हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

3 April 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (28 मार्च, 2022 से एक अप्रैल, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    बरी के सभी आदेशों को पीड़ित को उचित सूचना के लिए डीएलएसए और जिला मजिस्ट्रेट को अग्रेषित किया जाना चाहिए, पीड़ित के अपील के अधिकार का समर्थन करना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को आदेश दिया कि सीआरपीसी की धारा 2 (डब्ल्यूए) के अनुसार पीड़िता को उचित सूचना देने के लिए बरी होने के हर आदेश को जिला मजिस्ट्रेट और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को भेजा जाना चाहिए।

    कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि बरी होने के हर आदेश में, संबंधित ट्रायल कोर्ट को फैसले में पीड़ित के अधिकार का जिक्र करना चाहिए कि वह धारा 372 सीआरपीसी के प्रावधान के अनुसार अपील करे और यदि आवश्यक हो, तो ऐसी अपील दायर करने के लिए संबंधित कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करें।

    केस शीर्षक: साबित्री भुन्या बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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    पीड़ित दोषी को दी गई सजा की पर्याप्तता के खिलाफ धारा 372 सीआरपीसी के तहत अपील दायर नहीं कर सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि कोई भी ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के तहत अपील नहीं कर सकता है।

    जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस सी जयचंद्रन की खंडपीठ ने उक्त टिप्‍पणियों के साथ एक आपराधिक अपील को खारिज कर दिया और कहा कि ऐसी अपील केवल सीआरपीसी की धारा 377 के तहत राज्य द्वारा ही की जा सकती है।

    केस शीर्षक: सुलेमान केरल राज्य और अन्य।

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    किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ मांगी गई स्थायी निषेधाज्ञा उस व्यक्ति तक ही सीमित होनी चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने निचली अदालतों के निष्कर्षों में हस्तक्षेप किए बिना दूसरी अपील का निस्तारण कर दिया है। अदालत ने यह भी पाया कि कार्रवाई का कारण मौजूद नहीं है और कानून का कोई बड़ा सवाल शामिल नहीं था।

    मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस एन आनंद वेंकटेश, वेल्लोर के प्रधान जिला मुंसिफ के फैसले और डिक्री की पुष्टि करने वाले अधीनस्थ न्यायाधीश, वेल्लोर के फैसले और डिक्री के आदेश के खिलाफ ए गणेश नामक व्यक्ति द्वारा दायर दूसरी अपील पर सुनवाई कर रहे थे।

    केस टाइटल - ए गणेशन बनाम जावीद हुसैन (मृत्यु) और अन्य।

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    एनडीपीएस एक्ट| अदालतें किसी विशेष ड्रग को 'निर्मित ड्रग' या 'साइकोट्रोपिक पदार्थ' घोषित नहीं कर सकतीं: जेकेएल हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने माना है कि अदालतें एनडीपीएस एक्ट के तहत यह घोषणा नहीं कर सकती हैं कि एक विशेष ड्रग एक 'निर्मित ड्रग' या 'साइकोट्रोपिक पदार्थ' है। जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने कहा कि यह सरकार का काम है कि वह एनडीपीएस एक्ट के तहत 'निर्मित ड्रग' या 'साइकोट्रोपिक पदार्थों' की सूची में एक विशेष दवा को शामिल करने पर निर्णय ले।

    उल्‍लेखनीय है कि 'निर्मित ड्रग' को एनडीपीएस एक्ट की धारा 2 (xi) में परिभाषित किया गया है और इसमें सभी कोका डेरिवेटिव, मेडिस‌िनन कैनबीज़, ऑपियम डेरिवेटिव और पॉपी स्ट्रॉ कॉन्संट्रेट के अलावा किसी भी अन्य मादक पदार्थ या सामग्री जिसे इस आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषित किया गया है, को शामिल किया गया है।

