हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

27 Feb 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (21 फरवरी, 2022 से 25 फरवरी, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    प्रेम संबंध और सहमति से शारीरिक संबंध का मामला, अगर विवाह का झूठा वादा न हो तो बलात्कार नहींः जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि विवाह का वादा, जिसमें दो वयस्कों के बीच शारीरिक संबंध में शामिल हैं, प्रेम संबंध का मामला है और यह किसी भी रूप में आईपीसी की धारा 375 [बलात्कार] की परिभाषा के दायरे में नहीं आएगा।

    जस्टिस मोहन लाल की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा जब झूठे वादे के मामला होता है, जिसे यौन संबंध के लिए एक महिला की सहमति पाने के लिए किया जाता है, तो गलत बयानी के बराबर होता है, और इस प्रकार से पाई गई सहमति किसी व्यक्ति को बलात्कार के अपराध से मुक्त नहीं कर सकती है।

    केस शीर्षक - अशोक कुमार बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर

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    [आदेश VI नियम 18 सीपीसी] तय समय में अगर वाद में संशोधन नहीं किया गया तो बाद में उसमें संशोधन नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में कहा कि एक बार वाद में संशोधन के लिए एक आवेदन की अनुमति मिलने के बाद, उसे दी गई समय सीमा के भीतर संशोधित किया जाना चाहिए। भारत संघ बनाम प्रमोद गुप्ता, (2005) 12 एससीसी 1 में सर्वोच्च न्यायालय का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि यदि संशोधित याचिका निर्धारित समय के भीतर दायर नहीं की जाती है, तो उसके बाद इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता है।

    केस का शीर्षक: थरविंदर सिंह एंड अन्य बनाम वीरेश चोपड़ा एंड अन्य

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    राजस्व दस्तावेज में संपत्ति का म्यूटेशन स्वामित्व का निर्माण या समापन नहीं करता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि जब दोनों न्यायालयों के एक सुविचारित आदेश में समवर्ती निष्कर्ष हों तो दूसरी अपील कानून के किसी भी महत्वपूर्ण प्रश्न के बिना सुनवाई योग्य नहीं होगी।

    केस शीर्षक: बासा बगवंत राव बनाम वेमुमुला सुलोचना

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    हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटी द्वारा स्थापित विभाजन मुकदमे में दहेज के रूप में दी गई संपत्तियों को भी शामिल किया जाएगा: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि बेटी की शादी के समय जो संपत्ति दहेज या किसी अन्य रूप में दी गई है, वह विभाजन के लिए उत्तरदायी होगी और बेटी की ओर से विभाजन के स्‍था‌पित मुकदमे में उसे शामिल करना होगा। जस्टिस सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने विभाजन के लिए दायर एक मुकदमे में यह टिप्‍पणी की।

    केस शीर्षक: हेमलता बनाम वेंकटेश

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    मोटर दुर्घटना दावा | परिवहन वाहन चलाने के लिए अनुमोदन का अभाव वैध ड्राइविंग लाइसेंस के अभाव के बराबर नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि कानून का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि "लाइसेंस में ट्रांसपोर्ट वीहिकल चलाने के लिए अनुमोदन के अभाव की यह व्याख्या नहीं होगी कि चालक के पास वैध और प्रभावी ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है।"

    जस्टिस संदीप भट्ट ने मोटर वाहन अधिनियम ('एमवी एक्ट') की धारा 173 के तहत पहली अपील के संबंध में यह टिप्पणी की, जिसमें अपीलकर्ता-बीमा कंपनी मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश से व्यथित थी। ट्रिब्यूनल ने दावेदारों (चालक) और मालिक को संयुक्त रूप से और अलग-अलग 9% ब्याज दर के साथ 1,55,000 रुपये का मुआवजा दिया था।

    केस शीर्षक: न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मुकेशभाई भीमसिंहभाई राजपूत और 4 अन्य

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    'वन टाइम सेटलमेंट स्कीम' के तहत देय राशि को बैंक द्वारा एकतरफा बदल देना, वैध अपेक्षा के सिद्धांत के खिलाफ: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक बैंक एकमुश्त निस्तारण राशि (वन टाइम सेटलमेंट, ओटीएस) को एकतरफा होकर नहीं बदल सकता। ऐसा करना प्राकृतिक न्याय और वैध अपेक्षा के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।

    जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस डीडी बंसल की खंडपीठ दरअसल एक रिट याचिका का निस्तारण कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता प्रतिवादी बैंक के आदेश से व्यथित था, जिसने एकतरफा होकर ओटीएस राशि को 36,50,000 रुपये से बढ़ाकार 50,50,000 रुपये कर दिया था।

    केस शीर्षक: मोहनलाल पाटीदार बनाम बैंक ऑफ महाराष्ट्र और अन्य और जुड़े मामले

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    कर्मचारी को रियायत के रूप में 'वर्क फ्रॉम होम' की अनुमति से क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार में परिवर्तन का दावा नहीं किया जा सकता : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि केवल घर से काम करने की अनुमति (वर्क फ्रॉम होम) उस न्यायालय को अधिकार क्षेत्र प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जिसके अधिकार क्षेत्र में कर्मचारी काम कर रहा है।

    जस्टिस सुनील थॉमस ने दूरस्थ कर्मचारियों के कानूनी दावों के क्षेत्राधिकार को स्पष्ट किया दिया और फैसला सुनाया कि केवल इसलिए कि उन्हें घर से काम करने की अनुमति है और नियोक्ता को पता था कि कर्मचारी एक अलग अधिकार क्षेत्र में है, अधिकार क्षेत्र प्रदान करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।

    केस शीर्षक: मंगला बनाम भारत संघ और अन्य।

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    "10 मई तक इंट्रोगेशन रूम्स सहित सभी पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं": हाईकोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और यूटी चंडीगढ़ को निर्देश दिया

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को पंजाब, हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को 10 मई, 2022 तक 18 महीने की स्टोरेज वाले सीसीटीवी कैमरे इंट्रोगेशन रूम्स सभी पुलिस स्टेशनों में लगाने का निर्देश दिया।

    जस्टिस अमोल रतन सिंह की खंडपीठ ने परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह और अन्य (2021) 1 एससीसी 184 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश द्वारा जारी निर्देशों के मद्देनजर यह आदेश जारी किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की सरकारें यह सुनिश्चित करना का निर्देश दिया कि उनके अधीन कार्यरत प्रत्येक पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं।

    केस का शीर्षक - कमला देवी बनाम पंजाब राज्य और अन्य संबंधित दलीलों के साथ

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    पति दूसरी पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता जब उसने पहले विवाह की सच्चाई को छुपाया हो: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने माना कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक व्यक्ति अपनी दूसरी पत्नी के भरण-पोषण के दायित्व से बच नहीं सकता है, जब उसने उससे अपने पहले विवाह की सत्यता को छ‌िपा ल‌िया था।

    निचली अदालत द्वारा पारित भरण-पोषण के आदेश को रद्द करने के लिए पति (याचिकाकर्ता) द्वारा किए गए आवेदन को खारिज करते हुए, जस्टिस रॉबिन फुकन की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने कहा, "धारा 125 सीआरपीसी सामाजिक न्याय का एक उपाय है, जो महिलाओं, बच्चों और कमजोर माता-पिता जैसे समाज के कमजोर वर्ग की रक्षा के लिए अधिनियमित है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 (3) और 39 के दायरे में है।"

    केस का नाम: तरुण चंद्र दास बनाम। भंजना कलिता

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    न्यायालयों को देरी में माफी देने के आवेदनों पर निर्णय करते समय पक्षकारों के आचरण की अच्छी तरह जांच करनी चाहिए: मणिपुर हाईकोर्ट

    मणिपुर हाईकोर्ट ने कहा कि अदालतों को पक्षकारों के आचरण की "पूरी तरह से" जांच करनी चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनकी गैर-माजूदगी (पेश होने में विफलता) एक विलक्षण घटना है या ऐसा पहले भी होता रहा है।

    चीफ जस्टिस संजय कुमार की एकल न्यायाधीश पीठ ने याचिकाकर्ताओं को राहत देने से इनकार करते हुए कहा, "इस न्यायालय को यह सुनिश्चित करने के लिए पक्षकार के आचरण की उचित जांच करनी होगी कि क्या 'पेश होने में विफलता कोई विलक्ष घटना है या यह किसी पुरानी आदत की तरह पहले भी होता रहा है। जैसा कि सुप्रीम ने कहा कि न्यायालय का प्रयास यह देखने होना चाहिए कि न्याय किया गया है। इसमें मुकदमे के दोनों पक्षों को न्याय शामिल होगा। ऐसा होने पर दशकों से मुकदमेबाजी की कठोरता का सामना करने के लिए वादी के मामले में मुकदमा चलाने में लापरवाही के लिए प्रतिवादी को दंडित नहीं किया जा सकता।"

