सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप, पिछ्ले सप्ताह SC के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Sharafat Khan

27 Jan 2020 5:39 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप, पिछ्ले सप्ताह SC के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप, पिछ्ले सप्ताह SC के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में 20 जनवरी 2020 से 24 जनवरी 2020 का सप्ताह कैसा रहा। यह जानने के लिए पेश हैं पिछले सप्ताह के सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर?/जजमेंट पर एक नज़र।

    सीएए को SC में चुनौती : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने विवादित नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली लगभग 140 रिट याचिकाओं का जवाब देने के लिए बुधवार को केंद्र सरकार को चार सप्ताह का समय दिया।

    हालांकि पार्टियों ने अदालत से इस बीच अधिनियम के तहत प्रक्रिया के कार्यान्वयन को स्थगित करने का आग्रह किया, लेकिन पीठ ने इस तरह की राहत देने का कोई आदेश पारित नहीं किया। CJI एसए बोबडे, जस्टिस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने भी असम और त्रिपुरा की याचिकाओं पर अलग से विचार करने पर सहमति व्यक्त की।

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    "हम किसी मंत्री को प्रतिबंधित नहीं कर सकते" सुप्रीम कोर्ट ने बहस जारी रखी कि क्या सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति की बोलने की आजादी पर अंकुश लगाया जा सकता है?

    जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस इंदिरा बैनर्जी, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की भारत के सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में सुनवाई फिर से शुरू की।

    यह मामला बुलंदशहर में बलात्कार की घटना से सामने आया है जिसमें राज्य के एक मंत्री, आज़म खान ने इस घटना को "राजनीतिक साजिश और कुछ नहीं" के रूप में खारिज कर दिया था। "हम एक मंत्री को रोक नहीं सकते। वह एक सार्वजनिक अधिकारी है। वह बोल सकते हैं! वह विरोध की आवाज है! वास्तविक अर्थों की आवाज, वह जो मानते हैं।

    हमारे पास याचिकाएं और याचिकाएं नहीं आ सकती हैं। इस अदालत में आना, 32 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का दावा करना! हम यह नहीं कह सकते कि यह सजा है और सभी ... हमें किसी विशेष मामले के तथ्यों की जांच करनी होगी और कानून तय करना होगा| " बुधवार को जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा।

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    अयोध्या रामजन्म भूमि- बाबरी विवाद : सुप्रीम कोर्ट में पीस पार्टी ने दाखिल की क्यूरेटिव याचिका

    उत्तर प्रदेश पीस पार्टी के अध्यक्ष मोहम्मद अय्यूब ने अयोध्या रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल की है। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में ये पहली क्यूरेटिव याचिका दाखिल की गई है जबकि अन्य पक्षकारों ने ये दाखिल नहीं की है। इससे पहले 12 दिसंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी 19 पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया था। पांच जजों की पीठ ने कहा था कि याचिकाओं में कोई आधार नहीं है।

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    जिस माता या पिता को बच्चे की कस्टडी नहीं मिली है, उसे बच्चे से प्रतिदिन बात करने का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिस माता या पिता को बच्चे की कस्टडी नहीं दी मिली है, उसे अपने बच्चे से प्रतिदिन 5-10 मिनट तक बात करने का अधिकार होना चाहिए। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि कस्टडी के मामलों से निपटने वाली अदालतों को कस्टडी के मुद्दों का फैसला करते समय स्पष्ट रूप से मुलाकात के अधिकारों की प्रकृति, तरीके और बारीकियों को परिभाषित करना चाहिए।

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    पंजीकरण अधिनियम की धारा 32 के तहत बिक्री विेलेख पंजीकरण के दौरान दोनों पक्षों की उपस्थिति जरूरी नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 32 के तहत ब्रिकी विलेख के पंजीकरण के दौरान दोनों पक्षों का उपस्थित रहना जरूरी नहीं है। हालांकि, गौरतलब है कि राज्यों द्वारा बनाये गये नियमों के तहत क्रेता और विक्रेता दोनों की उपस्थिति जरूरी हो सकती है। इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने वादी द्वारा दायर मुकदमे पर इस आधार पर हुक्मनामा दिया कि बिक्री विलेख के पंजीकरण के समय क्रेता वहां मौजूद नहीं था।

