हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

28 May 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (22 मई, 2023 से 26 मई, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 190 सीआरपीसी | चार्जशीट/एफआईआर में जिन लोगों का नाम नहीं है, मजिस्ट्रेट उन्हें भी आरोपी के तौर पर सम्मन कर सकता है: इलाहाबाद हाई कोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक मजिस्ट्रेट के पास सीआरपीसी की धारा 190 के तहत उन लोगों के खिलाफ सम्मन जारी करने की शक्ति है, जिनका आरोप पत्र में आरोपी के रूप में उल्लेख नहीं किया गया है या एफआईआर में आरोप लगाया गया है।

    जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव- I की पीठ ने नाहर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2022 LiveLaw (SC) 291 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए यह देखा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह आयोजित किया था कि यदि उसके समक्ष सामग्री है मजिस्ट्रेट किसी अपराध के घटित होने में पुलिस रिपोर्ट के कॉलम 2 में अभियुक्त या नामजद अभियुक्तों के अलावा अन्य व्यक्तियों की मिलीभगत को दर्शाता है, उस चरण में मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्तियों को अपराध का संज्ञान लेने के साथ ही सम्‍मन कर सकता है।

    केस टाइटलः युवराज नाग बनाम स्टेट ऑफ यूपी प्रधान सचिव, गृह लखनऊ के माध्यम से व अन्य [आपराधिक पुनरीक्षण संख्या- 471/ 2023]

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    लोगों को कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके पास आधार कार्ड या मोबाइल नंबर नहीं है: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को आगाह किया कि वे कमजोर वर्गों से संबंधित जरूरतमंद लोगों को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लाभों से केवल इसलिए वंचित न करें, क्योंकि उनके पास आधार कार्ड या मोबाइल नंबर जैसे पहचान प्रमाण नहीं हैं।

    केस टाइटल: मंटू दास बनाम भारत संघ व अन्य।

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    वसूली एजेंटों द्वारा वाहन की जबरन जब्ती असंवैधानिक और अवैध, SARFAESI अधिनियम, RBI के दिशानिर्देश का अनुपालन आवश्यक: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में हाल ही में कहा कि बैंक और वित्त कंपनियां कानून के तहत उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना, कार ऋण जमा न पाने वाले ग्राहकों के वाहनों को जबरन जब्त करने के लिए वसूली एजेंटों का उपयोग नहीं कर सकती हैं।

    यह फैसला ज‌स्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने टाटा मोटर फाइनेंस लिमिटेड, इंडसइंड बैंक लिमिटेड, श्री राम फाइनेंस कंपनी, आईसीआईसीआई बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिकाओं के एक बैच का निपटारा करते हुए दिया।

    केस टाइटल: धनंजय सेठ बनाम भारतीय संघ सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस नंबर 3456 ऑफ 2021

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    जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए मामलों को हाईकोर्ट में भेज सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल को अदालत की अवमानना अधिनियम की धारा 10 के उद्देश्यों के लिए हाईकोर्ट के अधीनस्थ "अदालत" माना जाता है। इसलिए इसके आदेशों का उल्लंघन करने वालों या इसकी आपराधिक अवमानना करने वालों के खिलाफ उचित कार्यवाही शुरू करने के लिए एक उपयुक्त मामले को हाईकोर्ट में भेजने के लिए यह उसकी शक्तियों के भीतर होगा।

    केस टाइटल: रशीद अहमद पीरजादा बनाम जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल।

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    राजस्थान पंचायती राज नियम | नियुक्ति के लिए आयु में छूट का दो अलग-अलग श्रेणियों के तहत दो बार दावा नहीं किया जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने माना है कि राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के तहत एक पद के लिए आवेदन करने वाला उम्मीदवार केवल एक श्रेणी के तहत छूट मांग सकता है और दो मामलों में छूट का दावा करके आगे का लाभ नहीं उठा सकता है।

    इस मामले में, जिन उम्मीदवारों ने लोअर डिवीजन क्लर्क (एलडीसी) के पद के लिए आवेदन किया था, वे दो कारणों से आयु में छूट की मांग कर रहे थे, सबसे पहले नियम 265 के प्रोविसो (x) के अनुसार 2013 से पहले तीन वर्षों के लिए कोई भर्ती नहीं हुई है और दूसरा यह कि पांच साल की अवधि के लिए अनुबंध के आधार पर पंचायती राज विभाग में सेवा करने के लिए प्रोविज़ो (xi) के तहत। इसलिए, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे तीन वर्ष और पांच वर्ष की आयु में छूट के हकदार हैं।

