BNSS की धारा 35 | गिरफ्तारी व्यक्तिगत कार्रवाई, हर आरोपी के लिए अलग-अलग ठोस कारण जरूरी: बॉम्बे हाईकोर्ट

Amir Ahmad

8 Dec 2025 1:03 PM IST

  • BNSS की धारा 35 | गिरफ्तारी व्यक्तिगत कार्रवाई, हर आरोपी के लिए अलग-अलग ठोस कारण जरूरी: बॉम्बे हाईकोर्ट

    एक अहम फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी एक पूरी तरह व्यक्तिगत कार्रवाई होती है। जांच एजेंसियां कई आरोपियों को एक साथ पकड़ने के लिए एक जैसे या सामूहिक कारणों का सहारा नहीं ले सकतीं। अदालत ने कहा कि हर आरोपी की गिरफ्तारी के लिए उसके खुद के मामलों और भूमिका से जुड़े ठोस अलग-अलग और दस्तावेजों से समर्थित कारण दर्ज करना अनिवार्य है।

    जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस श्याम सी. चांडक की खंडपीठ ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 35 की व्याख्या करते हुए कहा कि गिरफ्तारी के कारण को कानून की धाराओं की यांत्रिक नकल मात्र नहीं होना चाहिए बल्कि यह पुलिस अधिकारी द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग तथ्यों के आधार पर निकाले गए ठोस निष्कर्ष होने चाहिए।

    इसी आधार पर कोर्ट ने एक कॉरपोरेट अधिकारी चंद्रशेखर भीमसेन नाइक की गिरफ्तारी को अवैध ठहराया। नाइक बेंगलुरु स्थित एक डिजिटल टेक्नोलॉजी कंपनी में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट थे और डीपफेक विज्ञापन से जुड़े एक हाई-प्रोफाइल धोखाधड़ी मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया।

    यह मामला SEBI रजिस्टर्ड रिसर्च एनालिस्ट प्रकाश गाबा द्वारा दर्ज कराई गई FIR से जुड़ा है, जिसमें आरोप है कि ठगों ने AI तकनीक से उनके फर्जी वीडियो (DEEPFAKE) तैयार कर शेयर मार्केट निवेश के नाम पर लोगों को ठगा। FIR में नाइक का नाम प्रारंभ में नहीं था लेकिन पुलिस ने अन्य कर्मचारियों से पूछताछ के बाद 16 अक्टूबर, 2025 को उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया। जबकि उन्होंने पुलिस के साथ सहयोग किया और उनके खिलाफ सात वर्ष से कम सजा वाले अपराध थे, फिर भी पुलिस ने उन्हें BNSS की धारा 35(3) के तहत गिरफ्तारी के बदले नोटिस देकर उपस्थित होने का मौका दिए बिना सीधे ही गिरफ्तार कर लिया।

    पुलिस ने मजिस्ट्रेट को दी गई रिमांड चेकलिस्ट में गिरफ्तारी के कारणों के रूप में कंप्यूटर एविडेंस जुटाना तकनीकी साक्ष्य नष्ट होने की आशंका और अपराध का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलाव जैसे सामान्य कारण लिखे थे। यही कारण अन्य सह-आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए भी इस्तेमाल किए गए।

    नाइक की ओर से दलील दी गई कि पुलिस ने एक टेम्पलेट की तरह कानूनी भाषा की नकल करते हुए सामूहिक कारण लिखे हैं, जबकि कानून के तहत हर आरोपी के लिए स्पष्ट, विशिष्ट और तथ्य-आधारित कारण ज़रूरी हैं। यह भी कहा गया कि मजिस्ट्रेट ने रिमांड देते समय यह जांच नहीं की कि गिरफ्तारी BNSS की धारा 35 के अनुरूप है या नहीं और उन्होंने महज पुलिस के कथन पर आंख मूंदकर आदेश दे दिया।

    राज्य सरकार ने गिरफ्तारी को सही ठहराने की कोशिश करते हुए कहा कि मामला गंभीर है और नाइक के मोबाइल से कुछ व्हाट्सऐप संदेश हटाए जाने से साक्ष्य से छेड़छाड़ की आशंका है।

    कोर्ट ने पुलिस के सामूहिक सोच वाले रवैये को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि कानून की मांग है कि हर आरोपी के लिए अलग-अलग यह दिखाया जाए कि उसकी गिरफ्तारी क्यों आवश्यक है जैसे कि उसके फरार होने का खतरा, साक्ष्य से छेड़छाड़ की संभावना गवाहों को प्रभावित करने की आशंका या हिरासत में पूछताछ की खास जरूरत। ये सभी बातें हर आरोपी पर एक-सी लागू नहीं हो सकतीं।

    खंडपीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में कोई व्यक्तिगत कारण दर्ज नहीं किया गया बल्कि सभी को एक ही पैमाने से नापा गया, जो स्पष्ट रूप से गैर-विवेकपूर्ण है। अदालत ने रिमांड देने वाले मजिस्ट्रेट की भी आलोचना की और कहा कि उन्होंने यांत्रिक तरीके से पुलिस की बात मान ली, जबकि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के अरनेश फैसले के अनुरूप खुद संतुष्टि करनी थी कि गिरफ्तारी वाकई जरूरी है।

    अदालत ने गिरफ्तारी को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तथा BNSS के वैधानिक सुरक्षा प्रावधानों का उल्लंघन मानते हुए अवैध करार दिया और नाइक की तत्काल रिहाई का आदेश दिया।

    अपने 36 पन्नों के फैसले में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य फैसले का हवाला देते हुए कहा,

    “किसी राष्ट्र की सभ्यता की गुणवत्ता इस बात से आंकी जा सकती है कि वह आपराधिक कानून को लागू करने में किन तरीकों का इस्तेमाल करता है।”

    इस फैसले के साथ बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ संदेश दिया कि गिरफ्तारी कोई औपचारिकता नहीं बल्कि एक गंभीर संवैधानिक कार्रवाई है, जिसे सोच-समझकर हर व्यक्ति के मामले को अलग-अलग परखते हुए ही अंजाम दिया जाना चाहिए।

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