हरियाणा सरकार का क्लर्क की इंक्रीमेंट वापस लेना प्रथम दृष्टया बड़ी बेंच के सामने दिए गए वचन का उल्लंघन: हाई कोर्ट ने अवमानना ​​नोटिस जारी किया

Shahadat

11 Dec 2025 9:49 AM IST

  • हरियाणा सरकार का क्लर्क की इंक्रीमेंट वापस लेना प्रथम दृष्टया बड़ी बेंच के सामने दिए गए वचन का उल्लंघन: हाई कोर्ट ने अवमानना ​​नोटिस जारी किया

    पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि हरियाणा सरकार द्वारा महिला एवं बाल विकास विभाग के एक कर्मचारी को पहले दी गई इंक्रीमेंट वापस लेने का कदम, प्रथम दृष्टया कोर्ट की एक बड़ी बेंच के सामने कंप्यूटर एप्रिसिएशन और एप्लीकेशन (SETC) में राज्य पात्रता परीक्षा की प्रयोज्यता के संबंध में दर्ज किए गए वचन का उल्लंघन है।

    कोर्ट ने अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 10 और 12 के तहत आरोप का नोटिस जारी किया। साथ ही प्रतिवादी नंबर 1 को 28.04.2026 को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया।

    जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन ने कहा,

    "एक बार जब सरकार की ओर से बड़ी बेंच के सामने एक बयान दिया गया, जो 21.02.2019 के आदेश (अनुलग्नक P-2) के पैरा 3 में परिलक्षित होता है और यहां तक ​​कि विभाग द्वारा 01.05.2019 के निर्देशों (अनुलग्नक P-4) के माध्यम से सरकार द्वारा लिए गए उक्त निर्णय के बारे में सूचित करते हुए एक विभागीय अधिसूचना भी जारी की गई तो याचिकाकर्ता को शुरू में दिए गए लाभ को वापस लेना, प्रथम दृष्टया प्रतिवादियों की ओर से बड़ी बेंच के सामने दर्ज किए गए बयान/दिए गए वचन का उल्लंघन है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि डॉ. रेनू एस फुलिया, प्रतिवादी के हस्ताक्षर वाले 16.09.2020 के लाभ वापस लेने के आदेश से अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 10 और 12 के तहत आरोप/नोटिस जारी करने का प्रथम दृष्टया मामला बनता है।

    महिला एवं बाल विकास विभाग के कई कर्मचारियों ने पहले राज्य सरकार की 17.11.2018 की अधिसूचना को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसमें SETC को उन सभी मौजूदा क्लर्कों, क्लर्क के पद पर पदोन्नति चाहने वाले सभी उम्मीदवारों और क्लर्क के रूप में सीधी भर्ती चाहने वाले सभी उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य कर दिया गया था।

    कोर्ट की एक बड़ी बेंच ने 04.09.2018 के आदेश के माध्यम से मुख्य सचिव को मामले की व्यक्तिगत रूप से जांच करने का निर्देश दिया था। इसके बाद 21.02.2019 के एक आदेश में राज्य के वकील ने साफ किया कि 07.11.2013 (पहले के नोटिफिकेशन की तारीख) को कट-ऑफ तारीख माना जाएगा, जिसका मतलब है कि 07.11.2013 के बाद क्लर्क के पद पर प्रमोट हुए सभी लोगों को SETC पास करना ज़रूरी होगा।

    इस कट-ऑफ को बड़ी बेंच ने मान लिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता की पिछली रिट याचिका 08.05.2019 को निपटा दी गई।

    बड़ी बेंच के सामने दिए गए वादे के बाद अंडर सेक्रेटरी, जनरल सर्विसेज-II ने 01.05.2019 को डिपार्टमेंटल निर्देश जारी किए, जिसमें सभी डिपार्टमेंट्स को बताया गया कि 07.11.2013 के बाद क्लर्क के पद पर प्रमोट हुए सभी लोगों को SETC पास करना होगा।

    ये निर्देश जारी होने के बाद ही याचिकाकर्ता की रिट याचिका निपटाई गई।

    इसके बाद याचिकाकर्ता को 24.12.2019 के आदेश से 19.10.2006 से इंक्रीमेंट दिया गया। हालांकि, इस फायदे को बाद में महिला एवं बाल विकास विभाग के डायरेक्टर ने 18.09.2020 के आदेश से एकतरफा वापस ले लिया।

    दाखिल किए गए जवाब में प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि डिपार्टमेंटल टेस्ट का सवाल पहले हाई कोर्ट ने तय नहीं किया था। याचिकाकर्ता को CWP-18084-2016 में टाइप टेस्ट पास करने से छूट नहीं दी गईं।

    कोर्ट ने कहा कि जब बड़ी बेंच के सामने एक साफ बयान दिया गया - जो 21.02.2019 के आदेश के पैरा 3 में दर्ज है - और उस बयान के बाद 01.05.2019 को डिपार्टमेंटल निर्देश जारी किए गए तो याचिकाकर्ता को पहले दिए गए फायदे को बाद में वापस लेना, पहली नज़र में बड़ी बेंच के सामने दिए गए बयान और वादे का उल्लंघन है।

    अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल को होगी।

    Title: Chander Pal v. Renu S Phullia and another

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