हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

5 Sep 2021 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देशभर के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (30 अगस्त 2021 से 3 सितंबर 2021 तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं, हाईकोर्ट वीकली राउंड अप।

    पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    वैज्ञानिक मानते हैं कि गाय ही एकमात्र ऐसी जानवर है जो ऑक्सीजन लेती और आक्सीजन ही छोड़ती है; बीफ खाने का कोई मौलिक अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कल कहा कि इस तथ्य के आलोक में गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया जाना चाहिए कि गाय भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है और गोमांस को खाना किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता है।

    जस्टिस शेखर कुमार यादव ने अपने आदेश में यह भी कहा कि वैज्ञानिकों का मानना ​​​​है कि गाय एकमात्र ऐसी जानवर है, जो ऑक्सीजन लेती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है। अदालत ने जावेद नाम के एक आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणियां की, जिस पर चोरी करने के बाद गाय को मारने का आरोप लगाया गया था और धारा 379 आईपीसी, यूपी गौहत्या रोकथाम अधिनियम, 1955 की धारा 3, 5, 8 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

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    अजन्मे बच्चे का भी अपना जीवन होता हैः केरल हाईकोर्ट ने 31 सप्ताह की गर्भावस्था समाप्त करने की मांग वाली याचिका खारिज की

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि जब एक मेडिकल बोर्ड यह राय देता है कि गर्भावस्था की समाप्ति के परिणामस्वरूप एक जीवित बच्चा पैदा हो सकता है और भ्रूण में पाई गई असामान्यताएं घातक नहीं है,तो मां के जीवन या स्वास्थ्य के लिए कोई खतरा न होने की स्थिति में मां की प्रजनन पसंद को अजन्मे बच्चे के जन्म लेने के अधिकार के लिए रास्ता देना होगा।

    न्यायमूर्ति पी.बी सुरेश कुमार ने 31 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अजन्मे का जीवन उस अवस्था से है जब वह भ्रूण में बदला था और एक अजन्मे बच्चे के साथ जन्म लेने वाले बच्चे से अलग व्यवहार करने का कोई कारण नहीं है।

    केस का शीर्षकः इंदुलेखा श्रीजीत बनाम भारत संघ व अन्य

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    मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण को 27% तक बढ़ाने पर लगी रोक हटाने से इनकार किया

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने वाले अध्यादेश पर लगी रोक को हटाने से इनकार कर दिया है। राज्य सरकार ने पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश को प्रभावित करने वाले स्टे को हटाने के लिए कोर्ट का रुख किया था।

    मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायमूर्ति वीके शुक्ला की खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले को अंतिम सुनवाई के लिए 20 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।

    शीर्षक: आशिता दुबे बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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    लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीआरपीसी 197 के तहत मंज़ूरी लिए बिना संज्ञान लेना कानून में बुरा अभ्यास : केरल हाईकोर्ट

    केरल उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत मंज़ूरी प्राप्त करना आवश्यक है, और इस तरह की मंज़ूरी के बिना उनके खिलाफ किए गए अपराधों का संज्ञान कानून में बुरा अभ्यास है।

    न्यायमूर्ति आर नारायण पिशारदी ने ऐसा फैसला सुनाते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर कुछ पुनरीक्षण याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें विशेष सीबीआई न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक आपराधिक मामले में दो आरोपियों द्वारा दायर आरोपमुक्त करने के लिए आवेदनों की अनुमति दी गई थी।

    केस: राज्य बनाम सैयद शैकोया

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    करदाताओं के पैसे और न्यायिक समय की बर्बादी : कोर्ट ने दंगों के मामलों की 'घटिया' जांच पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई -10 बयान

    दिल्ली की एक कोर्ट ने दिल्ली दंगों में निष्पक्ष जांच के मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए गुरुवार को तीन लोगों दंगे, आगजनी, और विभिन्न अपराधों में दर्ज मामले में जमानत दे दी। दिल्ली की कोर्ट ने दंगों में हुई हिंसा की 'घटिया', 'कठोर' और 'उदासीन' जांच के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई।

    उल्लेखनीय है कि द‌िल्ली दंगे में लगभग 53 लोग मारे गए और 200 अन्य लोग घायल हो गए (आधिकारिक तौर पर)। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा , 'जब इतिहास दिल्ली में विभाजन के बाद के सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगों को देखेगा, तो नवीनतम वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करके उचित जांच करने में जांच एजेंसी की विफलता निश्चित रूप से लोकतंत्र के प्रहरी को पीड़ा देगी।'

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    [दिल्ली दंगे] : अस्पष्ट साक्ष्य और सामान्य आरोप आईपीसी की धारा 149 सहपठित धारा 302 के तहत कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त नहीं : हाईकोर्ट ने हेड कांस्टेबल रतन लाल हत्या मामले में पांच आरोपियों को ज़मानत दी

