सीआरपीसी की धारा 125- पति के पास पर्याप्त साधन होने के कारण पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य, वह पारिवारिक जिम्मेदारी से नहीं भाग सकताः दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

27 April 2022 6:00 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में कहा गया है कि यदि पति के पास पर्याप्त साधन हैं, तो वह अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है और वह अपनी नैतिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकता है।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने यह भी कहा कि यह प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए अधिनियमित किया गया था कि महिलाओं और बच्चों को पति द्वारा भरण-पोषण प्रदान किया जाए ताकि उन्हें संभावित खानाबदोशी और निराश्रित जीवन से बचाया जा सके।

    कोर्ट ने कहा कि,''सुप्रीम कोर्ट ने लगातार यह माना है कि धारा 125 की संकल्पना उस महिला की वित्तीय पीड़ा को कम करने के लिए है, जिसने अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया है; यह महिला के साथ-साथ बच्चों के भरण-पोषण को सुरक्षित करने का एक साधन है, यदि कोई हो। वैधानिक प्रावधान में यह कहा गया है कि यदि पति के पास पर्याप्त साधन हैं, तो वह अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है और वह अपनी नैतिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकता है।''

    न्यायालय का यह भी मानना था कि भरण-पोषण के मामलों पर निर्णय देते समय, न्यायालयों के लिए यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सामाजिक न्याय के कारण को आगे बढ़ाने के लिए इसकी गणना की गई थी और प्रावधान की व्याख्या इस तरीके से की जानी चाहिए ताकि ऐसी स्थिति को रोका जा सके, जिसमें पत्नी या बच्चों को अनजाने में आवारापन और बेसहारापन में धकेल दिया जाता है।

    कोर्ट ने कहा, ''यह परित्यक्त पत्नी को भोजन, वस्त्र और आश्रय की आपूर्ति के लिए त्वरित उपाय प्रदान करने के लिए है।''

    न्यायालय फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश (दिनांक 09.11.2021) को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें याचिकाकर्ता पति को निर्देश दिया गया था कि वह याचिका दायर करने की तारीख से प्रतिवादी पत्नी को 20,000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर प्रदान करे।

    पार्टियों का विवाह 10.07.1989 को हुआ था और उनके दो बेटे पैदा हुए। 2013 में पक्षों के बीच वैवाहिक विवाद उत्पन्न हुए और यह आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी पत्नी ने याचिकाकर्ता पति के साथ क्रूरता का व्यवहार किया है। इसके बाद पति-पत्नी अलग रहने लग गए। बड़ा बेटा अपने पिता के पास रहता है और छोटा बेटा अपनी मां के साथ रहता है।

    दिसंबर 2015 में, प्रतिवादी पत्नी ने कथित तौर पर याचिकाकर्ता पति की संपत्ति में जबरन प्रवेश किया और घर के एक हिस्से में रहने लगी। वर्ष 2018 में, सेटलमेंट डीड 16.08.2018 के तहत, याचिकाकर्ता पति ने प्रतिवादी पत्नी को 5,000 रुपये प्रतिमाह का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की।

    17.12.2018 को, प्रतिवादी पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक याचिका दायर की। इसी के साथ अंतरिम भरण-पोषण के लिए एक आवेदन भी दायर किया गया। उसने आरोप लगाया कि उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया गया था और याचिकाकर्ता पति 3,00,000 रुपये प्रतिमाह कमा रहा है। याचिकाकर्ता पति ने इसका विरोध किया और उसने कहा कि प्रतिवादी पत्नी 40,000 रुपये प्रतिमाह कमा रही है और वह खुद एक ऑटो चालक है।

    13.01.2020 को मध्यस्थता निपटान के माध्यम से, यह सहमति हुई कि याचिकाकर्ता पति अपनी प्रतिवादी पत्नी को 5000 रुपये की राशि देना जारी रखेगा। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश के तहत याचिकाकर्ता पति को निर्देश दिया कि वह प्रतिवादी पत्नी को 20,000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर प्रदान करे।

    इससे क्षुब्ध होकर याचिकाकर्ता पति ने रिवीजन याचिका के माध्यम से इसे चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 397 और 401 रिड विद 482 के तहत एक रिवीजन याचिका में हस्तक्षेप की गुंजाइश संकीर्ण है और ऐसा केवल तभी किया जा सकता है जब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें आक्षेपित आदेश कानूनी कमियों से भरा हुआ हो और कानून के शासन के प्रति पूरी तरह से अनुचित हो।

    कोर्ट ने कहा कि आक्षेपित आदेश के अवलोकन से संकेत मिलता है कि फ़ैमिली कोर्ट ने निर्णय पर पहुंचने से पहले आय, संपत्ति और देनदारियों के हलफनामों के साथ-साथ दोनों पक्षों द्वारा दायर अन्य दस्तावेजों पर भी विचार किया था और सेटलमेंट डीड पर भी संज्ञान लिया था। जिसके बाद यह नोट किया कि याचिकाकर्ता पति की इस दलील को प्रमाणित करने के लिए कोई सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं रखी गई है कि प्रतिवादी पत्नी को पहले से ही नियमित तौर पर 5,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण दिया जा रहा है।

    हाईकोर्ट ने कहा,''इसके अलावा, फैमिली कोर्ट द्वारा यह भी पाया गया है कि वर्ष 2020-2021 में, याचिकाकर्ता/पति की 85,93,417 रुपए की बिक्री हुई थी और 48,910 रुपए की विविध आय भी थी। तदनुसार, कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि याचिकाकर्ता/पति की मासिक आय 60,000 रुपये थी और इसलिए, उसके पास प्रतिवादी/पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान करने का साधन था। इसी के परिणामस्वरूप, कोर्ट ने कहा था कि प्रतिवादी/पत्नी याचिका दायर करने की तारीख से यानी 17.12.2018 से 20,000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण पाने की हकदार है।''

    इसलिए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आक्षेपित आदेश सुविचारित था और इसमें कोई कानूनी दुर्बलता नहीं है।

    तदनुसार, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और फैमिली कोर्ट के आक्षेपित आदेश को बरकरार रखा।

    केस का शीर्षक- जितेंद्र कुमार गर्ग बनाम मंजू गर्ग

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 374

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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