सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-08-11 06:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (05 जुलाई, 2024 से 09 अगस्त, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

S. 27 Evidence Act | खुलासे के बाद कोई नया तथ्य सामने नहीं आता तो अभियुक्त का बयान अस्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 27 के तहत अभियुक्त द्वारा किया गया खुलासा अप्रासंगिक है, यदि तथ्य पुलिस को पहले से पता था।

कोर्ट ने हत्या के मामले में दोषसिद्धि को पलटते हुए ऐसा माना। कोर्ट ने माना कि अपराध स्थल के बारे में अभियुक्त द्वारा किया गया खुलासा अप्रासंगिक था, क्योंकि यह तथ्य पुलिस को पहले से पता था। इसलिए धारा 27 के तहत बयान स्वीकार्य नहीं था।

केस टाइटल: अल्लारखा हबीब मेमन आदि बनाम गुजरात राज्य, आपराधिक अपील नंबर 2828-2829 वर्ष 2023

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RTE Act : आस-पास सरकारी स्कूल होने पर प्राइवेट स्कूलों को 25% कोटा छूट रद्द करना सही: सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला सही ठहराया

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 में महाराष्ट्र का संशोधन रद्द कर दिया गया, जिसमें प्राइवेट स्कूलों को वंचित वर्गों के बच्चों के लिए कक्षा 1 या प्री-स्कूल में 25% कोटा देने से छूट दी गई थी, बशर्ते कि उस निजी स्कूल के 1 किलोमीटर के दायरे में कोई सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूल हो।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने एसोसिएशन ऑफ इंडियन स्कूल्स द्वारा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज की।

केस टाइटल: एसोसिएशन ऑफ इंडियन स्कूल्स बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य। एसएलपी(सी) नंबर 17770/2024

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निष्पक्ष सुनवाई के लिए अभियुक्त को "अविश्वसनीय दस्तावेजों" का निरीक्षण करने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट

शराब नीति मामले से संबंधित दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए अभियुक्त को अभियोजन पक्ष के दस्तावेजों, जिनमें अविश्वसनीय दस्तावेज भी शामिल हैं, उनका निरीक्षण करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा, "यह ध्यान देने योग्य है कि CBI और ED दोनों मामलों में लगभग 69,000 पृष्ठों के दस्तावेज शामिल हैं। शामिल दस्तावेजों की विशाल मात्रा को ध्यान में रखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि अभियुक्त को उक्त दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए उचित समय लेने का अधिकार नहीं है। निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का लाभ उठाने के लिए अभियुक्त को "अविश्वसनीय दस्तावेजों" सहित दस्तावेजों के निरीक्षण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।"

केस टाइटल:

[1] मनीष सिसोदिया बनाम प्रवर्तन निदेशालय, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8781/2024;

[2] मनीष सिसोदिया बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8772/2024

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BREAKING | सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब बैन के फैसले पर रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के प्राइवेज कॉलेज द्वारा जारी किए गए निर्देश पर रोक लगा दी, जिसमें परिसर में स्टूडेंट द्वारा हिजाब, टोपी या बैज पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया।

मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज के स्टूडेंट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कॉलेज के निर्देशों को बरकरार रखा गया था।

केस टाइटल: जैनब अब्दुल कय्यूम चौधरी एवं अन्य बनाम चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटीज एवं अन्य, डायरी नंबर 34086-2024

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सड़क पर वाहन को ओवरटेक करने का प्रयास करने का मतलब लापरवाही से गाड़ी चलाना नहीं: सुप्रीम कोर्ट

अपने हालिया आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सड़क पर ओवरटेक करने का प्रयास करने का मतलब लापरवाही से गाड़ी चलाना नहीं। जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की बेंच मोटर वाहन अधिनियम (MV Act) के तहत दुर्घटना मुआवजा दावे से उत्पन्न अपील पर फैसला कर रही थी।

कोर्ट ने माना कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने अपीलकर्ताओं पर केवल सड़क पर ओवरटेक करने के लिए लापरवाही का आरोप लगाने में गलती की, जबकि वास्तव में प्रतिवादी का वाहन गलत दिशा से आ रहा था।

