सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

6 Feb 2022 10:00 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (31 जनवरी, 2022 से लेकर 4 फरवरी, 2022 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    समय से पहले सेवानिवृत्ति के आदेश के लिए पूरे सेवा रिकॉर्ड पर विचार किया जाएगा, यद्यपि हाल के एसीआर का भी वजूद होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि समय से पहले सेवानिवृत्ति का आदेश संपूर्ण सेवा रिकॉर्ड के आधार पर पारित करना आवश्यक है। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने आगे कहा कि हालिया रिपोर्टों में अपना वजूद होगा।

    कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति के इस तरह के आदेश को कोर्ट द्वारा केवल इस कारण रद्द करने के लिए उत्तरदायी नहीं है कि बगैर पत्राचार वाली प्रतिकूल टिप्पणियों को ध्यान में रखा गया था।

    केस का नाम: केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल बनाम एचसी (जीडी) ओम प्रकाश

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    किसी अवार्ड को स्पष्ट तौर पर अवैध कहा जा सकता है जहां मध्यस्थ ट्रिब्यूनल अनुबंध के संदर्भ में कार्य करने में विफल रहा है या अनुबंध की विशिष्ट शर्तों की अनदेखी की है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (1 फरवरी 2022) को पारित एक फैसले में कहा कि मध्यस्थ की भूमिका अनुबंध की शर्तों के भीतर मध्यस्थता करने की है, न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति अभय एस ओक की पीठ ने कहा कि एक अवार्ड को स्पष्ट तौर पर अवैध कहा जा सकता है जहां मध्यस्थ ट्रिब्यूनल अनुबंध के संदर्भ में कार्य करने में विफल रहा है या अनुबंध की विशिष्ट शर्तों की अनदेखी की है।

    केस : इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम श्री गणेश पेट्रोलियम राजगुरुनगर

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    लोक अदालत द्वारा पारित कोई अवार्ड समझौता डिक्री नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लोक अदालत द्वारा पारित एक अवार्ड समझौता डिक्री नहीं है। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने अपने फैसले में यह टिप्पणी करते हुए कहा कि कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 20 के तहत लोक अदालत द्वारा पारित एक अवार्ड मुआवजे के पुनर्निर्धारण का आधार नहीं हो सकता जैसा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत धारा 28 ए के तहत विचार किया गया है।

    केस: न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) बनाम यूनुस

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    लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 28 ए के तहत मुआवजे के पुनर्निर्धारण का आधार नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 20 के तहत लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 28 ए के तहत मुआवजे के पुनर्निर्धारण का आधार नहीं हो सकता है।

    न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा , लोक अदालत द्वारा पारित किए गए अवार्ड को भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के भाग III के तहत पारित एक अवार्ड नहीं कहा जा सकता है, जहां फैसले पर विचार किया जाता है।

    केस: न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) बनाम यूनुस

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    सेना अधिनियम का इरादा गंभीर अपराधों के लिए भी कम सजा देकर सैन्य कर्मियों की रक्षा करना नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेना अधिनियम का इरादा गंभीर अपराधों के लिए भी कम सजा देकर सैन्य कर्मियों की रक्षा करना नहीं है।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने सिक्किम हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ सिक्किम राज्य द्वारा दायर एक अपील की अनुमति देते हुए कहा, "अगर यह विधायिका का इरादा था - कि गंभीर अपराधों के लिए भी कम सजा देकर सेना अधिनियम के अधीन व्यक्तियों की रक्षा करनी है - तो अधिनियम कोर्ट-मार्शल और सामान्य आपराधिक अदालतों के समवर्ती क्षेत्राधिकार के लिए बिल्कुल भी प्रदान नहीं करता। " हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि सैन्य अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामला कोर्ट-मार्शल को सौंप दिया जाए।

    केस : सिक्किम राज्य बनाम जसबीर सिंह

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    राज्य की प्रत्येक कार्रवाई को तर्कशीलता और तर्कसंगतता की कसौटी द्वारा निर्देशित किया जाना आवश्यक : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को माना कि राज्य के साधन अचानक, अपनी मर्जी और पसंद पर उनके द्वारा लिए गए एक सुसंगत रुख को नहीं बदल सकते हैं, खासकर जब यह मनमाना, तर्कहीन, अनुचित और सार्वजनिक हित के खिलाफ हो।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई ने बिजली वितरण कंपनियों द्वारा विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण , नई दिल्ली के आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसने आंध्र प्रदेश विद्युत नियामक आयोग को उसके समक्ष पक्षकारों द्वारा दायर दो आवेदनों का निपटान करने का निर्देश दिया था। विवाद में अपीलकर्ताओं के आचरण से नाखुश न्यायालय ने उन पर 5,00,000 (पांच लाख) रुपये का जुर्माना लगाया।

