हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

1 May 2022 9:45 PM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (25 अप्रैल, 2022 से 29 अप्रैल, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सीआरपीसी की धारा 102 के तहत आरोपी के किसी भी रिश्तेदार का बैंक खाता जब्त किया जा सकता है: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी आरोपी (जिसके अपराध की जांच की जा रही) के किसी भी रिश्तेदार का बैंक अकाउंट सीआरपीसी की धारा 102 के तहत संपत्ति की परिभाषा के अंतर्गत आता है।

    जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने आगे कहा कि जांच के दौरान एक पुलिस अधिकारी आरोपी के रिश्तेदारों के उक्त खाते को जब्त या प्रतिबंधित कर सकता है, अगर ऐसी संपत्ति का उस अपराध के साथ सीधा संबंध है, जिसकी पुलिस जांच कर रही है।

    केस शीर्षक- कैसर अहमद शेख और अन्य बनाम थानेदार पी/एस अपराध शाखा कश्मीर, जुड़े मामले के साथ

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पैरोल | अपराधियों को समाज के प्रति प्रतिबद्धता के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पैरोल प्रदान करते समय मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है ताकि दोषियों को अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक मुद्दों को हल करने का अवसर मिल सके और अपराधियों को समाज के संबंध में प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

    जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने यह भी कहा कि पैरोल राज्य द्वारा दी गई राहत है, जो ऐसे कैदियों के पुनर्वास के लिए एक लंबा रास्ता तय करती है। इसलिए यह अंततः समाज की भलाई के लिए लक्षित हैं और इसलिए, सार्वजनिक हित में हैं।

    केस शीर्षक: शादाब बनाम राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पॉक्सो अधिनियम किसी अन्य कानून के अपमान में नहीं है और यदि किसी अन्य कानून के साथ कोई असंगतता है तो पॉक्सो के प्रावधान ओवरराइडिंग प्रभाव डालेंगे : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के लिए दोषी ठहराए गए आरोपी को दी गई कारावास की सजा को सात साल से बढ़ाकर दस साल कर दिया और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण ( पॉक्सो) अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप तय किए।

    जस्टिस एच टी नरेंद्र प्रसाद और जस्टिस राजेंद्र बादामीकर की खंडपीठ ने कहा, "धारा 42 ए (पॉक्सो अधिनियम) यह स्पष्ट करती है कि अधिनियम किसी अन्य कानून के अपमान में नहीं है और यदि वर्तमान में लागू किसी अन्य कानून के साथ कोई असंगतता है, तो पॉक्सो अधिनियम के प्रावधान ओवरराइडिंग प्रभाव डालेंगे।"

    केस: कर्नाटक राज्य बनाम शंकर उर्फ शंकरप्पा पुत्र रामप्पा हुबली

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पेंशन "बढ़ाने" के लिए कर्मचारी सेवा में रुकावट की छूट की मांग नहीं कर सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि कोई कर्मचारी पेंशन "बढ़ाने" के लिए सेवा में रुकावट की छूट की मांग नहीं कर सकता, जहां कर्मचारी के पास पहले से ही पेंशन के लिए अर्हक सेवा (qualifying service) है।

    जस्टिस आरडी धानुका और जस्टिस एसजी मेहरे की बेंच ने कहा, "सेवा में रुकावट की छूट का उद्देश्य किसी कर्मचारी को उसकी सेवा के दिनों को जोड़कर पेंशन का हकदार बनाना है न कि इस कारण से पेंशन बढ़ाना कि पेंशन की गणना और भुगतान अंतिम वेतन के आधार पर किया जाना है।"

    केस शीर्षक: मुक्ताबाई और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    टेलीफोन पर बातचीत के दौरान जाति-आधारित अपमान एस/एसटी एक्ट की धारा 3 के तहत अपराध नहीं, अगर सार्वजनिक तौर पर अपमान नहीं किया गया है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने दोहराया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) की धारा 3(1)(x) के तहत अपराध का गठन करने के लिए, इस बात की पुष्टि करनी होगी कि यह शब्द लोगों (सार्वजनिक तौर पर) को ध्यान में रखते हुए शिकायतकर्ता को अपमानित करने के इरादे से बोला गया है कि वह एक विशेष समुदाय से है।