केस टाइटल: प्रेम लाल आनंद और अन्य बनाम नरेंद्र कुमार और अन्य

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BREAKING | सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को जमानत दी

सुप्रीम कोर्ट ने शराब नीति मामले से संबंधित दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका स्वीकार कर ली। शराब नीति मामले में सुनवाई शुरू होने में हुई देरी को देखते हुए कोर्ट ने CBI और ED दोनों मामलों में सिसोदिया द्वारा दायर जमानत याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।

कोर्ट ने कहा, "हमें लगता है कि करीब 17 महीने की लंबी कैद और सुनवाई शुरू न होने के कारण अपीलकर्ता को त्वरित सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया..."

केस टाइटल:

[1] मनीष सिसोदिया बनाम प्रवर्तन निदेशालय, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8781/2024;

[2] मनीष सिसोदिया बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8772/2024

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पुलिस अधिकारियों द्वारा अभियुक्तों को पेश किए जाने के दौरान मेडिकल अधिकारी द्वारा दर्ज किया गया इकबालिया बयान साक्ष्य के रूप में अस्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

दो व्यक्तियों की हत्या की दोषसिद्धि खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस हिरासत के दौरान अभियुक्तों की चोट रिपोर्ट तैयार करते समय मेडिकल अधिकारी द्वारा दर्ज किया गया इकबालिया बयान साक्ष्य के रूप में अस्वीकार्य है। खंडपीठ ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 26 के तहत प्रतिबंध के मद्देनजर ऐसा इकबालिया बयान स्वीकार्य साक्ष्य नहीं।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि जिन इकबालिया बयानों पर ट्रायल कोर्ट ने बहुत अधिक भरोसा किया था, वे अस्वीकार्य हैं क्योंकि वे तब किए गए, जब अभियुक्तों को उनकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस अधिकारियों द्वारा अस्पताल लाया गया।

केस टाइटल- अल्लारखा हबीब मेमन आदि बनाम गुजरात राज्य

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किसी इकाई को ब्लैक लिस्ट में डालना 'सिविल डेथ' के समान, यह न्यायोचित और आनुपातिक होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

कोलकाता नगर निगम द्वारा वाणिज्यिक इकाई के विरुद्ध पारित ब्लैक लिस्ट में डालने के आदेश को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि ब्लैक लिस्ट में डालने के आदेश एक "कठोर उपाय" हैं। इस प्रकार, उन्हें न्यायोचित और आनुपातिक होना चाहिए।

जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, "ये सभी कारण वर्तमान मामले में अपीलकर्ता के आचरण को इतना घृणित बनाने से बहुत दूर हैं कि ब्लैक लिस्ट में डालने/निषेध करने के कठोर उपाय को उचित ठहराया जा सके। अपीलकर्ता को स्पष्ट रूप से अनुपातहीन दंड दिया गया। निगम ने अखरोट को तोड़ने के लिए एक हथौड़े का इस्तेमाल किया। केवल यह कहना कि ब्लैक लिस्ट में डालने के आदेश में कारण दिए गए, पर्याप्त नहीं है। क्या कारण ब्लैक लिस्ट में डालने के दंड को उचित ठहराते हैं और क्या दंड आनुपातिक है, यही वास्तविक प्रश्न था।"

केस टाइटल: द ब्लू ड्रीम्ज़ एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम कोलकाता नगर निगम और अन्य, विशेष अनुमति याचिका (सिविल) नंबर 11682 वर्ष 2018

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लेक्चरर के रूप में एडहॉक नियुक्ति को CAS के तहत सीनियर वेतनमान की पात्रता के लिए नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिसि अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने माना कि नियमित आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त होने से पहले लेक्चरर के रूप में एडहॉक नियुक्ति में दी गई सेवाओं को 'कैरियर एडवांसमेंट स्कीम' (CAS) के तहत सीनियर वेतनमान के अनुदान के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए नहीं गिना जा सकता।