    केस : दक्षिणी विद्युत वितरण पावर कंपनी लिमिटेड आंध्र प्रदेश (APSPDCL) और अन्य बना मैसर्स हिंदुजा नेशनल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य

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    यदि कमांडिंग ऑफिसर सेना अधिनियम की धारा 125 के तहत कोर्ट-मार्शल शुरू करने के लिए विवेक का प्रयोग नहीं करता तो क्रिमिनल कोर्ट सेना कर्मी के खिलाफ ट्रायल चला सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि यदि कमांडिंग ऑफिसर सेना अधिनियम की धारा 125 के तहत अपराध के संबंध में कोर्ट-मार्शल शुरू करने के लिए विवेक का प्रयोग नहीं करता है, तो आपराधिक अदालत के पास सेना के कर्मियों के खिलाफ ट्रायल चलाने का अधिकार क्षेत्र होगा।

    कोर्ट ने कहा कि यदि नामित अधिकारी कोर्ट-मार्शल के सामने कार्यवाही शुरू करने के लिए इस विवेक का प्रयोग नहीं करता है, तो सेना अधिनियम सामान्य आपराधिक अदालत द्वारा अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में हस्तक्षेप नहीं करेगा.

    केस : सिक्किम राज्य बनाम जसबीर सिंह

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    धारा 482 सीआरपीसी- रद्द करने के क्षेत्राधिकार का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब एफआईआर में आरोपों को वैसे ही पढ़ने पर, जैसे वो हैं, कोई अपराध न हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत रद्द करने के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब प्राथमिकी में आरोपों को वैसे ही पढ़ने पर, जैसे वो हैं, कोई अपराध नहीं बनता है।

    इस मामले में शिकायतकर्ता का आरोप था कि शादी के वक्त उसकी सास और उसकी बेटी के देवर ने उसे स्त्रीधन सौंपने के लिए उकसाया था, जो लगभग 5 किलो चांदी के बर्तन, लगभग 400 ग्राम सोने के आभूषण, 1,00,000 रुपये के मूल्य के बर्तन और अन्य सामान थे।

    केस शीर्षक: वीना मित्तल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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    हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) के तहत वसीयत के माध्यम से एक महिला को एक सीमित संपत्ति संपूर्ण हो सकती है अगर संपत्ति भरण-पोषण के लिए दी जाती है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) वसीयत के माध्यम से एक महिला को एक सीमित संपत्ति उत्तरदान करने पर रोक नहीं लगाती है; लेकिन अगर पत्नी को उसके भरण-पोषण के लिए सीमित संपत्ति दी जाती है, तो यह अधिनियम की धारा 14(1) के तहत एक संपूर्ण संपत्ति में परिपक्व हो जाएगी।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा, "हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 (1) का उद्देश्य यह नहीं हो सकता है कि एक हिंदू पुरुष जिसके पास स्व-अर्जित संपत्ति है, वह एक महिला को सीमित संपत्ति देने वाली वसीयत को निष्पादित करने में असमर्थ है यदि भरण-पोषण सहित अन्य सभी पहलुओं का ध्यान रखा जाता है।"

    केस : जोगी राम बनाम सुरेश कुमार

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    [वीसी के माध्यम से बाल गवाहों की गवाही की रिकॉर्डिंग] नालसा को रिमोट प्वाइंट को-ऑर्डिनेटर्स को मानदेय के रूप में प्रतिदिन 1500 रुपये का भुगतान करना होगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गत 24 जनवरी को बाल पीड़ितों/मानव तस्करी के उन गवाहों की गवाही की वर्चुअल रिकॉर्डिंग से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) से 'रिमोट प्वाइंट को-ऑर्डिनेटर्स (आरपीसी)' को दिए जाने वाले मानदेय को वहन करने के लिए पूछा था, जिन्हें ट्रायल कोर्ट में सबूत देने के लिए राज्यों या जिलों की यात्रा करने की आवश्यकता होती है।

    [केस टाइटल: संतोष विश्वनाथ शिंदे बनाम भारत सरकार| रिट याचिका (क्रिमिनल) संख्या 274 /2020]

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    बिना पुष्टिकरण के सिर्फ मृत्यु से पहले बयान के आधार पर ही दोष सिद्ध हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिना पुष्टिकरण के सिर्फ मृत्यु से पहले बयान के आधार पर ही दोष सिद्ध हो सकता है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा, "अगर कोर्ट संतुष्ट है कि मृत्यु से पहले के बयान सही और स्वैच्छिक हैं, तो वह बिना किसी पुष्टि के सजा का आधार बन सकती है।"

