सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (01 अप्रैल, 2024 से 05 अप्रैल, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
सुप्रीम कोर्ट ने Bhima Koregaon Case में शोमा सेन को जमानत दी
सुप्रीम कोर्ट ने (05 अप्रैल को) नागपुर यूनिवर्सिटी की पूर्व प्रोफेसर शोमा सेन को जमानत दी। उन पर भीमा कोरेगांव मामले (Bhima Koregaon Case) के संबंध में कथित माओवादी संबंधों के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम 1967 (UAPA Act) के तहत मामला दर्ज किया गया। उसे 6 जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया और तब से वह हिरासत में है और मुकदमे का इंतजार कर रही है।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि UAPA Act की धारा 43डी(5) के अनुसार जमानत देने पर प्रतिबंध सीनेटर के मामले में लागू नहीं होगा। बेंच ने यह भी कहा कि सेन कई बीमारियों से एक साथ जूझ रही ज़्यादा उम्र की महिला हैं। इसके अलावा, इसमें उसके लंबे समय तक कारावास, मुकदमे की शुरुआत में देरी और आरोपों की प्रकृति को भी ध्यान में रखा गया।
केस टाइटल- शोमा कांति सेन बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 4999/2023
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सुप्रीम कोर्ट ने UP Board Of Madarsa Education Act रद्द करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (5 अप्रैल) को 'उत्तर प्रदेश बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' (UP Board Of Madarsa Education Act) को असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले पर रोक लगा दी।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर पांच विशेष अनुमति याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने कहा, "हमारा विचार है कि याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर बारीकी से विचार किया जाना चाहिए। हम नोटिस जारी करने के इच्छुक हैं।"
केस टाइटल: अंजुम कादरी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य डायरी नंबर 14432-2024, मैनेजर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया यूपी बनाम भारत संघ एसएलपी (सी) नंबर 7821/2024 और संबंधित मामले।
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हाईकोर्ट को आमतौर पर जाति के दावों पर जांच समिति के निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जब तक कि निष्कर्ष विकृत न हों: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आज (04 अप्रैल को) अपने द्वारा सुनाए गए महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि ऐसे मामलों में जहां जांच समिति ने जाति के दावे की वैधता का फैसला किया, अदालतों को तब तक हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए, जब तक कि समिति का निर्णय किसी विकृति से ग्रस्त न हो।
अदालत ने आगे कहा, “यह अच्छी तरह से स्थापित है कि हाईकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट को भी अपीलीय निकाय की तरह तथ्यात्मक मुद्दों की गहन जांच से खुद को दूर रखना चाहिए, जब तक कि संबंधित प्राधिकारी द्वारा किए गए निष्कर्ष प्रत्यक्ष तौर पर विकृत न हों या कानून की नजर में अस्वीकार्य न हों।”
केस टाइटल: नवनीत कौर हरभजनसिंह कुंडल्स @ नवनीत कौर रवि राणा बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य। | सिविल अपील नंबर 2741-2743/2024
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MBBS Internship: सुप्रीम कोर्ट ने NMC को सभी राज्यों के मेडिकल कॉलेजों द्वारा इंटर्न को दिए जाने वाले Stipend का विवरण जमा करने का निर्देश दिया
एमबीबीएस इंटर्नशिप (MBBS Internship) करने वाले डॉक्टरों के वजीफे के भुगतान के संबंध में एक महत्वपूर्ण मामले में, सुप्रीम कोर्ट (01 अप्रैल) ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) को सभी राज्यों में मेडिकल कॉलेजों की स्टाइपेंड (Stipend) स्थिति के बारे में विवरण प्रस्तुत करने का स्पष्ट निर्देश जारी किया।
कोर्ट ने कहा कि NMC ने सभी राज्यों में संपूर्ण मेडिकल कॉलेजों का विवरण नहीं दिया। इसलिए 15 सितंबर, 2023 को दिए गए पहले के निर्देश का अनुपालन नहीं किया गया।
