हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

3 Dec 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (27 नवंबर 2023 से 01 नवंबर 2023 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    NDPS Act की धारा 52ए का केवल विलंबित अनुपालन जमानत का कोई आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि हालांकि यह वांछनीय है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS Act) की धारा 52ए में विचार की गई प्रक्रिया का जल्द से जल्द अनुपालन किया जाना चाहिए, लेकिन केवल इसका विलंबित अनुपालन अनुदान जमानत देने का आधार नहीं हो सकता। जस्टिस अमित बंसल ने कहा, "आवेदक को NDPS Act की धारा 52-ए के विलंबित अनुपालन के कारण हुए पूर्वाग्रह को दिखाना होगा।"

    केस टाइटल: सोमदत्त सिंह @ शिवम बनाम नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    नियोक्ता द्वारा टीडीएस जमा न करने पर कर्मचारी को दंडित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता या निर्धारिती के नियोक्ता को विभाग के साथ काटे गए कर को जमा करने के अपने कर्तव्य को पूरा करने में विफल रहने पर दंडित नहीं किया जा सकता है। काटे गए कर की वसूली के लिए याचिकाकर्ता के नियोक्ता के खिलाफ कार्यवाही करना राजस्व के लिए हमेशा खुला रहेगा।

    जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस गिरीश कथपालिया की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने स्रोत पर आयकर की कटौती के बाद वेतन स्वीकार कर लिया, लेकिन इस अर्थ में उसका इस पर कोई नियंत्रण नहीं है कि यह राजस्व कानून के अनुसार केंद्र सरकार को कटौती की गई कर राशि का भुगतान करने के लिए आयकर अधिनियम के अध्याय XVII के तहत कर संग्रह एजेंट के रूप में कार्य करने वाले उसके नियोक्ता का कर्तव्य है।

    केस टाइटल: चिंतन बिंद्रा बनाम डीसीआईटी

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    बीओसीए एक्ट| धारा 15 ‌ट्रिब्यूनल के आदेशों को अंतिम रूप देती है, असाधारण क्षेत्राधिकार का उपयोग उसके साथ प्रत्यक्ष टकरावः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें असाधाबोका अधिनियम | धारा 15 न्यायाधिकरण के आदेशों को अंतिम रूप देती है, असाधारण क्षेत्राधिकार का आह्वान सीधे उसी के साथ टकराव करती है: जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय हाईकोर्ट ने कहा कि बिल्डिंग ऑपरेशंस कंट्रोलिंग अथॉरिटी (बीओसीए) एक्ट, 1988 की धारा 15 के तहत आदेशों की अंतिम स्थिति का कोर्ट की ओर से असाधारण क्षेत्राधिकार के इस्तेमाल के साथ टकराव होगा।

    केस टाइटल: बिल्डिंग ऑपरेशन कंट्रोलिंग अथॉरिटी बनाम विकास गुप्ता

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    [Service Jurisprudence] जब सजा या दंड के संबंध में दो दृष्टिकोण संभव हों तो कर्मचारी के पक्ष में दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सेवा न्यायशास्त्र में जब दंड और सजा से संबंधित नियमों की दो व्याख्याएं दी जा सकती हैं तो कर्मचारी के अनुकूल व्याख्या को प्रभावी बनाया जाना चाहिए।

    जस्टिस आरएन मंजुला ने याचिकाकर्ता के सेवानिवृत्ति लाभों में वृद्धि का निर्देश देकर याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि चूंकि सेवा न्यायशास्त्र दंड लगाने के कारण दंडात्मक न्यायशास्त्र के समान है, इसलिए ऐसा दृष्टिकोण अभियुक्त को संदेह का लाभ देते समय दंडात्मक न्यायशास्त्र में लिए गए दृष्टिकोण के समान है। सेवा न्यायशास्त्र में भी आयात किया जा सकता है।

    केस टाइटल: जी.सेल्वामूर्ति बनाम मुख्य अभियंता (कार्मिक)