केंद्र सरकार द्वारा 22 जुलाई, 1988 को अधिसूचित CAS के अनुसार, यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में शिक्षकों के वेतनमान में 1 जनवरी, 1986 से संशोधन किया गया। प्रत्येक लेक्चरर को 3000-5000 रुपये के सीनियर वेतनमान पर रखा गया, यदि व्यक्ति ने नियमित नियुक्ति के बाद आठ साल की सेवा पूरी कर ली हो। इसके बाद राजस्थान सरकार ने CAS को लागू किया।

केस टाइटल: राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर, अपने रजिस्ट्रार के माध्यम से बनाम डॉ. जफर सिंह सोलंकी एवं अन्य

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Arbitration | आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल या न्यायालयों द्वारा ब्याज पर ब्याज देना अनुचित : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल (Arbitral Tribunal) को आर्बिट्रल अवार्ड पारित करते समय ब्याज पर ब्याज देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration & Conciliation Act, 1006) में ब्याज पर ब्याज देने का विशेष प्रावधान नहीं है।

जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने कहा, “उपर्युक्त कानूनी प्रावधानों और इस विषय पर केस लॉ के आलोक में यह स्पष्ट है कि सामान्यतः न्यायालयों को ब्याज पर ब्याज नहीं देना चाहिए, सिवाय इसके कि जहां कानून के तहत विशेष रूप से प्रावधान किया गया हो या जहां अनुबंध की शर्तों और नियमों के तहत इस आशय का विशिष्ट प्रावधान हो। न्यायालयों की किसी दिए गए मामले में ब्याज पर ब्याज या चक्रवृद्धि ब्याज देने की शक्ति के बारे में कोई विवाद नहीं है, जो कि कानून के तहत या अनुबंध की शर्तों और नियमों के तहत प्रदत्त शक्ति के अधीन है, लेकिन जहां ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की जाती है, वहां न्यायालय सामान्यतः ब्याज पर ब्याज नहीं देते हैं।”

केस टाइटल: मेसर्स डी. खोसला एंड कंपनी बनाम भारत संघ, विशेष अनुमति याचिका (सिविल) नंबर 812/2014

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गुजरात की अदालतों द्वारा अग्रिम जमानत देते समय पुलिस को रिमांड मांगने की अनुमति देना अवैध : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गुजरात की अदालतों द्वारा अग्रिम जमानत देते समय जांच अधिकारियों को आरोपी की पुलिस हिरासत रिमांड मांगने की स्वतंत्रता देने की प्रथा अवैध है। कोर्ट ने कहा, पुलिस को ऐसी स्वतंत्रता देने से अग्रिम जमानत देने का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।

केस टाइटल: तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम गुजरात राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 14489/2023, तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम कमल दयानी डायरी नंबर- 1106 - 2024

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BREAKING| सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस निरीक्षक और मजिस्ट्रेट को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने वाले आरोपी की गिरफ्तारी और रिमांड के लिए अवमानना का दोषी ठहराया

सुप्रीम कोर्ट ने वेसु पुलिस स्टेशन (गुजरात) के पुलिस निरीक्षक और सूरत (गुजरात) के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम अग्रिम जमानत आदेश की अनदेखी करते हुए एक आरोपी को गिरफ्तार करने और रिमांड पर लेने के लिए न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया। न्यायालय ने अवमानना करने वालों को उनकी सजा तय करने के लिए 02 सितंबर, 2024 को उपस्थित रहने को कहा है।

केस टाइटल: तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम गुजरात राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 14489/2023, तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम कमल दयानी डायरी नंबर- 1106 - 2024

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परिसीमन आयोग के आदेश न्यायिक पुनर्विचार से मुक्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई आदेश स्पष्ट रूप से मनमाना और संवैधानिक मूल्यों के साथ असंगत पाया जाता है तो संवैधानिक न्यायालयों को संविधान की कसौटी पर परिसीमन आयोग द्वारा पारित आदेशों की वैधता की जांच करने से कोई नहीं रोक सकता।