केस टाइटल: अभिषेक यादव और अन्य बनाम आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज | डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 730/2022
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क्या राज्य मानव उपयोग के लिए उचित शराब पर ही टैक्स लगा सकते हैं - सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की बेंच ने विचार किया [ दिन- 2]
9-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बुधवार को इस मुद्दे पर सुनवाई का अपना दूसरा दिन जारी रखा कि क्या औद्योगिक शराब को राज्य विधानमंडल की कानून बनाने की शक्तियों के तहत 'नशीली शराब' माना जाए। अदालत ने शराब से संबंधित राज्य और संघ सूची प्रविष्टियों की गहरी बारीकियों पर ध्यान दिया। चर्चा का केंद्र बिंदु प्रविष्टि 8 सूची II ('नशीली शराब' के संबंध में राज्य की विनियमन शक्तियां) और प्रविष्टि 52 सूची I (सार्वजनिक हित में संघ द्वारा नियंत्रित उद्योग) के बीच व्याख्या और परस्पर क्रिया के इर्द-गिर्द घूमता रहा। शुरुआत में, सीनियर एडवोकेट दिनेश द्विवेदी (यूपी राज्य के लिए) ने प्रविष्टि 52 सूची I और प्रविष्टि 8 सूची II के बीच सीधा टकराव होने के मुद्दे पर पीठ द्वारा बुधवार को पूछे गए प्रश्न को संबोधित किया। द्विवेदी ने दो प्रविष्टियों के बीच अंतर को संबोधित करते हुए रेखांकित किया कि कैसे प्रविष्टि 52 सूची I आंतरिक रूप से प्रविष्टि 24 सूची II के दायरे से जुड़ी हुई थी (सूची I [प्रविष्टियां 7 और 52] के प्रावधानों के अधीन उद्योग)।
मामला : उत्तर प्रदेश राज्य बनाम एम/एस लालता प्रसाद वैश्य सी.ए. संख्या - 000151/2007 एवं अन्य संबंधित मामले
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सुप्रीम कोर्ट ने अमरावती से सांसद नवनीत राणा का Scheduled Caste Certificate बरकरार रखा, बॉम्बे एचसी का फैसला रद्द किया
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने वाली अमरावती की सांसद नवनीत कौर राणा को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (4 अप्रैल) को बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। हाईकोर्ट ने उनका अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र (Scheduled Caste Certificate) रद्द कर दिया था।
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि स्क्रूटनी कमेटी ने उचित जांच और प्रासंगिक दस्तावेजों पर विचार करने के बाद राणा के जाति सर्टिफिकेट को मान्य किया। ऐसे में इसमें हाईकोर्ट का हस्तक्षेप उचित नहीं है।
केस टाइटल: नवनीत कौर हरभजनसिंह कुंडल्स @ नवनीत कौर रवि राणा बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य। | सिविल अपील नंबर 2741-2743/2024
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कानून द्वारा जब तक निर्दिष्ट न किया जाए, आरोपी अपनी बेगुनाही का सबूत देने के लिए बाध्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के अपराध के आरोपी व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए सबूत पेश करने की ज़रूरत नहीं, जब तक कि कानून विशेष रूप से उस पर सबूत का बोझ नहीं डालता। न्यायालय ने यह भी माना कि अभियुक्त पर साक्ष्य अधिनियम की धारा 114ए के तहत आरोपमुक्त करने का कुछ बोझ हो सकता है। हालांकि, यह देखते हुए कि धारा 114ए का वर्तमान मामले में कोई अनुप्रयोग नहीं है, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया।
यह देखने के लिए गया, जो इस प्रकार है: “हम यहां यह भी जोड़ सकते हैं कि हमारे न्यायशास्त्र में जब तक कोई विशिष्ट विधायी प्रावधान नहीं है, जो आरोपी पर नकारात्मक बोझ डालता है, तब तक आरोपी पर अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए सबूत पेश करने का कोई बोझ नहीं है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 114ए जैसे वैधानिक नुस्खे के मामले में अभियुक्त पर आरोपमुक्त करने का कुछ बोझ हो सकता है। इस मामले में उचित संदेह से परे आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए सबूत पेश करने का बोझ अभियोजन पक्ष पर है।''
