स्तंभ
दावा मामलों में मुआवजे की राशि जमा करने के बाद दावेदारों की व्याकुलता को कैसे खत्म किया जाए?
जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर परिचय :1980 के दशक की शुरुआत में ट्रिब्यूनल या वर्कमैन कमिश्नर में सफल होने के बाद वादियों की स्थिति और मुआवजे की जमा राशि के अनुसार गुजरात के उच्च न्यायालय में ऐसे मामले सामने आए, जहां इन अशिक्षित अर्ध-निरक्षर और नाबालिगों ने जमा की गई राशि की प्राप्ति नहीं होने की शिकायत की थी।उच्च न्यायालय ने मुआवजे की राशि की सुरक्षा के लिए एक तरीका तैयार किया। इसे दिशा-निर्देशों के रूप में लिखा गया, जिसे न्यायाधिकरण आदेश पारित करते समय पालन 'कर सकते हैं'। ये दिशा-निर्देश चार...
'सभी के लिए मुफ्त टीका', सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक समीक्षा का शक्तिशाली प्रभाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात जूत को दिए राष्ट्र के नाम संदेश में टीकाकरण नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव की घोषणा की और कहा कि कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के लिए भी टीके खरीदने का फैसला किया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री ने कहा कि केंद्र की मुफ्त टीकाकरण योजना का लाभ 18-44 वर्ष के आयु वर्ग तक को भी दिया जाएगा।टीकाकरण नीति में यह संशोधन COVID मुद्दों पर स्वत: संज्ञान मामले में सुप्रीम कोर्ट की कड़ी आलोचना के कुछ दिनों बाद आया है। उक्त मामले में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल...
सफूरा ज़रगर और दिशा रविः कहानी जमानत के दो फैसलों की
दिशा रवी को राजद्रोह के मुकदमे में जमानत देने का आदेश नतीजे के कारण नहीं, बल्कि गूगल-डॉक्स के जरिए षडयंत्र के राज्य के उन्मादी आरोप को संक्षिप्त प्रायश्चित प्रदान करने के कारण महत्वपूर्ण है। सामान्य परिस्थितियों में, यह अन्यथा उल्लेखनीय नहीं होता- लोगों को जेल में रखने का औचित्य साबित करने के लिए दूरगामी षड्यंत्रों के राज्य के दावों के प्रति न्यायिक संदेह, जब उन्हें वास्तविक हिंसा से जोड़ने के लिए कोई सबूत मौजूद नहीं हो, की ही अपेक्षा होना चाहिए। हालांकि, हाल के दिनों में न्यायपालिका के सभी...
नेकबैंड्स और ब्रॉडबैंड्स: नॉन-ऑफिस स्पेस से वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग में शामिल हो रहे वकीलों के संबंध में
चेतना वीमद्रास उच्च न्यायालय का 03-02-2021 को दिया एक आदेश, जिसमें एक वकील द्वारा कार में बैठकर सुनवाई में शामिल होने के "अदालत के अनादर" जैसा माना गया था, देश भर की अदालतों द्वारा की गई समान टिप्पणियों में से एक है।हालांकि अदालतें, उचित ही, ऐसे वकीलों के आचरण की ओर इशारा कर चुकी हैं, जिन्होंने अदालत की कार्यवाही में अनौपचारिक कपड़ों में हिस्सा लिया, सड़क पर थूकते पाए गए, धूम्रपान करते दिखे, और यह अदालतों के अनादर जैसा था, हालांकि यह आलेख उन उदाहरणों के संबंध में नहीं है।यह लेख न्यायालयों की...
