सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के हाथों आदिवासियों की हत्या की जांच की मांग वाली याचिका खारिज की; याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

Brij Nandan

14 July 2022 6:10 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के हाथों आदिवासियों की हत्या की जांच की मांग वाली याचिका खारिज की; याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के हाथों आदिवासियों की हत्या की जांच की मांग वाली साल 2009 में दाखिल याचिका खारिज किया। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

    जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने 2009 में एक हिमांशु कुमार और 12 अन्य द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाया। बेंच ने 19 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    प्रथम याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति के समक्ष 4 सप्ताह के भीतर जमा करने का निर्देश दिया गया है, ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ वसूली के कदम उठाए जाएंगे।

    केंद्र सरकार ने न केवल याचिका का विरोध किया बल्कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ झूठी गवाही की कार्यवाही की मांग करते हुए एक आवेदन भी दायर किया था।

    केंद्र की याचिका के संबंध में कोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य को आईपीसी की धारा 211 के तहत झूठे आरोप लगाने के अपराध के लिए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की छूट दी।

    कोर्ट ने कहा कि न केवल झूठे आरोप बल्कि आपराधिक साजिश के लिए भी कार्रवाई की जा सकती है। याचिकाकर्ता के खिलाफ झूठी गवाही की कार्यवाही शुरू करने की केंद्र की याचिका के संबंध में कोर्ट ने कहा कि वह उस पर कार्यवाही नहीं कर रहा है।

    जस्टिस पारदीवाला ने कहा,

    "हम इसे छत्तीसगढ़ राज्य पर छोड़ते हैं कि वह अंतरिम आवेदन में बयानों के संदर्भ में ऊपर चर्चा की गई कानून के अनुसार उपयुक्त कदम उठाए। हम स्पष्ट करते हैं कि यह केवल आईपीसी की धारा 211 के अपराध तक ही सीमित नहीं होगा। साजिश या किसी अन्य अपराध का मामला भी सामने आ सकता है। हमने कोई अंतिम राय व्यक्त नहीं की है। हम आगे कार्यवाही नहीं कर रहे हैं, लेकिन उचित कदम उठाने के लिए राज्य पर छोड़ते हैं। धारा 211 या किसी अन्य के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।"

    भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अनुरोध किया कि एक केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच की अनुमति दी जाए, यह कहते हुए कि साजिश के "अंतर-राज्य प्रभाव" हो सकते हैं।

    एसजी ने प्रस्तुत किया,

    "क्या केंद्रीय एजेंसी को अनुमति दी जा सकती है। कृपया इसे स्पष्ट करें।"

    जस्टिस खानविलकर ने कहा,

    "हम इसे स्पष्ट करेंगे और आदेश पर हस्ताक्षर करेंगे।"

    केंद्र ने कहा,

    "इसके आवेदन में चरमपंथियों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार और अत्याचार के शिकार लोगों को धोखाधड़ी और साजिश के माध्यम से इस माननीय अदालत से सुरक्षात्मक आदेश प्राप्त करके चरमपंथियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए गुमराह किया जा रहा है।"

    भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि राज्य पुलिस ने 2009 की घटनाओं के संबंध में प्राथमिकी दर्ज की थी और कई मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए हैं।

    एसजी ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता 1- हिमांशु कुमार- एक एनजीओ वनवासी चेतना आश्रम के निदेशक हैं, जिसका एफसीआरए लाइसेंस विदेशी योगदान का हिसाब नहीं देने के कारण निलंबित कर दिया गया था।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि सीबीआई/एनआईए द्वारा एक स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।

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