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 | उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करने की याचिका को खारिज करने के सिविल जज के आदेश के खिलाफ अपील जिला न्यायाधीश के पास होगी न कि हाईकोर्ट के समक्ष : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करने की याचिका को खारिज करने वाले सिविल जज के आदेश के खिलाफ अपील भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 388 (2) के तहत जिला न्यायाधीश के समक्ष की जाएगी, न कि अधिनियम की धारा 384 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष। न्यायालय ने माना कि विधायी मंशा जिला न्यायाधीश के समक्ष एक अपीलीय तंत्र प्रदान करना है, न कि 'हाईकोर्ट के लिए।'

    केस : श्रीमती मोनिका यादव बनाम आकाश सिंह और 3 अन्य [प्रथम अपील दोषपूर्ण संख्या 366/ 2023 ]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जीएसटी | अविवादित तथ्यों के मामलों को वैकल्पिक समाधान के फोरम में स्थानांतरित करने का कोई वास्तविक लाभ नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि कर मामले, जहां तथ्य निर्विवाद हैं और इसमें अधिकार क्षेत्र के मुद्दे और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन शामिल है, उन्हें प्राधिकरणों को नहीं सौंपा जा सकता है। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने माना ‌कि जिन मामलों में न्यूनतम वैधानिक अनुपालन किया गया है, उन्हें आम तौर पर वैकल्पिक उपचार के मंचों पर भेज दिया जाता है।

    मामले में जीएसटी प्राधिकरण ने कारण बताओ नोटिस की तारीख से पूर्वव्यापी प्रभाव से याचिकाकर्ता का पंजीकरण रद्द कर दिया था। न्यायालय ने कहा कि जीएसटी पंजीकरण रद्द करने का आदेश पूरी तरह से निरर्थक था क्योंकि आदेश में वैधानिक आवश्यकता का कोई उल्लंघन नहीं बताया गया था। न्यायालय ने पाया कि प्राधिकरण कर चालान के विवरण, जिस अवधि के लिए आईटीसी का गलत तरीके से लाभ उठाया गया था और अन्य विवरण का उल्लेख करने में विफल रहा।

    केस टाइटलः हिंदुस्तान पेपर मशीनरी इंडस्ट्रीज बनाम कमिश्नर सीजीएसटी और 2 अन्य [रिट टैक्स नंबर - 1047 ऑफ 2023]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 | सामाजिक जाति प्रमाणपत्र केवल उप या संभागीय आयुक्त ही रद्द कर सकते हैं: हाई‌कोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में याचिकाकर्ता के अन्य सामाजिक जाति (ओएससी) प्रमाणपत्र को रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया है और कहा‌ कि अतिरिक्त उपायुक्त के पास ऐसे प्रमाणपत्रों को रद्द करने का अधिकार नहीं है। जस्टिस वसीम सादिक नरगल की पीठ ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति आरक्षण अधिनियम की धारा 16 के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा ओएससी प्रमाणपत्र जारी करने से व्यथित है, तो केवल उपायुक्त या मंडल आयुक्त ही अपील पर विचार कर सकते हैं और उसे रद्द कर सकते हैं अगर उसे नियमों का उल्लंघन कर जारी किया गया।

    केस टाइटल: हकीम मुजफ्फर खालिक बनाम महानिरीक्षक, अपराध शाखा, श्रीनगर

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास अधिनियम | अदालत के बाहर समझौता वादकारियों का मौलिक अधिकार नहीं, केवल कानून के अनुसार ही यह प्राप्त किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास अधिनियम, 2020 के तहत अस्वीकृति आदेश से निपटते समय माना कि एक वादी के पास अदालत के बाहर विवाद के निपटान का दावा करने का मौलिक या अंतर्निहित अधिकार नहीं है। क़ानून द्वारा बनाए गए अधिकार का उपयोग उसके अनुसार किया जाना चाहिए।

    जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और ज‌िस्टस शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने कहा, “सबसे पहले, अदालतों/न्यायिक प्रक्रिया के बाहर विवादों का निपटारा किसी भी वादी का मौलिक या अंतर्निहित अधिकार नहीं है। वह अधिकार क़ानून यानी अधिनियम द्वारा बनाया गया था। एक वैधानिक अधिकार होने के नाते, इसे वैधानिक शर्तों के अनुसार सख्ती से प्राप्त किया जा सकता है और इसके अलावा, यह एक शर्त थी कि आवेदन/घोषणा केवल तभी बनाए रखने योग्य हो सकती है यदि कट-ऑफ तिथि से पहले पार्टियों के बीच मुकदमा लंबित हो ,याचिकाकर्ता के पास उस शर्त को पूरा करने का अधिकार था।"

