संपादकीय
क्रिमिनल ट्रायल : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कानून अभियुक्त को वैकल्पिक दलील अपनाने से नहीं रोकता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून अभियुक्त को वैकल्पिक दलीलों को अपनाने से नहीं रोकता। कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी यह कहते हुए की है कि एक हत्या का अभियुक्त यह दलील दे सकता है कि वह उस करतूत में शामिल नहीं था, जिसके कारण मृतका की मौत हुई, लेकिन इससे वह उस तथ्य को स्थापित करने के अपने अधिकार से वंचित नहीं हो जाता कि उसके खिलाफ मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के तहत वर्णित किसी अपवाद के दायरे में रखा जाये। इस मामले के अभियुक्त और उसकी मां के खिलाफ अभियुक्त की पत्नी की हत्या का मामला चला था।...
सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप, पिछ्ले सप्ताह SC के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप, पिछ्ले सप्ताह SC के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र सुप्रीम कोर्ट में 20 जनवरी 2020 से 24 जनवरी 2020 का सप्ताह कैसा रहा। यह जानने के लिए पेश हैं पिछले सप्ताह के सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर?/जजमेंट पर एक नज़र। सीएए को SC में चुनौती : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया सुप्रीम कोर्ट ने विवादित नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली लगभग 140 रिट याचिकाओं का जवाब देने के लिए बुधवार को...
जानिए संविधान के रक्षक भारत के सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां
भारत के सुप्रीम कोर्ट (उच्चतम न्यायालय) को संविधान का रक्षक कहा जाता है तथा समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान की रक्षा की गई है। संवैधानिक व्यवस्था के माध्यम से ही उच्चतम न्यायालय को इतना महत्व और इतनी शक्तियां दी गई हैं। भारत का उच्चतम न्यायालय न्यायपालिका का सर्वोच्च स्थान है। इसे संघ की न्यायपालिका भी कहा जाता है। संविधान के अनुच्छेद 124 के अंतर्गत भारत के उच्चतम न्यायालय के स्थापना का उपबंध किया गया है। उच्चतम न्यायालय को संविधान के उपबंधों की व्याख्या के संबंध में अपना अंतिम...
म्यांमार के भेदभावपूर्ण नागरिकता कानून और नरसंहार से सबक
मनु सेबेस्टियनइंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने रोहिंग्या नरसंहार के मामले में अफ्रीकी देश द गाम्बिया द्वारा दायर एक अपील पर म्यांमार के खिलाफ एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। यह फैसला म्यांमार के आधिकारिक रुख के लिए तगड़ा झटका है, जिसने रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान और अस्तित्व को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत ने माना है कि रोहिंग्या जेनोसाइट कन्वेंशन की परिभाषा के तहत "संरक्षित समूह" हैं। कोर्ट ने म्यांमार को रोहिंग्याओं के संरक्षण का उपाय करने के लिए अस्थायी आदेश...
अभियुक्त के इन अधिकारों का उल्लेख करती है सीआरपीसी की धारा 167
सीआरपीसी की धारा 167 अभियुक्त के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस धारा के अंतर्गत अभियुक्त को जमानत तक मिल जाती है तथा अभियुक्त को कितने समय अवधि के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना है। इसकी जानकारी इस धारा के अंतर्गत दी गई है। यह धारा अभियुक्त के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, इस धारा को पुलिस अन्वेषण वाले अध्याय में रखा गया है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 किया धारा 167 अभियुक्त के लिए तीन प्रकार की राहत प्रदान करती है तथा इन तीनों बातों का उल्लेख इस धारा के अंतर्गत किया गया है। 1. गिरफ्तार...