    न्यायमूर्ति के श्रीनिवास रेड्डी ने कहा, "मामले में, यह दूसरे प्रतिवादी-वास्तव में शिकायतकर्ता का मामला नहीं है कि जब टेलीफोन पर बातचीत हो रही थी, उस जगह पर लोग मौजूद थे। यह भी उसका मामला नहीं है कि चर्चा जो दूसरे प्रतिवादी के बीच हुई थी, डिफैक्टो शिकायतकर्ता को बड़े पैमाने पर लोगों ने सुना है।"

    केस का शीर्षक: जी.पी. हेमकोटि रेड्डी, अनंतपुर जिला बनाम पीपी, हैदराबाद

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    ग्रेच्युटी के भुगतान में देरी पर ब्याज अनिवार्य: गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया

    गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम की धारा 7 के प्रावधानों के तहत नियोक्ता पर समय के भीतर ग्रेच्युटी का भुगतान करने और ग्रेच्युटी के भुगतान की देरी पर ब्याज का भुगतान करने का स्पष्ट आदेश है।

    जस्टिस बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने सरदार पटेल यूनिवर्सिटी को याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त लेक्चरार की ग्रेच्युटी और 2013 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद से ग्रेच्युटी को गलत तरीके से रोकने के लिए 9% पर ब्याज के साथ दस लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    केस शीर्षक: अश्विनकुमार रमणीकलाल जानी बनाम गुजरात राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यदि अभियोजन पक्ष हत्या के समय अभियुक्त की उपस्थिति साबित करने में विफल रहता है तो भारतीय साक्ष्य अधिनिय की धारा 114 के तहत कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि अभियोजन पक्ष अपराध के स्थान पर अभियुक्त की उपस्थिति को साबित करने में विफल रहता है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के अनुसार प्रतिकूल निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है और न्यायालय आरोपी को अपराध के कारणों का खुलासा करने का निर्देश देने के लिए अधिनियम की धारा 106 को लागू नहीं कर सकता है।

    जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस एस. रचैया की खंडपीठ ने उस आरोपी की तरफ से दायर अपील को आंशिक तौर पर स्वीकार कर लिया,जिसे अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा दी गई थी।

    केस का शीर्षक- सुरेश बनाम कर्नाटक राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    रेलवे ट्रैक क्रॉसिंग में अपनी लापरवाही से होने वाली यात्री की मौत पर मुआवजा देने के लिए रेलवे जिम्मेदार नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने माना कि रेलवे अधिनियम की धारा 124 ए के तहत रेलवे ट्रैक पार करने में अपनी लापरवाही से होने वाली यात्री की मृत्यु होने पर रेलवे क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं है।

    जस्टिस जी. अनुपमा चक्रवर्ती ने कहा कि मुआवजा तभी दिया जाएगा जब "अप्रिय घटना" का मामला बनता है। पीठ ने कहा, "मृतक के बेटे के मौखिक साक्ष्य से पता चलता है कि दुर्घटना मृतक द्वारा ट्रैक पार करने की लापरवाही का परिणाम थी। इसलिए, अपीलकर्ता रेलवे से किसी भी मुआवजे के हकदार नहीं हैं।"

    केस का शीर्षक: नुकाला वेंकटेश्वरु का निधन और अन्य बनाम भारत संघ, महाप्रबंधक, सिकंदराबाद द्वारा प्रतिनिधि

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    निजी प्रकृति की आपराधिक कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत रद्द किया जा सकता है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में वैवाहिक विवाद में पारित एफआईआर और दोषसिद्धि के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि इसमें शामिल अपराध गैर-गंभीर और निजी प्रकृति के है।

    जस्टिस इलेश वोरा की खंडपीठ ने दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 3 और 7 के साथ पठित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 (ए), 323, 294 (बी), 506 (1) और 114 के तहत दर्ज एफआईआर पर अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, अहमदाबाद द्वारा पारित दोषसिद्धि का आदेश रद्द कर दिया।

    केस शीर्षक: कमलेश @ रिंकू मोहनलाल उपाध्याय बनाम गुजरात राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    आखिरी बार एक साथ देखे जाने का सबूत अपने आप में निर्णायक नहीं है कि मौत आरोपी के हाथों हुई है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में कहा था कि 'आखिरी बार साथ में देखे गए' के सबूत से यह निष्कर्ष नहीं निकलेगा कि मौत आरोपी के हाथों हुई है।

    न्यायमूर्ति एसजी डिगे और न्यायमूर्ति साधना एस जाधव ने कहा कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि आरोपी गणेश ने घटना के बाद मृतक संजय को छोड़ दिया था और यह तथ्य कि वे एक साथ थे, इस आरोप में यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि मौत आरोपी के हाथों हुई है।