    केस टाइटलः उमेश गर्ग बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य, रिट टैक्स नंबर - 566/2021

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    अपराध की आय के अस्तित्व को दिखाए बिना जिला कलेक्टरों को ईडी समन " मछली पकड़ने जैसा अभियान' : मद्रास हाईकोर्ट

    कथित रेत खनन मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जिला कलेक्टरों को जारी किए गए समन पर रोक लगाते हुए, मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि ईडी ने अपराध की आय के अस्तित्व के बिना रेत खनन से संबंधित "मछली पकड़ने जैसी जांच" करने का प्रयास किया ।

    जस्टिस एसएस सुंदर और जस्टिस सुंदर मोहन की डिवीजन बेंच ने कथित रेत खनन मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तमिलनाडु में जिला कलेक्टरों को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जारी किए गए समन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को अंतरिम आदेश पारित किए थे। हालांकि, अदालत ने जांच जारी रखने की अनुमति दी और प्राधिकरण को तीन सप्ताह में याचिका पर जवाब देने को कहा ।

    केस: तमिलनाडु राज्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    मजिस्ट्रेट को एनआई एक्ट के तहत अंतरिम मुआवजे की मात्रा तय करते समय स्पष्ट आदेश पारित करना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने दोहराया है कि अदालतों को एनआई एक्ट के तहत अंतरिम मुआवजे की मात्रा तय करते समय एक स्पष्ट आदेश (Speaking Order) पारित करना आवश्यक है। धारा 143ए(2) का अवलोकन करते हुए, जिसमें कहा गया है कि चेक के अनादरण के मामले की सुनवाई करते समय अदालत अंतरिम मुआवजे का आदेश दे सकती है, जो चेक राशि के 1% से लेकर चेक राशि के 20% तक हो सकता है, जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि अदालत रकम तय करते समय कारण बताने के लिए बाध्य होगी।

    केस टाइटलः फैज़ल अब्दुल समद बनाम एएन शशिधरन और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    'तेलिया तालाब' में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध फिर से लागू हो, कलेक्टर नगरपालिका परिषद द्वारा पहले ही लागू प्रस्ताव पर रोक नहीं लगा सकता : एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में परिषद के प्रस्ताव की समीक्षा और मछली पकड़ने का पट्टा देने के जिला कलेक्टर के निर्देश को रद्द करने के बाद मंदसौर नगर परिषद द्वारा तेलिया तालाब में मछली पकड़ने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा है। धारा 323 का अवलोकन कर एमपी जिला कलेक्टर द्वारा नगरपालिका अधिनियम, 1961 ( परिषद के प्रस्ताव के निष्पादन को निलंबित करने की कलेक्टर की शक्ति) को लागू करते हुए, बेंच ने बताया कि पहला प्रस्ताव 2012 से पांच वर्षों से अधिक समय से लागू था।

    केस: डॉ दिनेश कुमार जोशी बनाम मध्य प्रदेश राज्य, प्रमुख सचिव, शहरी प्रशासन और विकास विभाग और अन्य के माध्यम से, रिट याचिका संख्या 5043/2020

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    एन एन ग्लोबल में संविधान पीठ का फैसला ए एंड सी अधिनियम धारा 9 के तहत अंतरिम उपाय देने की अदालत की शक्ति को प्रभावित नहीं करता भले ही मध्यस्थता समझौते या मध्यस्थता खंड वाले मुख्य समझौते पर स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान अपर्याप्त हो : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना है कि एन एन ग्लोबल मामले में संविधान पीठ का फैसला ए एंड सी अधिनियम की धारा 9 के तहत अंतरिम उपाय देने की अदालत की शक्ति को प्रभावित नहीं करता है भले ही मध्यस्थता समझौते या मध्यस्थता खंड वाले मुख्य समझौते पर स्टाम्प शुल्क का भुगतान न किया गया हो या अपर्याप्त हो ।