    केस शीर्षक- खुर्शीद अहमद डार बनाम जम्मू-कश्मीर यूनियन टेरिटरी

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    अगर मुख्य आरोपी को समान आरोप के लिए समान गवाहों की गवाही पर विचार करते हुए बरी कर दिया जाता है तो सह-अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि अगर मुख्य आरोपी को समान आरोप के लिए समान गवाहों की गवाही पर विचार करते हुए बरी कर दिया जाता है तो सह-अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति सुरेश कुमार गुप्ता (Justice Suresh Kumar Gupta) की खंडपीठ ने देखा कि आईपीसी की धारा 364-ए [फिरौती के लिए अपहरण], धारा 34 के आरोपों को खारिज कर दिया, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के एक समूह की गवाही के आधार पर इस मामले के मुख्य आरोपी को निचली अदालत पहले ही बरी कर चुकी है।

    केस का शीर्षक - अनंत मिश्रा @ अमित मिश्रा @ सूर्य प्रकाश मिश्रा बनाम यूपी राज्य एंड अन्य

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    केवल 'भारतीय नागरिक' वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू कर सकते हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि केवल 'भारतीय नागरिक' माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत कार्यवाही शुरू कर सकते हैं।

    जस्टिस पी. कृष्णा भट की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "यह स्पष्ट है कि अधिनियम के प्रयोजनों के लिए 'वरिष्ठ नागरिक' नामित किए जाने के लिए आवश्यक तत्वों में से एक व्यक्ति का भारतीय नागरिक होना है।"

    केस का शीर्षक: डेफनी ग्लेडिस लोबो बनाम सहायक आयुक्त और राष्ट्रपति वरिष्ठ नागरिक अनुरक्षण न्यायाधिकरण

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    यदि समन के दौरान आरोपी जानबूझ कर अनुपस्थित नहीं था तो गैर-जमानती वारंट जारी करने के बाद भी उसे जमानत दी जा सकती है : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक आरोपी को जमानत दी थी, जिस के खिलाफ समन जारी करने के दरमियान अनुपस्थिति के कारण गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था।

    अदालत ने पाया कि आरोपी को समन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी क्योंकि उसने अपना निवास बदल लिया था और इसलिए निचली अदालत के समक्ष तारीखों पर पेश नहीं हो सका। याचिकाकर्ता की ओर से जमानत प्राप्त करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत आपराधिक याचिका दायर की गई थी।

    केस शीर्षक: डोमेती चक्रधर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    सरकारी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय जांच को कैजुअल तरीके से नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक सरकारी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय जांच को एक कैजुअल एक्सर्साइज के रूप में नहीं माना जाना चाहिए और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न केवल न्याय किया जाता है बल्कि स्पष्ट रूप से किया हुआ दिखता भी है।

    जस्टिस योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा न्यायाधिकरण, लखनऊ के एक आदेश को बरकरार रखा, जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा प्रतिवादी संख्या 2 (मृतक सरकारी कर्मचारी) के खिलाफ पारित सजा के आदेश को रद्द कर दिया गया था।

    केस शीर्षक - स्टेट ऑफ यूपी सचिव राजस्व और 4 अन्य बनाम राज्य लोक सेवा न्यायाधिकरण और 4 अन्य के माध्यम से

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    निर्धारित वैधानिक सीमा के अभाव में भी पक्षकारों से 'उचित समय' के भीतर अदालत का दरवाजा खटखटाने की उम्मीद: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया है कि किसी भी निर्धारित सीमा के अभाव में, एक उचित समय होना चाहिए, जिसके भीतर पीड़ित पक्ष को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़े।

    कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत दायर एक याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें 20.09.2012 के आक्षेपित अवॉर्ड को रद्द करने के लिए प्रमाण पत्र जारी करने की मांग की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता के पति की सेवा की समाप्ति का जवाब श्रम कोर्ट ने उसके खिलाफ दिया था।

    केस शीर्षक: श्रीमती खज़ानी देवी बनाम पीठासीन अधिकारी, औद्योगिक न्यायाधिकरण-सह-श्रम कोर्ट और अन्य