    केस शीर्षक: लोंगजाम बिजॉय सिंह (मृत) अपने एल.आर.एस. बनाम कीशम इराबोट सिंह और अन्य। और एक और जुड़ा मामला

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    [साइबर क्राइम] अगर एफआईआर दर्ज करने से इनकार करते हैं तो बिहार पुलिस को अदालती कार्यवाही की अवमानना का सामना करना पड़ेगा: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने सोमवार को बिहार पुलिस के अधिकारियों को चेतावनी दी कि यदि वे साइबर अपराध के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार करते हैं, तो उन्हें अदालत की अवमानना की कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा।

    न्यायमूर्ति संदीप कुमार की खंडपीठ ने अदालत के समक्ष दूरसंचार कंपनियों द्वारा किए गए सबमिशन पर ध्यान देने के बाद कहा कि कुछ थानों में साइबर अपराध से संबंधित एफ.आई.आर. के पंजीकरण में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उन थानों के प्रभारी अधिकारी एफ.आई.आर. दर्ज करने से इनकार कर रहे हैं।

    केस का शीर्षक - शिव कुमार बनाम बिहार राज्य

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    व्हाट्सएप ग्रुप का एडमिन ग्रुप मेंबर द्वारा की गई आपत्तिजनक पोस्ट के लिए जिम्मेदार नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को एक उल्लेखनीय फैसले में कहा कि यदि व्हाट्सएप ग्रुप का कोई सदस्य ग्रुप में आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करता है तो ग्रुप के एडमिन को परोक्ष रूप से (vicariously) उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि आपराधिक कानून में परोक्ष दायित्व (Vicarious liabilty) केवल तभी तय किया जा सकता है, जब कोई कानून ऐसा निर्धारित करे।

    केस शीर्षक: मैनुअल बनाम केरल राज्य

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    पूर्व में दी गई अंतरिम सुरक्षा अग्रिम जमानत देने का कोई आधार नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, "केवल लंबे समय तक अंतरिम सुरक्षा प्रदान करना आरोपी को अग्रिम जमानत देने का आधार नहीं होगा। वह भी तब जब आवेदक को अग्रिम जमानत के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है।" जस्टिस इलेश जे वोरा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307, 397, 452, 324, 323, 143, 147, 148, 504 और धारा 506 (2) के तहत अपराधों के लिए प्राथमिकी के संबंध में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत एक अर्जी पर सुनवाई कर रहे थे।

    केस शीर्षक: हिरेनभाई हितेशभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य

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    सीआरपीसी की धारा 311 के तहत गवाहों को वापस बुलाने की शक्ति : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समझाया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, देवरिया के एक आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी। आदेश में अभियोजन पक्ष के दो गवाहों को वापस बुलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 311 के तहत आवेदक/आरोपी द्वारा दायर दो आवेदनों को खारिज कर दिया गया था।

    केस शीर्षक: भीम सिंह बनाम यूपी राज्य गृह सचिव, यूपी सरकार लखनऊ के माध्यम से।

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने यूनिवर्सल, नेटफ्लिक्स, डिज़्नी के कॉन्टेंट की गैर-कानूनी तरीके से स्ट्रीमिंग करने वाले ऑनलाइन पायरेसी में लिप्त 34 वेबसाइटों को ब्लॉक करने के निर्देश दिए

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने यूनिवर्सल सिटी स्टूडियोज एलएलसी, वार्नर ब्रदर्स एंटरटेनमेंट इंक, कोलंबिया पिक्चर्स इंडस्ट्रीज, इंक, नेटफ्लिक्स स्टूडियोज, एलएलसी, पैरामाउंट पिक्चर्स कॉरपोरेशन और डिज़्नी के कॉन्टेंट की अवैध तरीकों से स्ट्रीमिंग करने वाले ऑनलाइन पायरेसी में लिप्त 34 वेबसाइटों को ब्लॉक करने का आदेश दिया है।

    न्यायमूर्ति आशा मेनन ने दूरसंचार विभाग और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को 36 घंटे के भीतर इन वेबसाइटों की भारत में पहुंच को अक्षम करने के लिए उनके तहत पंजीकृत दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को बुलाने वाली अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया।