    जस्टिस भारती डांगरे की पीठ ने कहा कि ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 या 8 के विपरीत, अधिनियम की धारा 9 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने वाले न्यायालय को मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व और वैधता पर निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि न्यायालय को ऐसा करना होगा- (ए) प्रथम दृष्टया मामला (बी) सुविधा का संतुलन और (सी) अपूरणीय चोट के तीन गुना परीक्षण के मापदंडों पर अंतरिम राहत प्रदान करें।

    केस : एल एंड टी फाइनेंस लिमिटेड बनाम डायमंड प्रोजेक्ट्स लिमिटेड, वाणिज्यिक मध्यस्थता याचिका संख्या 1430, 2019

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    नग्नता और राष्ट्रीय ध्वज का अनादर दिखाने वाली तस्वीर; प्रथम दृष्टया मामला तब बनता है जब आरोपी एडमिन बना रहा और व्हाट्सएप ग्रुप नहीं छोड़ा: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब आरोपी ने उस व्हाट्सएप ग्रुप को नहीं छोड़ा, जहां आपत्तिजनक सामग्री शेयर की गई और ग्रुप एडमिन के रूप में बना रहा। इस तरह के कारण उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने के लिए पर्याप्त होंगे।

    जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल न्यायाधीश पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए, 153ए और 295ए, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67ए और धारा 4 सपठित महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986 की धारा 6 के तहत तहत अपराधों के लिए दायर एफआईआर रद्द करने के लिए आरोपी की याचिका स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    POCSO मामले में पीड़ित या अभिभावक सजा निलंबन के लिए अपील और आवेदन में अदालत के समक्ष उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO Act) अधिनियम के तहत अपराध के पीड़ित बच्चे या उनके अभिभावक दोषी द्वारा सजा के निलंबन के लिए अपील या आवेदन में अदालत के समक्ष उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं हैं।

    जस्टिस अनिल पानसरे ने कहा कि धारा 374 के तहत अपील या सीआरपीसी की धारा 389 के तहत सजा के निलंबन के आवेदनों में माता-पिता या अभिभावकों के माध्यम से पीड़ित बच्चे की उपस्थिति की आवश्यकता के बारे में वकीलों, जांच एजेंसियों और अदालत के अधिकारियों के बीच भ्रम पैदा हो गया है।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    गुजरात हाईकोर्ट ने अज़ान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका खारिज की, कहा- यह 'आस्था और प्रथा वर्षों से चली आ रही है'

    गुजरात हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी, जिसमें मस्जिदों में अज़ान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। हाईकोर्ट ने उक्त याचिका को "पूरी तरह से गलत जनहित याचिका" करार दिया। याचिकाकर्ता ने नमाज़ के लिए इस्लामी पुकार के लिए दिन के विभिन्न समय में लाउडस्पीकर के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया था।

    चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल ने ध्वनि प्रदूषण के कारण अशांति के याचिकाकर्ता के दावे पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या अन्य धार्मिक प्रथाओं, जैसे कि पूजा के दौरान संगीत बजाना या मंदिरों में भजन बजाना, इसी तरह की सार्वजनिक अशांति का कारण नहीं है।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम | सरपंच के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव औपचारिक रूप से प्रस्तावित और अनुमोदित किए बिना भी वैध यदि , यह 3/4 बहुमत से पारित हो: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि सरपंच और उप -सरपंच के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव औपचारिक रूप से प्रस्तावित और अनुमोदित किए बिना भी वैध होगा, जब तक कि यह आवश्यक बहुमत से पारित हो और महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम की धारा 35 के तहत सभी आवश्यकताओं को पूरा करता हो।

    जस्टिस माधव जामदार ने सोलापुर जिले के ग्राम पंचायत उक्कड़गांव के सरपंच और उप-सरपंच के खिलाफ पारित अविश्वास प्रस्ताव को यह कहते हुए बरकरार रखा कि यह सभी वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करते हुए पारित किया गया था।