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    पासपोर्ट रिन्यू करने का अनुरोध केवल आपराधिक मामलों के लंबित होने के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना है कि आपराधिक मामलों का लंबित होना मात्र किसी व्यक्ति के पासपोर्ट रिन्यू (नवीनीकरण) करने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता।

    जस्टिस विश्वनाथ रथ की सिंगल जज बेंच ने कहा, "... इस कोर्ट की राय में पासपोर्ट के नवीनीकरण या यहां तक कि संबंधित पक्ष से संबंधित आपराधिक कार्यवाही के लंबित होने पर पासपोर्ट प्रदान करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, जो समय आधारित नवीनीकरण या अनुदान हो सकता है।"

    केस शीर्षक: आशुतोष अमृत पटनायक बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य।

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    आदेश XXXVIII नियम 5 सीपीसी- वाद संपत्ति को यांत्रिक तरीके से या केवल वादी से कहने पर जब्त नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXXVIII नियम 5 के तहत शक्ति का प्रयोग यांत्रिक रूप से या केवल वाद के वादी के कहने पर नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस अमित बंसल ने कहा, "सीपीसी के आदेश XXXVIII नियम 5 के प्रावधानों का संयम से इस्तेमाल किया जाना चाहिए और वादी को अदालत को संतुष्ट करना होगा कि प्रतिवादी अपनी पूरी संपत्ति या उसके हिस्से को हटाने या निपटाने की मांग कर रहा है ताकि उस डिक्री के निष्पादन में बाधा या देरी हो सके जो उसके खिलाफ पारित किया जा सकती है।"

    केस: वंदना वर्मा बनाम रूप सिंह और अन्य ।

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    आपराधिक मामला लंबित होने पर भी न्यायालयों को सीआरपीसी की धारा 104 के तहत पासपोर्ट जब्त करने की शक्ति नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि आपराधिक मामला लंबित होने पर भी सीआरपीसी की धारा 104 के तहत न्यायालय द्वारा पासपोर्ट को जब्त नहीं किया जा सकता। आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत आपराधिक याचिका दायर की गई। इसमें प्रधान सत्र न्यायाधीश के न्यायालय के आदेश को रद्द करने और याचिकाकर्ता के पासपोर्ट को वापस करने के लिए उसे रिन्यू करने के बाद यूएसए की यात्रा करने की अनुमति देने की मांग की गई।

    केस शीर्षक: रवि रमेश बाबू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    आदर्श आचार सं‌‌हिता और धारा 144 सीआरपीसी लागू होने के बाद सार्वजनिक राजनीतिक बैठक करना गैरकानूनी भीड़ जुटाने के बराबरः झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि आदर्श आचार संहिता लागू होने और उसके बाद धारा 144 सीआरपीसी के तहत निषेधाज्ञा जारी होने के बाद किसी उम्मीदवार द्वारा सार्वजनिक राजनीतिक बैठक आयोजित करना प्रथम दृष्टया गैरकानूनी भीड़ जुटाने के समान है।

    जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की खंडपीठ ने आगे स्पष्ट किया कि इस तरह की सभा का सामान्य उद्देश्य, प्रथम दृष्टया, धारा 144 सीआरपीसी के तहत जारी निषेधाज्ञा के उल्लंघन में कार्य करना होगा।

    केस शीर्षक - अमिताभ चौधरी बनाम झारखंड राज्य और अन्य

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    यदि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पहले ही याचिका को अनुमति दी जा चुकी है तो दूरी/वित्तीय बोझ के आधार पर वैवाहिक मामले को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बार हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 [भरण-पोषण और मुकदमेबाजी का खर्च] की धारा 24 के तहत एक आवेदन को अनुमति दी जा चुकी हो, और वैवाहिक विवाद में शामिल एक पक्ष को मुकदमेबाजी खर्च का निर्बाध भुगतान किया जा रहा हो, वह दूरी और वित्तीय बोझ के आधार पर स्थानांतरण आवेदन दायर नहीं कर सकता/सकती है।