    केस टाइटल: धुलेश्वर घोगरा व अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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    कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा कोर्ट में लंबित सभी मुकदमे खुद को ट्रांसफर किए

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से संबंधित विभिन्न राहतों के लिए प्रार्थना करते हुए मथुरा अदालत के समक्ष लंबित सभी मुकदमों को अपने पास स्थानांतरित कर लिया। जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा-I की खंडपीठ ने भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और 7 अन्य द्वारा स्थानांतरित स्थानांतरण आवेदन की अनुमति दी।

    अपने आदेश के ऑपरेटिव भाग में कोर्ट ने कहा, " ...इस तथ्य को देखते हुए कि सिविल कोर्ट के समक्ष 10 से अधिक वाद लंबित बताए गए हैं और साथ ही 25 और वाद होने चाहिए जिन्हें लंबित कहा जा सकता है और यह कहा जा सकता है कि यह मामला मौलिक सार्वजनिक महत्व का है और समुदायों से परे इसने लोगों को प्रभावित किया है और मामले दायर होने के बाद पिछले दो से तीन वर्षों से योग्यता के आधार पर से एक इंच भी आगे नहीं बढ़े हैं, इस मुकदमे से जुड़े सभी मुकदमों को संबंधित सिविल कोर्ट से वापस लेकर सीपीसी की धारा 24(1)(बी) के तहत इस न्यायालय में ट्रांसफर करने का पूर्ण औचित्य प्रदान करता है।"

    केस टाइटल - भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और 7 अन्य बनाम यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और 3 अन्य [स्थानांतरण आवेदन (सिविल) संख्या - 88/2023]

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    घरेलू हिंसा अधिनियम या सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण संबंधी आवेदनों की सुनवाई करने वाली अदालतों को विवाह की वैधता पर विचार करने की आवश्यकता नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि अदालतों को घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 या आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 की धारा 12 के तहत गुजारा भत्ता के आवेदनों पर विचार करते समय विवाह की वैधता पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

    कलाबुरगी बेंच में बैठे जस्टिस एस राचैया की सिंगल जज बेंच ने ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की, जिसमें याचिकाकर्ता के पति को भरण-पोषण के रूप में प्रतिमाह 3,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटल: शरणवा @कस्तूरी बनाम शिवप्पा

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    मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत गोद नहीं ले सकते; गोद लेने के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम अपने व्यक्तिगत कानूनों के तहत नाबालिग बच्चों को गोद लेने की मांग नहीं कर सकते हैं और उन्हें किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) (जेजे एक्ट) के तहत निर्धारित निर्देशों का सख्ती से पालन करना चाहिए।

    केस टाइटल: निसार अहमद खान बनाम उड़ीसा राज्य व अन्य।

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    [भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम] केरल के न्यायालयों के पास राज्य के प्राधिकरण के बिना प्रोबेट या प्रशासन पत्र जारी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं: हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब तक भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 264 (2) के तहत अनिवार्य रूप से राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना नहीं दी जाती, तब तक राज्य की किसी भी अदालत के पास प्रोबेट या प्रशासन पत्र जारी करने का अधिकार क्षेत्र नहीं होगा। जस्टिस पी सोमराजन की एकल पीठ ने कहा कि केरल राज्य के लिए अधिनियम के तहत अब तक ऐसी कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है।

    केस टाइटल: टी.के.नटराजन बनाम टी.के.रमन अचारी

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    [मोटर दुर्घटना] एमवी एक्ट के तहत अपील दायर करना महत्वपूर्ण है और इसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए, भले ही आवेदक को लगता हो कि उनके पर्याप्त अधिकार दांव पर हैं: जम्मू- कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू- कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत अपील दायर करना महत्वपूर्ण है और इसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए, भले ही आवेदक को लगता हो कि उनके पर्याप्त अधिकार दांव पर हैं। जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एक घोषणा की, जिसके संदर्भ में आवेदक मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा घायलों को दिए गए अवार्ड के खिलाफ अपील को प्राथमिकता देने में 1538 दिनों की देरी की मांग कर रहा था।

    केस टाइटल: सूरज चंद बनाम बजाज आलियांज इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड

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    जीवनसाथी को लंबे समय तक यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना मानसिक क्रूरता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट में तलाक से जुड़ा एक मामला आया। पति ने इस आधार पर पत्नी से तलाक की मांग की थी कि उसकी पत्नी लंबे समय से उसको उसके साथ यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं दे रही है। उसके साथ नहीं रह रही है। हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर पति को पत्नी से तलाक लेने की अनुमति दी। और कहा कि पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में मानसिक क्रूरता है।

    केस टाइटल - रवींद्र प्रताप यादव बनाम आशा देवी एवं अन्य [प्रथम अपील संख्या – 405 ऑफ 2013]

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    मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत प्रतिपूर्ति की गई राशि को दुर्घटनाग्रस्त वाहन के बीमाकर्ता द्वारा देय मुआवजे से नहीं काटा जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि मोटर दुर्घटना पीड़ित की बीमा कंपनी से प्राप्त मेडिकल प्रतिपूर्ति को वाहन के मालिक की बीमा कंपनी द्वारा भुगतान किए जाने वाले मुआवजे से नहीं काटा जा सकता। जस्टिस शिवकुमार डिगे ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को दिए गए अवार्ड को बरकरार रखा, जिसने अपने पिता की मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत मेडिकल प्रतिपूर्ति प्राप्त की थी।

    केस टाइटल- रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम अमन संजय टाक और अन्य।

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    यूपी कोर्ट ने सपा नेता आजम खान को हेट स्पीच मामले में बरी किया, जिसके कारण विधायक के रूप में वे अयोग्य ठहराए गए

    उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले की एक अदालत ने बुधवार को 2019 के हेट स्पीच के मामले में समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को बरी कर दिया। इस केस के कारण उन्हें पिछले साल विधायक के रूप में अयोग्य ठहराया गया था। इसके साथ, अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश अमितवीर सिंह ने रामपुर में एक विशेष सांसद/विधायक अदालत द्वारा पारित अक्टूबर 2022 के आदेश को रद्द कर दिया जिसमें आजम खान को दोषी ठहराते हुए तीन साल की जेल की सजा सुनाई थी।

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    आपराधिक पक्ष की तरफ से पेश होने वाले वकील हथियार के लाइसेंस के अधिकार का दावा नहीं कर सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक अभियुक्त या अभियोजन पक्ष के लिए आपराधिक पक्ष की ओर से पेश होने वाले वकील शस्त्र लाइसेंस के अधिकार का दावा नहीं कर सकते , क्योंकि इसके परिणामस्वरूप ऐसे लाइसेंस अंधाधुंध रूप से जारी किए जा सकते हैं।

    जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने आदेश में कहा, "आरोपी व्यक्तियों की ओर से उपस्थिति के आधार पर एक वकील द्वारा आवेदन इस न्यायालय की राय में हथियार लाइसेंस देने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।" .

    केस टाइटल : एडीवी शिव कुमार बनाम भारत संघ और अन्य।

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    काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद| मस्‍जिद कमेटी की वारणसी कोर्ट में दलील, 'औरंगजेब क्रूर नहीं था, उसने विश्वनाथ मंदिर नहीं तोड़ा'

    वाराणसी की एक अदालत में काशी विश्वनाथ मंद‌िर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर हो रही सुनवाई में ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने दलील दी कि, "न तो मुगल बादशाह औरंगजेब क्रूर था और न ही उसने वाराणसी में भगवान आदि विश्वेश्वर के किसी मंदिर को तोड़ा था।" कमेटी ने वाराणसी कोर्ट में हिंदू उपासकों की याचिका के विरोध में आवेदन दाखिल किया है।

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    एकपक्षीय डिक्री | आदेश 9 नियम 13 और धारा 96 सीपीसी के तहत उपचार समवर्ती हैं, एक साथ इसका सहारा लिया जा सकता है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया कि सीपीसी के आदेश 9 नियम 13 और सीपीसी की धारा 96 के तहत उपाय, जो क्रमशः एकपक्षीय निर्णय को रद्द करने और अपील दायर करने की अनुमति देते हैं, समवर्ती हैं और एक साथ इसका सहारा लिया जा सकता है।

    ज‌स्टिस जावेद इकबाल वानी ने उप-न्यायाधीश कटरा की अदालत की ओर से पारित एक फैसले और डिक्री के साथ-साथ एक अपील में जिला न्यायाधीश रियासी की अदालत की ओर से पारित निर्णय और डिक्री के खिलाफ दूसरी अपील की सुनवाई करते हुए यह बात दोहराई।

