मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण को 27% तक बढ़ाने पर लगी रोक को हटाने से इनकार किया

LiveLaw News Network

4 Sep 2021 7:40 AM GMT

  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण को 27% तक बढ़ाने पर लगी रोक को हटाने से इनकार किया

    Madhya Pradesh High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने वाले अध्यादेश पर लगी रोक को हटाने से इनकार कर दिया है। राज्य सरकार ने पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश को प्रभावित करने वाले स्टे को हटाने के लिए कोर्ट का रुख किया था।

    मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायमूर्ति वीके शुक्ला की खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले को अंतिम सुनवाई के लिए 20 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।

    पृष्ठभूमि

    19 मार्च, 2019 को मध्य प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1994 को प्रख्यापित किया गया था, जिसमें ओबीसी कैटेगरी के आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया गया।

    हालांकि बाद में अध्यादेश को निरस्त कर दिया गया और मध्य प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2019 के साथ प्रतिस्थापित किया गया, जो ओबीसी कैटेगरी के आरक्षण के बढ़े प्रतिशत को प्रभावी करने के लिए 1994 के अधिनियम की धारा 4 (ए) और (बी) में संशोधन करता है।

    मौजूदा याचिका को मूल रूप से अध्यादेश के खिलाफ दायर किया गया था, हालांकि अंतरिम राहत दिए जाने के बाद, संशोधन आया और इस प्रकार, याचिका 2019 के संशोधन की वैधता को चुनौती देती है। याचिकाकर्ता का मामला था कि यदि 27% की वृद्धि पर विचार किया जाए, तो कुल आरक्षण 63% हो जाएगा, जिसकी संवैधानिक रूप अनुमति नहीं है।

    कोर्ट ने अध्यादेश पर रोक लगाने का आदेश देते हुए निर्देश दिया कि प्रवेश में ओबीसी वर्ग के लिए 14% से अधिक आरक्षण नहीं किया जाना चाहिए। अध्यादेश के खिलाफ कई अन्य याचिकाएं भी दायर की गईं, जिन्हें मुख्य याचिका से जोड़ दिया गया। अन्य सभी याचिकाओं में भी इसी आदेश का पालन किया गया।

    इस प्रकार 28 जनवरी, 2020 के एक आदेश में यह निर्देश दिया गया कि लोक सेवा आयोग के पास चयन प्रक्रिया जारी रखने का विकल्प है, इसे अंतिम रूप नहीं दिया जाएगा, और हाईकोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी।

    हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 103वें संशोधन अधिनियम, 2019 के अनुसार सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए बनाए गए 10% आरक्षण के संबंध में अंतरिम आदेश लागू नहीं होगा। राज्य ने याचिका को खारिज करने के लिए वर्तमान आवेदन दायर किया है।

    प्रस्तुतियां और निष्कर्ष

    भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव ने राज्य की ओर से उक्त अंतरिम आदेशों को हटाने की मांग करते हुए तर्क दिया कि एक अधिनियम की संवैधानिक वैधता के संबंध में हमेशा एक अनुमान होता है। यह तर्क दिया गया कि जब तक अधिनियम को अल्ट्रा वायर्स नहीं घोषित नहीं किया जाता है, तब तक इसके प्रभाव और संचालन पर रोक नहीं लग सकती है।

    मेहता ने यह भी तर्क दिया कि अध्यादेश के प्रभाव को रोकने वाले आदेश में इसके समर्थन में कोई कारण दर्ज नहीं किया गया है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि महाधिवक्ता द्वारा दिए गए सुझाव पर 31 जनवरी 2020 का आदेश पारित किया गया है। उन्होंने आगे प्रस्ताव दिया कि न्यायालय स्थगन आदेशों को इस शर्त में संशोधित कर सकता है कि ओबीसी के पक्ष में आरक्षण के बढ़े हुए कोटे की सीमा तक नियुक्तियां याचिकाओं के परिणाम के अधीन रह सकती हैं।

    याचिकाकर्ताओं के मुख्य वकील एडवोकेट आदित्य सांघी ने आवेदन का विरोध करते हुए तर्क दिया कि हालांकि आदेशों में कारणों का विस्तार नहीं किया गया है, कोर्ट ने आदेश पारित करने से पहले मामले को काफी हद तक सुना था। इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि इस स्तर पर अनुच्छेद 226 (3) को लागू नहीं किया जा सकता है। उन्होंने अदालत से मामले की सुनवाई और अंतत: फैसला करने की प्रार्थना की।

    यह देखते हुए कि अंतरिम आदेश पिछले ढाई साल से लागू हैं, अदालत ने स्थगन आदेश को रद्द करने के बजाय सभी रिट याचिकाओं पर आखिरकार सुनवाई करने का फैसला किया। अदालत ने अगली तारीख 20 सितंबर, 2021 तय करते हुए पक्षों को अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया।

    शीर्षक: आशिता दुबे बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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