कोर्ट ने कहा, “इसलिए जबकि न्यायालयों को हमेशा परिसीमन मामलों में न्यायिक पुनर्विचार के प्रयोग पर दायरे, दायरे और सीमाओं के बारे में स्थापित सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होना चाहिए, ऐसा कुछ भी नहीं है, जो उन्हें संविधान की कसौटी पर परिसीमन आयोग द्वारा पारित आदेशों की वैधता की जांच करने से रोकता है। अगर आदेश स्पष्ट रूप से मनमाना और संवैधानिक मूल्यों के साथ असंगत पाया जाता है तो न्यायालय स्थिति को सुधारने के लिए उचित उपाय कर सकता है।”

केस टाइटल: किशोरचंद्र छगनलाल राठौड़ बनाम भारत संघ एवं अन्य, सिविल अपील संख्या 7930/2024

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SLP के साथ फैसले की प्रमाणित कॉपी दाखिल करने से छूट मांगते समय प्रमाणित कॉपी के लिए आवेदन करने का सबूत दिखाएं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल करने के संबंध में व्यावहारिक निर्देश पारित किया, जो 20 अगस्त से लागू होगा। निर्देश के अनुसार, यदि किसी एसएलपी में किसी विवादित आदेश की प्रमाणित कॉपी (Certified Copy) दाखिल करने से छूट मांगने वाला आवेदन शामिल है तो उसमें प्रमाणित कॉपी के लिए आवेदन करने के अनुरोध की पुष्टि करने वाली हाईकोर्ट की रसीद भी संलग्न करनी होगी।

इसके अलावा, यह भी बताना होगा कि प्रमाणित कॉपी के लिए आवेदन किसी भी कारण से समाप्त नहीं हुआ। अंत में, आवेदन में आवेदक द्वारा जल्द से जल्द प्रमाणित कॉपी प्रस्तुत करने का वचन भी शामिल होना चाहिए।

केस टाइटल: हर्ष भुवालका एवं अन्य बनाम संजय कुमार बाजोरिया, डायरी नंबर 30456/2024

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हाईकोर्ट CrPC की धारा 482 के तहत दोषी को आत्मसमर्पण करने से छूट नहीं दे सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट के लिए CrPC की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करके किसी दोषी को दोषसिद्धि के समवर्ती निष्कर्षों के बावजूद किसी विशेष मामले में आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता से छूट देना अनुचित होगा।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कहा, इसलिए हम इसे कानून के ठोस प्रस्ताव के रूप में स्वीकार करना उचित नहीं समझते कि हाईकोर्ट अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए संहिता के तहत पारित आदेशों को प्रभावी करने और/या न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के कर्तव्य से बेखबर होकर किसी विशेष मामले में आत्मसमर्पण करने से छूट दे सकता है।"

केस टाइटल: दौलत सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य, डायरी नंबर 20900/2024

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Contempt Of Courts Act | विवाद के गुण-दोष के संबंध में निर्देशों के विरुद्ध धारा 19 के अंतर्गत अपील स्वीकार्य, भले ही कोई दंड आदेश न हो: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt Of Courts Act) की धारा 19 के अंतर्गत अपील पक्षकारों के बीच विवादों के गुण-दोष के संबंध में पीठ द्वारा पारित किसी भी निर्देश के विरुद्ध स्वीकार्य होगी, भले ही दंड का कोई आदेश न हो।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यदि दंड का कोई आदेश नहीं है तो अपील स्वीकार्य नहीं है। साथ ही न्यायालय ने दोहराया कि अवमानना कार्यवाही में विवाद के गुण-दोष से संबंधित एकल पीठ द्वारा पारित किसी भी निर्देश के विरुद्ध अपील स्वीकार्य होगी।

केस टाइटल: अजय कुमार भल्ला एवं अन्य बनाम प्रकाश कुमार दीक्षित, सिविल अपील संख्या 8129-8130/2024

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Motor Accident Claim | आश्रितता के नुकसान की गणना करते समय HRA, PF अंशदान को शामिल किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मृतक को मिलने वाले भत्ते और लाभ जैसे कि मकान किराया भत्ता, लचीली लाभ योजना, भविष्य निधि में अंशदान आदि को मुआवजे का निर्धारण करने के लिए आश्रितता के नुकसान की गणना करते समय शामिल किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "आश्रितता कारक निर्धारित करने के लिए भविष्य की संभावनाओं द्वारा आय में वृद्धि के घटक को लागू करते समय मृतक के वेतन में मकान किराया भत्ता, लचीली लाभ योजना और भविष्य निधि में कंपनी के अंशदान के घटकों को शामिल किया जाना चाहिए। अपीलकर्ता को देय कुल मुआवजे की गणना करते समय भविष्य की संभावनाओं के कारण 50% वृद्धि लागू करने से पहले मृतक के वेतन में इन घटकों को शामिल करना दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के लिए उचित था।"

