हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2025-08-24 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (18 अगस्त, 2025 से 22 अगस्त, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

प्रवेश के दौरान संस्थागत वरीयता सभी छात्रों पर लागू, उत्तीर्ण वर्ष के आधार पर भेदभाव लागू नहीं किया जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

एकल न्यायाधीश के फैसले से असहमत होते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि प्रवेश के चरण में संस्थानों द्वारा लागू की जाने वाली संस्थागत वरीयताएं उस संस्थान से उत्तीर्ण सभी छात्रों पर लागू होनी चाहिए, और उत्तीर्णता वर्ष के आधार पर उन छात्रों के बीच कोई कृत्रिम भेदभाव नहीं किया जा सकता। न्यायालय एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान द्वारा संस्थान वरीयता के अंतर्गत नए छात्रों के लिए एक अलग श्रेणी बनाने की अनुमति देने वाले एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी गई थी।

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शादी से पहले वैवाहिक इतिहास छिपाना तथ्यों का दमन' ऐसी शादी रद्द हो सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम फैसले में कहा कि शादी से पहले अपने वैवाहिक इतिहास को छिपाना कोई मामूली गलती नहीं बल्कि एक गंभीर तथ्य छिपाना है, जो विवाह की जड़ पर प्रहार करता है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 के तहत ऐसी शादी को रद्द करने योग्य बना देता है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा, “ऐसे तथ्य को छिपाना स्वतंत्र और सूचित सहमति की नींव को हिला देता है, जिससे विवाह धारा 12(1)(c) के तहत रद्द करने योग्य हो जाता है।”

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भारत की निंदा किए बिना फेसबुक पर 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' लिखना राजद्रोह नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक रेहड़ी-पटरी वाले को ज़मानत दी, जिस पर फेसबुक पर "पाकिस्तान ज़िंदाबाद" टाइटल के साथ प्रधानमंत्री की एआई-जनित तस्वीर साझा करने का आरोप है। न्यायालय ने टिप्पणी की कि भारत के खिलाफ बोले बिना किसी अन्य देश की प्रशंसा करना राजद्रोह नहीं है, क्योंकि इससे विद्रोह, हिंसा या अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा नहीं मिलता।

Case Name: Suleman V/s State of H.P.

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विवाहित पुरुष के साथ रहने से कोई कानून नहीं रोकता, वयस्क महिला को अपनी पसंद का अधिकार: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि कोई भी कानून किसी वयस्क महिला को विवाहित पुरुष के साथ रहने से नहीं रोकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि एक वयस्क महिला को यह अधिकार है कि वह किसके साथ रहना चाहती है और अदालत उसके नैतिक मूल्यों पर टिप्पणी नहीं कर सकती।

जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की खंडपीठ ने यह आदेश हेबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। महिला को अदालत में पेश किया गया तो उसने उस पुरुष के साथ रहने की इच्छा जताई, जिसके साथ वह भागी थी। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि वह पुरुष पहले से विवाहित है, इसलिए महिला को अपने माता-पिता के साथ रहना चाहिए।

केस टाइटल: एन बनाम मध्यप्रदेश राज्य

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पंजाब पावर कॉर्पोरेशन वैधानिक संस्था, 5वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने की तिथि तय करने का अधिकार: हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (PSPCL) वैधानिक संस्था है। इसलिए इसकी वित्तीय स्थिति को देखते हुए इसे 5वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की कट-ऑफ तिथि तय करने का अधिकार है। अदालत ने कर्मचारियों द्वारा दायर उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें 01 दिसंबर 2011 को निर्धारित कट-ऑफ तिथि को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया गया था।

केस टाइटल: तेजिंदर सिंह भाथल एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य