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    न्याय दिलाने में कोर्ट की मदद करना सरकार का संवैधानिक कर्तव्य, सरकार निजी मुकदमेबाज की तरह व्यवहार नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार निजी मुकदमेबाज की तरह व्यवहार नहीं कर सकती और न्याय दिलाने में कोर्ट की मदद करना उसका (सरकार का) पवित्र एवं संवैधानिक दायित्व है। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था। हाईकोर्ट ने सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) में छूट न देने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली रिट याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि न तो सरकारी अधिकारियों को सीमा शुल्क से छूट संबंधी 'स्पष्टीकरण अधिसूचना' की जानकारी नहीं थी, न ही याचिकाकर्ता ने इसे रिकॉर्ड में लाया था।

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    2012 निर्भया गैंगरेप केस में मौत की सजायाफ्ता मुकेश सिंह ने राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में 1 फरवरी के लिए जारी डेथ वारंट पर भी रोक लगाने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति ने जल्दबाज़ी में उसका दया याचिका पर फैसला लिया है और उन्होंने उसके तथ्यों पर विचार नहीं किया है। इसके साथ ही उसे तिहाड़ जेल की काल कोठरी से बाहर निकालने के निर्देश भी मांगे गए हैं।

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    कथित अपराधों की गम्भीरता जमानत अर्जी खारिज करने का आधार नहीं बन सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी के खिलाफ अपराधों की गम्भीरता जमानत अर्जी ठुकराने का आधार नहीं हो सकती है। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने हत्या में शामिल होने के आरोपों का सामना कर रहे दो अभियुक्तों को जमानत दे दी थी।

    जमानत आदेश खारिज करने के अपीलीय अदालत के अधिकार क्षेत्र का निर्धारण करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ही हालिया आदेश का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा : दो ही कारणों से इस तरह के आदेश में हस्तक्षेप किया जाता है- या तो जमानत मंजूर करने वाले कोर्ट ने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया हो या जमानत देने में कोर्ट की राय पहली ही नजर में रिकॉर्ड पर लाये गये साक्ष्यों से नहीं बनी हो।

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    CAA विरोधी प्रदर्शन : UP में प्रदर्शनकारियों से संपत्ति का नुकसान वसूलने के नोटिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून और NRC के खिलाफ के विरोध प्रदर्शनों के कारण सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए उत्तर प्रदेश के जिला प्रशासन द्वारा जारी नोटिस को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

    कथित तौर पर, 19 दिसंबर, 2019 को लखनऊ और राज्य के अन्य हिस्सों में हुए विरोध प्रदर्शनों में सरकारी और निजी संपत्ति को कई नुकसान पहुंचाया गया जिसमें सरकारी बसें, मीडिया वैन, मोटर बाइक, आदि भी शामिल थी। मोहम्मद शुजाउद्दीन बनाम उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के अनुसार ये नोटिस जारी किए गए जिसमें कहा गया था कि सरकार द्वारा नामांकित प्राधिकरण को नुकसान का आकलन और जनता से दावे प्राप्त करने हैं।

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    NDPS मामलों में जमानत के लिए उदार दृष्टिकोण अनावश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि NDPS मामलों में जमानत के मामले में उदार दृष्टिकोण नहीं हो सकता है। न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ​​और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि न्यायालय को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 37 के तहत अनिवार्य रूप से एक रिकॉर्ड दर्ज करना होगा और NDPS अधिनियम के तहत आरोपी को जमानत देने के लिए ये अनिवार्य है।

    दरअसल अदालत केरल राज्य द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहा थी जिसमें NDPS की धारा 37 (1) (बी) (ii) के जनादेश के तहत राज्य को नोटिस जारी बिना आरोपी प्रतिवादियों को गिरफ्तारी के बाद जमानत दे दी गई थी।

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    चोरी के बारे में बीमा कंपनी को सूचना देने में हुई देर के एकमात्र आधार पर बीमा क्लेम खारिज नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बीमा कंपनी को केवल चोरी की घटना के बारे में बताने में हुई देरी, बीमित व्यक्ति के दावे को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।

