सीपीसी आदेश XII नियम 6| स्वीकृतियों पर निर्णय पारित किया जा सकता है यदि पार्टी द्वारा स्थापित बचाव इतनी कमजोर है कि सफल होना असंभव है: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 April 2022 5:03 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में सीपीसी के आदेश XII नियम 6 के तहत अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए अधीनस्थ अदालतों द्वारा इस आधार पर स्वीकृतियों के मामले में एक निर्णय की पुष्टि की कि बचाव इतना कमजार था कि पार्टी के लिए सफल होना असंभव था।

    इस संबंध में न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव ने कहा,

    "सीपीसी के आदेश XII नियम 6 को तब भी लागू किया जा सकता है जब निर्णय के खिलाफ उठाई गई आपत्तियां ऐसी हों, जो मामले की जड़ तक जाती हों या आपत्तियां अप्रासंगिक हों, जिसकी यदि सुनवाई हो तब भी पार्टी का सफल होना असंभव हो जाता है।"

    कोर्ट एक विवादित संपत्ति से संबंधित सिविल सूट में आदेश 12 नियम 6 के तहत स्वीकृतियों पर ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और प्रारंभिक डिक्री को चुनौती देने वाली अपील पर विचार कर रहा था।

    अपीलकर्ता का यह तर्क था कि ट्रायल कोर्ट ने आदेश XII नियम 6 के तहत प्रतिवादी-वादी द्वारा औपचारिक आवेदन दाखिल किए बिना तर्कों पर मामले को सूचीबद्ध किया था। यह भी तर्क दिया गया था कि ट्रायल कोर्ट ने इस तथ्य का मूल्यांकन किये बगैर फैसला सुनाकर गलती की थी कि इस मामले में शामिल तथ्यों के विवादित प्रश्न थे और उन पर सुनवाई के बिना निर्णय नहीं लिया जा सकता था।

    अपीलकर्ता द्वारा यह दलील दी गयी थी कि ट्रायल कोर्ट इस तथ्य का मूल्यांकन करने में विफल रहा है कि अपीलकर्ता प्रतिवादी ने मकान मालिक और किरायेदार के संबंध से स्पष्ट रूप से इनकार किया था और खंडन किया था, जैसा कि प्रतिवादी-वादी द्वारा आरोप लगाया गया था। इस प्रकार, कोई स्वीकारोक्ति नहीं थी, जिसके आधार पर निर्णय पारित किया जा सकता था।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी-वादी द्वारा यह तर्क दिया गया था कि यह एक ऐसा मामला था जिसमें किरायेदार ने बेईमान होने के बाद, किराए का भुगतान करना बंद कर दिया और एक झूठे सौदे या बंधक या बिक्री समझौते के आधार पर और नकद भुगतान के संबंध में गलत दलीलें दी ताकि बिना किसी किराए का भुगतान किए संपत्ति में यथासंभव लंबे समय तक रहने के लिए समय प्राप्त कर सके और अंत में बिना किराए का भुगतान किए संपत्ति का लाभ लेकर बाहर निकलता है।

    यह भी कहा गया था कि हाईकोर्ट द्वारा कई मामलों में यह देखा गया है कि जो किरायेदार अवैध रूप से फर्जी तरीके से बचाव करके किराए के परिसर पर कब्जा करना जारी रखते हैं, उनके ऊपर उचित रूप जुर्माना लगाया जाना चाहिए।

    शुरुआत में, हाईकोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता/प्रतिवादी ने अपने लिखित बयान में स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रतिवादी / वादी ने उसे संपत्ति किराये पर दी थी।

    इसने आगे नोट किया कि अपीलकर्ता ने प्रतिवादी-वादी को मॉर्गेज, बिक्री समझौते के अनुसरण में कई भुगतान का दावा किया था । हालांकि, कोर्ट में इस तरह के भुगतान का कोई सबूत पेश नहीं किया गया था।

    इसने टिप्पणी की,

    "इसलिए, अपीलकर्ता/ प्रतिवादी द्वारा किया गया बचाव इतना मजबूत बचाव नहीं है जो उसे मुकदमे में सफल होने में सक्षम करेगा, यहां तक कि मामले पर सुनवाई के बाद भी।"