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल हुए दिल्ली दंगों के दौरान हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या और एक डीसीपी को सिर में चोट पहुंचाने के मामले में पांच आरोपियों को शुक्रवार को जमानत दे दी। (एफआईआर 60/2020 पीएस दयालपुर) न्यायमूर्ति सुब्रमनियम प्रसाद ने पिछले महीने आदेश को सुरक्षित रखा था, उसे आज पर‌ित किया। अदालत ने अभियोजन पक्ष की ओर से पेश एएसजी एसवी राजू और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद के साथ आरोप‌ियों ओर से पेश हुए कई वकीलों को विस्तार से सुना था।

    केस शीर्षक: मोहम्मद आरिफ बनाम राज्य (बीए 774/2021) और जुड़े मामले

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    'मजिस्ट्रेट को बी-समरी रिपोर्ट खारिज करते समय दिमाग का इस्तेमाल करना, कारणों को दर्ज करना चाहिए': कर्नाटक हाईकोर्ट ने आपराधिक धमकी मामले को खारिज किया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी मामले में पुलिस द्वारा दायर बी-समरी रिपोर्ट को खारिज करते हुए मजिस्ट्रेट को कारण दर्ज करना चाहिए।

    आगे कहा गया है कि इस तरह के कारणों को विस्तृत करने की जरूरत नहीं है, लेकिन खारिज करते समय दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कहा, "विवेकपूर्ण विचार का प्रयोग केवल उस आदेश में प्रदर्शित होता है जिसमें मजिस्ट्रेट सोच-विचार को प्रदर्शित करने के आदेश के लिए इसमें कारण शामिल होना चाहिए, क्योंकि कारणों को दर्ज करना जरूरी है।"

    केस का शीर्षक: नागराज राव सी.एच. बनाम बैंगलोर राज्य के एस.पी.पी.

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    "ऐसी घटनाओं के कारण श्रद्धा और विश्वास घट रहा है": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपी साधु को जमानत देने से इनकार किया

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह एक नाबालिग से रेप के आरोपी एक बाबा को जमानत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने नोट किया कि बाबा पीड़िता के पिता को जानता था और उसके घर अक्सर आता-जाता रहता था।

    जस्टिस संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा, " इस मामले में एक असहाय लड़की को आरोपी ने कुचल दिया। यौन उत्पीड़न का कृत्य किसी भी लड़की के मन में, समाज में उसकी सामाजिक स्थिति जैसी भी हो, आघात और आतंक पैदा करता है ... वास्तव में, यह अपराध न केवल के पीड़िता के खिलाफ है, बल्‍कि यह पूरे समाज के खिलाफ है। यह न्यायालय से उचित निर्णय की मांग करता है और ऐसी मांग के लिए न्यायालय कानूनी मानकों के भीतर जवाब देने के लिए बाध्य हैं।"

    केस शीर्षक - भूतनाथ बनाम यूपी राज्य और अन्य

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    मरने से पहले दिया गया सिलसिलेवार और भरोसेमंद बयान आरोपी का दोष साबित करने के लिए पर्याप्त: केरल उच्च न्यायालय

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को मरने से पहले दिए गए बयान की स्वीकार्यता पर विचार किया और कहा कि अगर मरने से ‌दिए गए ‌स‌िलस‌िलेवार बयान विश्वसनीय पाए जाते हैं तो एक-दूसरे को विश्वसनीयता प्रदान करते हैं और अभियुक्तों के अपराध को साबित करते हैं।

    जस्टिस विनोद के चंद्रन और जस्टिस ज़ियाद रहमान की खंडपीठ ने मामले में एक अपील को खारिज कर दिया, जहां एक मरती हुई महिला ने लगातार चार बयान द‌िए थे, जिसमें यह संकेत था कि उसकी हत्या उसके बहनोई ने की है। कोर्ट ने फैसले की शुरुआत में कहा, "एक आदमी अपने बनाने वाले से मिलने पर झूठ नहीं बोलेगा।"

    केस शीर्षक: थैंकप्पन बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    झारखंड हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका में महाधिवक्ता राजीव रंजन मिश्रा और अतिरिक्त महाधिवक्ता सचिन कुमार को नोटिस जारी किया

    झारखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को एक याचिका में महाधिवक्ता राजीव रंजन मिश्रा और अतिरिक्त महाधिवक्ता सचिन कुमार को नोटिस जारी किया, जिसमें न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी को अलग करने की मांग करते हुए उनकी कथित टिप्पणी और आचरण को लेकर उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई थी।