    जस्टिस नीरज तिवारी की खंडपीठ ने अभिलाषा गुप्ता बनाम हरिमोहन गुप्ता 2021 9 एससीसी 730 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए उक्त टिप्‍पणी की। उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह विचार था कि जब आवेदन को अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत की अनुमति दी जा चुकी है और विशेष वैवाहिक विवाद अंतिम निर्णय के कगार पर है, स्थानांतरण आवेदन की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    केस शीर्षक - श्रीमती शालिनी दुबे @ राधिका दुबे बनाम अभिषेक त्रिपाठी @ गोपाल

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    मौखिक रूप से हुए पारिवारिक समझौत पर पंजीकरण या स्टांप ड्यूटी का भुगतान अनिवार्य नहीं, इसे केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि फैमिली सेटलमेंट को पंजीकृत करने और उसके लिए स्टांप शुल्क का भुगतान करने की जरूरत नहीं है, जब इस प्रकार के सेटलमेंट को शुरू में मौखिक बंटवारे के रूप में किया गया हो, हालांकि बाद में सूचना के मकसद से लिखित रूप दिया गया हो।

    जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा, "पक्षकारों के बीच वकीलों के हस्तक्षेप से मौखिक समझौते के माध्यम से विभाजन पर सहमति हुई थी। समझौता ज्ञापन स्वयं संपत्तियों का विभाजन नहीं करता है, बल्कि केवल स्मृति की सहायता के रूप में रिकॉर्ड करता है।" .

    केस शीर्षक: हिमानी वालिया बनाम हेमंत वालिया और अन्‍य।

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    सीपीसी द्वितीय अपील| केवल सहानुभूति के आधार पर आदेशों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते, कानून का महत्वपूण्र प्रश्न जरूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक हाईकोर्ट दूसरी अपील में कानून के किसी महत्वपूर्ण प्रश्न के अभाव में मात्र सहानुभूति के आधार पर सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत एक आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

    सीपीसी की धारा 100 के तहत किसी ‌सिविल सूट के किसी भी पक्ष को, जिस पर दीवानी अदालत द्वारा पारित डिक्री का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, दूसरी अपील का प्रक्रियात्मक अधिकार प्रदान किया गया है। हाईकोर्ट में दूसरी अपील उसी स्थिति में की जाती है, जब न्यायालय संतुष्ट हो कि इसमें कानून का महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है।

    केस शीर्षक: भगवान सिंह बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्‍य।

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    निवारक निरोध के खिलाफ प्रतिनिधित्व करने का अवसर राज्य सरकार को नहीं, बल्कि हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी को दिया जाना चाहिए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में इस आधार पर निवारक निरोध (Preventive Detention) के एक आदेश को रद्द कर दिया कि बंदी को हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी के समक्ष एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने का अवसर नहीं दिया गया, जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(5) के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

    न्यायमूर्ति शील नागू (Justice Sheel Nagu) और न्यायमूर्ति एम.एस. भट्टी (Justice M.S. Bhatti) अनिवार्य रूप से याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें वह कालाबाजारी की रोकथाम और आवश्यक वस्तु की आपूर्ति अधिनियम, 1980 की धारा 3 के तहत जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित हिरासत के आदेश को रद्द करने की मांग कर रहा था।

    केस का शीर्षक: रजनीश कुमार तिवारी बनाम मध्य प्रदेश राज्य एंड अन्य

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    एक छोटे से भूखंड पर आवासीय भवन बनाने के लिए विकास परमिट की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह एक बड़े भूखंड से उप-विभाजित है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक पंचायत भूमि के एक छोटे से हिस्से, जो कि एक बड़े भूखंड से उप-विभाजित है, के मालिक से विकास परमिट पेश करने जोर नहीं दे सकती है, ताकि उसकी संपत्ति पर केरल पंचायत भवन नियम, 2019 के अनुसार, आवासीय भवन के निर्माण की अनुमति मिल सके।