    केस का शीर्षक: गणेश बनाम महाराष्ट्र राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यदि दुर्घटना के समय मोटर वाहन पॉलिसी के अनुसार 'उपयोग के उद्देश्य' के उल्लंघन में था तो बीमा कंपनी उत्तरदायी नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि बीमा कंपनी मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है यदि दुर्घटना के समय वाहन बीमा पॉलिसी के नियमों और उद्देश्य के उल्लंघन में था।

    मामले के संक्षिप्त तथ्य मृतक पद्म ट्रैक्टर-ट्रॉली मालिक के यहां मजदूरी का काम करता था। एक दिन मृतक अन्य मजदूरों के साथ ट्रैक्टर-ट्रॉली में एक गांव से दूसरे गांव जा रहा था कि ट्रैक्टर सड़क किनारे खाई में गिर गया जिससे मजदूर की मौके पर ही मौत हो गई।

    केस शीर्षक: मैसर्स यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रामा स्वामी और दो अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    संविदा के संबंध के अभाव में पक्षकारों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित नहीं किया जा सकता: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि संविदा के संबंध (Privity Of Contract) के अभाव में मध्यस्थता के लिए संदर्भित (Referred) नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की एकल पीठ ने माना कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत 'पक्ष' शब्द को मध्यस्थता समझौते के संबंध में एक निश्चित अर्थ दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों के बीच के विवादों को ही मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है और अनुबंध के संबंध के अभाव में किसी तीसरे पक्ष को मध्यस्थता में शामिल नहीं किया जा सकता।

    केस शीर्षक: गागिरी हरि कृष्णा बनाम मेसर्स जैस्पर इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सरकार द्वारा गैर-प्रतिबंधित संगठन की 'जिहादी' बैठकों में केवल भाग लेना प्रथम दृष्टया यूएपीए के तहत 'आतंकवादी कृत्य' नहीं : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में अल-हिंद समूह के कथित सदस्य सलीम खान को जमानत दी। सलीम खान के कथित तौर पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने की सूचना थी।

    जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस एस. रचैया की खंडपीठ ने कहा, "यूए(पी)ए की अनुसूची के तहत प्रतिबंधित संगठन नहीं होने वाले समूह की बैठकों में केवल भाग लेना और अल-हिंद समूह का सदस्य बनना, प्रशिक्षण सामग्री खरीदना और सह-सदस्यों के लिए रहने का प्रबंध करनाअपराध नहीं है, क्योंकि यह यूए(पी)ए अधिनियम की धारा 2 (के) या धारा 2 (एम) के प्रावधानों के तहत विचार किया गया।"

    केस शीर्षक: सलीम खान बनाम कर्नाटक राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यदि संदिग्ध परिस्थितियां नहीं हैं तो नगर प्राधिकरण द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र को महत्व दिया जाना चाहिए: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर विचार करते हुए याचिकाकर्ता को नाबालिग घोषित करने के आवेदन को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्र को मान्यता दी जानी चाहिए, लेकिन यह संदिग्ध परिस्थितियों से घिरा नहीं होना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि भले ही माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के प्रस्ताव के संबंध में कोई विवाद नहीं होगा और याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित वकील द्वारा भरोसा किया जाएगा कि निगम या नगर प्राधिकरण द्वारा जन्म प्रमाण पत्र जारी किया जाना है। हालांकि, यह इस तरह के आदेश में निहित होगा कि ऐसा प्रमाण पत्र संदिग्ध परिस्थितियों से ढका नहीं होना चाहिए और विधिवत साबित हो गया है।

    केस शीर्षक : रवि उर्फ रब्बू पुत्र राधेश्याम बनाम हरियाणा राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीआरपीसी की धारा 125- पति के पास पर्याप्त साधन होने के कारण पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य, वह पारिवारिक जिम्मेदारी से नहीं भाग सकताः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में कहा गया है कि यदि पति के पास पर्याप्त साधन हैं, तो वह अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है और वह अपनी नैतिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकता है।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने यह भी कहा कि यह प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए अधिनियमित किया गया था कि महिलाओं और बच्चों को पति द्वारा भरण-पोषण प्रदान किया जाए ताकि उन्हें संभावित खानाबदोशी और निराश्रित जीवन से बचाया जा सके।