केस टाइटल: मीनाक्षी बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, डायरी संख्या 39746/2018

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केंद्र की 2015 की अधिसूचना में वर्णित प्रक्रिया का पालन किए बिना बैंक MSME लोन अकाउंट को NPA के रूप में वर्गीकृत नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSMED Act) के तहत पंजीकृत संस्थाओं के पुनरुद्धार से संबंधित महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंकों को MSME मंत्रालय द्वारा जारी MSME के पुनरुद्धार और पुनर्वास के लिए रूपरेखा के निर्देशों में निर्धारित अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किए बिना MSME के लोन अकाउंट को गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) के रूप में वर्गीकृत करने का अधिकार नहीं है।

जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा, “ऊपर वर्णित निर्देशों/निर्देशों में निहित “MSME के पुनरुद्धार और पुनर्वास के लिए रूपरेखा” में जो विचार किया गया, उसका उधारकर्ता के खाते (तत्काल मामले में MSME लोन अकाउंट) को गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) के रूप में वर्गीकृत करने से पहले पालन किया जाना आवश्यक है।”

केस टाइटल: मेसर्स प्रो निट बनाम कैनरा बैंक के निदेशक मंडल एवं अन्य, विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 7898/2024) एवं अन्य संबंधित मामले।

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कांवड़ यात्रा: सुप्रीम कोर्ट ने ढाबा मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश पर लगी रोक बढ़ाई

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के उस निर्देश पर यथास्थिति के अंतरिम आदेश को बढ़ा दिया, जिसमें कहा गया कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने होंगे।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, प्रोफेसर अपूर्वानंद और स्तंभकार आकार पटेल द्वारा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के निर्देशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

केस टाइटल: नागरिक अधिकार संरक्षण संघ (एपीसीआर) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 463/2024

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BREAKING| सरकार की सहमति के बिना दिल्ली नगर निगम में सदस्यों को नामित कर सकते हैं LG: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आज माना कि दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) के पास दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह के बिना दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन को नामित करने का अधिकार है। कोर्ट ने माना कि यह शक्ति दिल्ली नगर निगम अधिनियम के तहत वैधानिक शक्ति है। इसलिए राज्यपाल को दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता नहीं है। चूंकि यह LG को दी गई वैधानिक शक्ति है और सरकार की कार्यकारी शक्ति नहीं है, इसलिए एलजी से अपेक्षा की जाती है कि वह वैधानिक आदेश के अनुसार कार्य करें, न कि दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार।

केस टाइटल: दिल्ली सरकार बनाम दिल्ली के उपराज्यपाल का कार्यालय, WP(C) नंबर 348/2023

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अनुच्छेद 341 का उद्देश्य अनुसूचित जातियों को केवल 'संवैधानिक पहचान' प्रदान करना है; उन्हें 'सजातीय' वर्ग के रूप में नहीं मानना : सुप्रीम कोर्ट

अनुसूचित जातियों (एससी) के उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले अपने हालिया निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 341 कोई 'कल्पित कल्पना' नहीं बनाता है और केवल उन पिछड़े समुदायों को 'संवैधानिक पहचान' प्रदान करता है जिन्हें अनुसूचित जातियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 बहुमत से माना कि अनुच्छेद 341 का उद्देश्य केवल अनुसूचित जातियों के रूप में पहचाने जाने वाले राष्ट्रपति अधिसूचना के तहत समुदायों को कानूनी मान्यता प्रदान करना था और उन्हें 'सजातीय' वर्ग के रूप में रखने का इरादा नहीं था।

केस: पंजाब राज्य और अन्य बनाम दविंदर सिंह और अन्य सीए संख्या 2317/2011

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