अभियुक्त के इन अधिकारों का उल्लेख करती है सीआरपीसी की धारा 167

Shadab Salim

25 Jan 2020 12:36 PM GMT

  • अभियुक्त के इन अधिकारों का उल्लेख  करती है सीआरपीसी की धारा 167

    सीआरपीसी की धारा 167 अभियुक्त के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस धारा के अंतर्गत अभियुक्त को जमानत तक मिल जाती है तथा अभियुक्त को कितने समय अवधि के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना है। इसकी जानकारी इस धारा के अंतर्गत दी गई है। यह धारा अभियुक्त के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, इस धारा को पुलिस अन्वेषण वाले अध्याय में रखा गया है।

    दंड प्रक्रिया संहिता 1973 किया धारा 167 अभियुक्त के लिए तीन प्रकार की राहत प्रदान करती है तथा इन तीनों बातों का उल्लेख इस धारा के अंतर्गत किया गया है।

    1. गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने की अवधि

    2. मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाने वाला पुलिस रिमांड

    3. पुलिस द्वारा चार्जशीट पेश करने में देरी के कारण अभियुक्त की ज़मानत

    गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने की अवधि

    इस धारा के अंतर्गत पुलिस को निर्देश दिया गया है, कितने समय के भीतर अपने द्वारा गिरफ्तार किए गए, व्यक्ति को क्षेत्र अधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करेगी। इस धारा को अधिनियम की धारा 57 के संयुक्त अध्ययन में पढ़ा जाता है। अन्वेषण प्रथम बार धारा 57 के उपबंध के अधीन 24 घंटे के भीतर पूरा किया जाए यदि ऐसा नहीं हो सकता है तो धारा 167 के अधीन उस तिथि से 15 दिन के भीतर किया जाए जिस तिथि को प्रथम बार सक्षम क्षेत्राधिकार की धारा 57 में 24 घंटों की अवधि के भीतर पूरा अभियुक्त को पेश किया गया है।

    जब पुलिस अधिकारी द्वारा किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की जाती है तो उस व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 57 के अंतर्गत 24 घंटों के भीतर क्षेत्राधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है। इन 24 घंटों की अवधि में न्यायालय तक लाने के समय को काटा जाता है अर्थात पुलिस को अपने द्वारा गिरफ्तार किए गए, व्यक्ति को 24 घंटों के भीतर प्रस्तुत करना ही होगा।

    मनोज बनाम मध्यप्रदेश राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है की धारा 167 के अधीन औपचारिक रूप से गिरफ्तार अभियुक्त यदि धारा 167 (2) तथा धारा 57 की अपेक्षा के अनुसार मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो ऐसी गिरफ्तारी 24 घंटे पश्चात व्यर्थ हो जाती है।

    मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाने वाला पुलिस रिमांड

    अधिनियम की धारा 167 (1) के अंतर्गत पुलिस को 24 घंटे के भीतर अन्वेषण पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं तथा व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर सक्षम न्यायालय के समक्ष उपस्थित करना होगा। यदि पुलिस का समय पूरा नहीं होता है तो उसके लिए रिमाइंड जैसी व्यवस्था रखी थी।

    धारा 167 (1) के अनुसार जब अभिरक्षा में निरुद्ध व्यक्ति का अन्वेषण 24 घंटे के भीतर पूरा नहीं हो पाता है और इस बात के विश्वास का पर्याप्त आधार है कि अभियोग के समुचित आधार है तब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, अन्वेषणकर्ता अधिकारी जो पद में उप निरीक्षक से निम्तर नहीं है। मामले से संबंधित डायरी की प्रविष्टि की एक प्रति के साथ अभियुक्त व्यक्ति को निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष भेजेगा।

    देवेंद्र कुमार बनाम हरियाणा राज्य के मामले में यह निर्धारित किया गया है कि गिरफ्तारी के बाद पुलिस रिमांड 15 दिनों से अधिक नहीं हो सकेगी। यदि आवश्यक हुआ तो इसके बाद अभियुक्त को न्यायिक अभिरक्षा (हिरासत) में रखा जाएगा।

    यदि पुलिस द्वारा अन्वेषण अधिकारी द्वारा हेतु मजिस्ट्रेट से गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का रिमांड मांगा जाता है तो मजिस्ट्रेट ऐसा रिमांड आवश्यकता के अनुसार समय अवधि के लिए दिए देगा परंतु ऐसे किसी भी रिमांड की समय अवधि 15 दिवस से अधिक नहीं होगी।