    केस का शीर्षक- जितेंद्र कुमार गर्ग बनाम मंजू गर्ग

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना न्यायनिर्णयन की कार्यवाही शुरू से ही शून्य माना जाएगा: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) के जस्टिस अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने कहा कि कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना निर्णय की कार्यवाही शुरू से ही शून्य है। याचिकाकर्ता/निर्धारिती, एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी, कोयले के व्यवसाय में है।

    कोयले के व्यापार के उद्देश्य से याचिकाकर्ता मुख्य रूप से कोल इंडिया लिमिटेड की विभिन्न सहायक कंपनियों से कोयला खरीदता है, जिसमें झारखंड राज्य खनिज विकास निगम और भारी इंजीनियरिंग निगम लिमिटेड जैसी विभिन्न सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ अन्य समान रूप से स्थित कोयला व्यापारी शामिल हैं।

    केस शीर्षक: मेसर्स। गोदावरी कमोडिटीज लिमिटेड बनाम झारखंड राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण दिया जा सकता है, भले ही वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश उसके खिलाफ पारित किया गया होः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    एक महत्वपूर्ण अवलोकन में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए कोई रोक नहीं है,भले ही उसके खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक डिक्री पारित की गई हो।

    जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने आगे जोर देकर कहा कि पति के पक्ष में पारित वैवाहिक अधिकारों की बहाली की एक डिक्री के आधार पर भरण-पोषण से इनकार करना बहुत कठोर होगा। पीठ एक महिला (किरण सिंह) की तरफ से दायर एक क्रिमनल रिवीजन पिटीशन पर विचार कर रही थी। जिसने यह याचिका सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रधान न्यायाधीश,फैमिली कोर्ट, सुल्तानपुर द्वारा पारित भरण-पोषण के आदेश के खिलाफ दायर की थी।

    केस का शीर्षक - श्रीमती किरण सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य,क्रिमनल रिवीजन नंबर -896/2019

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    'लापता व्यक्ति' मामले में हैबियस कॉर्पस रिट जारी नहीं की जा सकती: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि लापता व्यक्तियों के मामलों को बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका के प्रावधान के तहत नहीं लाया जा सकता।

    जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस एन.के. चद्रवंशी ने ऐसे मामलों को सक्षम न्यायालय द्वारा नियमित मामलों के रूप में निपटाया जाने और संवैधानिक न्यायालयों के असाधारण अधिकार क्षेत्र को लागू नहीं होने पर कहा, "लापता व्यक्तियों के मामले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के नियमित प्रावधानों के तहत दर्ज किए जाने हैं और संबंधित पुलिस अधिकारी आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत निर्धारित तरीके से इसकी जांच करने के लिए बाध्य हैं।"

    केस शीर्षक: जयमती साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    आपराधिक जांच के दौरान आरटीआई अधिनियम के तहत आवेदक द्वारा लिखित उत्तर लिपियों की प्रमाणित प्रतियां दी जा सकती हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सूचना आयोग (State Information Commission) के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसने प्राधिकरण को वर्ष 2013 में सहायक लोक अभियोजक (Assistant Public Prosecutor) के पद के लिए आवेदक द्वारा लिखित उत्तर लिपियों की प्रमाणित प्रतियां प्रदान करने का निर्देश दिया था।

    एपीपी सह एजीपी भर्ती समिति के सदस्य सचिव ( The Member Secretary of APP Cum AGP Recruitment Committee) और अभियोजन निदेशक ( Director of Prosecution) ने 30 जून, 2016 के आदेश पर सवाल उठाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसके द्वारा आयोग ने जी. विजया कुमार (प्रतिवादी नंबर दो) द्वारा दायर दूसरी अपील की अनुमति दी थी। साथ ही अधिकारियों को उनके द्वारा लिखित 31-08-2013 और 01-09-2013 को आयोजित उत्तर पुस्तिका-लेट (मुख्य परीक्षा) की प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।

    केस शीर्षक: ए पी पी सह अगप भर्ती समिति के सदस्य सचिव बनाम कर्नाटक राज्य सूचना आयोग

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीपीसी आदेश XII नियम 6| स्वीकृतियों पर निर्णय पारित किया जा सकता है यदि पार्टी द्वारा स्थापित बचाव इतनी कमजोर है कि सफल होना असंभव है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में सीपीसी के आदेश XII नियम 6 के तहत अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए अधीनस्थ अदालतों द्वारा इस आधार पर स्वीकृतियों के मामले में एक निर्णय की पुष्टि की कि बचाव इतना कमजार था कि पार्टी के लिए सफल होना असंभव था।

