जिस व्यक्ति से पूछताछ की जानी है, वह पूछताछ का स्थान तय नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

20 Feb 2022 4:45 PM IST

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    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जांच एजेंसी और जांच अधिकारी के पास जांच की निरंकुश शक्ति पर जोर देते हुए कहा कि उस व्यक्ति के पास यह विकल्प नहीं है, जिससे पूछताछ की जानी है कि वह इस तरह की पूछताछ का स्थान तय कर सके। कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति से पूछताछ की जानी है, वह पूछताछ का स्थान तय नहीं कर सकता।

    जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस दीपक वर्मा की खंडपीठ ने आगे कहा कि हाईकोर्ट को अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति के प्रयोग के तहत जांच में हस्तक्षेप करने की कोई शक्ति नहीं है।

    मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी, जब पुलिस ने सूचना मिलने पर एक ट्रक को पकड़ा और उसकी तलाशी पर चालक के केबिन में एक छिपी जगह से चार क्विंटल इक्यावन किलोग्राम गांजा बरामद किया। ट्रक में सवार दो लोगों को गिरफ्तार किया गया और 4 नवंबर, 2021 को रिकवरी मेमो तैयार किया गया।

    इसके बाद नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) की धारा 67 के तहत 1 जनवरी, 2022 को याचिकाकर्ताओं [राहुल पांडे और 2 अन्य] को नोटिस जारी किया गया। इसमें उन्हें 5 जनवरी, 2022 को लखनऊ में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो कार्यालय में उपस्थित होने के लिए कहा गया।

    नोटिस/समन की तामील पर याचिकाकर्ताओं ने नोटिस/समन के जवाब में पेश होने में असमर्थता व्यक्त करते हुए पत्र भेजे और उन्होंने यह भी प्रार्थना की कि बयान जिला हाथरस में दर्ज किए जाएं।

    इसके बाद उन्होंने याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर एक रिट याचिका दायर की। इसमें एनडीपीएस एक्ट 1985 की धारा 8/20/25/29 के तहत उनके खिलाफ एफआईआर रद्द करने की मांग की गई।

    रिट याचिका में की गई दूसरी प्रार्थना एनडीपीएस एक्ट की धारा 67 के तहत याचिकाकर्ताओं को जारी नोटिस/समन को रद्द करने के लिए थी। यह नोटिस एक ऐसे मामले के संबंध में है, जो पहली प्रार्थना का विषय है।

    याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि उन्हें जारी नोटिस के परिणाम में एक बार पेश होने के बाद जांच अधिकारी ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत उनके बयान दर्ज किए। पूरी संभावना है कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    जहां तक ​​दिनांक 01.01.2022 के समन/नोटिस को चुनौती देने का संबंध है, न्यायालय ने कहा कि नोटिस को चुनौती देना मान्य नहीं है, भले ही जिस व्यक्ति को इसका जवाब देना है, वह एक वकील या उसका रिश्तेदार है।

    कोर्ट ने कहा,

    "जांच एजेंसी और जांच अधिकारी के पास जांच की शक्ति है। पूछताछ करने का स्थान तय करने का विकल्प उस व्यक्ति के लिए भी खुला नहीं है, जिससे इस तरह की पूछताछ की जानी है। इसके अलावा, यदि दावा किया गया है तो याचिकाकर्ताओं के साथ कोई संबंध नहीं है तो यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि उन्हें जारी किए गए नोटिस के अनुसरण में संबंधित अधिकारी के सामने पेश होने से वे क्यों हिचकिचा रहे हैं।"

    कोर्ट ने यह भी माना कि रिट याचिका केवल आशंका पर दायर की गई और याचिका को खारिज कर दिया।

    केस का शीर्षक - राहुल पांडे और दो अन्य बनाम भारत संघ और तीन अन्य

    केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 54

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