[भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम] केरल के न्यायालयों के पास राज्य के प्राधिकरण के बिना प्रोबेट या प्रशासन पत्र जारी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं: हाईकोर्ट

Shahadat

26 May 2023 5:54 AM GMT

  • [भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम] केरल के न्यायालयों के पास राज्य के प्राधिकरण के बिना प्रोबेट या प्रशासन पत्र जारी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं: हाईकोर्ट

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब तक भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 264 (2) के तहत अनिवार्य रूप से राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना नहीं दी जाती, तब तक राज्य की किसी भी अदालत के पास प्रोबेट या प्रशासन पत्र जारी करने का अधिकार क्षेत्र नहीं होगा।

    जस्टिस पी सोमराजन की एकल पीठ ने कहा कि केरल राज्य के लिए अधिनियम के तहत अब तक ऐसी कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है।

    उन्होंने कहा,

    “अभी तक अधिनियम की धारा 264 (2) के तहत राज्य सरकार द्वारा भारतीय उत्तराधिकार नियम (केरल) 1968) द्वारा बनाए गए नियमों में कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई। हालांकि प्रोबेट और प्रशासन के पत्र जारी करने के संबंध में प्रावधान किए गए, अधिनियम की धारा 264(2) के तहत अधिसूचना के प्रभाव में कुछ भी शामिल नहीं किया गया था। वास्तव में अधिनियम की धारा 264(2) के तहत अधिसूचना सरकार द्वारा जारी की जानी है। इस तरह की अधिसूचना के अभाव में केरल राज्य के न्यायालयों द्वारा प्रोबेट या पत्र जारी करने के लिए किसी भी क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता।"

    न्यायालय ने रविंदर नाथ अग्रवाल बनाम योगेंद्र नाथ अग्रवाल और अन्य (2021 एससीसी ऑनलाइन एससी 86) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए यह स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 264 (2) के तहत कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे की सीमा से बाहर की अदालतें प्रोबेट या प्रशासन के पत्र के लिए आवेदन प्राप्त नहीं कर सकती, जब तक कि राज्य सरकार अदालतों को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से ऐसा करने के लिए अधिकृत नहीं करती। यह तब लागू होता है जब मृतक हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, सिख या जैन या छूट प्राप्त व्यक्ति है, लेकिन यह उन मामलों पर लागू नहीं होता है, जहां अधिनियम की धारा 57 लागू होती है।

    न्यायालय निचली अदालत द्वारा वादी के पक्ष में प्रशासनिक पत्र दिए जाने के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिनियम की धारा 307 के तहत निष्पादक द्वारा शक्ति की परिसीमा का प्रयोग केवल मृतक के डेब्ट या प्रतिभूतियों के प्रबंधन के उद्देश्य से किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि मृतक के ऐसे डेब्ट या प्रतिभूतियों के प्रबंधन की आवश्यकता के अभाव में प्रोबेट या प्रशासन पत्र जारी करने की कोई गुंजाइश नहीं होगी।

    वर्तमान मामले में न्यायालय ने पाया कि मृतक की संपत्ति के प्रबंधन की कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए प्रशासन के पत्र जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तदनुसार, न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा जारी प्रशासन के पत्रों को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: टी.के.नटराजन बनाम टी.के.रमन अचारी

    साइटेशन: लाइवलॉ (केरल) 233/2023

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