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बलात्कार और छेड़छाड़ के झूठे मामलों में किसी व्यक्ति को फंसाने की लगातार धमकियां आत्महत्या के लिए उकसाने के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
बलात्कार और छेड़छाड़ के झूठे मामलों में किसी व्यक्ति को फंसाने की लगातार धमकियां आत्महत्या के लिए उकसाने के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए अपने आदेश में कहा कि बलात्कार और छेड़छाड़ के झूठे मामले में मृतक/पीड़ित को फंसाने की आरोपी द्वारा लगातार धमकी देना आत्महत्या के लिए उकसाने के समान हो सकता है।धारा 482 सीआरपीसी के तहत आरोपी द्वारा प्रस्तुत आवेदन स्वीकार करने से इनकार करते हुए जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकल पीठ ने कहा कि मृतक पर झूठे मामले थोपकर उसे जेल भेजने की धमकी को हल्के में नहीं लिया जा सकता।पीठ ने पाया कि ये धमकियां कोई एक बार की घटना नहीं थीं। ये प्रथम दृष्टया मृतक के...

सरकारी कर्मचारी की मृत्यु परिवार के लिए अनुकंपा नियुक्ति की गारंटी नहीं, वित्तीय कठिनाई साबित होनी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
सरकारी कर्मचारी की मृत्यु परिवार के लिए अनुकंपा नियुक्ति की गारंटी नहीं, वित्तीय कठिनाई साबित होनी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सेवा में रहते हुए किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिवार को स्वतः ही अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार नहीं मिल जाता। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि परिवार की वित्तीय स्थिति की जांच की जानी चाहिए। नौकरी केवल तभी दी जानी चाहिए, जब परिवार इसके बिना संकट का सामना नहीं कर सकता, बशर्ते कोई प्रासंगिक योजना या नियम हो।जस्टिस राजेश सेखरी ने जम्मू-कश्मीर राज्य हथकरघा विकास निगम में अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाले दो व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका...

गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग बच्चों को जहर देने के मामले में पिता की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी; झूठी गवाही के लिए पत्नी के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई का आदेश दिया
गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग बच्चों को जहर देने के मामले में पिता की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी; झूठी गवाही के लिए पत्नी के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई का आदेश दिया

गुजरात हाईकोर्ट ने चाय, बिस्कुट और पानी में जहर देकर अपने दो नाबालिग बच्चों की हत्या करने के दोषी व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी।जस्टिस ए.एस. सुपेहिया और जस्टिस विमल के. व्यास की खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता ने बिना किसी उद्देश्य, कारण या उकसावे के जघन्य अपराध किया गया।खंडपीठ ने कहा,"इस प्रकार, साक्ष्यों के समग्र मूल्यांकन पर हम इस दृढ़ राय के हैं कि अपीलकर्ता ने बिना किसी उद्देश्य, कारण या किसी भी प्रकार के उकसावे के अपने नाबालिग बच्चों की हत्या करने का जघन्य अपराध किया। बच्चों को...

अभियोजन पक्ष के गवाहों की पर्याप्त जांच के बावजूद एफआईआर रद्द करने की याचिका सुनवाई योग्य बनी हुई है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
अभियोजन पक्ष के गवाहों की पर्याप्त जांच के बावजूद एफआईआर रद्द करने की याचिका सुनवाई योग्य बनी हुई है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब अभियोजन पक्ष के महत्वपूर्ण गवाहों की जांच हो चुकी है तो धारा 482 सीआरपीसी के तहत रद्द करने की याचिका अभी भी हाईकोर्ट के समक्ष सुनवाई योग्य होगी।जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा,"यह पूर्ण सिद्धांत के रूप में नहीं कहा जा सकता कि एक बार पर्याप्त/महत्वपूर्ण अभियोजन पक्ष के गवाहों की जांच हो जाने के बाद हाईकोर्ट सीआरपीसी, 1973 की धारा 482 के तहत एफआईआर (और उससे उत्पन्न होने वाली कार्यवाही) रद्द करने की याचिका पर विचार करने की अपनी शक्तियों को खो देता...

