क्रिमिनल ट्रायल : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कानून अभियुक्त को वैकल्पिक दलील अपनाने से नहीं रोकता
LiveLaw News Network
28 Jan 2020 5:00 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून अभियुक्त को वैकल्पिक दलीलों को अपनाने से नहीं रोकता। कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी यह कहते हुए की है कि एक हत्या का अभियुक्त यह दलील दे सकता है कि वह उस करतूत में शामिल नहीं था, जिसके कारण मृतका की मौत हुई, लेकिन इससे वह उस तथ्य को स्थापित करने के अपने अधिकार से वंचित नहीं हो जाता कि उसके खिलाफ मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के तहत वर्णित किसी अपवाद के दायरे में रखा जाये।
इस मामले के अभियुक्त और उसकी मां के खिलाफ अभियुक्त की पत्नी की हत्या का मामला चला था। उसे ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था, जिसकी पुष्टि बाद में हाईकोर्ट ने भी की थी। दोनों ही कोर्ट ने कहा था कि अभियुक्त ने मृतका के आत्महत्या करने की बात कही थी, जो पूरी तरह से झूठी थी।
शीर्ष अदालत के समक्ष अभियुक्त के वकील ने अपनी दलीलें दोषसिद्धि को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत न करके धारा 304 खंड-दो के तहत करने तक सीमित कर दिया था। इस परिप्रेक्ष्य में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने कहा
इस तथ्य के बावजूद कि अभियुक्त ने मृतका के आत्महत्या कर लेने की बात कही थी, जो पूरी तरह झूठ थी, फिर भी उसे उस तथ्य को स्थापित करने के अपने अधिकार से वंचित नहीं हो किया जा सकता कि उसके खिलाफ मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के तहत वर्णित किसी अपवाद के दायरे में रखा जाये। कानून वैकल्पिक दलील का रास्ता अपनाने से नहीं रोकता। अंतत: सही गलत का निर्धारण पेश किये गये साक्ष्यों एवं कानून के खास 24 प्रावधानों पर ही निर्भर करेगा। अभियुक्त तार्किक संदेह का लाभ भी उठाने के लिए सक्षम हो सकता है।
बेंच ने कहा कि रिकॉर्ड में लाये गये दस्तावेजों की जांच करने के बाद यह स्थापित करने के लिए कुछ नहीं बचा है कि उकसावे की अनुमति खुद में गंभीर मसला है। हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए बेंच ने कहा :-
"इस केस के तथ्यों की पृष्ठभूमि में अपीलकर्ता के कृत्य से स्पष्ट पता चलता है कि उसने अपनी पत्नी का गला घोंटा है। धारा 300 का कोई भी अपवाद इसमें लागू नहीं होता। अपीलकर्ता का कृत्य भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के अर्थ के दायरे में हत्या है।"
मुकदमे का ब्योरा :
केस नाम : पॉल बनाम केरल सरकार
केस नं. : क्रिमिनल अपील नं. 38/2020
कोरम : न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ
वकील : अपीलकर्ता के लिए रंजीत बी. मरार
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