केस टाइटल: पंकज सिंह बनाम हरियाणा राज्य, आपराधिक अपील नंबर 1753/2023
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Limitation Act | परिसीमा की गणना करते समय गलत मंच पर सद्भावनापूर्ण मुक़दमेबाजी लड़ने में लगने वाला समय शामिल नहीं किया जाएगा : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि परिसीमन अधिनियम (Limitation Act) की धारा 14(2) के तहत परिसीमा की अवधि की गणना करते समय वादी द्वारा गलत मंच पर (इसे उचित मानते हुए) सद्भावनापूर्ण मुक़दमेबाजी लड़ने में लगने वाला समय शामिल नहीं किया जाएगा।
हाईकोर्ट के निष्कर्षों को पलटते हुए जस्टिस संजय करोल और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि परिसीमन अधिनियम की धारा 14(2) परिसीमा की अवधि को छोड़कर एक अपवाद बनाती है, जब कार्यवाही उचित परिश्रम और अच्छे विश्वास के साथ उस न्यायालय में की जा रही हो "जो क्षेत्राधिकार के दोष या समान प्रकृति के अन्य कारणों से इस पर विचार करने में असमर्थ है।"
केस : पूर्णी देवी और अन्य बनाम बाबू राम और अन्य।
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क्या 'नशीली शराब' में 'औद्योगिक शराब' शामिल है? सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने केंद्र और राज्यों की ओवरलैपिंग शक्तियों का विश्लेषण किया [दिन 1]
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 अप्रैल) को 'औद्योगिक शराब' के उत्पादन, विनिर्माण, आपूर्ति और विनियमन में केंद्र और राज्य के बीच अतिव्यापी शक्तियों के मुद्दे पर 9-न्यायाधीशों की संविधान पीठ की सुनवाई शुरू की।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ में जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिसअभय एस ओक, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस उज्जल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं।
मामला: उत्तर प्रदेश राज्य बनाम एम/एस लालता प्रसाद वैश्य सी ए संख्या - 000151/2007 एवं अन्य संबंधित मामले
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ट्रायल कोर्ट का दृष्टिकोण विकृत या असंभव न होने पर हाईकोर्ट का बरी करने के फैसले में हस्तक्षेप करना अस्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 अप्रैल) को दोहराया कि दो विचारों की संभावना की स्थिति में, यदि ट्रायल कोर्ट आरोपी को बरी कर देता है तो हाईकोर्ट के लिए ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं होगी, जब तक कि ट्रायल कोर्ट द्वारा लिया गया दृष्टिकोण विकृत नहीं होता।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा, "किसी भी मामले में भले ही दो दृष्टिकोण संभव हों और ट्रायल जज ने दूसरे दृष्टिकोण को अधिक संभावित पाया हो, हाईकोर्ट द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होगी, जब तक कि ट्रायल जज द्वारा लिया गया दृष्टिकोण विकृत या असंभव न हो।”
केस टाइटल: बल्लू @ बलराम @ बालमुकुंद और दूसरा बनाम मध्य प्रदेश राज्य
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स्थगन से बचने के लिए सरकार बदलने के बाद कम से कम छह सप्ताह तक वकीलों का पुराना पैनल बनाए रखें: सुप्रीम कोर्ट ने States/UTs से कहा
सुप्रीम कोर्ट ने (01 अप्रैल को) कहा कि पिछले कुछ महीनों में राजनीतिक सत्ता में बदलाव के बाद राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (States/UTs) में वकीलों के पैनल में कैसे बदलाव देखा गया। न्यायालय ने कहा कि पैनल में इस बदलाव के परिणामस्वरूप अक्सर स्थगन होता है।
कोर्ट ने कहा, "यह सच है कि States/UTs के पास अपने पैनल में शामिल वकीलों को बदलने की शक्ति है, लेकिन ऐसा करते समय उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि अदालत के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।"
केस टाइटल: सचिन कुमार बनाम उत्तराखंड राज्य, डायरी नंबर- 51567 - 2023
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सुप्रीम कोर्ट का सवाल- केंद्र सरकार ने COVID-19 के इलाज के झूठे दावों के लिए पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की?