    केस टाइटल: स्वर्ण सलारिया बनाम बलदेव राज शर्मा व अन्य।

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    अनुच्छेद 22(5) | हिरासत में लिए गए व्यक्ति के प्रतिनिधित्व पर विचार करने में हर दिन हुए विलंब को स्पष्ट किया जाना चाहिएः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत एक निवारक निरोध आदेश को यह कहकर रद्द कर दिया कि संविधान, सरकार पर यह कानूनी दायित्व डालता है कि वह हिरासत में लिए गए व्यक्ति के प्रतिनिधित्व पर जल्द से जल्द विचार करे।

    जस्टिस संजय धर ने कहा, "प्रतिनिधित्व को निस्तारित करने में हर दिन हुए विलंब को स्पष्ट किया जाना चाहिए और दिए गए स्पष्टीकरण में यह संकेत हो कि कोई ढिलाई या उदासीनता नहीं थी।

    केस टाइटल: अट्टा मोहम्मद खान बनाम यूटी ऑफ जम्मू एंड कश्मीर

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    बच्चे की कस्टडी खोने वाले माता-पिता को बच्चे के साथ सामाजिक, मनोवैज्ञानिक संपर्क सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त मुलाक़ात का अधिकार दिया जाना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महिला को अपने नाबालिग बेटे की संरक्षकता, कस्टडी और मुलाक़ात के अधिकारों के संबंध में अपने पति के साथ हुए समझौते का पालन करने का निर्देश दिया है। जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने नाबालिग बेटे को पेश करने के लिए पिता द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निस्तारण किया और मां को गर्मी की छुट्टी के दौरान याचिकाकर्ता को उनके समझौते के अनुसार बेटे की हिरासत सौंपने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: ABC और XYZ

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    सेक्स वर्क अपराध नहीं, एक बालिग सेक्स वर्कर को बिना किसी कारण के हिरासत में रखना अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है: मुंबई कोर्ट

    "देश में सेक्स वर्क अपराध नहीं है, लेकिन सार्वजनिक स्थान पर वेश्यावृत्ति एक अपराध हो सकता है। अगर कोई सेक्स वर्कर अपनी किसी निजी जगह पर इस काम में लिप्त है तो गलत नहीं है।" ये कहते हुए मुंबई सेशन कोर्ट ने 34 साल की कथित सेक्स वर्कर को रिहा करने का आदेश दिया।

    एडिशनल सेशन जज सीवी पाटिल ने कथित सेक्स वर्कर को हिरासत में रखने के मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया और शेल्टर होम में रखी गई महिला को रिहा करने का निर्देश दिया। महिला पर देह व्यापार का आरोप था।

    केस टाइटल- एक्सवाईजेड बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    बिना हथियार के जिंदा कारतूस रखना आर्म्स एक्ट के तहत अपराध नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि हवाईअड्डे पर सुरक्षा जांच के दौरान यात्री के बैग से बिना किसी संबंधित हथियार के जब्त किए ज़िंदा कारतूस से संकेत मिलता है कि उक्त कारसूत 'जानबूझकर' नहीं रखा गया था। इसलिए आर्म्स एक्ट, 1959 के तहत अपराध नहीं होगा।

    जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने एक्ट की धारा 25 को स्पष्ट करते हुए कहा, "अधिनियम की धारा 25 के तहत आग्नेयास्त्र के कब्जे का अर्थ है मानसिक तत्व को शामिल करना। चेतना के किसी भी तत्व या उस कब्जे के ज्ञान के बिना हथियार रखना अधिनियम के तहत अपराध नहीं हो सकता। यह स्थापित कानून है कि शस्त्र अधिनियम के तहत आग्नेयास्त्र के कब्जे में इस तरह के अपराध के आरोप वाले व्यक्ति पर चेतना का तत्व या उस कब्जे का ज्ञान होना चाहिए। इसके अलावा, भले ही उसके पास कोई वास्तविक भौतिक अधिकार न हो, फिर भी उसके पास हथियार पर शक्ति या नियंत्रण हो, उसका कब्ज़ा सचेत कब्ज़ा माना जाएगा, भले ही वास्तविक कब्ज़ा किसी तीसरे पक्ष के पास हो।"

    केस टाइटल: शांतनु यादव राव हिरे बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    सरकारी कर्मचारी को उसके खिलाफ लंबित आपराधिक मामले के परिणाम के आधार पर प्रोमोशन नहीं दिया जा सकता : उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया है कि किसी सरकारी कर्मचारी को एडहॉक या नियमित पदोन्नति उसके खिलाफ लंबित आपराधिक मामले के परिणाम के आधार पर नहीं दी जा सकती।