अरविंद केजरीवाल द्वारा किए गए व्यापक प्रचार अभियान से पता चलता है कि उन्हें मेडिकल आधार पर जमानत पाने का हक नहीं: दिल्ली कोर्ट
अरविंद केजरीवाल द्वारा किए गए व्यापक प्रचार अभियान से पता चलता है कि उन्हें मेडिकल आधार पर जमानत पाने का हक नहीं: दिल्ली कोर्ट

शराब नीति मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने से इनकार करते हुए दिल्ली की अदालत ने बुधवार को कहा कि चुनाव के दौरान उनके द्वारा किए गए व्यापक प्रचार से पता चलता है कि उन्हें कोई गंभीर या जानलेवा बीमारी नहीं है, जिससे उन्हें PMLA के तहत जमानत मिल सके।केजरीवाल ने मेडिकल आधार पर 7 दिनों की अंतरिम जमानत मांगी थी।राउज एवेन्यू कोर्ट की स्पेशल जज कावेरी बावेजा ने कहा कि मधुमेह या यहां तक ​​कि टाइप-2 मधुमेह को इतनी गंभीर बीमारी नहीं कहा जा सकता कि केजरीवाल को राहत का दावा किया जा...

S.13 Hindu Marriage Act | क्रूरता का पता लगने के बाद परित्याग के सबूत की परवाह किए बिना तलाक दिया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
S.13 Hindu Marriage Act | क्रूरता का पता लगने के बाद परित्याग के सबूत की परवाह किए बिना तलाक दिया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक बार फैमिली कोर्ट द्वारा क्रूरता के बारे में पता लगने के बाद पक्षकारों के बीच विवाह को भंग कर दिया जाना चाहिए। न्यायालय ने माना कि केवल इसलिए कि परित्याग साबित नहीं हुआ है, विवाह को बहाल नहीं किया जा सकता।न्यायालय ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 13(1) में दिए गए तलाक के आधार परस्पर अनन्य हैं। यदि इनमें से कोई भी आधार बनता है तो तलाक दिया जाना चाहिए। इसने माना कि प्रत्येक आधार के बाद 'या' शब्द का उपयोग उन्हें विभाजक बनाता है।हिंदू विवाह...

कार्यालय के लिए अस्थायी आवास के लिए AAP की याचिका पर छह सप्ताह के भीतर निर्णय लें: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा
कार्यालय के लिए अस्थायी आवास के लिए AAP की याचिका पर छह सप्ताह के भीतर निर्णय लें: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह राष्ट्रीय राजधानी में स्थायी कार्यालय के निर्माण के लिए भूमि आवंटित होने तक अस्थायी आवास के लिए आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रतिनिधित्व पर छह सप्ताह के भीतर निर्णय ले।AAP को 15 जून तक राउज एवेन्यू में अपना वर्तमान पार्टी कार्यालय खाली करना है।जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि AAP को दीन दयाल उपाध्याय (डीडीयू) मार्ग पर स्थित अपने किसी मंत्री के घर को अपना अस्थायी कार्यालय बनाने का कोई अधिकार नहीं है।हालांकि, न्यायालय ने कहा कि AAP...

यह गलत धारणा है कि हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता न होने पर अग्रिम जमानत दी जा सकती है: केरल हाईकोर्ट
यह गलत धारणा है कि हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता न होने पर अग्रिम जमानत दी जा सकती है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि यह आम गलत धारणा है कि हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता न होने पर अग्रिम जमानत दी जा सकती है। न्यायालय ने कहा कि अग्रिम जमानत आवेदन पर निर्णय लेते समय हिरासत में पूछताछ केवल एक कारक है।जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा कि न्यायालय को अग्रिम जमानत आवेदनों पर विचार करते समय यह विचार करना होगा कि क्या अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है, अपराध की प्रकृति और दंड की गंभीरता क्या है।कोर्ट ने कहा,“इसके अलावा, यह मानते हुए भी कि ऐसा मामला है, जिसमें अभियुक्त से हिरासत में...

अपील के 30 साल बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने कार्यवाही में देरी का हवाला देते हुए अपहरण मामले में सजा घटाकर 5 दिन की
अपील के 30 साल बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने कार्यवाही में देरी का हवाला देते हुए अपहरण मामले में सजा घटाकर 5 दिन की

राजस्थान हाईकोर्ट ने 1992 के अपहरण मामले में दोषी की अपील पर निर्णय लेने में 30 साल की देरी का हवाला देते हुए सजा कम की।जस्टिस मनोज कुमार गर्ग की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता-दोषी ने "लंबे समय तक चले मुकदमे के कारण मानसिक पीड़ा और आघात झेला है।" इस प्रकार 2 साल के कठोर कारावास की सजा को घटाकर पहले से ही भुगती गई अवधि, यानी 5 दिन कर दिया।अपीलकर्ता के खिलाफ 1992 में नाबालिग लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट के संबंध में आईपीसी की धारा 363 और 366-ए के तहत अपराध के लिए मामला दर्ज किया गया। अपीलकर्ता को दोषी...