सुप्रीम कोर्ट ने (02 अप्रैल को) आश्चर्य जताया कि केंद्र सरकार ने यह दावा करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की कि उसके उत्पाद COVID-19 महामारी का इलाज कर सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि यद्यपि पतंजलि द्वारा दावे उस समय किए गए जब "COVID-19 अपने चरम पर था", संघ ने कोई कार्रवाई नहीं की। हालांकि उसकी अपनी समिति ने कहा कि पतंजलि के उत्पादों का उपयोग केवल अन्य उत्पादों के पूरक के रूप में किया जा सकता है।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ पतंजलि के विज्ञापनों में एलोपैथी पर हमला करने और कुछ बीमारियों के इलाज के दावे करने के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। 2020 में पतंजलि ने विज्ञापन दिया कि उसने ऐसे उत्पाद विकसित किए, जो COVID-19 को 100% ठीक कर सकते हैं।
केस टाइटल: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया| डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 000645/ 2022
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ED की रियायत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने PMLA मामले में AAP सांसद संजय सिंह को जमानत दे दी
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 अप्रैल) को प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा रियायत दिए जाने के बाद दिल्ली शराब नीति मामले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आम आदमी पार्टी (AAP) नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को जमानत दे दी। ED के यह कहने के बाद कि उसे जमानत देने पर कोई आपत्ति नहीं है, कोर्ट ने संजय सिंह को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। साथ ही यह स्पष्ट किया कि कोर्ट ने योग्यता के आधार पर कुछ भी व्यक्त नहीं किया।
जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने स्पष्ट किया कि सिंह जमानत की अवधि के दौरान राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के हकदार होंगे। पीठ ने यह भी कहा कि आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा। अदालत ने कहा कि सिंह को मामले के संबंध में कोई सार्वजनिक बयान नहीं देना चाहिए।
केस टाइटल
1. संजय सिंह बनाम भारत संघ एवं अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 14510/2023
2. संजय सिंह बनाम प्रवर्तन निदेशालय | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 2558/2024
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सुप्रीम कोर्ट ने 100% EVM Votes-VVPAT सत्यापन की याचिका पर ECI को नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें संसदीय क्षेत्र के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में केवल 5 यादृच्छिक रूप से चयनित इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के सत्यापन के बजाय चुनावों में सभी मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पेपर पर्चियों की गिनती की मांग की गई।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इसी तरह की राहत की मांग करते हुए एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दायर अन्य याचिका के साथ याचिका को टैग करते हुए आदेश पारित किया।
केस टाइटल: अरुण कुमार अग्रवाल बनाम भारत निर्वाचन आयोग और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) 184/2024
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ज्ञानवापी मस्जिद मामला: सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद में नमाज और 'तहखाने' में हिंदू पूजा पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (एक अप्रैल) को वाराणसी जिला न्यायालय और इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों की अनुमति देने के आदेशों के खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद समिति की ओर से दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया।
कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए यह भी आदेश दिया कि ज्ञानवापी मस्जिद के बाकी हिस्सों में मुसलमानों द्वारा नमाज अदा करने और तहखाना में हिंदू पूजा करने के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाएगी। न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि सुप्रीम कोर्ट से पूर्व मंजूरी या अनुमति प्राप्त किए बिना इस यथास्थिति को नहीं बदला जा सकता है।
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हमारी अनुमति के बिना भोजशाला मंदिर-कमल मौला मस्जिद परिसर के ASI सर्वेक्षण के नतीजे पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी: सुप्रीम कोर्ट
भोजशाला मंदिर सह कमल मौला मस्जिद परिसर में सर्वेक्षण करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को निर्देश देने वाले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने (01 अप्रैल को) अंतरिम आदेश पारित किया कि ASI की रिपोर्ट पर कोई भी भौतिक उत्खनन नहीं किया जाना चाहिए, जो संबंधित परिसर के चरित्र को बदल देगा।
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया।
केस टाइटल: मौलाना कमालुद्दीन वेल्फेयर सोसाइटी धार बनाम हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस (पंजीकृत ट्रस्ट नंबर 976) और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 7023/2024