हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2025-12-13 15:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (07 दिसंबर, 2025 से 12 दिसंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

ग्रेच्युटी अपील के लिए ब्याज सहित पूरी राशि जमा करना अनिवार्य: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि Payment of Gratuity Act, 1972 के तहत ग्रेच्युटी से जुड़े आदेश को चुनौती देते समय नियोक्ता को केवल ग्रेच्युटी की राशि ही नहीं, बल्कि उस पर अर्जित ब्याज सहित पूरी राशि जमा करनी होगी। यह राशि अपील को स्वीकार किए जाने की पूर्व-शर्त (condition precedent) होगी। यह निर्णय जस्टिस के. बाबू ने Kerala State Financial Enterprises Ltd. (KSFE) द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनाते हुए दिया।

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आय छिपाने के कारण भरण-पोषण न मिलने से पत्नी का आवास अधिकार समाप्त नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि पत्नी द्वारा अपनी आय छिपाने के कारण उसे आर्थिक भरण-पोषण (monetary maintenance) का अधिकार नहीं दिया जाता, तो भी इससे उसे घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act) के तहत आवास आदेश (residence order) से वंचित नहीं किया जा सकता।

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा पत्नी द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत पति द्वारा दी जाने वाली अंतरिम भरण-पोषण राशि को पत्नी के लिए निरस्त कर दिया गया था।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने Sci-Hub से जुड़ी अतिरिक्त मिरर वेबसाइट्स ब्लॉक करने का दिया आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने कॉपीराइट उल्लंघन के एक मामले में Sci-Hub तक अनधिकृत पहुंच उपलब्ध कराने वाली अतिरिक्त मिरर वेबसाइट्स को ब्लॉक करने का आदेश दिया है। यह आदेश Elsevier, Wiley और American Chemical Society द्वारा दायर मुकदमे में पारित किया गया।

जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने 19 अगस्त को पारित अपने पूर्व आदेश का विस्तार करते हुए उन 40 अतिरिक्त वेबसाइट्स को भी ब्लॉक करने के निर्देश दिए, जो पहले से भारत में प्रतिबंधित Sci-Hub डोमेन्स तक पहुंच प्रदान कर रही थीं।

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S. 337 BNSS | विदेशी देश में आपराधिक मामला दर्ज होने से भारत में उन्हीं तथ्यों पर मुकदमा चलाने में कोई रोक नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

ओडिशा हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ विदेशी देश में आपराधिक मामला दर्ज होने से भारत में उसी तरह के तथ्यों या उसी लेन-देन से जुड़े अपराध के आधार पर उसके खिलाफ कार्रवाई करने में कोई रुकावट नहीं आएगी।

ज़ाम्बिया में हुए कुछ वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े एक ज़मानत याचिका पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना या वारंट जारी होना भारतीय दंड प्रावधानों के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई करने में कोई रोक नहीं है, क्योंकि यह 'दोहरे दंड' के दायरे में नहीं आता है।

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S. 125 CrPC | जो महिला अपना गुज़ारा कर सकती है, वह पति से गुज़ारा भत्ता पाने की हकदार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर कोई पत्नी अच्छी नौकरी करती है और अपना गुज़ारा करने के लिए काफ़ी सैलरी कमाती है तो वह CrPC की धारा 125 के तहत गुज़ारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है। इस तरह जस्टिस मदन पाल सिंह की बेंच ने फ़ैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक पति को अपनी पत्नी को सिर्फ़ "इनकम को बैलेंस" करने और दोनों पक्षों के बीच बराबरी लाने के लिए 5K रुपये गुज़ारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया, जबकि पत्नी हर महीने 36K रुपये कमाती थी।

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नियमित किए गए कर्मचारी को ऐड-हॉक सेवा में दिए गए कृत्रिम अवकाश के आधार पर पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी की ऐड-हॉक अवधि में दिए गए कृत्रिम अवकाश को आधार बनाकर उसे पेंशन के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता यदि बाद में उसकी सेवा को नियमित कर दिया गया हो। अदालत ने माना कि ऐसे अवकाश केवल औपचारिक होते हैं और इन्हें वास्तविक सेवा-व्यवधान नहीं माना जाएगा।

