सीपीसी द्वितीय अपील| केवल सहानुभूति के आधार पर आदेशों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते, कानून का महत्वपूण्र प्रश्न जरूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

29 March 2022 3:22 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक हाईकोर्ट दूसरी अपील में कानून के किसी महत्वपूर्ण प्रश्न के अभाव में मात्र सहानुभूति के आधार पर सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत एक आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

    सीपीसी की धारा 100 के तहत किसी ‌सिविल सूट के किसी भी पक्ष को, जिस पर दीवानी अदालत द्वारा पारित डिक्री का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, दूसरी अपील का प्रक्रियात्मक अधिकार प्रदान किया गया है। हाईकोर्ट में दूसरी अपील उसी स्थिति में की जाती है, जब न्यायालय संतुष्ट हो कि इसमें कानून का महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है।

    जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा,

    "सीपीसी की धारा 100 के तहत न्यायालय को तभी हस्तक्षेप की अनुमति है, जब मामले में कानून का महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है। यह प्रश्न नीचे की अदालतों के आदेशों से पैदा होता है। कानून के किसी महत्वपूर्ण प्रश्न की अनुपस्थिति में धारा 100 के तहत कोर्ट आदेश में केवल सहानुभूति के आधार पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।"

    न्यायालय सीपीसी की धारा 100 के तहत दायर दूसरी अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें कड़कड़डूमा कोर्ट्स के अतिरिक्त जिला जज द्वारा पारित 10 फरवरी, 2022 के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। उन्होंने अपने आदेश में देरी के आधार पर अपीलकर्ता की पहली अपील को खारिज कर दिया था।

    अपीलकर्ता द्वारा देरी के संबंध में दायर आवेदन में "संसाधनों की कमी" को एकमात्र आधार के रूप में उद्धृत किया गया, जिसने अपीलकर्ता को कानूनी सलाह प्राप्त करने और सीमा के भीतर अपील दायर करने में बाधा पैदा की...और "भारी कार्य" को भी एक कारण के रूप में बताया गया है, जिसके परिणामस्वरूप समय के भीतर वकील द्वारा अपील तैयार नहीं की जा सकी।

    कोर्ट ने कहा, "आवेदन अपीलकर्ता के संसाधनों का खुलासा नहीं करता है या यह स्पष्ट नहीं करता है कि वे अपीलकर्ता को समय के भीतर अपील दायर करने के लिए अपर्याप्त क्यों थे। इसी तरह, "भारी कार्यों" को शायद ही देरी की माफी मांगने के लिए पर्याप्त आधार कहा जा सकता है।"

    दूसरी अपील में, कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने अपनी मां की बीमारी से जुड़े एक पूरी तरह से नए आधार को आगे बढ़ाने की मांग की थी, जो 26 मार्च, 2021 को समाप्त हो गई थी।

    न्यायालय ने यह भी नोट किया कि निचली अदालत का आक्षेपित आदेश, जिसके खिलाफ पहली अपील और दूसरी अपील दायर की गई थी, 4 अप्रैल, 2019 को पारित किया गया था। अपील दायर करने की सीमा 4 मई, 2019 को समाप्त हो गई। अपील 19 जुलाई 2019 को दायर की गई।

    कोर्ट ने कहा, "वर्तमान अपील में अनुमान के अनुसार, अपीलकर्ता की मां की मृत्यु प्रथम अपीलीय न्यायालय के समक्ष अपील दायर करने की तारीख के लगभग दो साल बाद 26 मार्च, 2021 को हुई थी। यह इंगित करने के लिए कोई सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं रखी गई है कि अपीलकर्ता अप्रैल, 2019 अपील दायर करने में असमर्थ था, क्योंकि वह अपनी बीमार मां की देखभाल करने में शामिल था।"

    इसलिए न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वह अपीलकर्ता द्वारा विलंब को माफ करने के लिए लिए दिए गए आधारों पर फिर से विचार नहीं कर सकता है।

    अदालत ने आदेश दिया, "इसलिए, मैं वर्तमान अपील को सीमित समय में खारिज करने के लिए बाध्य हूं क्योंकि इससे कानून का कोई बड़ा सवाल नहीं उठता है। सभी विविध आवेदनों का भी निपटारा किया जाता है।"

    केस शीर्षक: भगवान सिंह बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्‍य।

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 247

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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