    केस - सविता श्रीमंत घुले बनाम संगीता बिभीषण सनप और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    राज्य जमीन मालिक को जमीन की सेल डीड निष्पादित करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते एक फैसले में कहा कि राज्य जमीन मालिक को जमीन की सेल डीड निष्पादित करने के लिए विवश या बाध्य नहीं कर सकता। कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने ललितपुर जिले में एयरपोर्ट निर्माण के लिए अध‌िग्रहीत की जा रही जमीनों के मामले में एक याचिका को ‌निस्तारित करते हुए यह टिप्‍पणी की।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    धारा 451 सीआरपीसी| हाथी की अंतरिम कस्‍टडी बेहतर स्वामित्व रखने वाले व्यक्ति को दी जा सकती है, प्रतीकात्मक पेशी पर्याप्त: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब किसी संपत्ति को सीआरपीसी की धारा 451 के तहत पूछताछ या मुकदमे के दरमियान ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया जाता है, तो अदालत बेहतर स्‍वामित्व रखने वाले व्यक्ति को संपत्ति की अंतरिम कस्टडी सौंप सकती है।

    धारा 451 सीआरपीसी आपराधिक अदालत की लंबित मुकदमे की संपत्ति की कस्टडी और निपटान का आदेश देने की शक्ति से संबंधित है और प्रावधान में कहा गया है कि 'अदालत संपत्ति की उचित कस्टडी के लिए जैसा उचित समझे वैसा आदेश दे सकती है'

    केस टाइटलः जयकृष्ण मेनन बनाम केरल राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत चिकित्सा प्रतिनिधियों को "कर्मचारी" माना जाता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि बिक्री संवर्धन कर्मचारी (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1976 (एसपीई एक्ट) के अधिनियमन के बाद चिकित्सा प्रतिनिधियों (Medical Representatives) को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत "कर्मचारी" (Workman) माना जाता है।

    एसजी फार्मास्यूटिकल्स डिवीजन ऑफ अंबाला साराभाई एंटरप्राइजेज लिमिटेड बनाम यूडी पदेमवार में बॉम्बे हाईकोर्ट और एचआर अद्यानथया बनाम सैंडोज (इंडिया) लिमिटेड में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए जस्टिस आलोक माथुर ने कहा कि "छह मई, 1987 के बाद सभी चिकित्सा प्रतिनिधियों को उनके वेतन और उनकी नियोजित क्षमता पर बिना किसी सीमा के कर्मचारी घोषित कर दिया गया है।"

    केस टाइटलः मैसर्स निकोलस पीरामल इंडिया लिमिटेड और अन्य बनाम पीठासीन अधिकारी श्रम न्यायालय लखनऊ और 3 अन्य, WRIT-C नंबर 1004529/2007

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    ट्रांसफर ऑर्डर, कलंक और पूर्वाग्रह को रोकने के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत महत्वपूर्ण: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हाल ही में एकल न्यायाधीश का आदेश बरकरार रखा, जिसके तहत कॉर्पोरेट प्रबंधकों के अधीन काम करने वाले टीचर का ट्रांसफर ऑर्डर रद्द कर दिया गया था। जस्टिस ए. मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस शोबा अन्नम्मा ईपेन की खंडपीठ ने कहा कि चूंकि ट्रांसफर ऑर्डर केरल शिक्षा नियम (KER) के नियम 10(4) के अनुसार जारी किया गया था, अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राकृतिक सिद्धांत पक्षपात को रोकने के लिए जांच शुरू करके और टीचर को सुनवाई का अवसर देकर न्याय किया गया।

    केस टाइटल: कॉर्पोरेट मैनेजर बनाम बीना हिल्कुशी और अन्य, वाशिंगटन नंबर 2001/2023

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पीसी एक्ट | तीसरे पक्ष की कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही नहीं है, नियोक्ता ऐसे आधार पर पेंशन नहीं रोक सकता: कर्नाटक उच्च न्यायालय

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक सरकारी कर्मचारी के खिलाफ तीसरे पक्ष द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को न्यायिक कार्यवाही की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है, जिससे नियोक्ता को सेवानिवृत्त कर्मचारी की पेंशन रोकने की अनुमति मिल जाती है।

    जस्टिस एस सुनील दत्त यादव और जस्टिस विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने एकल पीठ के उस आदेश के खिलाफ कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें केपीटीसीएल कर्मचारी की सभी सेवानिवृत्ति लाभों के वितरण की मांग करने वाली याचिका को अनुमति दी गई थी और कहा,

    केस टाइटलः कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य और मल्लिकार्जुन सावनूर