यह मामला जिला सागर के सरकारी कॉलेज में भौतिकी व्याख्याता रहे अरुण प्रकाश बुखारिया से संबंधित था, जिन्हें 5 मार्च 1977 को ऐड-हॉक नियुक्ति मिली और वे 4 मार्च 1987 तक सेवा में रहे। बाद में वे प्रोफेसर बने और 31 दिसंबर 2009 को सेवानिवृत्त हुए। पेंशन के लिए ऐड-हॉक सेवा अवधि जोड़ने के उनके अनुरोध को 2021 में अस्वीकार कर दिया गया था।

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स्कूल TC, JJ Act की धारा 94 के तहत 'जन्म प्रमाण पत्र' नहीं, 'मैकेनिकल' CWC आदेश के खिलाफ हेबियस याचिका सुनवाई योग्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट (TC) या स्कूल के एडमिशन रजिस्टर में एंट्री, जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट, 2015 (JJ Act) की धारा 94 के तहत "स्कूल से जन्म प्रमाण पत्र" की ज़रूरत को पूरा नहीं करता है।

जस्टिस सलिल कुमार राय और जस्टिस ज़फीर अहमद की बेंच ने एक हेबियस कॉर्पस रिट याचिका को मंज़ूरी देते हुए यह बात कही। कोर्ट ने प्रभावी रूप से फैसला सुनाया कि अगर चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) बिना अधिकार क्षेत्र के काम करती है और सिर्फ़ बिना वेरिफाई किए गए स्कूल रिकॉर्ड के आधार पर किसी व्यक्ति को प्रोटेक्शन होम में रखने का आदेश देती है तो ऐसी याचिका सुनवाई योग्य है।

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हरियाणा सरकार का क्लर्क की इंक्रीमेंट वापस लेना प्रथम दृष्टया बड़ी बेंच के सामने दिए गए वचन का उल्लंघन: हाई कोर्ट ने अवमानना नोटिस जारी किया

पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि हरियाणा सरकार द्वारा महिला एवं बाल विकास विभाग के एक कर्मचारी को पहले दी गई इंक्रीमेंट वापस लेने का कदम, प्रथम दृष्टया कोर्ट की एक बड़ी बेंच के सामने कंप्यूटर एप्रिसिएशन और एप्लीकेशन (SETC) में राज्य पात्रता परीक्षा की प्रयोज्यता के संबंध में दर्ज किए गए वचन का उल्लंघन है।

कोर्ट ने अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 10 और 12 के तहत आरोप का नोटिस जारी किया। साथ ही प्रतिवादी नंबर 1 को 28.04.2026 को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया।

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सिर्फ़ आर्य समाज सर्टिफ़िकेट ही सही शादी का सबूत नहीं: मध्य प्रदेशहाई कोर्ट ने सप्तपदी न होने पर शादी को अमान्य ठहराया

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फ़ैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें एक महिला को किसी पुरुष की कानूनी तौर पर शादीशुदा पत्नी घोषित किया गया था। कोर्ट ने कहा कि अगर पवित्र अग्नि, फेरे या सप्तपदी जैसी ज़रूरी रस्में नहीं की गईं तो हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादी को मान्यता नहीं दी जा सकती। ऐसा करते हुए जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस हिरदेश की डिवीज़न बेंच ने कहा कि फ़ैमिली कोर्ट ने आर्य समाज सर्टिफ़िकेट और रजिस्टर एंट्री को सही शादी होने का पक्का सबूत मानकर गलती की।

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लिव-इन रिश्ते में रह रहे बालिग जोड़े को संरक्षण का अधिकार, भले ही युवक 21 वर्ष से कम हो: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया कि यदि महिला और पुरुष दोनों बालिग हैं तथा आपसी सहमति से लिव-इन संबंध में रह रहे हैं, तो उन्हें पुलिस संरक्षण पाने का पूरा अधिकार है, भले ही युवक की आयु 21 वर्ष से कम हो। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश 18 वर्षीय युवती और 19 वर्षीय युवक द्वारा दायर याचिका पर पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने अपने परिवारजनों से जान के खतरे की आशंका जताते हुए पुलिस सुरक्षा की मांग की थी।