    एक मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि सिर्फ चोरी की घटना की सूचना देने में देरी के आधार पर बीमा का दावा खारिज नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति एन.वी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीश की पीठ एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह मुद्दा उठाया था कि हालांकि प्राथमिकी सूचना रिपोर्ट तुरंत दर्ज करा दी गई थी, लेकिन क्या बीमा कंपनी को वाहन की चोरी की सूचना देने में हुई देरी, बीमा दावा के दावेदार के बीमा पाने के अधिकार खारिज कर देगा।

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    हिरासत में मौत/ रेप की अनिवार्य न्यायिक जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को उस याचिका पर नोटिस जारी किया है जिसमें पुलिस हिरासत या जेल में मौत, लापता होने और कथित बलात्कार से संबंधित मामलों में अनिवार्य न्यायिक जांच की मांग की गई है। मानवाधिकार कार्यकर्ता और याचिकाकर्ता सुहास चकमा के अनुसार, सरकार सीआरपीसी की धारा 176 (1 ए) को लागू करने में विफल रही है जो ऐसे मामलों में अनिवार्य न्यायिक जांच को निर्धारित करती है।

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    दिल्ली पुलिस को NSA का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दखल देने से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा दिल्ली पुलिस को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून ( NSA) के तहत कार्रवाही करने की शक्ति को तीन महीने के लिए बढ़ा दिया था।

    सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा, "हम इस मामले में दखल कैसे दे सकते हैं। आजकल CAA के विरोध में जारी प्रदर्शनों में कैसे सार्वजनिक संपत्ति को जलाया जा रहा है। क्या हम इन हालात में प्राधिकरण के हाथ बांध सकते हैं।" पीठ ने त्रिपुरा, असम और कोलकाता आदि का उदाहरण देते हुए कहा कि ये कानून और व्यवस्था के मुद्दे हैं और कोर्ट कैसे हस्तक्षेप कर सकता है।

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    सहारा- सेबी विवाद : सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सुब्रत रॉय, अदालत ने पुलिस काफिला हटाने से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने निवेशकों के रुपये ना लौटाने के मामले में सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय के साथ पुलिस काफिले को हटाने से फिलहाल इनकार कर दिया है। शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की पीठ ने हालांकि सुब्रत रॉय को अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होने पर छूट दे दी है। इस दौरान सहारा प्रमुख भी अदालत में मौजूद रहे।

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    केबीसीः स्टार टीवी और एयरटेल को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया एनसीडीआरसी का फैसला

    स्टार टीवी और भारती एयरटेल को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन (एनसीडीआरसी) के एक आदेश को रद्द कर दिया है। कमीशन ने अपने आदेश में स्टार टीवी ओर भारती एयरटेल को क्विज़ शो 'कौन बनेगा करोड़पति' (केबीसी) के संबंध में कथित अनुचित कारोबारी तरीकों के लिए एक करोड़ रुपयों के दंडात्मक नुकसान का भुगतान संयुक्त रूप से करने का निर्देश दिया था।

    अगस्त 2007 में, सोसाइटी ऑफ कैटालिस्ट्स ने स्टार इंडिया और भारती एयरटेल के खिलाफ नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन के समक्ष एक शिकायत दर्ज की, जिसमें कहा गया था कि 'कौन बनेगा करोड़पति' और एक अन्य प्रतियोगिता हर सीट हॉट सीट में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अनुचित कारोबारी तरीका था।

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    टाटा Vs साइरस मिस्त्री : सुप्रीम कोर्ट ने RoC पर टिप्पणी करने वाले NCLAT के फैसले पर भी रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ( NCLAT) के 6 जनवरी के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें टाटा संस बनाम साइरस मिस्त्री फैसले में कुछ प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने की मांग करने वाली रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज द्वारा दाखिल याचिका को खारिज कर दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने टाटा संस की याचिका पर नोटिस भी जारी किया है।