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    ब्लैकलिस्टिंग | कानून का शासन बनाए रखने के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ पारित ब्‍लैकलिस्टिंग ऑर्डर और माइन‌िंग लीज़ को रद्द करने के आदेश को रद्द करते हुए हाल ही में कहा कि एक सभ्य समाज में, कानून का शासन बनाए रखने के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता को आक्षेपित आदेश पारित करने से पहले नहीं सुना गया था, अदालत ने उसे पट्टे पर दी गई भूमि पर काम करने की अनुमति देने के निर्देश पारित किए।

    केस टाइटल: मां विंध्य स्टोन क्रशर कंपनी बनाम यूपी राज्य और न्य WRIT-C No 25003/2023

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    खनन पट्टा | परिणामी आदेश कारण बताओ नोटिस के दायरे से बाहर नहीं जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि कारण बताओ नोटिस के परिणामस्वरूप पारित कोई भी आदेश कारण बताओ नोटिस में कथित आरोपों से आगे नहीं बढ़ सकता है। कोर्ट ने कहा कि कारण बताओ नोटिस में किसी व्यक्ति के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई स्पष्ट रूप से बताई जानी चाहिए।

    अवैध खनन से संबंधित विवाद से निपटते समय, जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस शेखर बी सराफ की पीठ ने कहा कि प्राधिकारी को कारण बताओ नोटिस के दायरे से बाहर जाने की अनुमति नहीं देने का कारण यह है कि "याचिकाकर्ता को उक्त कारण बताओ नोटिस के संबंध में अपना मामला रखने के लिए एक मौका दिया जाना चाहिए।”

    केस टाइटलः रामलला बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य [WRIT - C No. - 31059 of 2023]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    तलाक कानून | पति या पत्नी के अवैध संबंधों के आरोपों को याचिका में स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि जीवनसाथी के अवैध संबंधों के आरोपों को अदालत की कल्पना पर नहीं छोड़ा जा सकता है। ऐसे आरोप स्पष्ट होने चा‌हिए। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13ए के तहत न्यायिक अलगाव की डिक्री देते हुए, न्यायालय ने कहा, “अवैध संबंध के अस्तित्व का अनुमान लगाने के लिए अदालत की कल्पना पर यह नहीं छोड़ा जाना चाहिए कि पक्ष आरोप के माध्यम से क्या कहना चाहते होंगे....अवैध संबंध होने का आरोप स्पष्ट होना चाहिए।”

    केस टाइटलः रोहित चतुवेर्दी बनाम श्रीमती नेहा चतुवेर्दी [FIRST APPEAL No. - 295 of 2020]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    भूमि पर अनाधिकृत कब्ज़ा करने वाला व्यक्ति कानून के अनुसार बेदखल होने पर अनुच्छेद 19, 21 के तहत सुरक्षा का दावा नहीं कर सकता: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु भूमि अतिक्रमण के खिलाफ दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि भूमि पर अनाधिकृत रूप से कब्जा करने वाला व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा का दावा नहीं कर सकता है, जब बेदखली की कार्यवाही कानून के अनुसार हो।

    कोर्ट ने कहा, “वैसे भी, अनधिकृत कब्जे वाला कोई व्यक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के संरक्षण का दावा नहीं कर सकता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, किसी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है... एक बार जब यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता अनाधिकृत रूप से सरकारी संपत्ति पर कब्जा कर रहा था और यदि कानून की प्रक्रिया का पालन किया जाता है, तब इसमें कोई दो राय नहीं है कि याचिकाकर्ता भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा का हकदार नहीं होगा। निर्धारित प्रक्रिया उचित है।”

    केस टाइटलः गुनासेकरन बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यूपी राजस्व संहिता 2006 | अतिक्रमणकारी सार्वजनिक उपयोग की भूमि को अपनी भूमि से बदल नहीं सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि सार्वजनिक उपयोग के लिए दर्ज भूमि को अतिक्रमणकर्ता अपनी भूमि में नहीं बदला सकता है। जस्टिस रजनीश कुमार की पीठ ने कहा कि तालाब का जीर्णोद्धार करना और उसका रखरखाव करना ग्रामीणों के लिए और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए फायदेमंद है।