केंद्रीय बजट: न्यायिक मिसाल पर वित्त विधेयक 2021 का प्रभाव
दीपक जोशीवित्त मंत्री का बजट भाषण कइयों के लिए रुचि और बहस का विषय है। हालांकि, अधिवक्ताओं, चार्टर्ड एकाउंटेंट आदि पेशेवरों की रुचि विस्तृत जानकारियों में हैं। यह सच है कि वित्त विधेयक, 2021 में कई ऐसी जानकारियां हैं, जिनमें कई न्यायिक मिसालों को रद्द करने की क्षमता है। मौजूदा आलेख इन्हीं मुद्दों पर संक्षिप्त में चर्चा करने की गई है।प्रत्यक्ष करों के तहत न्यायिक मिसालें को रद्द किया गया1.उपक्रम का मंदी विनिमय अब कर योग्य हैआयकर अधिनियम, 1961 में मंदी बिक्री के रूप में व्यवसाय उपक्रम के...
ऐसा न हो कि हम भूल जाएं
डॉ. अश्विनी कुमार71 साल पहले 26 जनवरी के दिन, एक आजाद मुल्क खुद को राष्ट्रीय आकांक्षाओं का एक चार्टर दिया था, जिसकी कल्पना और पोषण आजादी के लंबे और कठिन संघर्ष की वेदी पर हुआ था एक गणतंत्र स्थापित किया गया, जो इतिहास की विविध धाराओं में फैली संस्कृतियों के संगम का प्रतिनिधित्व करता था, आजाद भारत में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए आकांक्षात्मक मानक स्थापित किया गया।हमारी स्थापनों के क्षण, जिन्होंने प्रजा को नागरिक के रूप में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व किया था, लोकतंत्र के आकार-निर्धारण...
सिकुड़ता गणतंत्र एवं बढ़ती संविधानिक साक्षरता की मांग
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना अपनी कविता " देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता " में लिखते हैं - यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो ? यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रहीं हों तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो? भारतीय गणतंत्र की 71 वीं वर्षी सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता की गूंज में मनाई जा रही है।...
स्वतंत्रता को सांस लेने की जगह देना: विशेष विवाह अधिनियम के तहत नोटिस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक एकल न्यायाधीश ने कल विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 और 5, जिसमें जोड़ों को अपनी शादी से एक महीने पहले विवाह अधिकारियों को सूचित करने और विवाह अधिकारियों को इस प्रकार की सूचना को प्रचारित करने की आवश्यकता होती है, की व्याख्या करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।विशेष विवाह अधिनियम किसी भी व्यक्ति को इस आधार पर विवाह पर "आपत्ति" करने की अनुमति देता है कि यह (कथित रूप से) अधिनियम के प्रावधानों (धारा 7) का उल्लंघन करता है। सफिया सुल्ताना बनाम यूपी राज्य का मामला कोर्ट के...
न्यायिक सेवा के लिए अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता: नई बहस
शशांक पांडेय"जजों का काम आसान नहीं है। वे बार-बार वही काम करते हैं, जिसे करना हममें से कई लोग टाल देते हैं; यानी फैसले करना" - प्रोफेस पैन्निक, जजेज़।आंध्र प्रदेश राज्य न्यायिक सेवा नियम, 2007 के नियम 5 (2) (a) (i) को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। उक्त नियम के तहत राज्य में सिविल जज परीक्षा में शामिल होने के लिए वकील के रूप तीन साल की प्रैक्टिस पूर्व शर्त के रूप अनिवार्य कर दी गई है। 2 जनवरी को, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने कहा कि वह ऑल इंडिया जजेज़ एसोसिएशन बनाम...
प्रत्यक्ष तटस्थता के पहलू: क्या हम महिलाओं और उनकी पसंद का सम्मान करते हैं?
शिवानी विजउत्तर प्रदेश में अंतर-धार्मिक विवाहों के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता के मध्य, प्रदेश की राज्यपाल द्वारा हाल ही में पारित किए गए धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश (विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020) के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। सेक्यूलरवाद की आधारशिला के रूप में, मुख्य रूप से, पसंद के धर्म के पालन और प्रचार की स्वतंत्रता के इर्दगिर्द ही तर्कों और आलोचनाओं को गढ़ा गया है और आकार दिया गया है। प्रदेश की विविधतापूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास की पृष्ठभूमि ने धर्म के तर्क को...