    इस संबंध में न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव ने कहा, "सीपीसी के आदेश XII नियम 6 को तब भी लागू किया जा सकता है जब निर्णय के खिलाफ उठाई गई आपत्तियां ऐसी हों, जो मामले की जड़ तक जाती हों या आपत्तियां अप्रासंगिक हों, जिसकी यदि सुनवाई हो तब भी पार्टी का सफल होना असंभव हो जाता है।"

    केस शीर्षक: दिनेश शर्मा बनाम श्रीमती कृष्णा कैंथ

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    [सीआरपीसी की धारा 167(2)] डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए केवल चार्जशीट जमा करने की तिथि प्रासंगिक है, चार्जशीट तैयार करने की तिथि नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) ने कहा कि चार्जशीट की 'जमा करने की तारीख' ही एकमात्र प्रासंगिक तारीख है जिसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत 'डिफ़ॉल्ट जमानत' देते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए। चार्जशीट की 'तैयारी की तारीख' तब तक मायने नहीं रखती जब तक कि इसे उसी दिन अदालत के सामने पेश नहीं किया जाता है।

    जस्टिस बिभु प्रसाद राउतरे की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने फैसला सुनाया, "सीआरपीसी की धारा 167 में प्रयुक्त भाषा के अनुसार जांच पूरी होने तक हिरासत अधिकृत है और जांच पूरी होने पर सीआरपीसी की धारा 173 (2) के तहत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। सीआरपीसी की धारा 173 (2) में प्रयुक्त शब्द 'जितनी जल्दी हो सके' है। इसलिए, निष्कर्ष यह है कि जांच पूरी हो चुकी है, जब चार्जशीट अदालत में प्रस्तुत की जाती है। इस प्रकार, जांच पूरी होने की तारीख चार्जशीट जमा करने की तारीख है।"

    केस का शीर्षक: प्रमेश प्रधान@रानी एंड अन्य बनाम उड़ीसा राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    आरोप तय होने की स्थिति में आरोपी के बरी होने की संभावना पर विचार नहीं, बल्कि यह देखना होगा कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि चिकित्सा साक्ष्य पर संदेह नहीं किया जा सकता है, वह भी आरोप तय करने के चरण में, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार, आरोपी व्यक्ति के बरी होने की संभावना पर विचार नहीं किया जाता है, बल्कि यह देखा जाता है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं।

    सीआरपीसी की धारा 397 (धारा 401 के साथ पठित) के तहत मौजूदा आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को वर्तमान अभियुक्त-याचिकाकर्ता के विरुद्ध आईपीसी की धारा 308, 447, 427, 341, 323 और 325 (धारा 34 के साथ पठित) के तहत आरोप तय करने वाले निचली अदालत द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर की गई है।

    केस का शीर्षक: महेंद्र सिंह और अन्य बनाम राजस्थान सरकार (पीपी और अन्य के माध्यम से)

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    गवाह के एग्जामिनेशन-इन-चीफ के आधार पर भी अदालत अभियुक्तों को सीआरपीसी की धारा 319 के तहत समन कर सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अदालत किसी व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 की धारा 319 के तहत केवल गवाह के मुख्य परीक्षण (examination-in-chief) के आधार पर समन कर सकती है और अदालत को ऐसे गवाह के साक्ष्य की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है।

    उल्लेखनीय है कि सीआरपीसी की धारा 319 के अनुसार, किसी भी जांच या अपराध के मुकदमे के दौरान न्यायालय को अपराध के दोषी प्रतीत होने वाले अन्य व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति है।

    केस का शीर्षक - राम कुमार @ टुनटुन बनाम यू.पी. राज्य और दूसरा [आपराधिक संशोधन संख्या - 2021 का 3142]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    रेप पीड़िताओं पर किए जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए : मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया

    मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि चिकित्सा पेशेवरों द्वारा यौन अपराधों की पीड़िताओं पर किए जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट की प्रथा पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए।

    जस्टिस आर. सुब्रमण्यम और जस्टि एन. सतीश कुमार की पीठ ने यह निर्देश जारी किया है क्योंकि पीठ ने यह नोट किया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी टू-फिंगर टेस्ट का उपयोग यौन अपराधों से जुड़े मामलों में किया जा रहा है, विशेष रूप से नाबालिग पीड़ितों के मामले में,जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह टेस्ट बलात्कार के पीड़िताओं की निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है।

    केस का शीर्षक- राजीव गांधी बनाम राज्य का प्रतिनिधित्व पुलिस निरीक्षक द्वारा

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story