    कोर्ट ने कहा कि यूपी राजस्व संहिता की धारा 101 (विनिमय) के तहत एक भूमिदार किसी अन्य भूमिदार द्वारा रखी गई भूमि का आदान-प्रदान कर सकता है या धारा 59 के तहत किसी ग्राम पंचायत या स्थानीय प्राधिकारी को सौंपी या सौंपी हुई मानी गई भूमि का आदान-प्रदान कर सकता है। हालांकि, तालाब के रूप में दर्ज भूमि को विनिमय करने की अनुमति दी जाए, भले ही इसे आबादी में बनाया गया हो।

    केस टाइटलः महादेव सिंह दल बहादुर सिंह बनाम यूपी राज्य, प्रधान सचिव (राजस्व), लखनऊ के माध्यम से और अन्य [WRIT - C No. - 9984 of 2023]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यदि मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट पर्याप्त रूप से जन्मतिथि साबित करता है तो डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जाएगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि किसी स्कूल द्वारा जारी मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट को जन्मतिथि निर्धारित करने के लिए पर्याप्त कानूनी प्रमाण माना जाता है। कोर्ट ने कहा कि जहां ऐसा सर्टिफिकेट गलत साबित नहीं हुआ, वहां डीएनए टेस्ट जरूरी नहीं।

    जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने अपर्णा अजिंक्य फिरोदिया बनाम अजिंक्य अरुण फिरोदिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा, “जैसा कि अपर्णा अजिंक्य फ़िरोदिया (सुप्रा) में कहा गया कि डीएनए टेस्ट कराने का आदेश नियमित तरीके से पारित नहीं किया जा सकता है और इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में पारित किया जाना है, जब संबंधित व्यक्ति के माता-पिता का निर्धारण करने के लिए कोई अन्य कानूनी आधार नहीं है और चूंकि वर्तमान मामले में दस्तावेज है, जिसे जन्मतिथि के निर्धारण के लिए पर्याप्त कानूनी प्रमाण माना जाता है, यानी मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, इसलिए डीएनए टेस्ट के लिए आदेश पारित करने की कोई स्थिति मौजूद नहीं है।''

    केस टाइटल: मोबीन एवं अन्य बनाम उप. चकबंदी निदेशक और 6 अन्य [WRIT- B No.- 2526/2023]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यदि बीमाकर्ता स्पेसिफिक पॉलिसी टर्म्स के दावे को अस्वीकार करता है तो रिट याचिका सुनवाई योग्य होगी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने COVID-19 की शुरुआत के कारण रद्द की गई यात्रा बुकिंग के संबंध में एक जोड़े के बीमा दावे को अनुमति देते हुए हाल ही में कहा कि एक रिट याचिका सुनवाई योग्य होगी, यदि अदालत को पता चलता है कि बीमाकर्ता ने पॉलिसी की स्पेसिफिक टर्म्स (Specific Policy Terms) के दावे को अवैध रूप से अस्वीकार कर दिया है।

    केस टाइटल: मोहित कुमार और अन्य बनाम बीमा लोकपाल और अन्य का कार्यालय, डब्ल्यू.पी.(सी) 8916/2020

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    'सीमा सुरक्षा बल' अखिल भारतीय उपस्थिति वाला केंद्रीय बल है, इसके आदेश सभी हाईकोर्ट में चुनौती के अधीन: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) कांस्टेबल को हटाने का आदेश रद्द करते हुए कहा है कि सीमा सुरक्षा बल (एसएसबी), अखिल भारतीय उपस्थिति के साथ भारत संघ का बल है, जिससे आदेश जारी किए जा रहे हैं। इसके द्वारा पारित मामले के खिलाफ देश के किसी भी हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है।

    जस्टिस एमए चौधरी ने ये टिप्पणियां एसएसबी में कांस्टेबल (जीडी) की याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें ड्यूटी से कथित तौर पर अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए प्रतिवादी नंबर 3-कमांडेंट ट्रेनिंग सेंटर सपरी एसएसबी हिमाचल प्रदेश द्वारा उसके खिलाफ जारी निष्कासन आदेश को चुनौती दी गई।

    केस टाइटल: नज़ीर अहमद नज़र बनाम यूओआई

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story