राजस्व दस्तावेज में संपत्ति का म्यूटेशन स्वामित्व का निर्माण या समापन नहीं करता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 Feb 2022 6:59 AM GMT

  • राजस्व दस्तावेज में संपत्ति का म्यूटेशन स्वामित्व का निर्माण या समापन नहीं करता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि जब दोनों न्यायालयों के एक सुविचारित आदेश में समवर्ती निष्कर्ष हों तो दूसरी अपील कानून के किसी भी महत्वपूर्ण प्रश्न के बिना सुनवाई योग्य नहीं होगी।

    तथ्य

    वादी ने वाद दायर किया था, जिसमें वाद अनुसूची संपत्ति के कब्जे की घोषणा और रिकवरी की मांग की गई थी। वादी ने तर्क दिया कि वह वाद भूमि की मालिक और कब्जाधारी थी। वह अपनी मां की एकमात्र कानूनी उत्तराधिकारी है, और सपंत्त‌ि उन्हीं से प्राप्त की ‌थी।

    प्रतिवादी उसके पिता भाई यान‌ि चाचा था और वह उसकी मां की संपत्ति की देखभाल कर रहा था। वह वाद की भूमि पर खेती कर रहा था और वह हर साल उसकी मां को फसल में हिस्सा दे रहा था।

    वादी ने मां के उत्तराधिकारी के रूप में उनकी मृत्यु के बाद वाद भूमि को अपने पक्ष में बदलने के लिए (mutation) मंडल राजस्व अधिकारी से संपर्क किया था। उसने देखा कि प्रतिवादी का नाम पट्टादार और कल्टीवेशन कॉलम में दिखाई दे रहा था।

    इसके बाद, वादी ने प्रतिवादी के नाम पर म्यूटेशन को रद्द करने और उसे उसके नाम पर करने के लिए मंडल राजस्व अधिकारी के समक्ष एक याचिका दायर की। मंडल राजस्व अधिकारी ने प्रतिवादी का नाम रद्द करने से इनकार कर दिया और व्यथित होकर वादी ने वर्तमान वाद दायर किया।

    प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि वादी के पिता उनके बड़े भाई थे और वाद भूमि संयुक्त परिवार की संपत्ति थी। चूंकि वादी के पिता संयुक्त परिवार के ज्येष्ठ और कर्ता थे, इसलिए भूमि उनके नाम पर रखी गई और उनकी मृत्यु के बाद, संपत्तियों को उनकी पत्नी के नाम पर बदल दिया गया। प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि एक पंचायत भी आयोजित की गई थी, जिसमें वादी के पति ने प्रतिवादी के नाम पर प्रस्तावित म्यूटेशन के लिए सहमति व्यक्त की और हस्ताक्षर किए। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि वाद भूमि उसके नाम पर सही रूप से म्यूटेशन की गई है।

    ट्रायल कोर्ट ने वादी के पक्ष में जुर्माने के साथ वाद का फैसला किया और प्रतिवादी को वादी को वाद की भूमि का कब्जा देने का निर्देश दिया। व्यथित प्रतिवादी ने अपील दायर की, जहां अपील खारिज कर दी गई। तब प्रतिवादी ने दूसरी अपील दायर की।

    अपीलीय अदालत के समक्ष, अपीलकर्ता-प्रतिवादी ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने प्रतिवादी की कमजोरियों के आधार पर वाद को डिक्री करने में गलती की, उसने वादी के बल पर के आधार पर ऐसा नहीं किया।

    फैसला

    अपीलीय अदालत ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर विचार किया और माना कि वादी ने पर्याप्त मात्रा में दस्तावेजी सामग्री के माध्यम से अपना स्वामित्व स्थापित किया। अदालत ने बसलिंगप्पा चन्नप्पा बनाम डंडप्पा पुट्टप्पा पंचप्पनवर, 1998 के एक मामले पर भरोसा किया और कहा कि यह कानून की एक अच्छी तरह से स्थापित स्थिति है कि राजस्व दस्तावेज में एक संपत्ति का म्यूटेशन स्वामित्व का निर्माण या समाप्ति नहीं करता है।

    दस्तावेजों से स्पष्ट है कि वादी के पिता वाद भूमि के पट्टादार हैं और इसे 'स्वंथम' यानी स्व-अर्जित संपत्ति के रूप में दिखाया गया था और उनकी मृत्यु के बाद इसे वादी की मां के नाम पर म्यूटेट किया गया था। अदालत ने पाया कि वादी केवल बटाई के आधार पर संपत्तियों की देखभाल कर रहा था, लेकिन उसके पास कभी भी वाद भूमि का कब्जा नहीं था।

    ज‌स्टिस पी श्री सुधा ने फैसला सुनाया कि,

    "उक्त मुद्दे को ट्रायल कोर्ट ने विस्तार से निपटाया था और रिकॉर्ड पर पूरे सबूत पर विचार करने के बाद वादी को सूट भूमि का मालिक घोषित किया था, जिसकी पुष्टि अपीलीय न्यायालय ने भी की थी। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जब एक सुविचारित आदेश में दोनों न्यायालयों के एक ही निष्कर्ष हों तो इसमें शामिल कानून के किसी भी महत्वपूर्ण प्रश्न के बिना दूसरी अपील सुनवाई योग्य नहीं है।"

    इसलिए अदालत ने दूसरी अपील को जुर्मने के साथ खारिज कर दिया।

    केस शीर्षक: बासा बगवंत राव बनाम वेमुमुला सुलोचना


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