आरोप तय होने की स्थिति में आरोपी के बरी होने की संभावना पर विचार नहीं, बल्कि यह देखना होगा कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
25 April 2022 10:44 AM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि चिकित्सा साक्ष्य पर संदेह नहीं किया जा सकता है, वह भी आरोप तय करने के चरण में, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार, आरोपी व्यक्ति के बरी होने की संभावना पर विचार नहीं किया जाता है, बल्कि यह देखा जाता है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं।
सीआरपीसी की धारा 397 (धारा 401 के साथ पठित) के तहत मौजूदा आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को वर्तमान अभियुक्त-याचिकाकर्ता के विरुद्ध आईपीसी की धारा 308, 447, 427, 341, 323 और 325 (धारा 34 के साथ पठित) के तहत आरोप तय करने वाले निचली अदालत द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर की गई है।
न्यायमूर्ति पुष्पेंद्र सिंह भाटी ने फैसला सुनाया,
"ऐसे चिकित्सा साक्ष्य पर संदेह नहीं किया जा सकता है, वह भी आरोप तय करने के चरण में, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार, आरोपी व्यक्ति के बरी होने की संभावना पर विचार नहीं किया जाता है, बल्कि यह देखा जाता है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं। ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आक्षेपित आदेश से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि अन्य बातों के अलावा, उक्त कथन को ट्रायल कोर्ट द्वारा विचार में रखा गया है, और सही तरीके से ।"
विशेष रूप से, कोर्ट ने कहा कि घायल/शिकायतकर्ता की चोट रिपोर्ट से गंभीर चोटों का पता चला है, लेकिन उनमें से किसी को भी जीवन के लिए खतरनाक नहीं माना गया है; हालांकि, पीड़ित के होंठ से गोली निकालने से संबंधित मेडिकल रिपोर्ट ने मामले का आयाम बदल दिया है।
कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आक्षेपित आदेश बेहतर तर्कों पर आधारित आदेश है, जिसमें कहा गया है कि हथियार और पिस्तौल से लैस आरोपी-याचिकाकर्ता शिकायतकर्ता और उसके सहयोगियों को मौखिक रूप से गालियां देते हैं, और जान से मारने की धमकी देते हैं।
'आशीष चड्ढा बनाम आशा कुमारी और अन्य (2012)' और 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली सरकार एवं अन्य बनाम शिव चरण बंसल और अन्य (2020)' मामलों पर भरोसा जताते हुए कोर्ट ने आगे कहा है कि आरोप तय करने के चरण में, ट्रायल कोर्ट को सबूतों के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन या उसी मामले में गहन जांच करने की आवश्यकता नहीं है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया था।
अनिवार्य रूप से, आरोपित-याचिकाकर्ता के अनुसार प्रतिवादी-नानक सिंह ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में उपचार के दौरान पुलिस को परचा बयान दिया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि उस तिथि को लगभग 12 बजे उनके पुत्र और भतीजे, प्रतिवादी के साथ अपने कृषिभूमि में काम कर रहे थे। उसी समय, प्रतिवादी सहित कुछ व्यक्ति शिकायतकर्ता के खेत में घुस गए, और आरोपी-महेंद्र सिंह, जो हाथ में पिस्तौल लिए था, ने घायल/शिकायतकर्ता के बेटे पर अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए, उसे मारने के इरादे से गोली चला दी; लेकिन किसी तरह उनके बेटे ने जान बचाई।
इसके बाद, जब प्रतिवादी का बेटा अपनी जीप की ओर दौड़ा और उसे स्टार्ट किया, तो आरोपी व्यक्तियों ने उसे घेर लिया, जिस पर आरोपी-बलविंदर सिंह ने प्रतिवादी के बेटे को मारने के इरादे से गोलियां चलाईं, और गोली उसके होठों पर लग गई, जिसके परिणामस्वरूप खून बहने लगा। आगे यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी कुलदीप सिंह उन व्यक्तियों में शामिल था, जिन्होंने शिकायतकर्ता की जीप पर हमला किया और उसकी विंडशील्ड तोड़ दी। यह भी आरोप लगाया गया कि इसके बाद, आरोपी व्यक्तियों द्वारा शिकायतकर्ता पक्ष को जान से मारने के स्पष्ट इरादे से कई कार्य किए गए। बाद में एक प्राथमिकी भी दर्ज की गई।
आरोपी-याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि जांच के बाद, संबंधित जांच अधिकारी ने आईपीसी की धारा 307 और 336 और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत अपराध नहीं पाया, लेकिन आईपीसी की धारा 308, 427, 341, 325 और 34 के तहत अपराध पाया और इसके अनुसार, मौजूदा आरोपी-याचिकाकर्ताओं और तथाकथित दर्शन सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा 308, 447, 427, 341, 323, 325 एवं 34 के तहत अपराधों के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, रायसिंहनगर, जिला श्रीगंगानगर के समक्ष आरोप-पत्र दायर किया गया, जिन्होंने मामले को सत्र न्यायालय में सुपुर्द किया, जहां से मामला ट्रायल कोर्ट अर्थात् अपर सत्र न्यायाधीश, रायसिंहनगर, जिला श्रीगंगानगर में स्थानांतरित कर दिया गया।
उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि उसके बाद ट्रायल कोर्ट ने सबूतों और उसके समक्ष रखे गये तथ्यों का उचित मूल्यांकन किए बिना, वर्तमान आरोपी-याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप तय किए, इस तथ्य के बावजूद कि शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी-याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई वर्तमान आपराधिक कार्यवाही कुछ और नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इतना ही नहीं, प्राथमिकी नौ घंटे की अस्पष्ट देरी के बाद दर्ज की गई थी, क्योंकि कथित घटना दोपहर 12 बजे हुई थी, जबकि प्राथमिकी रात 9:00 बजे दर्ज की गई थी।
सरकारी वकील के साथ-साथ शिकायतकर्ता के वकील ने भी आरोपी-याचिकाकर्ताओं की ओर से किए गए उपरोक्त प्रस्तुतीकरण का विरोध किया। उन्होंने कहा कि आरोप तय करने के चरण में केवल यह देखना है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं; और जांच एजेंसी द्वारा जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त हैं, और इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट ने आक्षेपित आदेश पारित करने में कोई त्रुटि नहीं की है। इसके अलावा, वकील के अनुसार, मामले के तथ्य स्पष्ट रूप से प्रकट करते हैं कि अभियुक्त व्यक्तियों द्वारा किए गए आपराधिक कृत्य के परिणामस्वरूप शिकायतकर्ता पक्ष की मृत्यु भी हो सकती थी।
केस का शीर्षक: महेंद्र सिंह और अन्य बनाम राजस्थान सरकार (पीपी और अन्य के माध्यम से)
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (राजस्थान) 142
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