आखिर वकीलों को क्यों देनी चाहिए प्रो-बोनो (निशुल्क) कानूनी सहायता?: कुछ सुझाव
'प्रो बोनो पब्लिको' एक लैटिन वाक्यांश है जिसका अर्थ है "लोगों की भलाई के लिए"। यह आमतौर पर अपने संक्षिप्त रूप "प्रो बोनो" के रूप में उपयोग किया जाता है। कानूनी क्षेत्र में, "प्रो बोनो" शब्द का अर्थ उन कानूनी सेवाओं से है जो जनता की भलाई के लिए या तो मुफ्त में या कम शुल्क पर दी जाती हैं। नि:शुल्क कानूनी सहायता (pro bono legal service) को पारंपरिक कानूनी सहायता सेवाओं, जो कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा वकीलों के माध्यम से मुहैया करायी जाती है, से अलग समझा जाना चाहिए। यह उम्मीद की जाती है कि...
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के ख़िलाफ़ चुनौतियां : बुनियादी बहसों से आगे की बात
अभी तक नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के ख़िलाफ़ बहस इन दलीलों के इर्द गिर्द रही है : (a) क्या सिर्फ़ कुछ चुनिंदा आप्रवासियों को नागरिकता देना और जिन व्यक्तियों और समूहों को बाहर रखा गया है उसकी वजह से यह अनुच्छेद 14 के तहत "वाजिब वर्गीकरण" के सिद्धांत का उल्लंघन करता है या नहीं?; (b) क्या किसी समूह को चुनना "निर्धारण के सिद्धांत"को नज़रंदाज़ करता है, और इस वजह से क्या यह असंवैधानिक रूप से मनमाना है?; और (c) नागरिकता के दावे के लिए धार्मिक उत्पीड़न को अन्य किसी भी तरह के उत्पीड़न पर वरीयता...
भारत के संविधान की प्रस्तावना (Preamble) के बारे में ख़ास बातें
भारत के संविधान की मसौदा समिति (Drafting Committee) ने यह देखा था कि प्रस्तावना/उद्देशिका (Preamble) को नए राष्ट्र की महत्वपूर्ण विशेषताओं को परिभाषित करने तक ही सीमित होना चाहिए और उसके सामाजिक-राजनीतिक उद्देश्यों एवं अन्य महत्वपूर्ण मामलों को संविधान में और विस्तार से समझाया जाना चाहिए। संविधान के निर्माताओं का अंतिम उद्देश्य एक कल्याणकारी राज्य और समतामूलक समाज का निर्माण करना था, जिसमें भारत के उन लोगों के उद्देश्य और आकांक्षाएं शामिल हों जिन्होंने देश की आजादी की प्राप्ति के लिए अपना...
साक्ष्य विधि : क्या होती है एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों की सुसंगति, जानिए रेस जेस्टे का सिद्धांत
साक्ष्य विधि का कार्य उन नियमों का प्रतिपादन करना है, जिनके द्वारा न्यायालय के समक्ष तथ्य साबित और खारिज किए जाते हैं। किसी तथ्य को साबित करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जा सकती है, उसके नियम साक्ष्य विधि द्वारा तय किये जाते हैं। साक्ष्य विधि अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है। समस्त भारत की न्याय प्रक्रिया भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की बुनियाद पर टिकी हुई है। साक्ष्य अधिनियम आपराधिक तथा सिविल दोनों प्रकार की विधियों में निर्णायक भूमिका निभाता है। इस साक्ष्य अधिनियम के माध्यम से ही यह तय...
मद्रास हाईकोर्ट ने फर्जी पत्रकार के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया कहा, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले कई लोग पत्रकार होने का दावा करते हैं
मद्रास हाईकोर्ट ने 'फर्जी पत्रकारों 'के मुद्दे पर स्वत संज्ञान नोटिस लिया है और समस्या से निपटने के लिए तमिलनाडु सरकार, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और विभिन्न पत्रकार निकायों से जवाब मांगा है। जस्टिस एन .किरुबाकरन और जस्टिस पी. वेलमुरुगन की खंडपीठ ने 10 जनवरी को इस मुद्दे पर उस समय संज्ञान लिया, जब पीठ एक एस.सेकरन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में मूर्ति चोरी के मामले में उचित जांच की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह एक पाक्षिक पत्रिका चला रहा था जिसका नाम...