समझिए उर्दू के कुछ ऐसे शब्द जिनका भारतीय कानून व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है
भारत की न्यायलयीन प्रक्रिया मुगल काल से प्रचलित चली आ रही है। ताज़िराते हिन्द भारत का दंड विधान रहा है। इस दंड विधान के माध्यम से ही मध्य काल में भारत में किए जाने वाले अपराधों के लिए दंडित किया जाता था। लंबी अवधि तक उर्दू भारत के न्यायलयों की भाषा रही है। मुगलकाल में न्यायालय की भाषा उर्दू ही रही है। समय और शासन के साथ भाषा बदल गई परंतु कुछ शब्द सुविधा के अनुसार शेष रह गए।वर्तमान की हिंदी, हिंदी पट्टी भारतीय न्यायालय में उत्कृष्ट कार्य कर रही है और निरंतर उन्नत हो रही है। उर्दू के कुछ शब्द है...
न्यायिक सक्रियता के अग्रदूत जस्टिस पीएन भगवती की स्मृतियां
नुपुर थापलियालसम्मानित जज, मानवतावादी और दूरदर्शी जस्टिस पीएन भगवती की 99 वीं जयंती 21 दिसंबर को थी। 21 दिसंबर, 1921 को गुजरात में जन्मे जस्टिस भगवती ने एलफिंस्टन कॉलेज, मुंबई से गणित में स्नातक किया और इसके बाद गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई से लॉ में स्नातक किया।प्रफुल्लचंद्र नटवरलाल भगवती एक उत्साही कानूनी शख्सियत थे, जिन्होंने वर्ष 1948 से बॉम्बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। उन्हें 1960 में गुजरात हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जिसके बाद अपने पिता जस्टिस नटवरलाल एच भगवती की विरासत...
सीएए का एक सालः सुस्त बना रहा सुप्रीम कोर्ट, विरोध के अधिकार के समर्थन में सक्रिय रहे हाईकोर्ट
अक्षिता सक्सेनाठीक एक साल पहले, 11 दिसंबर, 2019 को संसद ने विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA) पारित किया था।अधिनियम की संवैधानिकता पर- पड़ोसी राष्ट्रों से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागे शरणार्थियों को संरक्षण देने के कथित उद्देश्य के साथ पारित - मुस्लिम प्रवासियों और गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों को दायरे से बाहर रखने के कारण, गंभीर बहस हुई।क्यों अधिनियम का स्वागत नहीं हुआ?धार्मिक कोण जोड़कर भारतीय नागरिकता की मूल अवधारणाओं में आए बदलावों, नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के संबंध...
अधिवक्ता दिवस : नए भारत को गढ़ने में वकीलोंं की भूमिका
आज 3 दिसंबर को अधिवक्ता दिवस (एडवोकेट डे) मनाया जाता है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के जन्मदिवस पर भारत भर में अधिवक्ता दिवस होता है। राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के साथ संविधान समिति के अध्यक्ष भी थें, इन सबके पहले वह वक़ील रहें हैं। वकालत विश्व भर में अत्यंत सम्मानीय और गरिमामय पेशा है। भारत में भी वकालत गरिमामय और सत्कार के पेशे के तौर पर हर दौर में बना रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में वकीलों से अधिक योगदान किसी और पेशे का नहीं रहा। स्वतंत्रता संग्राम में वकीलों ने...
Constitution Day : जानिए संविधान दिवस के बारे में कुछ आवश्यक बातें
26 नवंबर को भारत के संविधान के निर्माताओं के प्रयासों को स्वीकार करने के लिए संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में 19 नवंबर को गजट नोटिफिकेशन द्वारा 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' के रूप में घोषित किया था। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा वर्ष 1979 में एक प्रस्ताव के बाद से इस दिन को 'राष्ट्रीय कानून दिवस' (National Law Day) के रूप में जाना जाने लगा था।संविधान सभा को दिए अपने आखिरी भाषण में बीआर आंबेडकर ने कौन सी तीन चेतावनी दी थीं? संविधान दिवस पर...