प्रयागराज के वकील 58% कार्य दिवसों तक हड़ताल पर रहे: हाईकोर्ट ने जिला बार एसोसिएशन को अवमानना पर कारण बताओ नोटिस जारी किया
प्रयागराज के वकील 58% कार्य दिवसों तक हड़ताल पर रहे: हाईकोर्ट ने जिला बार एसोसिएशन को 'अवमानना' पर कारण बताओ नोटिस जारी किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला न्यायालय बार एसोसिएशन, प्रयागराज के अध्यक्ष और सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया कि 1 जुलाई 2023 से 30 अप्रैल 2024 के बीच 127 दिनों तक जिला न्यायालय प्रयागराज की कार्यवाही में "बाधा" डालने के लिए उनके खिलाफ अवमानना ​​की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की पीठ ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, यूपी बार काउंसिल के अध्यक्ष, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और अधिवक्ता संघ से "उत्तर प्रदेश के जिला न्यायालयों...

फिल्म एक्टर के लिए स्मारक का निर्माण जनहित याचिका का विषय नहीं हो सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट
फिल्म एक्टर के लिए स्मारक का निर्माण जनहित याचिका का विषय नहीं हो सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को जनहित याचिका खारिज की। उक्त याचिका में राज्य सरकार को दिवंगत कन्नड़ फिल्म एक्टर डॉ. विष्णुवर्धन के स्मारक के निर्माण के लिए 10 गुंटा भूमि देने का निर्देश देने की मांग की गई। यह भूमि उस भूमि पर है, जहां 2009 में उनका अंतिम संस्कार किया गया था।चीफ जस्टिस एन.वी. अंजारिया और जस्टिस के.वी. अरविंद की खंडपीठ ने कहा,“फिल्म एक्टर के स्मारक का निर्माण जनहित याचिका का विषय नहीं बन सकता। यह कल्पना करना कठिन है कि याचिकाकर्ता द्वारा उक्त उद्देश्य के लिए भूमि देने पर जोर देने से...

यदि कोई कानूनी बाधा न हो तो रिटायरमेंट लाभ प्राप्त करना कर्मचारी का संवैधानिक और मौलिक अधिकार: झारखंड हाईकोर्ट
'यदि कोई कानूनी बाधा न हो तो रिटायरमेंट लाभ प्राप्त करना कर्मचारी का संवैधानिक और मौलिक अधिकार': झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पेंशन लाभ कर्मचारियों का संवैधानिक और मौलिक अधिकार है, न कि अधिकारियों का विवेकाधीन अधिकार। न्यायालय ने ऐसे कर्मचारी से रिटायरमेंट लाभ रोके जाने पर हैरानी व्यक्त की, जिसका बर्खास्तगी आदेश विभाग की ओर से किसी अपील या संशोधन के बिना अपीलीय प्राधिकारी द्वारा रद्द कर दिया गया।जस्टिस एसएन पाठक ने मामले पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की,"यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि कानून के किस प्राधिकार के तहत किसी कर्मचारी के संपूर्ण स्वीकृत रिटायरमेंट लाभ रोके जा सकते हैं, जब...

BSF Act 1968 | कमांडेंट सुरक्षा बल न्यायालय में सुनवाई के बिना BSF कर्मियों को बर्खास्त कर सकते हैं, बशर्ते BSF नियमों में उल्लिखित प्रक्रियाओं का पालन किया जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
BSF Act 1968 | कमांडेंट सुरक्षा बल न्यायालय में सुनवाई के बिना BSF कर्मियों को बर्खास्त कर सकते हैं, बशर्ते BSF नियमों में उल्लिखित प्रक्रियाओं का पालन किया जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सीमा सुरक्षा बल (BSF) के किसी सदस्य को बर्खास्त करने की कमांडेंट की शक्ति स्वतंत्र है। इसके लिए सुरक्षा बल न्यायालय द्वारा पूर्व दोषसिद्धि की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते कि BSF नियम, 1969 के नियम 22 में उल्लिखित प्रक्रियाओं का पालन किया जाए।बर्खास्तगी आदेश जारी करने में कमांडेंट की क्षमता को स्पष्ट करते हुए जस्टिस संजय धर ने कहा,“नियमों के नियम 177 के साथ अधिनियम की धारा 11(2) के तहत कमांडेंट की किसी अधिकारी या अधीनस्थ अधिकारी के अलावा किसी अन्य...