क्या सांसद/विधायक वकालत कर सकते हैं, जानिए अधिवक्ता अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट का विचार
वकालत पेशे से जुड़ा हर व्यक्ति यह मानता और महसूस करता है कि वकील, मुखर प्रकृति के होते हैं और वे अपनी तार्किक सोच के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं। कानून की शिक्षा ग्रहण करने के पश्च्यात, उन्हें कानून को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है। अंतत: देश को कानून के शासन के अनुसार ही चलना होता है। यही कारण है कि हमारे संसद में और विभिन्न राज्यों के विधायी सदनों में हमे तमाम कानून के जानकार एवं वकील, सदस्य के रूप में दिखाई पड़ते हैं।जैसा कि हम जानते हैं, कानून बनाना विधायिका का कार्य है और इसमें...
यूएई को पारस्परिक देश घोषित किए जाने का क्या मतलब है? सेक्शन 44A सीपीसी का विश्लेषण
आदित्य जैन, प्रणव शर्मासिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 44A पारस्परिकता के सिद्धांत अर्थात भारत में किसी विदेशी देश द्वारा पारित आदेश का निष्पादन करना और करने की विधि, का संक्षिप्तिकरण करती है। उक्त प्रावधान निम्नानुसार है: 44A-पारस्परिक क्षेत्र में कोर्ट द्वारा पारित निर्णयों का निष्पादन- (1) जहां किसी भी पारस्परिक क्षेत्र के उच्चतर न्यायालयों के आदेश की प्रमाणित प्रति जिला न्यायालय में दाखिल की गई हो, आदेश को (भारत) में वैसे ही निष्पादित किया जा सकता है, जैसे कि यह जिला न्यायालय...
बॉम्बे हाईकोर्ट के वकीलों ने CAA-NRC के खिलाफ प्रोटेस्ट में अपना समर्थन देने के लिए संविधान की प्रस्तावना पढ़ी
सोमवार को लगभग सौ वकील बॉम्बे हाईकोर्ट के गेट नंबर 6 के बाहर इकट्ठा हुए और पूरे देश में हो रहे नागरिकता संशोधन अधिनियम, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के साथ अपनी एकजुटता दिखाने के लिए भारत के संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया। इस समूह का नेतृत्व नवरोज सरवई, मिहिर देसाई और गायत्री सिंह जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने किया। सीएए के खिलाफ वकीलों ने सभी अधिवक्ताओं को दोपहर 2 बजे (लंच के समय) हाईकोर्ट के बाहर इकट्ठा होने के लिए आमंत्रित किया और कहा- "सीएए, एनआरसी और एनपीआर के चल रहे विरोध...
सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप, पिछले सप्ताह के कुछ खास जजमेंट/ऑर्डर पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में 13 जनवरी से 17 जनवरी 2020 के सप्ताह में कुछ अहम मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। एक नज़र सुप्रीम कोर्ट के वीकली राउंड अप पर डालिए। किराए के घर के एक हिस्से को किसी दूसरे को किराए पर देने से मकान मालिक को मिल जाता है पूरा घर खाली कराने का अधिकार-सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने केरल बिल्डिंग (लीज एंड रेंट कंट्रोल), अधिनियम, 1965( Kerala Buildings (Lease and Rent Control), Act, 1965]) के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए कहा है कि किराए के परिसर या घर के किसी भी हिस्से...
क्या होता है सबूत का भार? जानिए साक्ष्य अधिनियम की खास बातें
साक्ष्य विधि का कार्य उन नियमों का प्रतिपादन करना है, जिनके द्वारा न्यायालय के समक्ष तथ्य साबित और खारिज किए जाते हैं। किसी तथ्य को साबित करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जा सकती है, उसके नियम साक्ष्य विधि द्वारा तय किये जाते हैं। साक्ष्य विधि अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है। समस्त भारत की न्याय प्रक्रिया भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की बुनियाद पर टिकी हुई है। साक्ष्य अधिनियम आपराधिक तथा सिविल दोनों प्रकार की विधियों में निर्णायक भूमिका निभाता है। इस साक्ष्य अधिनियम के माध्यम से ही यह तय...