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    निष्पादन संबंधी मुकदमे में कानूनी प्रतिनिधियों के असंगत दावों का भी निर्धारण किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश XXII, नियम 5 के सिद्धांतों के मद्देनजर डिक्री पर अमल संबंधी में कानूनी प्रतिनिधियों के असंगत दावों का निर्धारण किया जा सकता है। इस मामले में, उमा देवी को हुक्मनामा (डिक्री) मिला हुआ था, जिसपर अमल संबंधी याचिका की सुनवाई लंबित होने के दौरान उसकी मृत्यु हो गयी। उमा देवी की छोटी बहन के बेटे ने एक वसीयत के आधार पर खुद को कानूनी प्रतिनिधि बताते हुए हुक्मनामे पर अमल के लिए अर्जी दायर की थी, जिसे ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था।

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    " जज हत्यारे को माफ नहीं कर सकते" : मौत की सजा पाए दंपत्ति की पुनर्विचार याचिका पर CJI बोबडे ने कहा

    गुरुवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने अमरोहा हत्याकांड के दोषियों, सलीम और शबनम की ओर से मौत की सजा के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।

    2015 में शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मृत्युदंड देने के आदेश की पुष्टि की थी जिसमें 2010 में सत्र न्यायालय द्वारा शबनम के परिवार के सात सदस्यों की हत्या के लिए उन्हें मौत की सजा देने के फैसले को बरकरार रखा गया था।

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    अनुच्छेद 370: याचिकाओं को वृहद पीठ के सुपुर्द करने के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित

    उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को वृहद पीठ के सुपुर्द करने या ना करने के मामले में गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया।

    न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की संविधान पीठ ने याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।

    विभिन्न याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी, संजय पारिख, राजीव धवन, जे ए शाह, चंद्र उदय सिंह और गोपाल शंकरनारायणन ने दलीलें दी, जबकि एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने क्रमश: केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर प्रशासन का पक्ष रखा।

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    घरेलू हिंसा की शिकायत पर नोटिस जारी करने से पहले अदालत को प्रथम दृष्टया संतुष्ट होना होगा कि घरेलू हिंसा हुई है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा का आरोप लगाने वाली एक शिकायत में नोटिस जारी करने से पहले अदालत को इस बात से संतुष्ट होना होगा कि वास्तव में घरेलू हिंसा की घटना हुई है। इस मामले में एक पत्नी ने अपने पति और उसके माता-पिता सहित चौदह व्यक्तियों के खिलाफ घरेलू हिंसा के आरोप लगाए थे। अन्य सभी उत्तरदाता शिकायतकर्ता के माता-पिता के रिश्तेदार हैं, जो अन्य राज्यों में रहते हैं।

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    दीवानी मुकदमे का इस्तेमाल करना आपराधिक मामला निरस्त करने का आधार नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि किसी पक्ष ने भले ही दीवानी उपाय का इस्तेमाल किया हो, लेकिन उसे आपराधिक कानून के तहत मुकदमा शुरू करने से वंचित नहीं किया जा सकता।

    न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने कहा कि कुछ मामलों में बिल्कुल समान तथ्य दीवानी के साथ-साथ आपराधिक मुकदमों में राहत दे सकते हैं। इस मामले में हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता की ओर से दायर आपराधिक मुकदमा यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि संबंधित मामला पंजीकृत बिक्री विलेख से जुड़ा था और अपीलकर्ता ने आरोप लगाया था कि बिक्री विलेख किसी कारण से वैध नहीं था, तो उसे दीवानी मुकदमा दायर करना चाहिए था और कानून के दायरे में अपने पक्ष में उचित राहत मांगना चाहिए था।

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    नीलगिरी में रिसॉर्टस का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हाथियों को रास्ता दे मनुष्य

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि वो किसी को भी हाथी के रास्ते में आने नहीं देगा और मनुष्य को को हाथियों को रास्ता देना ही चाहिए। दरअसल तमिलनाडु के नीलगिरी वन क्षेत्र में अधिसूचित हाथियों के गलियारे में अवैध रूप से निर्मित रिसॉर्ट्स को सील करने से संबंधित मामलों की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की पीठ ने ये टिप्पणियां कीं।

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    मौत की सजा के दोषियों के लिए" शत्रुघ्न चौहान' फैसले में संशोधन की जरूरत : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी

    एक अहम कदम के तौर पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर शत्रुघ्न चौहान मामले में 2014 के फैसले में स्पष्टीकरण और संशोधन की मांग की है, जिसमें घोषणा की गई थी कि मौत की सजा पाने वालों के लिए भी कुछ अधिकार हैं। 2012 के दिल्ली गैंगरेप-मर्डर केस में चार दोषियों की मौत के वारंट के लंबित निष्पादन के संदर्भ में केंद्र का यह कदम आया है।

    आवेदन में केंद्र का कहना है कि यह निर्णय "आरोपी-केंद्रित" है और "पीड़ितों, उनके परिवार और समाज के दृष्टिकोण से दिशानिर्देशों पर विचार करना महत्वपूर्ण है।" उस मामले में तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मौत की सजा के दोषियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए विभिन्न दिशानिर्देशों को निर्धारित किया था और यह घोषणा की थी कि दया याचिका के निपटान में लंबी देरी मृत्युदंड को आजीवन कारावास की सजा में तब्दील करने का आधार है।

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    CJI गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली कर्मचारी को सुप्रीम कोर्ट ने बहाल किया

    सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी जिसने पूर्व मुख्य न्यायाधीश ( CJI) रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, उसकी सेवाओं को फिर से बहाल कर दिया गया है, इंडियन एक्सप्रेस ने आज बताया है। रिपोर्ट के अनुसार वह ड्यूटी में शामिल हो गई है और उसके सभी बकाया दे दिए गए है।

    दरअसल एक अनुशासनात्मक जांच के बाद दिसंबर 2018 में एक जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के रूप में उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं थीं हालांकि, पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को संबोधित एक पत्र में, उसने शिकायत की कि उसे और उसके परिवार को न्यायमूर्ति गोगोई की अवांछित यौन इच्छा का विरोध करने के लिए उस समय पीड़ित किया गया जब वह अक्टूबर 2018 में उनके निवास स्थित कार्यालय में तैनात थी।

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    (धारा 216 सीआरपीसी) कोर्ट फैसले को सुरक्षित रख लिए जाने के बाद भी अतिरिक्त आरोप जोड़ने की अनुमति दे सकती हैः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट मुकदमे में सबूतों की पेशी, दलीलों के पूरा होने और फैसले को सुरक्षित रख लिए जाने के बाद भी आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 216 के तहत आरोपों को बदलने या जोड़ने की अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकती है। मौजूदा मामले में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत आरोप लगाया गया था। मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई और साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग और दलीलों के बाद मामले को निर्णय के लिए सुरक्षित रख लिया गया।

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    सीआरपीसी की धारा 394 : जेल एवं आर्थिक जुर्माने की एक साथ सजा के खिलाफ दायर अपील अभियुक्त की मौत के बाद समाप्त नहीं हो जाती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जेल और आर्थिक जुर्माने की मिश्रित सजा के खिलाफ अपील लंबित होने के दौरान यदि अभियुक्त-अपीलकर्ता की मौत हो जाती है तो अपील समाप्त नहीं हो जाती।

    इस मामले में आरोपी को अबकारी अधिनियम की धारा 55(ए)(जी) के तहत दोषी ठहराया गया था और उसे दो साल जेल की सजा सुनायी गयी थी तथा एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। अपील लंबित होने के दौरान हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता की मौत के तथ्य पर गौर किया, हालांकि इसने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 394 के सिद्धांत का हवाला देते हुए अपील की स्वीकार्यता के निर्धारण का फैसला लिया था।

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    सुप्रीम कोर्ट ने सासंदों, विधायकों की अयोग्यता के लिए स्वतंत्र निकाय की स्थापना की वकालत की, संसद से पुनर्विचार को कहा

    एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सासंदों व विधायकों की अयोग्यता पर फैसला करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय के गठन की वकालत की है। जस्टिस आर एफ नरीमन की पीठ ने मंगलवार को दिए एक फैसले में कहा कि संसद को फिर से विचार करना चाहिए कि अयोग्यता पर फैसला स्पीकर करे जो कि एक पार्टी से संबंधित होता है, या फिर इसके लिए स्वतंत्र जांच का मैकेनिज्म बनाया जाए।

