आय छिपाने के कारण भरण-पोषण न मिलने से पत्नी का आवास अधिकार समाप्त नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट
Praveen Mishra
13 Dec 2025 3:25 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि पत्नी द्वारा अपनी आय छिपाने के कारण उसे आर्थिक भरण-पोषण (monetary maintenance) का अधिकार नहीं दिया जाता, तो भी इससे उसे घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act) के तहत आवास आदेश (residence order) से वंचित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस स्वरना कांता शर्मा पत्नी द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत पति द्वारा दी जाने वाली अंतरिम भरण-पोषण राशि को पत्नी के लिए निरस्त कर दिया गया था।
मामले के तथ्य
पत्नी ने धारा 12, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की थी, जिसमें दहेज से जुड़ी प्रताड़ना तथा मौखिक और मानसिक उत्पीड़न के आरोप लगाए गए थे। मजिस्ट्रेट ने प्रारंभ में पत्नी को ₹30,000 प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण दिया था, जिसे बाद में पत्नी और नाबालिग बेटे के लिए ₹15,000-₹15,000 प्रतिमाह तय किया गया।
इसके बाद दोनों पक्षों ने सत्र न्यायालय में अपील दायर की। पत्नी ने भरण-पोषण बढ़ाने की मांग की, जबकि पति ने आरोप लगाया कि पत्नी ने अपनी आय छिपाई है।
विवादित आदेश के माध्यम से सत्र न्यायालय ने नाबालिग बच्चे के लिए ₹15,000 प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण बरकरार रखा, लेकिन पत्नी को दी जा रही अंतरिम भरण-पोषण राशि को निरस्त कर दिया।
हाईकोर्ट का दृष्टिकोण
हाईकोर्ट ने यह पाया कि निचली दोनों अदालतों का यह निष्कर्ष सही था कि पत्नी ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया और अपनी वास्तविक आय का खुलासा नहीं किया। अदालत ने नोट किया कि पत्नी MBA डिग्रीधारक है, उसे पूर्व में कार्य अनुभव रहा है और उसके पास ऐसे आर्थिक संसाधन हैं जिनका उसने खुलासा नहीं किया।
हालांकि, अदालत ने पत्नी के आवास के अधिकार से संबंधित दलील को स्वीकार किया। कोर्ट ने कहा कि यह निर्विवाद है कि किराए का मकान खाली करने के बाद पत्नी और नाबालिग बच्चा उसके भाई के घर रह रहे हैं और वह वहां केवल सद्भावना के आधार पर रह रही है, बिना कोई किराया दिए।
कोर्ट ने कहा:
“सिर्फ इस आधार पर कि पत्नी ने आय छिपाई है और वह अंतरिम अवधि में आर्थिक भरण-पोषण की हकदार नहीं है, उसे धारा 19, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत आवास आदेश से स्वतः वंचित नहीं किया जा सकता।”
आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि पत्नी और नाबालिग बच्चे के लिए किराए का आवास सुनिश्चित करने हेतु ₹10,000 प्रतिमाह पति द्वारा दिया जाएगा।
इसके साथ ही कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह मामले की सुनवाई में तेजी लाए, कम अंतराल पर तारीखें दे और दोनों पक्षों के साक्ष्य बिना अनावश्यक देरी के पूरे कराए।