    चीफ जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी चाली की एक खंडपीठ ने कहा कि नियम एक व्यक्ति द्वारा एक बड़े क्षेत्र जमीन के एक छोटे से भूखंड की खरीद के संबंध में पूरी तरह से अलग स्थिति पर विचार करते हैं, चाहे संपत्ति के मालिक ने इसे विभिन्न भूखंडों में विभाजित किया हो और इसे बेचा हो या न बेचा हो।

    केस शीर्षक: पंजाल ग्राम पंचायत और अन्य बनाम अनीश पी

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    किशोर न्याय अधिनियम | धारा 12 के तहत जमानत देने के लिए धारा 15 के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन आवश्यक नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि किशोर न्याय बोर्ड की किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 12 के तहत जमानत देने की शक्ति की जेजे एक्ट की धारा 15 के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन की आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस जीएस अहलूवालिया अधिनियम की धारा 102 के तहत एक आपराधिक संशोधन का निस्तारण कर रहे थे, जिसमें आवेदक ने जेजेबी द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत उसने कानून के उल्लंघन के आरोप में एक बच्चे को अधिनियम की धारा 12 के तहत जमानत दी थी।

    केस शीर्षक: प्रहलाद सिंह परमार बनाम एमपी राज्य और अन्य

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    अदालतें मकान-मालिकों से यह नहीं कह सकतीं कि उन्हें किस तरह से रहना चाहिए या उनके लिए आवासीय मानक निर्धारित नहीं कर सकतीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किराए के विवादों में अदालतों का यह सरोकार नहीं है कि वह मकान मालिक को यह निर्देश दे कि उसे कैसे और किस तरीके से रहना चाहिए या उसके लिए अपना खुद का आवासीय मानक निर्धारित करना चाहिए।

    प्रतिभा देवी (श्रीमती) बनाम टीवी कृष्णन 1996 (5) एससीसी 353 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने भी जोर देकर कहा कि मकान मालिक अपनी आवासीय जरूरतों का सबसे अच्छा जज है और ऐसा कोई कानून नहीं है, जो मकान मालिक को उसकी संपत्ति के लाभकारी आनंद से वंचित करता है।

    केस का शीर्षक - गोपाल कृष्ण शंखधर @ कृष्ण गोपाल शंखधर बनाम श्री मनोज कुमार अग्रवाल और 2 अन्य

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    हाईकोर्ट के पास न‌िजी प्रकृति के विवादों के नॉन-कंपाउंडेबल अपराधों के लिए समझौता करने की अनुमति देने की 'अंतर्निहित शक्ति': आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल के एक मामले में पार्टियों द्वारा किए गए समझौते की अनुमति दी और अपराधी के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी, हालांकि अपराध आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 320 के तहत नॉन-कंपाउंडेबल था।

    कथित अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के तहत था, जो दहेज हत्या से संबंधित है। अदालत से अनुरोध करते हुए आवेदन दायर किए गए थे कि वास्तविक शिकायतकर्ता को अपराधों को कम करने और समझौता दर्ज करने की अनुमति दी जाए।

    केस शीर्षक: चेपला अपाला राजू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    मुवक्किल के लिए जूनियर एडवोकेट के साथ सीनियर एडवोकेट द्वारा संयुक्त वकालत दाखिल करने में कोई अवैधता नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने सोमवार को फैसला सुनाया कि एक बार जब कोई मुवक्किल किसी वकील को मामले का संचालन करने के लिए अधिकृत करता है, तो वकील को उनकी ओर से एक संयुक्त वकालत दायर करने का अधिकार होता है। न्यायमूर्ति एन. नागरेश ने कहा कि संयुक्त वकालत दायर करना किसी भी वकील को उसकी पेशेवर फीस से इनकार करने का आधार नहीं है।