    केस : यूपी राज्य बनाम वीरपाल

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    [भूमि अधिग्रहण] मुआवजे के उद्देश्य से किसी भूमि का बाजार मूल्य निर्धारित करते समय विकसित क्षेत्र से निकटता प्रासंगिक कारक: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने देखा है कि किसी भूमि का बाजार मूल्य विकसित क्षेत्र और सड़क आदि से निकटता सहित विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिए और यह अकेले भूमि की प्रकृति नहीं है जो ज़मीन का बाजार मूल्य का निर्धारण करती है।

    न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ कुछ जमींदारों द्वारा दायर एक अपील में अपना आदेश दिया है, जिसमें अधिग्रहित भूमि के मुआवजे का आकलन 56,500 रुपये प्रति हेक्टेयर के रूप में किया गया था।

    केस का शीर्षक: मधुकर पुत्र गोविंदराव कांबले एंड अन्य बनाम विदर्भ सिंचाई विकास निगम एंड अन्य।

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    ऐलिबी की याचिका को स्‍थापित करने के लिए साबित करने का भार आरोपी पर: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अन्यत्रता (alibi) की याचिका को स्थापित करने का भार अभियुक्तों पर अधिक है। ज‌स्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि ऐलिबी की याचिका को निश्चित रूप से साबित करने की आवश्यकता है ताकि घटना के स्थान पर आरोपी की उपस्थिति की संभावना को पूरी तरह से हटाया जा सके ।

    केस शीर्षकः पप्पू तिवारी बनाम झारखंड राज्य

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    उचित संदेह से परे मामले को साबित करने का मतलब बरी होने का बहाना ढूंढना नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में हत्या के एक आरोपी की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए कहा, "मामले को उचित संदेह से परे साबित करने के लिए जो परीक्षण लागू किया जाता है, उसका मतलब यह नहीं है कि किसी तरह से बरी करने के लिए कोई बहाना ढूंढना चाहिए।"

    निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत पप्पू तिवारी, संजय राम, उदय पाल, अजय पाल, पिंटू तिवारी और लॉ तिवारी को दोषी करार दिया था। झारखंड हाईकोर्ट ने एक सामान्य निर्णय के माध्यम से सभी छह दोषियों के खिलाफ निचली अदालत के दोषसिद्धि के फैसले की पुष्टि की।

    केस शीर्षकः पप्पू तिवारी बनाम झारखंड राज्य

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    यदि अनुशासनात्मक प्राधिकारी के निष्कर्ष दुर्भावनापूर्ण या विकृत हों, सबूतों पर आधारित ना हों या अप्रासंगिक सामग्री पर विचार वाले हों तो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उपचार उपलब्ध हैं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि जब अनुशासनात्मक प्राधिकारी के निष्कर्ष दुर्भावनापूर्ण या विकृत होते हैं, सबूतों पर आधारित नहीं होते हैं या अप्रासंगिक सामग्री पर विचार करने या प्रासंगिक सामग्री की अनदेखी करने पर आधारित होते हैं, या ऐसे होते हैं कि वे समान परिस्थितियों में रखे गए किसी भी उचित व्यक्ति द्वारा प्रदान नहीं किए जा सकते थे, तो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उपचार उपलब्ध हैं।

    केस: यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया बनाम

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    कामगार मुआवजा अधिनियम- मुआवजे पर ब्याज का भुगतान दुर्घटना की तारीख से किया जाएगा, न कि दावे के निर्णय की तारीख से: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कामगार मुआवजा अधिनियम 1923 के तहत मुआवजे पर ब्याज का भुगतान दुर्घटना की तारीख से किया जाएगा, न कि दावे के फैसले की तारीख से। अजय कुमार दास मजदूरी का काम करता था।

    एक दुर्घटना के कारण, उनके पेट और गुर्दे में कई चोटें आईं। कामगार मुआवजा-सह-सहायक श्रम आयुक्त, ओडिशा के समक्ष मुआवजे का दावा दायर किया गया था। उसके दावे को स्वीकार करते हुए आयुक्त ने मुआवजे के तौर पर 2,78,926 रुपये की राशि तथा दुर्घटना की तारीख से राशि जमा करने तक की अवधि के लिए मूल राशि पर 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज देने का निर्देश दिया था।

    केस का नाम: अजय कुमार दास बनाम डिविजनल मैनेजर

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    यदि सवालों वाला अनुबंध व्यवसायिक लेनदेन की प्रक्रिया में नहीं हुआ तो किसी अपंजीकृत फर्म द्वारा दायर वाद पर रोक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पार्टनरशिप एक्ट, 1932 की धारा 69(2) की रोक को आकर्षित करने के लिए साझेदारी फर्म द्वारा विचाराधीन अनुबंध तीसरे पक्ष के प्रतिवादी के साथ दर्ज किया जाना चाहिए और वह भी वादी फर्म द्वारा अपने व्यापारिक व्यवहार के दौरान होना चाहिए।

    न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि धारा 69(2) किसी अपंजीकृत फर्म द्वारा दायर वाद पर रोक नहीं है, यदि यह वैधानिक अधिकार या सामान्य कानून के अधिकार को लागू करने के लिए है।