    पुलिस द्वारा चार्जशीट पेश करने में देरी के कारण अभियुक्त की ज़मानत

    दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के ज़मानत के उपबंधों के अलावा धारा 167 (2) के अंतर्गत भी जमानत के कुछ प्रावधान रखे गए हैं। इस धारा के अंतर्गत यदि पुलिस द्वारा चालान पेश करने में देरी की जाती है।

    पुलिस धारा 173 के अंतर्गत अपना अंतिम प्रतिवेदन उपस्थित नहीं करती है, तो इस आधार पर अभियुक्त को ज़मानत दी जा सकती है, परंतु यदि पुलिस द्वारा चालान पेश कर दिया गया है तो अभियुक्त को ज़मानत इस आधार पर नहीं दी जाएगी।

    इस धारा में पुलिस रिमांड एव पुलिस द्वारा पेश किया जाने वाला अंतिम प्रतिवेदन इन दोनों को संयुक्त रूप से रखा गया है। पुलिस को अपना अंतिम प्रतिवेदन एक समय अवधि के भीतर पेश किए जाने के लिए बाध्य करने के प्रयास इस धारा के अंतर्गत किए गए।

    कुल मिलाकर 90 दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा जहां अन्वेषण ऐसे अपराध के संबंध में है जो मृत्यु आजीवन कारावास यह 10 वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय है।

    अर्थात यदि अभियुक्त के ऊपर उन धाराओं के अंतर्गत मुकदमा चलाया जा रहा है, जिन धाराओं में 10 वर्ष से ऊपर का कारावास रखा गया है तो पुलिस द्वारा 90 दिनों के भीतर अपना अंतिम प्रतिवेदन धारा 173 के अंतर्गत प्रस्तुत किया जाएगा।

    यदि अभियुक्त पर कोई ऐसी धाराओं में अभियोजन चलाया जा रहा है, जिनमें कारावास की अवधि या फिर दंड ,मृत्यु या आजीवन कारावास या 10 वर्ष से अधिक के कारावास के अलावा कोई भी अन्य दंड रखा गया है तो ऐसी परिस्थिति में इस अपराध में अभियुक्त को जमानत मिल सकती है यदि पुलिस द्वारा 60 दिन की अवधि तक अपना अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया है।

    न्यायालय द्वारा इस अवधि की गणना उस दिवस से की जाती है जिस दिवस से अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया जाता है।

    न्यायालय द्वारा अभियुक्तों इस धारा के अंतर्गत जमानत दे दी गई है तो वह दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की जमानत के प्रावधानों के अनुरूप निरंतर जमानत ही कह लाएगी, अभियोजन पक्ष यह दलील नहीं दे सकता की ज़मानत को केवल इसलिए रद्द किया जाए की अभियोजन पक्ष द्वारा अपना अंतिम प्रतिवेदन पेश कर दिया गया है।

    इस मामले पर बशीर बनाम हरियाणा राज्य का एक वाद उल्लेखनीय है। इस वाद के अंतर्गत अभियुक्तों पर धारा 302 सहपाठित धारा 149, धारा 347 सहपाठित धारा 149, धारा 143 सहपाठित धारा 147 के आरोप थे। इस वाद में पुलिस द्वारा अपना अंतिम प्रतिवेदन धारा 173 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पेश किए जाने में देरी की गई थी। इस आधार पर अभियुक्तों को सेशन न्यायालय द्वारा जमानत धारा 167 (2) के अंतर्गत प्रदान कर दी गई थी।

    अभियोजन पक्ष द्वारा यह दलील दी गई कि अब चालन पेश कर दिया गया है तथा अभियुक्तों की जमानत रद्द कर दी जाए। सेशन न्यायालय द्वारा अभियुक्तों की जमानत रद्द कर दी गई। अंत में यह वाद उच्चतम न्यायालय तक गया तथा उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में यह कहा कि यदि अभियुक्तों को धारा 167 (2) के अंतर्गत ज़मानत प्रदान कर दी जाती है तो यह जमानत जमानत को निरस्त किए जाने का आदेश दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 (5) के आधार पर ही निरस्त किया जा सकता है। अर्थात धारा 437 439 के अधीन निरंतर जमानत पर माना जाएगा।

    कमलजीत सिंह बनाम राज्य के वाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्णय लिया है कि जहां अभियुक्त ने न्यायालय के समक्ष समर्पण कर दिया तथा वह इस प्रकार समर्पण के बाद न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया तथा उस मामले में आरोप पत्र 90 दिन के पश्चात पेश किया गया तो उक्त दशा में अभियुक्त जमानत पर छोड़े जाने का हकदार होगा।

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