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उसी हिरासत आदेश के खिलाफ दूसरी हैबियस कॉर्पस याचिका तभी मान्य जब नए आधार मौजूद हों: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि उसी बंदी प्रत्यक्षीकरण आदेश के खिलाफ एक दूसरी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सुनवाई योग्य है यदि नए आधार, जो पहले बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में नहीं उठाए गए थे, उपलब्ध हैं। अदालत ने कहा, ''स्पष्ट शब्दों में दूसरी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका तभी सुनवाई योग्य है जब दूसरी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में लिए गए आधार बंदी को पहली बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करते समय उपलब्ध नहीं हों और किसी अन्य परिस्थिति में दूसरी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

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O.21 R.32(5) CPC | यदि निर्णय-ऋणी निषेधाज्ञा का उल्लंघन करता है तो निष्पादन न्यायालय संपत्ति का कब्जा बहाल कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि जहां निषेधात्मक निषेधाज्ञा का आदेश, निर्णीत ऋणी द्वारा विवादित संपत्ति से डिक्री धारक को बेदखल करने के जानबूझकर और गैरकानूनी कृत्य के कारण निरर्थक हो जाता है, वहां निष्पादन न्यायालय को आदेश 21 नियम 32(5) सीपीसी के तहत कब्जा बहाल करने का निर्देश देने का अधिकार है।

जस्टिस फरजंद अली ने इस तर्क को खारिज करते हुए कि निष्पादन न्यायालय का अधिकार क्षेत्र केवल डिक्री को लागू करने तक सीमित है, जो इस मामले में केवल निषेधात्मक निषेधाज्ञा थी, न कि कब्जा सौंपना, कहा, "निषेधात्मक आदेश का सार कब्जे को सुरक्षित रखना और अतिक्रमण को रोकना है। निषेधाज्ञा का अर्थ है कि आप प्रवेश नहीं करेंगे या निषेधाज्ञा द्वारा निषेधाज्ञा लागू करेंगे। यदि, इसके उल्लंघन में, जबरन कब्जा कर लिया जाता है, तो निषेधाज्ञा की अवधारणा में "निष्कासित करने" और वैध पक्ष को वापस कब्जा दिलाने का अधिकार भी शामिल है।"

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तलाक के बाद घरेलू हिंसा कानून के तहत महिला को निवास का अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि विवाह कानूनी रूप से समाप्त हो चुका है तो महिला को घरेलू हिंसा कानून (Protection of Women from Domestic Violence Act) की धारा 17 के तहत साझा घर में रहने का अधिकार नहीं होगा, जब तक कि उसके पास कोई अन्य वैधानिक अधिकार साबित न हो।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा, “जब विवाह वैध तलाक डिक्री द्वारा समाप्त हो जाता है तो घरेलू संबंध भी समाप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, जिस आधार पर निवास का अधिकार टिका है, वह समाप्त हो जाता है, जब तक कि कोई विपरीत वैधानिक अधिकार साबित न किया जाए।”

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सरकार पंचायत चुनावों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित नहीं कर सकती, यह संविधान के अनुच्छेद 243-ई के विपरीत: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि नए पंचायत चुनाव कराने के लिए विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किए बिना, अपनी-अपनी पंचायतों के विघटन के छह महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी, अगले चुनाव तक प्रशासक के पद पर बने रहने की अनुमति प्राप्त औपचारिक सरपंचों को हटाना, संवैधानिक आदेश के उल्लंघन का एक ज्वलंत उदाहरण है।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने आगे कहा कि इन चुनावों को लंबे समय तक स्थगित रखने से स्थानीय स्तर पर शासन में शून्यता पैदा हो सकती है, और राजस्थान सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह इस मामले पर शीघ्रता से विचार करे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव जल्द से जल्द संपन्न हों।

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Order 41 Rule 27 CPC: अपील लंबित रहने पर अतिरिक्त साक्ष्य की अर्जी पर फैसला अंतिम सुनवाई में ही होगा : राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की Order 41 Rule 27 के तहत अपील के दौरान दाखिल की गई अतिरिक्त साक्ष्य लेने की अर्जी पर फैसला अपील की अंतिम सुनवाई के समय ही किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की अर्जी को अपील की सुनवाई से पहले तय करना न्यायिक दृष्टि से उचित नहीं होगा।