    केस का शीर्षक: पी.जी. मैथ्यू बनाम हवाई अड्डा निदेशक

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    एसोसिएशन की ओर से दायर रिट याचिका तभी सुनवाई योग्य, जब कोर्ट संतुष्ट हो कि सभी सदस्य मुकदमे से बंधे हुए: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक एसोसिएशन की रिट याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसके सदस्यों द्वारा पारित प्रस्ताव में न तो यह निर्दिष्ट किया गया था कि एसोसिएशन को उनकी ओर से याचिका दायर करने के लिए अधिकृत किया जा रहा था और न ही स्पष्ट किया गया था कि क्या सदस्य याचिका में दिए गए निर्णय का पालन करेंगे। हाईकोर्ट ने उक्त निर्णय के साथ एकल न्यायाधीश के निर्णय की पुष्टि की।

    केस शीर्षक: स्वच्छाग्रही संघ, जनपद पंचायत निवास बनाम यू‌नियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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    केवल धारा 33(5), पोक्सो एक्ट के कारण अभियुक्त को जिरह के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता: उत्तराखंड हाईकोर्ट

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने माना कि आरोपी द्वारा जिरह के लिए एक बाल गवाह को बुलाने से केवल यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 33(5) के कारण इनकार नहीं किया जा सकता है। विशेष रूप से, प्रावधान के तहत विशेष न्यायालय के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बच्चे (अभियोजन पक्ष) को अदालत में गवाही देने के लिए बार-बार ना बुलाया जाए।

    केस शीर्षक: मोहित बनाम उत्तराखंड राज्य

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    अगर एक समान परिस्थिति वाले वयस्क अपराधी को जमानत दी गई है तो एक किशोर को जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने दोहराया कि एक किशोर को जमानत पर रिहा होने का अधिकार है, जहां एक समान परिस्थिति वाले वयस्क अपराधी को पहले ही वह स्वतंत्रता दी जा चुकी है।

    न्यायमूर्ति शमीम अहमद (Justice Shamim Ahmed) की खंडपीठ ने आगे कहा कि एक बार वयस्क सह-आरोपी को जमानत दी गई है, तो किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 की उप-धारा 1 के तहत प्रावधान की आवश्यकताओं के संदर्भ में किशोर के मामले का अतिरिक्त परीक्षण करने का कोई औचित्य नहीं होगा।

    केस का शीर्षक - X (नाबालिग) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एंड अन्य

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    एनआई एक्ट-नोटिस और भुगतान का अवसर मिलने के बावजूद चेक राशि का भुगतान न करने वाला व्यक्ति आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए बाध्यः दिल्ली हाईकोर्ट

    इस बात पर जोर देते हुए कि जब एक बार कोई व्यक्ति चेक जारी करता है तो उसका सम्मान किया जाना चाहिए, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि नोटिस जारी करने और चेक की राशि का भुगतान करने का अवसर दिए जाने के बावजूद भी चेक की राशि का भुगतान नहीं करने वाला व्यक्ति आपराधिक मुकदमे का सामना करने और उसके परिणाम भुगतने के लिए बाध्य है।

    केस का शीर्षक-संजय गुप्ता बनाम राज्य व अन्य

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    सीआरपीसी धारा 498ए के तहत दर्ज आपराधिक शिकायत के बारे में भली नीयत में पति के सीनियर को लिखा गया पत्र आपराधिक मानहानि का गठन नहीं करता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि पति के सीनियर को भली नीयत से पत्र लिखकर पति के खिलाफ प्रताड़ना के आरोप में दर्ज अपराधिक मामले में बारे में जानकारी देना आईपीसी की धारा 499 के तहत आपराधिक मानहानि नहीं होगी। मौजूदा मामले में पत्नी (याचिकाकर्ता) ने 24 मई 1997 को इंडियन ओवरसीज बैंक के प्रबंधक को पत्र लिखकर बताया था कि उसके पति, जो ओवरसीज बैंक के सहायक प्रबंधक थे, उसने उसे प्रताड़ित किया और उसे वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया।

    केस शीर्षक: मलंचा मोहिनता बनाम दीपक मोहिनता

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