ट्रायल शुरू होने के बाद याचिका में संशोधन: सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि साक्ष्य के स्तर पर याचिकाओं में संशोधन की अनुमति केवल तभी दी जा सकती है, जब न्यायालय इस बात से संतुष्ट हो कि सम्यक तत्परता के बावजूद पक्षकार ट्रायल शुरू होने से पहले संशोधन का अनुरोध नहीं कर सका। बंटवारा के एक मुकदमे में, गवाही पहले ही शुरू हो गयी थी और उस स्तर पर, वादी ने याचिका में संशोधन की मांग को लेकर अर्जी दी थी। बचाव पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए प्रतिवाद किया था कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी), 1908 के नियम-16 आदेश-6 के मद्देनजर याचिका में...
आदर्श आचार संहिता के दौरान राजनीतिक विज्ञापनों पर अंकुश लगाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि आदर्श आचार संहिता के दौरान राजनीतिक विज्ञापनों पर प्रतिबंध न तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न ही व्यापार करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने कहा है कि व्यवसायिक भाषा पर उक्त प्रतिबंध तर्क की कसौटी पर खरा उतरता है, क्योंकि यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए व्यापक सार्वजनिक हित के चलते लगाया गया है। याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग और दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन द्वारा उनको जारी किए गए पत्रों को चुनौती दी थी। इन पत्रों में...
निर्भया मामला: जानिए क्यों बदली गई दोषियों को फांसी दिए जाने की तारीख?
जैसा कि हम सब जानते हैं कि निर्भया बलात्कार-हत्या के मामले में चारों दोषियों को फांसी देने की तारीख में बदलाव किया गया है। अब चारों दोषियों को 1 फरवरी, 2020 को फांसी दी जाएगी। इससे पहले दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार (7 जनवरी, 2020) को इस मामले में 4 दोषियों को फांसी की सजा के लिए 22 जनवरी को सुबह 7 बजे का वक़्त मुक़र्रर करते हुए डेथ वारंट जारी किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीते 14 जनवरी को मामले में दोषी, मुकेश और विनय की क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया था। उसी दिन, मुकेश ने दिल्ली के...
क्या वकीलों को है विरोध प्रदर्शन या न्यायालय का बहिष्कार करने का अधिकार?
न्यायालय, न्याय का एक ऐसा मंदिर है जहाँ एक हर कोई अपने विवाद को सुलझाने/निपटाने के लिए आता है। वकील एवं न्यायिक अधिकारी ऐसे लोगों को न्याय दिलाने में एक अहम् भूमिका निभाते हैं। यह भी अपेक्षा की जाती है कि जब कोई व्यक्ति न्याय पाने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाए तो हमे उसके लिए ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना चाहिए जहाँ वो बिना किसी झंझट एवं परेशानी के अपने विवाद का निपटारा कर सके। हालाँकि, अक्सर ही हम देखते हैं की वकीलों द्वारा हड़ताल बुलाई जाती है, जहाँ वे सभी प्रकार के न्यायिक कार्य से विरत...
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे क्वीन्स काउंसेल नियुक्त
देश के जाने-माने वकील एवं भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे को 'इंग्लैंड एंड वेल्स'कोर्ट के लिए क्वीन्स काउंसेल (क्यूसी) नियुक्त किया गया है।ब्रिटेन के न्याय मंत्रालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता साल्वे को इस पद पर नियुक्त किया है।क्वीन्स काउंसेल को 'सिल्क' अर्थात् सलाहकार भी कहा जाता है। यह प्रतिष्ठित पद वकालत पेशे में उत्कृष्ट कौशल प्रदर्शित करने और निपुणता दिखाने वाले वकीलों को ही प्रदान किया जाता है। क्वीन्स काउंसेल की नियुक्ति लॉर्ड चांसलर की सलाह पर ब्रिटिश की महारानी करती हैं। इस पद के...