    महाधिवक्ता राजीव रंजन मिश्रा और अतिरिक्त महाधिवक्ता सचिन कुमार के खिलाफ यह आवेदन उस घटना के बाद दायर किया गया है, जब उन्होंने न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी को यह कहते हुए एक मामले की सुनवाई से अलग करने की मांग की कि उन्होंने याचिकाकर्ता राज्य के वकील को सुना कि '200% मामला मंजूर होने जा रहा है।'

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    क्या मदरसों और अन्य धार्मिक शैक्षणिक संस्थानों को राज्य का अनुदान संविधान की धर्मनिरपेक्ष योजना के अनुरूप है? इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सरकार से जवाब मांगा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में मदरसा जैसे धार्मिक शिक्षण संस्थानों, संविधान के ढांचे के भीतर राज्य सरकार और ऐसे संस्थानों के बीच की भूमिका और परस्पर क्रिया संबंधित मुद्दों पर उसके द्वारा तैयार किए गए प्रश्नों के एक समूह पर विचार करने का निर्णय लिया।

    जस्टिस अजय भनोट की पीठ मदरसा बोर्ड द्वारा विधिवत मान्यता प्राप्त और राज्य सरकार द्वारा सहायता प्राप्त एक मदरसे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें छात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए शिक्षकों के अतिरिक्त पदों के सृजन की मांग की गई थी।

    केस का शीर्षक - सी/एम, मदरसा अंजुमन इस्लामिया फैजुल उलूम और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य

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    बैंक गारंटी की वैधता के दौरान उसके नकदीकरण पर अदालतें रोक नहीं लगा सकतीं : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि बैंक गारंटी की वैधता के दौरान उसके नकदीकरण पर अदालतें रोक नहीं लगा सकती हैं।

    न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने कहा कि, "हमारे विचार में न्यायालय किसी बैंक गारंटी को उसकी वैधता के दौरान नकदीकरण पर रोक नहीं लगा सकता है यदि भविष्य में कोई कारण बनता है। बैंक गारंटी का एक अर्थपूर्ण और कानूनी रूप से संबंधित है।"

    यूपी सहकारी संघ लिमिटेड बनाम सिंह कंसल्टेंट्स एंड इंजीनियर्स (पी) लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया, जिसमें यह आयोजित किया गया था कि बैंक गारंटी को न्यायालयों द्वारा मुक्त रूप से हस्तक्षेप किया जाना चाहिए, अन्यथा आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य में विश्वास अपूरणीय रूप से क्षतिग्रस्त हो जाएगा।

    केस का शीर्षक: एसपीएमएल इंफ्रा लिमिटेड बनाम हिताची इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एंड अन्य

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    यूपी का एक तहसील 2012 से बिना कोर्ट रूम के: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार को 6 महीने के भीतर निर्माण पूरा करने और उन्हे शुरू करने का निर्देश दिया

    यह देखते हुए कि प्रतापगढ़ जिले के लालगंज टाउन में न्यायालयों को खोलने का प्रश्न साल 2012 से लंबित है, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार और उच्च न्यायालय प्रशासन को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि लालगंज में अदालतें 6 महीने के भीतर काम करना शुरू कर दें।

    न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने प्रतिवादियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि न्यायालय कक्षों का निर्माण कार्य, 6 महीने के निर्धारित समय के भीतर पूरा किया जाए और सहायक कर्मचारियों सहित अधिकारियों को तैनात किया जाए ताकि न्यायिक कार्य प्रभावित न हो। .

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    "राज्य की ओर से कुछ भी संतुष्टिजनक तर्क नहीं रखे गए": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी 'लव जिहाद' कानून के तहत आरोपित एक व्यक्ति को जमानत दी

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के 'लव जिहाद' कानून के रूप में जाने जाने वाले उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश के तहत बुक किए गए एक व्यक्ति को यह देखते हुए जमानत दे दी कि शिकायतकर्ता और राज्य की ओर से जमानत न दिए जाने को लेकर कुछ भी ठोस तर्क नहीं दिया गया था।

    न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा- I की पीठ अपीलकर्ता/आरोपी मोतीराम की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर धारा - 342, 366, 384, 506 I.P.C,उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश एवं आईटी ऐक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था।

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    राष्ट्रीय झंडे को सूर्यास्त के बाद भी फहरता हुआ छोड़ना कदाचार हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहींः मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

    मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह कहा कि राष्ट्रीय ध्वज को सूर्यास्त के बाद भी फहराता हुआ छोड़ना, शायद जानबूझकर या अनजाने में किया गया भुलक्‍कड़पन, दुराचार हो, लेकिन यह इसे अवमाननापूर्ण कार्य नहीं कहा जा सकता है।

    जस्टिस एसए धर्माधिकारी की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि ध्वज संहिता निर्देश मात्र हैं, जिनमें कानून का बल नहीं है, इसलिए सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच राष्ट्रीय ध्वज को फहराना कानून द्वारा निषिद्ध नहीं है।