    कोर्ट ने कहा कि यह एक स्थापित कानून है कि सीपीसी का आदेश XII नियम 6 अधिकार का मामला नहीं है। यह एक समर्थकारी प्रावधान है जो अपने प्रतिद्वंद्वी के दावे के किसी एक पक्ष द्वारा स्वीकार किए गए दावे की सीमा तक शीघ्र न्याय सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय को विवेकाधिकार प्रदान करता है।

    कोर्ट ने टिप्पणी की,

    "जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, इस तरह की स्वीकारोक्ति याचना के रूप में या अन्य रूपों यथा- दस्तावेजों, पत्राचार, आदि में रिकॉर्ड पर रखी जा सकती हैं। यह मौखिक या लिखित रूप में हो सकती है; स्वीकारोक्ति के साथ-साथ विशिष्ट या अभिव्यंजक नहीं भी हो सकती है, जिसे वाद में ली गई विशिष्ट दलीलों का जवाब देते हुए लिखित बयान में अस्पष्ट और स्पष्ट इनकार से अनुमान लगाया जा सकता है।"

    इसमें कहा गया है कि सीपीसी के आदेश XII नियम 6 के तहत स्वीकारोक्ति पर पारित किए जाने वाले निर्णय के लिए, कोर्ट को यह देखना होगा कि क्या तथ्यों की स्वीकृति स्पष्ट, असंदिग्ध और सुस्पष्ट है और मामले की जड़ तक जाती है, जो दूसरे पक्ष को सफल होने का अधिकार दें; (iii) यदि उठाए गए मुद्दे में तथ्य और कानून का मिश्रित प्रश्न शामिल है, तो उस पर साक्ष्य के माध्यम से निर्णय लिया जाना चाहिए; (iv) सीपीसी के आदेश XII नियम 6 के तहत प्रदत्त विवेक का प्रयोग विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना है न कि मनमाने ढंग से।

    कोर्ट का विचार था कि ट्रायल कोर्ट ने मुख्य रूप से प्रतिवादी-वादी के पक्ष में राहत केवल इस निष्कर्ष पर दी थी कि अपीलकर्ता प्रतिवादी के पक्ष में किसी भी पंजीकृत दस्तावेज के अभाव में, वाद संपत्ति में अपीलकर्ता की कानूनी स्थिति, एक किरायेदार या कम से कम एक लाइसेंसधारी के रूप में थी और अपीलकर्ता के पक्ष में किसी भी पंजीकृत दस्तावेज की अनुपस्थिति में, सूट पर सम्मन तामील होने के बाद पार्टियों के बीच कानूनी संबंध के मद्देनजर अपीलकर्ता को विवादित सम्पत्ति पर कब्जा रखने का कोई अधिकार नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि यह मान भी लिया जाए कि संपत्ति मॉर्गेज की गयी थी या बिक्री समझौता किया गया था, लेकिन वह पंजीकृत नहीं होने के कारण, अपीलकर्ता-प्रतिवादी द्वारा विवादित संपत्ति पर कब्जे को सही ठहराना उचित नहीं होगा और अपीलकर्ता की स्थिति किरायेदार के रूप में रहेगी।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसलिए, अपीलकर्ता / प्रतिवादी द्वारा किया गया बचाव इतना मजबूत बचाव नहीं है जो उसे मुकदमे में सफल होने के लिए सक्षम करेगा, भले ही मामले की सुनवाई हो।"

    कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के पास सीपीसी के आदेश XII नियम 6 के तहत दलीलों पर विचार करने और उसके पास उपलब्ध शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार है।

    कोर्ट ने कहा,

    "जहां तक अपीलकर्ता/प्रतिवादी की याचिका का संबंध है कि मुकदमा ठीक से स्थापित नहीं किया गया है, मुकदमा प्रतिवादी/वादी के पति द्वारा प्रतिवादी/वादी द्वारा अपने पक्ष में निष्पादित एक प्राधिकरण पत्र के आधार पर स्थापित किया गया है, जिसमें प्रतिवादी / वादी द्वारा उपस्थित होने, दलील देने, हस्ताक्षर करने, फाइल करने, सत्यापित करने आदि का अधिकार शामिल है।''

    तद्नुसार अपील खारिज कर दी गई।

    केस शीर्षक: दिनेश शर्मा बनाम श्रीमती कृष्णा कैंथ

    उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 367

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