पदोन्नति के लिए बेदाग रिकॉर्ड जरूरी, आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे कर्मचारी को कार्यवाही लंबित रहने के दौरान पदोन्नति का हक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
पदोन्नति के लिए बेदाग रिकॉर्ड जरूरी, आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे कर्मचारी को कार्यवाही लंबित रहने के दौरान पदोन्नति का हक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे सरकारी कर्मचारी कार्यवाही लंबित रहने के दौरान पदोन्नति का दावा नहीं कर सकते।जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने कहा कि पदोन्नति के लिए स्वच्छ और कुशल प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारी का कम से कम बेदाग रिकॉर्ड होना चाहिए।अदालत ने आगे कहा कि कदाचार का दोषी पाए गए कर्मचारी को अन्य कर्मचारियों के बराबर नहीं रखा जा सकता और उसके मामले को अलग तरह से देखा जाना चाहिए। इसलिए पदोन्नति के मामले में उसके साथ अलग तरह से व्यवहार...

आंगनवाड़ी केंद्र Gratuity Act के तहत एस्टेब्लिशमेंट के दायरे में आते हैं: त्रिपुरा हाईकोर्ट
आंगनवाड़ी केंद्र Gratuity Act के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' के दायरे में आते हैं: त्रिपुरा हाईकोर्ट

बीना रानी पॉल एवं अन्य बनाम त्रिपुरा राज्य एवं अन्य के मामले में जस्टिस एस. दत्ता पुरकायस्थ की त्रिपुरा हाईकोर्ट की एकल पीठ ने माना कि आंगनवाड़ी केंद्र ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 (Gratuity Act) के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' के दायरे में आते हैं। इस प्रकार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी सहायिका ग्रेच्युटी की हकदार हैं।मामले की पृष्ठभूमियाचिकाकर्ता गहन बाल विकास सेवा योजना (ICDS योजना) के तहत विभिन्न आंगनवाड़ी केंद्रों पर अलग-अलग तिथियों पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (AWW) और आंगनवाड़ी सहायिका (AWH)...

सर्विस में आने से पहले पहले बच्चे का जन्म होना AAI विनियमों के तहत सर्विस में आने के बाद मातृत्व अवकाश लेने में बाधा नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
सर्विस में आने से पहले पहले बच्चे का जन्म होना AAI विनियमों के तहत सर्विस में आने के बाद मातृत्व अवकाश लेने में बाधा नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस ए.एस. चंदुरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण श्रमिक संघ एवं अन्य बनाम श्रम मंत्रालय के अवर सचिव एवं अन्य के मामले में माना है कि सेवा में आने से पहले पहले बच्चे का जन्म होना सेवा में आने के बाद मातृत्व अवकाश लेने पर विचार करने के लिए प्रासंगिक नहीं है। AAI विनियमों के तहत मातृत्व लाभ विनियमन का उद्देश्य जनसंख्या पर अंकुश लगाना नहीं है, बल्कि सेवा अवधि के दौरान केवल दो अवसरों पर ऐसा लाभ देना है।मामले की पृष्ठभूमिकनकावली राजा अर्मुगम...

पत्नी और बच्चे को छोड़ने वाले पति को वित्तीय स्थिति की परवाह किए बिना भरण-पोषण देना होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट
पत्नी और बच्चे को छोड़ने वाले पति को वित्तीय स्थिति की परवाह किए बिना भरण-पोषण देना होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने पति द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी। उक्त याचिका में ट्रायल कोर्ट द्वारा अलग हुए पति और नाबालिग बच्चे को दिए गए अंतरिम भरण-पोषण भत्ते पर सवाल उठाया गया था।जस्टिस सचिन शंकर मगदुम की एकल पीठ ने पति की इस दलील को खारिज कर दिया कि वह बेरोजगार है, क्योंकि उसकी नौकरी चली गई है। वह भरण-पोषण देने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि उसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है।न्यायालय ने कहा,"यदि याचिकाकर्ता ने अपनी वित्तीय स्थिति की परवाह किए बिना पत्नी को छोड़ दिया है तो वह अपनी पत्नी और...