    मुख्य न्यायाधीश डॉ. एस. मुरलीधर और जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की खंडपीठ ने कई सरकारी कर्मचारियों को इस तरह की पदोन्नति की अनुमति देने वाले एकल जज के आदेश को रद्द करते हुए कहा, "... इस न्यायालय के लिए वर्तमान मामलों में विद्वान एकल न्यायाधीश के विवादित आदेशों को बरकरार रखना संभव नहीं है, जिसमें अपीलकर्ताओं को उत्तरदाताओं को नियमित पदोन्नति देने का निर्देश दिया गया है, यहां तक कि इस तरह की पदोन्नति ऐसे सरकारी सेवक के खिलाफ आपराधिक मामले के परिणाम के अधीन होगी।"

    केस टाइटल : ओडिशा राज्य और अन्य बनाम जोसेफ बारिक [और अन्य अपीलों का बैच]

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    वाराणसी जिला जज ने ज्ञानवापी विवाद संबंधित सभी लंबित मुकदमों को समेकित किया, सुनवाई एक साथ होगी

    वाराणसी की जिला अदालत ने विभिन्न अदालतों में लंबित ज्ञानवापी संबंधित सभी आठ मुकदमों को समेकित करने के लिए दायर एक आवेदन को स्वीकार कर लिया है। अब इन सभी मामलों की सुनवाई जिला जज की अदालत एक साथ करेगी। जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश ने आज यह आदेश पारित करते हुए कहा कि सभी मामलों पर सुनवाई एक साथ की जानी चाहिए। उन्हें समेकित किया जाना चाहिए।

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    यूएपीए नियमों के तहत अभियोजन की स्वीकृति देने के लिए समय सीमा अनिवार्य, विलंब के मामले में आरोपी अंतरिम जमानत का हकदार: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि जांच के निष्कर्ष और चालान दाखिल करने पर, यदि अभियोजन की स्वीकृति पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है और गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) (अनुशंसा और अभियोजन की स्वीकृति) नियमावली, 2008 में निर्दिष्ट अवधि के भीतर सूचित नहीं किया जाता है तो अभियुक्त को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: मनजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य

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    हाईकोर्ट के पास न्यायपालिका के प्रशासनिक पक्ष में कर्मचारियों के अंतर-जिला स्थानांतरण के लिए शर्तें निर्धारित करने की शक्ति: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि न्यायपालिका के प्रशासनिक पक्ष में कर्मचारियों के अंतर जिला स्थानांतरण के लिए शर्तों को निर्धारित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास है। न्यायालय ने पाया कि यह शक्ति संविधान के अनुच्छेद 235 से ली गई है जो हाईकोर्ट को अधीनस्थ न्यायालयों पर पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण रखने की शक्ति प्रेदान करता है।

    जस्टिस एन नागेश की एकल पीठ ने कहा, "अदालतें संस्थाएं या एक जीव हैं, जहां सभी अंग अदालतों की पूरी प्रणाली को पूरा करते हैं। जब संवैधानिक प्रावधान अदालतों और न्यायिक कार्यालय से संबंधित व्यक्तियों दोनों को कवर करने के लिए इतने व्यापक आयाम का है, तो अदालतों के अन्य अंगों, अर्थात प्रशासनिक पदाधिकारियों और अनुसचिवीय कर्मचारियों को इस नियंत्रण के दायरे से बाहर करने का कोई कारण नहीं होगा। इस तरह का नियंत्रण प्रकृति में अनन्य है, व्यापक और संचालन में प्रभावी है।"

    केस टाइटल: रतीश दासन बनाम केरल राज्य

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    फेमा | यदि न्यायिक प्राधिकरण कार्रवाई शुरू करने के लिए कुछ दस्तावेजों को प्रस्तुत करने में असमर्थ है तो भी प्राकृतिक न्याय उल्लंघन नहीं है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि यदि विरोधी पक्ष दास्तावेजों को प्रदान करने में असमर्थ है तो पीड़ित पक्ष से दस्तावेजों को रोकना प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने ईडी अधिकारियों द्वारा जारी एक पत्राचार को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि धारा 13 (1) फेमा के तहत न्यायिक कार्यवाही याचिकाकर्ताओं के खिलाफ होनी चाहिए।

    केस टाइटल: मुश्ताक अहमद डार बनाम प्रवर्तन निदेशालय व अन्य

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