संविधान के हृदय और आत्मा की सुरक्षा करे सुप्रीम कोर्ट
डॉ लोकेंद्र मलिकचंद दिनों पहले भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने संविधान के अनुच्छेद 32 के बारे में कुछ टिप्पणियां की थीं। चीफ जस्टिस की अगुवाई में तीन जजों की बेंच केरल के एक पत्रकार की ओर से दायर आर्टिकल 32 याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे उत्तर प्रदेश पुलिस ने हाथरस में गिरफ्तार किया था। चीफ जस्टिस बोबडे ने याचिका पर विचार करने के लिए अपना आरक्षण व्यक्त किया और कहा कि इस प्रकार की याचिकाएं उच्च न्यायालयों के समक्ष दायर की जानी चाहिए। उन्होंने सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल से कहा,...
चोरी के अपराध के बारे में आवश्यक जानकारी
मानव समाज को सुचारू रूप से चलने के लिए प्रशासन का नियमन अनिवार्य है। इसके लिए न केवल व्यक्ति को, एक व्यक्ति के रूप में बल्कि उनकी संपत्ति की सुरक्षा की भी आवश्यकता होती है इसलिए न्यायशास्त्र की सभी प्रणालियों ने शुरुआती समय से ही इसकी सुरक्षा का प्रावधान किया है। अगर हम जॉन लॉक की राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत को देखे तब हमे पता चलता है है की लोगों ने अपने सम्पति के रक्षा के लिए ही एक प्राधिकरण को अपने कुछ अधिकारों का त्याग किया। नागरिक कानून में संपत्ति के अधिकारों के उल्लंघन के प्रावधान किए...
सीजेआई बोबडे का एक सालः उन मामलों पर एक नजर, जिनमें महत्वपूर्ण संवैधानिक सवालों का जवाब दिया जाना है
एसए बोबडे ने 18 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में एक वर्ष पूरा किया, ऐसे में उन प्रमुख मामलों पर एक नजर डालना आवश्यक है, जिनमें संविधान संबंधित महत्वपूर्ण सवालों का जवाब दिया जाना है। उन सभी मसलों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है।जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने, नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिकता और चुनावी बांड की वैधता के खिलाफ दायर याचिकाओं जैसे राष्ट्रीय महत्व के कई मसलों को तय करने में तत्परता नहीं दिखाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की काफी आलोचना हो चुकी है।दिसंबर...
जमानत क्यों महत्वपूर्ण है: मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 7 पर विचार
एडवोकेट नीमा नूर मोहम्मद, एडवोकेट जॉन एस राल्फजस्टिस फेलिक्स फ्रैंकफर्टर के लोकप्रिय उद्धरण को फिर से दोहराए जाने का समय आ गया है, जिसे मैकनाब बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका के जरिए कहा गया था कि "स्वतंत्रता का इतिहास, व्यापक रूप से, प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के अनुपालन का इतिहास रहा है।" हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के धारा 5 (सी) के प्रावधानों के अनुसार इब्राहिम मोहम्मद इकबाल लकड़वाला बनाम महाराष्ट्र राज्य में अग्रिम जमानत खारिज किया...
घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के बारे मेंं खास बातेंं
भारत में कई घरेलू हिंसा कानून हैं। सबसे शुरुआती कानून दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 था जिसने दहेज देने और प्राप्त करने का कार्य अपराध बना दिया। 1961 के कानून को मजबूत करने के प्रयास में, 1983 और 1986 में दो नई धाराओं, धारा 498A और धारा 304B को भारतीय दंड संहिता में जोड़ा गया। सबसे हालिया कानून घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (पीडब्ल्यूडीवीए) 2005 है। घरेलू हिंसा को वयस्क द्वारा एक रिश्ते में दुरुपयोग की गई शक्ति दूसरे (महिला) को नियंत्रित करने को वर्णित किया जा सकता है। यह हिंसा और...