मामला उस समय उठा, जब याचिकाकर्ता के खिलाफ किराया न्यायाधिकरण ने बेदखली का आदेश पारित किया था। इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई, जो विचाराधीन थी। अपील लंबित रहते हुए याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त साक्ष्य लेने की अर्जी दाखिल की। न्यायाधिकरण ने यह अर्जी अपील की अंतिम सुनवाई पर विचारार्थ सुरक्षित रखी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सीपीसी की धारा 151 के तहत आवेदन देकर अनुरोध किया कि अपील के गुण-दोष पर विचार से पहले उसकी अर्जी का निपटारा किया जाए। हालांकि, न्यायाधिकरण ने इस आवेदन को भी खारिज कर दिया। इसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई।

केस टाइटल: शंकर लाल सैनी बनाम नगिना पाटोलिया एवं अन्य

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पति-पत्नी के बीच जाति-आधारित अपमान SC/ST Act के तहत अपराध नहीं, जब तक कि जनता द्वारा इसकी गवाही न दी जाए: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने दोहराया कि एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के प्रावधान 3(1)(आर) और 3(1)(एस) केवल तभी लागू होंगे, जब घटना या तो सार्वजनिक स्थान पर हुई हो या कम से कम एक स्वतंत्र गवाह द्वारा देखी गई हो। यह आदेश जस्टिस ई.वी. वेणुगोपाल ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका पर पारित किया, जिसने कथित तौर पर जाति-आधारित गालियों का इस्तेमाल करके अपने पूर्व पति का अपमान किया था।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भड़काऊ भाषण मामले में अब्बास अंसारी की सजा पर लगाई रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व विधायक अब्बास अंसारी की तीन साल पुराने नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में दोषसिद्धि पर रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि उनकी सजा पर रोक लगाने से इनकार करने से न केवल उनके साथ बल्कि मतदाताओं के साथ भी अन्याय होगा, जिन्होंने उन्हें चुना था।

2022 में मऊ से चुने गए अब्बास को 2022 में किए गए एक अभियान भाषण के लिए मई 2025 में दो साल की कैद की सजा सुनाई गई थी, जिसके कारण उन्हें विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। सत्र अदालत ने जहां उसकी सजा पर रोक लगा दी थी, वहीं उसकी सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद अब्बास ने हाईकोर्ट का रुख किया।

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विधवा बहू को ससुर की साझी पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण का हक, निजी संपत्ति से नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि ससुर की मौत के बाद विधवा हो गई बहू, अपनी कोपार्सनरी संपत्ति से प्राप्त संपत्ति से गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि भले ही ससुर के पास महत्वपूर्ण अलग या स्व-अर्जित संपत्ति हो, लेकिन रखरखाव का कर्तव्य केवल कोपार्सनरी संपत्ति से उत्पन्न होता है जो बाद में उनकी मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति का एक हिस्सा होगा।

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सभी राज्य प्रतिष्ठानों को आधिकारिक दस्तावेजों में ट्रांसजेंडर व्यक्ति का नया नाम और लिंग दर्ज करना अनिवार्य: मणिपुर हाईकोर्ट

मणिपुर हाईकोर्ट ने हाल ही में निर्देश दिया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के प्रावधान, जो एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को सभी आधिकारिक दस्तावेजों में अपनी पहचान दर्ज कराने का अधिकार देते हैं, राज्य के सभी "प्रतिष्ठानों" पर लागू होंगे।

न्यायालय ने यह आदेश एक ट्रांसजेंडर महिला की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया, जिसमें उसने मणिपुर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (BOSEM), मणिपुर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परिषद (COSEM) और मणिपुर विश्वविद्यालय (MU) द्वारा जारी उसके शैक्षिक प्रमाणपत्रों में अपना नाम और लिंग महिला के रूप में दर्शाने का अनुरोध किया था।