    केस का शीर्षक: यूनिवर्सल सिटी स्टूडियो एलएलसी एंड अन्य बनाम 123MOVIESHUB.TC & ORS।

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    मोटर दुर्घटना में मृत्यु के लिए मुआवजे में साथ की हानि सहित पारंपरिक मदों के तहत मुआवजा शामिल होना चाहिए: तेलंगाना हाईकोर्ट

    नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि मोटर वाहन दुर्घटना मृत्यु दावों में मुआवजे में पारंपरिक मदों जैसे संपत्ति की हानि, साथ की हानि, और अंतिम संस्कार खर्च आदि के तहत राशि शामिल होनी चाहिए।

    कारण शीर्षक: वी शिवाजी और अन्य बनाम वीके मुरली और अन्य

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    उधार लेने वाला 'एकमुश्त निपटान' के बाद बकाया चुकाने के लिए अधिकार के रूप में और समय की मांग नहीं कर सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा हाईकोर्ट के पास वन टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) योजना के तहत कर्ज़ चुकाने के लिए समय का विस्तार देने की शक्ति है। हालांकि उधार लेने वाला अधिकार के रूप में ऐसी शक्ति का आह्वान नहीं कर सकता।

    जस्टिस एम एस रामचंद्र राव और जस्टिस जे एस बेदी की पीठ ने यह भी माना कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक या निजी क्षेत्र के बैंक उधारकर्ता द्वारा मांगे गए ओटीएस को अस्वीकार नहीं कर सकते, बशर्ते उधारकर्ता बैंक द्वारा अपनाई जा रही ओटीएस नीति के अंतर्गत आता है।

    केस का शीर्षक - असीम गेन बनाम एक्सिस बैंक, खुदरा संपत्ति केंद्र

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    जब किराया नियंत्रक और न्यायाधिकरण के आदेशों को चुनौती दी जाती है तो अनुच्छेद 227 के तहत क्षेत्राधिकार का संयम से प्रयोग किया जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि रेंट कंट्रोलर और रेंट कंट्रोल ट्रिब्यूनल के आदेशों को चुनौती दिए जाने के मामलो में भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अधिकार क्षेत्र को हाईकोर्ट द्वारा कम से कम प्रयोग किया जाना चाहिए।

    जस्टिस प्रतीक जालान ने कहा कि जहां रेंट कंट्रोलर और ट्रिब्यूनल के समक्ष रखी गई सामग्री पर विचार करने के आदेश पारित किए गए हैं, वहां हाईकोर्ट द्वारा अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना उचित नहीं होगा।

    केस शीर्षक: जोहिना बेगम बनाम सुखबीर सिंह

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    वाणिज्यिक न्यायालय का व्यापार/वाणिज्य के लिए उपयोग की जाने वाली सूट संपत्ति पर अधिकार क्षेत्र है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने हाल ही में सिविल कोर्ट (Civil Court) से वाणिज्यिक न्यायालय (Commercial Court) में एक मुकदमा स्थानांतरित किया क्योंकि सूट में विषय संपत्ति का उपयोग इसके विघटन से पहले विशेष रूप से एक साझेदारी फर्म द्वारा व्यापार या वाणिज्य के लिए किया गया था।

    केस का शीर्षक: गंगिसट्टी अनुराधा बनाम बिजाला सुब्रमण्यम

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    सेक्‍शन 406 सीआरपीसी | दूसरे राज्य में स्थानांतरित मामले में अपील स्थानांतरी राज्य के हाईकोर्ट के समक्ष होगी न कि स्‍थानांतरणकर्ता राज्य के हाईकोर्ट के समक्ष: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि एक बार धारा 406 सीआरपीसी के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट एक मामले को एक राज्य की अधीनस्थ आपराधिक अदालत से दूसरे राज्य की अधीनस्थ आपराधिक अदालत में स्थानांतरित करता है, उक्त मामले में किसी आदेश के खिलाफ कोई अपील स्‍थानांतरी (transferee) हाईकोर्ट में होगी।

    जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस ओम प्रकाश त्रिपाठी की पीठ ने एक आपराधिक अपील का निस्तारण करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें सीबीआई ने प्रारंभिक आपत्ति उठाई थी कि अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष विचार योग्य नहीं है क्योंकि राजस्थान में कार्रवाई का कारण पैदा हुआ है।