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पूर्व वकील से अनापत्ति प्रमाणपत्र केवल सदाचार की प्रक्रिया, नया वकील बिना NOC के भी जमानत पर बहस कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी आपराधिक मामले में पुराने वकील से अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) लेना केवल सदाचार की प्रक्रिया है कोई कानूनी अनिवार्यता नहीं। यदि नया वकील अपने मुवक्किल द्वारा विधिवत अधिकृत है तो वह बिना एनओसी के भी जमानत याचिका प्रस्तुत कर सकता है। जस्टिस राजेश सिंह चौहान एवं जस्टिस अभयदेश कुमार चौधारी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी दहेज मृत्यु से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान की।

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ECI गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी के अंदरूनी विवादों पर फैसला नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि भारतीय चुनाव आयोग (ECI) किसी गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी के अंदरूनी विवादों पर फैसला नहीं कर सकता। ऐसे विवादों को सिविल मुकदमे में ही सुलझाना होगा।

जस्टिस मिनी पुष्करणा ने कहा, "ECI किसी रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त पार्टी के अंदरूनी विवादों के मामले में किसी भी विरोधी गुट को मान्यता नहीं देगा, क्योंकि इन विवादों को सुलझाना ECI का काम नहीं है। एक रजिस्टर्ड और गैर-मान्यता प्राप्त पार्टी में ऐसे आपसी विवादों को सिविल मुकदमे में ही सुलझाना होगा।"

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महिला का साझा घर का अधिकार ससुराल वालों के घर में हमेशा के लिए रहने का लाइसेंस नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि घरेलू हिंसा एक्ट की धारा 17 के तहत महिला का साझा घर का अधिकार सुरक्षा का अधिकार है, न कि मालिकाना हक का अधिकार या ससुराल वालों की जगह पर हमेशा के लिए रहने का लाइसेंस, खासकर तब जब ऐसे कब्जे से सीनियर सिटिजन को साफ नुकसान होता हो।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा माना कि ऐसे अधिकार को सीनियर सिटिजन माता-पिता के अपनी प्रॉपर्टी पर शांति से कब्जे और उसके इस्तेमाल के अधिकारों के साथ बैलेंस किया जाना चाहिए।

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बालिग अविवाहित बेटी CrPC की धारा 125 के तहत पिता से भरण-पोषण मांग सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बालिग अविवाहित बेटी CrPC की धारा 125 के तहत पिता से मेंटेनेंस मांगने के लिए मां के साथ जॉइंट एप्लीकेशन फाइल कर सकती है। जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि एक बालिग हिंदू बेटी हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 की धारा 20 के तहत अपने पिता से मेंटेनेंस पाने की हकदार है, जब तक वह अविवाहित है और अपनी कमाई और प्रॉपर्टी से अपना मेंटेनेंस नहीं कर सकती।

जज ने एक पिता की उस अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने अपने इस आदेश में बेटी और मां दोनों को हर महीने 45,000 रुपये अंतरिम मेंटेनेंस के तौर पर देने का आदेश दिया था। दोनों ने मिलकर CrPC की धारा 125 के तहत पिता से मेंटेनेंस मांगने के लिए आवेदन दायर किया था।

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NCDRC के आदेशों के खिलाफ आर्टिकल 226 की रिट केवल 'अपवादात्मक परिस्थितियों' में ही स्वीकार्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के आदेशों को चुनौती देने वाली रिट याचिका संविधान के आर्टिकल 226 के तहत तो दायर की जा सकती है, लेकिन इस अधिकार का उपयोग केवल अत्यंत अपवादात्मक परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में किसी भी पक्षकार को वैकल्पिक उपाय, यानी हाईकोर्ट की सुपरवाइजरी जुरिस्डिक्शन के तहत आर्टिकल 227 का सहारा लेना होगा।

BNSS की धारा 35 | गिरफ्तारी व्यक्तिगत कार्रवाई, हर आरोपी के लिए अलग-अलग ठोस कारण जरूरी: बॉम्बे हाईकोर्ट

एक अहम फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी एक पूरी तरह व्यक्तिगत कार्रवाई होती है। जांच एजेंसियां कई आरोपियों को एक साथ पकड़ने के लिए एक जैसे या सामूहिक कारणों का सहारा नहीं ले सकतीं। अदालत ने कहा कि हर आरोपी की गिरफ्तारी के लिए उसके खुद के मामलों और भूमिका से जुड़े ठोस अलग-अलग और दस्तावेजों से समर्थित कारण दर्ज करना अनिवार्य है।

जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस श्याम सी. चांडक की खंडपीठ ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 35 की व्याख्या करते हुए कहा कि गिरफ्तारी के कारण को कानून की धाराओं की यांत्रिक नकल मात्र नहीं होना चाहिए बल्कि यह पुलिस अधिकारी द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग तथ्यों के आधार पर निकाले गए ठोस निष्कर्ष होने चाहिए।

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Banking Regulation Act | अनियमितताओं के 90वें दिन अकाउंट को NPA घोषित करना RBI के नियमों के मुताबिक: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी बैंक द्वारा अनियमितताओं के 90वें दिन किसी अकाउंट को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित करने की कार्रवाई को 'समय से पहले' नहीं कहा जा सकता। RBI के इनकम रिकग्निशन एसेट क्लासिफिकेशन और प्रोविजनिंग पर प्रूडेंशियल नियम जिन्हें Banking Regulation Act, 1949 की धारा 21 और 35A के तहत कानूनी मान्यता प्राप्त है, यह बताते हैं कि एक ओवरड्राफ्ट (OD) या क्रेडिट कैश (CC) अकाउंट तब NPA बन जाता है, जब बकाया बैलेंस लगातार 90 दिनों से ज़्यादा समय तक स्वीकृत सीमा या ड्रॉइंग पावर से ज़्यादा रहता है।

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यूनिवर्सिटी उसी क्वालिफिकेशन के आधार पर PhD के लिए कैंडिडेट को स्वीकार करने के बाद भर्ती के लिए उसकी डिग्री रिजेक्ट नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि कोई यूनिवर्सिटी कैंडिडेट की मास्टर डिग्री को PhD एडमिशन के लिए एलिजिबल सब्जेक्ट मानकर, लेकिन असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए सिलेक्शन के दौरान उसी क्वालिफिकेशन को नज़रअंदाज़ करके अलग-अलग स्टैंडर्ड लागू नहीं कर सकती।

जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा: “रिस्पॉन्डेंट्स को M.Sc. (बॉटनी) को PhD के लिए 'संबंधित' सब्जेक्ट मानते समय अलग-अलग पैमाने अपनाने और असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए उसे नज़रअंदाज़ करने से रोका जाता है।”

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दिव्यांग आश्रित की देखभाल करने वाले को ट्रांसफर में छूट का हक, दिव्यांगों के हित एडमिनिस्ट्रेटिव सुविधा से ज़्यादा ज़रूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की डिवीजन बेंच ने माना कि दिव्यांग आश्रित के हित एडमिनिस्ट्रेटिव सुविधा से ज़्यादा ज़रूरी हैं। साथ ही दिव्यांग लोगों की देखभाल करने वाले रेगुलर ट्रांसफर से छूट के हकदार हैं। उनके लिए सही सुविधा ज़रूरी है।

मामले की पृष्ठभूमि के तथ्य: याचिकाकर्ता बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) की 171वीं बटालियन में पोस्टेड असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर/जनरल ड्यूटी है। उसका बेटा दिल्ली में रहता है। उसे अपने निचले अंगों में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी है, जो 50% परमानेंट डिसेबिलिटी के तौर पर सर्टिफाइड कंडीशन है। बेटे को रोज़ाना के कामों के लिए भी एम्प्लॉई की मदद की ज़रूरत होती है, इसलिए उसे चल रहे इलाज के लिए सुपर-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के पास रहना चाहिए।

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बच्चे का हाथ पकड़ना और सेक्सुअल फेवर के लिए पैसे देना POCSO Act के तहत 'सेक्सुअल असॉल्ट' माना जाएगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) ने माना कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना, जब सेक्सुअल फेवर के बदले पैसे देने की पेशकश की जाती है, तो यह POCSO Act की धारा 7 के तहत 'सेक्सुअल असॉल्ट' की परिभाषा में आता है, जो धारा 8 के तहत सज़ा के लायक है। इस तरह जस्टिस निवेदिता पी मेहता की बेंच ने 25 साल के आदमी की अपील खारिज की और उसकी सज़ा को सही ठहराया और जुर्म की गंभीरता को देखते हुए उसे प्रोबेशन का फ़ायदा देने से भी मना कर दिया।

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