यदि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पहले ही याचिका को अनुमति दी जा चुकी है तो दूरी/वित्तीय बोझ के आधार पर वैवाहिक मामले को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

30 March 2022 4:43 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बार हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 [भरण-पोषण और मुकदमेबाजी का खर्च] की धारा 24 के तहत एक आवेदन को अनुमति दी जा चुकी हो, और वैवाहिक विवाद में शामिल एक पक्ष को मुकदमेबाजी खर्च का निर्बाध भुगतान किया जा रहा हो, वह दूरी और वित्तीय बोझ के आधार पर स्थानांतरण आवेदन दायर नहीं कर सकता/सकती है।

    जस्टिस नीरज तिवारी की खंडपीठ ने अभिलाषा गुप्ता बनाम हरिमोहन गुप्ता 2021 9 एससीसी 730 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए उक्त टिप्‍पणी की। उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह विचार था कि जब आवेदन को अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत की अनुमति दी जा चुकी है और विशेष वैवाहिक विवाद अंतिम निर्णय के कगार पर है, स्थानांतरण आवेदन की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    मामला

    मौजूदा मामले में, शालिनी दुबे ने हाईकोर्ट में स्थानांतरण आवेदन दायर किया था। अअचेपउ में फैमिली कोर्ट, औरैया से तलाक की कार्यवाही को इटावा की एक अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी, जहां वह फिलहाल रह रही है।

    उनका प्राथमिक निवेदन यह था कि वह इटावा में सीआरपीसी की धारा 125 और घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत पहले ही आवेदन कर चुकी हैं, हालांकि, केवल उन्हें परेशान करने के लिए, विरोधी पक्ष/ उनके पति ने प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, औरैया के समक्ष तलाक की याचिका दायर की थी, इन तथ्यों और परिस्थितियों में उसने तलाक के मामले को औरैया से इटावा स्थानांतरित करने के लिए निर्देश मांगा।

    दूसरी ओर, विरोधी पक्ष के वकील ने उसके आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि तलाक की याचिका के लंबित रहने के दौरान, उसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत एक आवेदन दायर किया था जिसमें भरण-पोषण और मुकदमेबाजी खर्च की मांग की गई थी।

    आगे यह प्रस्तुत किया गया कि जब उक्त आवेदन को स्वीकार कर लिया गया है और विरोधी पक्ष पहले से ही उसे मुकदमे का खर्च दे रहा है, तो दूरी और वित्तीय बोझ के आधार पर मामले को स्थानांतरित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

    आदेश

    प्रारंभ में, न्यायालय ने अभिलाषा गुप्ता (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अवलोकन किया और कहा,

    "एक बार जब आवेदक ने अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत आवेदन किया है, जिसकी अनुमति दी गई थी और उसे मुकदमेबाजी खर्च का निर्बाध भुगतान किया जाता है, तो वह दूरी और वित्तीय बोझ के आधार पर स्थानांतरण आवेदन दायर नहीं कर सकती है।

    इसी तरह, यदि कार्यवाही चल रही है अंतिम सुनवाई के कगार पर है, तो स्थानांतरण आवेदन में किसी भी हस्तक्षेप से केवल कार्यवाही में देरी होगी। इसलिए, ऐसी परिस्थितियों में, किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और स्थानांतरण आवेदन खारिज किए जाने के लिए उत्तरदायी है।"

    तदनुसार, स्थानांतरण आवेदन खारिज कर दिया गया था। हालांकि, खतरे की आशंका के मामले में, आवेदक को उपस्थिति की तारीख पर सुरक्षा के लिए इस न्यायालय के आदेश के साथ एसएसपी, इटावा के समक्ष एक आवेदन पेश करने की स्वतंत्रता दी गई थी।

    कोर्ट ने आदेश दिया, "यदि ऐसा कोई आवेदन एसएसपी, इटावा के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो वह आवेदक या अन्य गवाहों को प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, औरैया के समक्ष उनकी उपस्थिति की तारीख पर पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करेगा।"

    केस शीर्षक - श्रीमती शालिनी दुबे @ राधिका दुबे बनाम अभिषेक त्रिपाठी @ गोपाल

    केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 144

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