    केस टाइटल: वीरेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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    तलाक की डिक्री को चुनौती देने और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत स्थायी भरण-पोषण स्वीकार नहीं करने वाली पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उस मामले में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी के भरण-पोषण के दावे को स्वीकार किया है, जिसमें फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में तलाक का आदेश पारित किया है। हाईकोर्ट ने कहा कि उक्त तलाक की डिक्री के खिलाफ एक अपील न्यायालय के समक्ष लंबित है और उस पर अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। हाईकोर्ट ने माना कि तलाक की डिक्री के बावजूद पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है।

    केस शीर्षक-तरुण पंडित बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य

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    [NDPS Act] 'स्पॉट' का मतलब वह स्थान है जहां तलाशी ली जाती है और बरामदगी की जाती है, न कि जहां संदिग्ध वाहन या व्यक्ति को रोका जाता है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में कहा कि एनडीपीएस अधिनियम (NDPS Act) के तहत मामलों में तलाशी और बरामदगी के संबंध में, 'स्पॉट' का मतलब वह स्थान नहीं है जहां संदिग्ध वाहन या व्यक्ति को रोका जाता है, बल्कि वह जगह है जहां तलाशी ली जाती है और वस्तुओं की जब्ती की जाती है।

    न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी अनिवार्य रूप से एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8, धारा 20, 25, 27(A), 28, 29 के तहत आवेदकों द्वारा दायर जमानत आवेदनों पर विचार कर रहे थे।

    केस का शीर्षक: कमरुद्दीन बनाम भारत संघ

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    किसी व्यक्ति को किसी स्थान विशेष पर पदस्थापन का निहित अधिकार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष स्थान पर नियुक्त होने का निहित अधिकार नहीं है। अदालत ने आगे कहा कि एक भर्ती के दूसरे ज़िला में ट्रांसफर के अनुरोध को स्वीकार करने से चेन रिएक्शन हो सकता है और कई बार काफी प्रशासनिक कठिनाइयां हो सकती हैं।

    चीफ जस्टिस अकील कुरैशी और जस्टिस मदन गोपाल व्यास ने आदेश दिया, "भर्ती के समय विशेष जिले, संभाग या अंचल में नियुक्ति या आमेलन का प्रश्न अनिवार्य रूप से चयनित उम्मीदवार की सुविधा के लिए है, लेकिन यह हमेशा प्रशासनिक अत्यावश्यकताओं के अधीन है। किसी व्यक्ति को किसी विशेष स्थान पर नियुक्त होने का निहित अधिकार नहीं है।"

    केस शीर्षक: सोनिया बर्दक बनाम राजस्थान राज्य

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    जिस व्यक्ति से पूछताछ की जानी है, वह पूछताछ का स्थान तय नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जांच एजेंसी और जांच अधिकारी के पास जांच की निरंकुश शक्ति पर जोर देते हुए कहा कि उस व्यक्ति के पास यह विकल्प नहीं है, जिससे पूछताछ की जानी है कि वह इस तरह की पूछताछ का स्थान तय कर सके। कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति से पूछताछ की जानी है, वह पूछताछ का स्थान तय नहीं कर सकता।

    जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस दीपक वर्मा की खंडपीठ ने आगे कहा कि हाईकोर्ट को अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति के प्रयोग के तहत जांच में हस्तक्षेप करने की कोई शक्ति नहीं है।

    केस का शीर्षक - राहुल पांडे और दो अन्य बनाम भारत संघ और तीन अन्य

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    पति की चेतावनी के बावजूद, मौका देखकर देर रात पत्नी का बार-बार दूसरे आदमी को फोन करना वैवाहिक क्रूरता : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक जोड़े को तलाक की डिक्री मंज़ूर करते हुए कहा है कि पति की चेतावनी को अनदेखा करते हुए एक पत्नी द्वारा किसी दूसरे पुरुष को गुप्त फोन कॉल करना, वैवाहिक क्रूरता के समान है।

    जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि जब तक वैवाहिक जीवन को बहाल नहीं किया जाता है, तब तक केवल समझौता करना क्रूरता की माफी के समान नहीं होगा। ''पति की चेतावनी की अवहेलना करते हुए पत्नी द्वारा किसी अन्य पुरुष को बार-बार अवसर देखकर फोन कॉल करना, वह भी देर रात में वैवाहिक क्रूरता के समान है।''

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