    केस का नाम: अपने पार्टनर सुनीलभाई सोमाभाई अजमेरी के माध्यम से शिव डेवलपर्स बनाम अक्षराए डेवलपर्स

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    जहां कोर्ट आरोप की प्रकृति, जांच के दौरान इकट्ठा किए गए सबूतों आदि प्रासंगिक कारकों पर विचार करने में विफल रहता है, वहां जमानत रद्द करना उचित : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहां न्यायालय जमानत के लिए आवेदन पर विचार करते समय संबंधित कारकों पर विचार करने में विफल रहता है, एक अपीलीय न्यायालय जमानत देने के आदेश को उचित रूप से रद्द कर सकता है। बेंच के अनुसार, अपीलीय न्यायालय को यह विचार करना आवश्यक है कि क्या जमानत देने का आदेश रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य के विवेक के बिना या प्रथम दृष्टया विचार से ग्रस्त है।

    केस: सेंट्रम फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड बनाम दिल्ली एनसीटी और अन्य

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    NDPS ACT- यदि धारा 50 के उल्लंघन से व्यक्तिगत तलाशी रद्द हो जाती है तो की गई जब्ती भी नष्ट हो जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पिछले हफ्ते पारित एक आदेश में एक व्याख्या को खारिज किया कि यदि एनडीपीएस अधिनियम (NDPS Act) की धारा 50 के उल्लंघन से व्यक्तिगत तलाशी रद्द हो जाती है, तो की गई जब्ती भी नष्ट हो जाएगी।

    न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20 (बी) (ii)(सी) के तहत दोषी ठहराए गए आरोपी द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए कहा, "हम इस तरह का विस्तृत दृष्टिकोण नहीं दे सकते हैं।"

    केस का नाम: दयालू कश्यप बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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    सिविल अदालतों के अधिकार क्षेत्र को मकान मालिक-किरायेदार विवादों से बाहर रखा गया है, विशेष रूप से राज्य किराया अधिनियमों के प्रावधानों के तहत : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि सिविल अदालतों के अधिकार क्षेत्र को मकान मालिक-किरायेदार विवादों से बाहर रखा गया है, जब वे विशेष रूप से राज्य किराया अधिनियमों के प्रावधानों द्वारा कवर किए जाते हैं, जिन्हें अन्य कानूनों पर ओवरराइडिंग प्रभाव दिया जाता है।

    कोर्ट ने सुभाष चंदर और अन्य बनाम मैसर्स भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड के मामले में बर्मा शेल (उपक्रमों का अधिग्रहण) अधिनियम, 1976 और हरियाणा (किराया और बेदखली नियंत्रण) अधिनियम, 1973 के बीच परस्पर क्रिया की व्याख्या करते हुए यह कहा है।

    केस: सुभाष चंदर और अन्य बनाम मैसर्स भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड ( बीपीसीएल) और अन्य।

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    एमएसीपी का अगले पदोन्नति पद से कोई लेना-देना नहीं है, कर्मचारी सिर्फ तत्काल अगले उच्च ग्रेड वेतन के हकदार होंगे : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संशोधित सुनिश्चित करियर प्रगति (एमएसीपी) योजना का अगले पदोन्नति पद से कोई लेना-देना नहीं है और कर्मचारी जो हकदार होगा, वह अनुशंसित संशोधित वेतन बैंड के पदानुक्रम में तत्काल अगला उच्च ग्रेड वेतन होगा।

    न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ केरल हाईकोर्ट के 23 अक्टूबर, 2019 के आदेश (" आपेक्षित निर्णय") के खिलाफ सिविल अपील पर विचार कर रही थी।

    केस : निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य बनाम के सुधीश कुमार और अन्य।| 2022 की सिविल अपील संख्या 442

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    "समान काम के लिए समान वेतन" किसी भी कर्मचारी में निहित मौलिक अधिकार नहीं, हालांकि यह सरकार का संवैधानिक लक्ष्य है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (27 जनवरी 2022) को दिए गए एक फैसले में टिप्पणी की कि " समान काम के लिए समान वेतन" किसी भी कर्मचारी में निहित मौलिक अधिकार नहीं है, हालांकि यह सरकार द्वारा प्राप्त किया जाने वाला एक संवैधानिक लक्ष्य है।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि पद का समीकरण और वेतनमान का निर्धारण कार्यपालिका का प्राथमिक कार्य है न कि न्यायपालिका का। इसलिए आमतौर पर अदालतें नौकरी के मूल्यांकन का काम नहीं करेंगी, जो सामान्य तौर पर वेतन आयोग जैसे विशेषज्ञ निकायों पर छोड़ दिया जाता है।

    केस का नाम : मध्य प्रदेश राज्य बनाम आरडी शर्मा

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