    केस का शीर्षक - गौरीशंकर गर्ग और अन्य बनाम मप्र राज्य

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    पत्नी ने मैट्रिमोनियल साइट पर प्रोफाइल अपलोड की: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 'मानसिक क्रूरता' के आधार पर पति को तलाक की मंजूरी दी

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने 'मानसिक क्रूरता' के आधार पर 36 वर्षीय पति को तलाक की मंजूरी दी।

    जस्टिस जीए सनप ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत साबित करते हैं कि प्रतिवादी-पत्नी ने अपीलकर्ता-पति को मानसिक पीड़ा दी जिससे उसके लिए उसके साथ रहना असंभव हो गया। उन्होंने कहा कि यह साबित हो गया है कि मानसिक क्रूरता ऐसी है कि इससे अपीलकर्ता के स्वास्थ्य को नुकसान होने की पूरी संभावना है। आगे कहा कि फैमिली कोर्ट पिछले साल पति की तलाक की याचिका को खारिज करते हुए दो मैट्रिमोनियल वेबसाइटों पर पत्नी के विवाह प्रोफाइल पर विचार करने में विफल रहा।

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    कार्यस्थल पर मेल सुपीरियर के साथ गलतफहमी से यौन उत्पीड़न के अपराध का गठन नहीं होता : मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने लोयोला कॉलेज सोसाइटी द्वारा एक पूर्व प्रिंसिपल के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वाली एक बर्खास्त महिला कर्मचारी को 64.3 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश देने वाले तमिलनाडु महिला आयोग के आदेश को रद्द कर दिया।

    हाईकोर्ट द्वारा बुधवार को सुनाए गए फैसले में कहा गया कि व्यक्तिगत झगड़े, गलतफहमी और पुरुष सहकर्मी के साथ नहीं मिलने से यौन उत्पीड़न नहीं होगा। न्यायमूर्ति एन. सतीश कुमार ने पाया कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की धारा 3 के प्रावधानों के अनुसार यौन उत्पीड़न का कोई मामला नहीं बनता है।

    केस शीर्षक: मैरी राजशेखरन बनाम मद्रास विश्वविद्यालय

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    ईपीएफ पेंशन : कर्मचारी पेंशन योजना के तहत गुमशुदा व्यक्ति के बाद आश्रित को लाभ का दावा करने के लिए पुलिस प्रमाण पत्र जरूरी

    मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक महिला को परित्यक्त पति की ईपीएफ पेंशन योजना के लाभों का दावा करने के लिए एक FIR दर्ज कराना और यह पुलिस प्रमाण पत्र प्राप्त करना आवश्यक है कि वह जीवित है या नहीं।

    जस्टिस एस वैद्यनाथन की एकल पीठ ने एक महिला द्वारा दायर रिट याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की, जो अपने बेटे की मृत्यु के बाद कर्मचारी पेंशन योजना के तहत पेंशन लाभ की मांग कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके पति ने 2005 में परिवार छोड़ दिया था। इसलिए, उसने ईपीएफ अधिकारियों को अपने बेटे द्वारा किए गए नामांकन के अनुसार अपने पति के विवरण पर जोर दिए बिना पेंशन लाभ जारी करने के लिए निर्देश देने की प्रार्थना की।

    शीर्षक: एस रेवती बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त, ईपीएफओ, चेन्नई

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    'लोगों को विश्वास करने, कल्पना करने और विचार करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए': मद्रास हाईकोर्ट ने ज्योतिषीय अंधविश्वास के खिलाफ जन जागरूकता फैलाने की मांग वाली याचिका खारिज की

    मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी, जिसमें ज्योतिषीय अंधविश्वासों के खिलाफ संबंधित अधिकारियों को व्यापक रूप से जन जागरूकता फैलाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि लोगों को अपनी ज्योतिषीय मान्यताओं पर विश्वास करने, कल्पना करने और विचार करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

    केस का शीर्षक: ए.के.हेमराज बनाम तमिलनाडु सरकार

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    पीड़ित को आरोपी को अपर्याप्त सजा के आधार पर सीआरपीसी के तहत अपील दाखिल करने का कोई अधिकार नहीं: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो पीड़ित को आरोपी को दी गई सजा को बढ़ाने की मांग करते हुए अपील दाखिल करने का अधिकार प्रदान करता है, इस आधार पर कि आदेश में अपर्याप्त सजा सुनाई गई है।

    न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह और न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि अपर्याप्त सजा के खिलाफ अध्याय XXIX के तहत निर्धारित एकमात्र प्रावधान धारा 377 है जो राज्य सरकार द्वारा सजा को बढ़ाने के लिए अपील दाखिल करने का प्रावधान करता है।

    केस का शीर्षक - संजय कुमार @ भोंडू बनाम बिहार राज्य एंड अन्य

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