जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए मामलों को हाईकोर्ट में भेज सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Shahadat

27 May 2023 7:53 AM GMT

  • जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए मामलों को हाईकोर्ट में भेज सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल को अदालत की अवमानना अधिनियम की धारा 10 के उद्देश्यों के लिए हाईकोर्ट के अधीनस्थ "अदालत" माना जाता है। इसलिए इसके आदेशों का उल्लंघन करने वालों या इसकी आपराधिक अवमानना करने वालों के खिलाफ उचित कार्यवाही शुरू करने के लिए एक उपयुक्त मामले को हाईकोर्ट में भेजने के लिए यह उसकी शक्तियों के भीतर होगा।

    जस्टिस संजीव कुमार की पीठ ने टिप्पणी की,

    “…जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल पूरी तरह से दंतविहीन निकाय नहीं है और इसके पास अवमानना करने की हिम्मत करने वाले नागरिकों से निपटने के लिए पर्याप्त शक्तियां हैं। यद्यपि 1988 के अधिनियम में संशोधन करने के लिए ट्रिब्यूनल के कामकाज को प्रभावी बनाने के लिए यह आदर्श है कि उसे विशेष रूप से स्वयं या उसके किसी सदस्य के संबंध में अवमानना ​​के लिए दंडित करने की शक्ति प्रदान की जाए, जैसा कि विभिन्न विधियों में किया गया है।”

    इस सवाल का जवाब देते हुए कि क्या जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल ने किसी व्यक्ति को खुद या उसके किसी सदस्य की अवमानना ​​करने के लिए दंडित करने की शक्ति प्रदान की है, यह टिप्पणी पारित की गई।

    इस सवाल का जवाब देने के लिए पीठ ने कहा कि जम्मू एंड कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल का गठन जम्मू एंड कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल अधिनियम, 1988 की धारा 4 के तहत किया गया। जम्मू एंड कश्मीर स्पेशनल ट्रिब्यूनल नियम, 1986 के नियम 21 में यह निर्धारित किया गया है कि ट्रिब्यूनल को अन्य बातों के साथ-साथ किसी व्यक्ति को स्वयं या उसके किसी सदस्य के संबंध में अवमानना ​​के लिए दंडित करने के लिए सिविल कोर्ट की शक्तियां प्रदान की गई हैं।

    इस दृष्टि से पीठ ने कहा,

    1. ट्रिब्यूनल के पास स्वयं या उसके किसी सदस्य के संबंध में अवमानना ​​के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी शक्ति के साथ निहित नहीं है;

    2. 1986 के नियमों के नियम 21 के तहत ट्रिब्यूनल को किसी व्यक्ति को स्वयं या उसके किसी सदस्य के संबंध में अवमानना ​​के लिए दंडित करने के लिए सिविल कोर्ट की शक्ति प्रदान की जाती है।

    3. चूंकि दीवानी न्यायालय में किसी व्यक्ति को स्वयं के संबंध में अवमानना ​​के लिए दंडित करने की कोई शक्ति निहित नहीं है, इस तरह की शक्ति का अर्थ सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 के नियम 1 और 2 के तहत केवल सिविल कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम निषेधाज्ञा की अवज्ञा के लिए दंडित करने के लिए संहिता के आदेश 39 नियम 2-ए के तहत दीवानी न्यायालय को दी गई शक्ति से समझा जाना चाहिए। इसका मतलब यह होगा कि ट्रिब्यूनल के पास संतुलन बनाए रखने या सूची आदि को संरक्षित करने के लिए पारित निषेधाज्ञा के अपने अंतरिम आदेशों की अवज्ञा के लिए किसी व्यक्ति को दंडित करने का अधिकार होगा।

    4. ट्रिब्यूनल को न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम की धारा 10 के प्रयोजनों के लिए हाईकोर्ट के अधीनस्थ 'अदालत' माना जाएगा। इसलिए हाईकोर्ट को उचित मामले को संदर्भित करने के लिए अपनी शक्तियों के भीतर अच्छी तरह से होगा। इसके आदेशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ या इसकी आपराधिक अवमानना करने वालों के खिलाफ उचित कार्यवाही शुरू करना।

    5. ट्रिब्यूनल सीआरपीसी की धारा 345 के तहत आगे बढ़ने का भी हकदार होगा, जहां ट्रिब्यूनल के सामने या उसकी उपस्थिति में की गई अवमानना ​​भारतीय दंड संहिता की धारा 175, 178, 179, 180 और 228 के तहत वर्णित अपराध है।

    केस टाइटल: रशीद अहमद पीरजादा बनाम जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल।

    साइटेशन: लाइवलॉ (जेकेएल) 137/2023

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