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    राजीव गांधी हत्याकांड : SC ने  तमिलनाडु सरकार से दो हफ्ते में स्टेटस रिपोर्ट मांगी, राज्यपाल के समक्ष याचिका पर क्या कदम उठाया

    पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से दो सप्ताह के भीतर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है कि दोषियों द्वारा राज्यपाल के समक्ष अनुच्छेद 161 के तहत दाखिल सज़ा माफ करने की याचिका पर क्या कदम उठाया गया है।

    दरअसल दोषी ए जी पेरारीवलन व अन्य ने 2018 में राज्यपाल के समक्ष याचिका दाखिल कर सजा को माफ करने का अनुरोध किया था। मंगलवार को जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने ये निर्देश जारी करते हुए केंद्र की रिपोर्ट पर फिर सवाल उठाए। पीठ ने कहा कि ये साफ है कि सीबीआई इस मामले में बड़ी साजिश पर जांच नहीं करना चाहती। पुरानी दोनों रिपोर्ट एक जैसी हैं। इस जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है।

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    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लिखित बयान दर्ज करने के लिए अनिवार्य समय सीमा गैर-वाणिज्यिक मामलों पर लागू नहीं होती है

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लिखित बयान दर्ज करने के लिए अनिवार्य समय सीमा गैर-वाणिज्यिक मामलों पर लागू नहीं होती है सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि गैर-वाणिज्यिक मामले में लिखित बयान दर्ज करने के लिए अनिवार्य समय सीमा लागू नहीं होती है।

    कोर्ट ने कहा कि नॉन-कमर्शियल मुकदमे के संबंध में, समय सीमा लिखित बयान के लिए एक निर्देशिका है, जो अनिवार्य नहीं है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबड़े, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि गैर-वाण‌िज्‍यिक मुकदमो में लिख‌ित बयान दर्ज करने में हुए विलंब के लिए माफ‌ी देना कोर्ट का विवेका‌ध‌िकार है।

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    शाहीन बाग में CAA के खिलाफ धरना : कालिंदी कुंज सड़क को बंद करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    नागरिकता संशोधन कानून ( CAA) के विरोध मेंचल रहे धरने- प्रदर्शन के चलते पिछले 35 दिनों से बंद कालिंदी कुंज - शाहीन बाग मार्ग को बंद करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को कोई दिशा- निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया था।

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    निर्भया मामला : सुप्रीम कोर्ट ने सजायाफ्ता पवन की नाबालिग होने का दावा करने वाली याचिका खारिज की

    निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजायाफ्ता पवन गुप्ता की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने दावा किया था कि 2012 में जब ये घटना हुई तब वो नाबालिग था। जस्टिस आर बानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिका में कोई आधार नहीं मिला है। इस मामले में पहले ट्रायल कोर्ट, फिर हाईकोर्ट और जुलाई 2018 में पुनर्विचार याचिका में सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुका है। इसलिए बार-बार इस मामले में याचिका को अनुमति नहीं दी जा सकती।

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    एससी/एसटी कानून के तहत जांच न किये जाने को आधार बनाकर उसी मामले में आईपीसी के तहत दायर आरोप-पत्र खारिज नहीं किये जा सकते : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी अपराध की शिकायत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, दोनों के प्रावधानों के तहत की जाती है तो आईपीसी के प्रावधानों के तहत सक्षम पुलिस अधिकारी द्वारा की गयी जांच सिर्फ इसलिए खारिज नहीं की जा सकती कि सक्षम पुलिस अधिकारी ने एससी/एसटी कानून के तहत घटना की जांच नहीं की थी।

    इस मुकदमे में, आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302/34, 404/34 तथा एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून की धारा 3(2)(पांच) के तहत आरोप तय किये गये थे। हाईकोर्ट ने एससी/एसटी कानून तथा आईपीसी के तहत एक साथ चलाया जा रहा आपराधिक मुकदमा इस आधार पर निरस्त कर दिया था कि मामले की जांच पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) रैंक से नीचे के अधिकारी द्वारा की गयी थी।

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