो निष्पादक (Executor) या प्रशासक (Administrator) कलेक्टर के पास आवेदन कर सकता है। यह आवेदन अनुसूची III के भाग II में निर्धारित फॉर्म में होना चाहिए और त्रुटि के पता चलने के छह महीने के भीतर किया जाना चाहिए। यदि कलेक्टर संतुष्ट होता है कि यह त्रुटि जानबूझकर नहीं की गई थी, तो वह वसीयत या उत्तराधिकार पत्र को उचित शुल्क के साथ मुद्रित करवा सकता है।

    धारा 56(2): निर्धारित समय में शुल्क का भुगतान न करने पर दंड

    यदि निष्पादक या प्रशासक छह महीने की अवधि में शेष शुल्क का भुगतान नहीं करता है, तो उसे उस राशि का पांच गुना तक दंड के रूप में देना पड़ सकता है।

    धारा 56(3): आवेदन न करने या जानबूझकर त्रुटि करने की स्थिति में कार्रवाई

    यदि कोई आवेदन नहीं किया गया है और कलेक्टर संतुष्ट है कि त्रुटि जानबूझकर की गई थी या आवेदन छह महीने की अवधि में नहीं किया गया, तो वह वसीयत या उत्तराधिकार पत्र को उचित शुल्क के साथ मुद्रित करवा सकता है और इसके अतिरिक्त पांच गुना तक का दंड भी लगा सकता है।

    धारा 56(4): जांच के बाद कम शुल्क का पता चलने पर कार्रवाई

    यदि धारा 54 या 55 के अंतर्गत जांच के बाद यह पाया जाता है कि कम शुल्क का भुगतान किया गया है, तो कलेक्टर वसीयत या उत्तराधिकार पत्र को उचित शुल्क के साथ मुद्रित करवा सकता है। यदि वह संतुष्ट होता है कि मूल मूल्यांकन जानबूझकर कम किया गया था, तो वह पांच गुना तक का अतिरिक्त दंड भी लगा सकता है।

    धारा 56(5): दंड में छूट

    राजस्व बोर्ड (Board of Revenue) को यह अधिकार है कि वह धारा 56(2), 56(3) या 56(4) के अंतर्गत लगाए गए दंड या उसके किसी भाग को माफ कर सकता है।

    पूर्ववर्ती धाराओं का संदर्भ

    धारा 50 के अनुसार, वसीयत या उत्तराधिकार पत्र के लिए आवेदन करते समय संपत्ति का मूल्यांकन प्रस्तुत करना अनिवार्य है। यह मूल्यांकन दो प्रतियों में होना चाहिए और संबंधित जिले के कलेक्टर को भेजा जाता है।

    धारा 54 में कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह प्रस्तुत मूल्यांकन की जांच कर सकता है और यदि उसे संदेह होता है कि मूल्यांकन कम करके प्रस्तुत किया गया है, तो वह न्यायालय से जांच कराने का अनुरोध कर सकता है।

    धारा 55 में न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि वह कलेक्टर के अनुरोध पर संपत्ति के वास्तविक मूल्य की जांच कर सकता है और उचित शुल्क का निर्धारण कर सकता है।

    उदाहरण

    मान लीजिए, एक व्यक्ति ने वसीयत के लिए आवेदन किया और संपत्ति का मूल्यांकन ₹50 लाख प्रस्तुत किया। बाद में पता चलता है कि संपत्ति का वास्तविक मूल्य ₹70 लाख है। यदि यह त्रुटि अज्ञानता के कारण हुई थी और निष्पादक छह महीने के भीतर शेष ₹20 लाख के मूल्य पर शुल्क का भुगतान करता है, तो कलेक्टर वसीयत को उचित शुल्क के साथ मुद्रित करवा सकता है।

    यदि निष्पादक छह महीने के भीतर शेष शुल्क का भुगतान नहीं करता है, तो उसे ₹20 लाख के मूल्य पर निर्धारित शुल्क का पांच गुना तक दंड देना पड़ सकता है।

    यदि कलेक्टर को लगता है कि यह त्रुटि जानबूझकर की गई थी, तो वह वसीयत को उचित शुल्क के साथ मुद्रित करवा सकता है और इसके अतिरिक्त पांच गुना तक का दंड भी लगा सकता है।

    धारा 56 यह सुनिश्चित करती है कि वसीयत या उत्तराधिकार पत्र के लिए उचित शुल्क का भुगतान किया जाए। यदि किसी त्रुटि या अज्ञानता के कारण कम शुल्क का भुगतान हुआ है, तो उसे सुधारने का अवसर दिया जाता है। हालांकि, यदि यह जानबूझकर किया गया है, तो दंड का प्रावधान भी है। यह धारा न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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