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महाराष्ट्र स्टाम्प एक्ट की धारा 53A(1) के तहत आदेश, प्रमाणपत्र जारी होने की तारीख से 6 साल के भीतर देना होगा: हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना है कि बॉम्बे / महाराष्ट्र स्टाम्प अधिनियम, 1958 की धारा 53 A(1) के तहत एक आदेश धारा 32 के तहत अधिनिर्णय का प्रमाण पत्र जारी करने की तारीख से छह साल की अवधि के भीतर पारित किया जाना चाहिए। इसने फैसला सुनाया कि केवल छह साल के भीतर कार्यवाही शुरू करना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि अंतिम आदेश उसी अवधि के भीतर किया जाना है।

जस्टिस जितेंद्र जैन सोनी मोनी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें मुख्य नियंत्रक राजस्व प्राधिकरण के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अधिनिर्णय प्रमाण पत्र जारी होने के लगभग नौ साल बाद घाटे के स्टांप शुल्क का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि कार्रवाई धारा 53A(1) की स्पष्ट भाषा के तहत सीमा द्वारा वर्जित थी।

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दिल्ली हाईकोर्ट: बिल्डर एग्रीमेंट से परिवारिक समझौते में तय हिस्सेदारी नहीं बदल सकती

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि परिवारिक समझौता जिसके जरिए परिवार के सदस्यों के बीच संपत्ति के हिस्से बांटे जाते हैं, उसके लिए रजिस्ट्रेशन आवश्यक नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि यदि परिवार के सदस्य निर्माण के लिए किसी बिल्डर के साथ समझौता करते हैं तो इससे उनकी हिस्सेदारी प्रभावित नहीं होती।

जस्टिस अनिल क्षेतरपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा, “परिवारिक समझौता किसी भी नए अधिकार, शीर्षक या हित का सृजन नहीं करता, बल्कि पहले से मौजूद हिस्सेदारी की पहचान करता है। ऐसे में उसका पंजीकरण आवश्यक नहीं। एक बार जब समझौते से हिस्से तय हो गए तो बिल्डर एग्रीमेंट केवल निर्माण से संबंधित होता है और इससे हिस्सेदारी में कोई बदलाव या संशोधन नहीं होता।”

टाइटल: Suman Singh Virk & Anr. बनाम Deepika Prashar & Anr.

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'दुर्घटना' में अचानक फिसलना भी शामिल, मुआवज़े के लिए दूसरे वाहन की संलिप्तता ज़रूरी नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

एक महत्वपूर्ण आदेश में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि किसी सड़क दुर्घटना (Accident) के लिए किसी अन्य वाहन की संलिप्तता आवश्यक नहीं है। मोटरसाइकिल के फिसलने या स्किड होने को भी दुर्घटना माना जाएगा और पीड़ितों को मोटर वाहन अधिनियम (Motor Vehicles Act) के तहत मुआवजा पाने का अधिकार होगा।

हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए मृत महिला के परिजनों को 7,82,800 रुपये मुआवजा और 7.5% वार्षिक ब्याज देने का आदेश दिया। महिला की मौत उस समय हुई थी जब उनकी साड़ी मोटरसाइकिल की चैन में फँस गई, जिससे मोटरसाइकिल फिसल गई और महिला सड़क पर गिर गई।

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POCSO कानून जेंडर न्यूट्रल, नाबालिग शोषण मामले में महिला की FIR रद्द नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार (18 अगस्त) को एक 52 वर्षीय महिला की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने अपने खिलाफ दर्ज यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) की शिकायत को रद्द करने की मांग की थी। यह शिकायत एक नाबालिग लड़के के माता-पिता ने POCSO एक्ट के तहत दर्ज कराई थी। अदालत ने कहा कि इस कानून के प्रावधान पुरुष और महिला दोनों पर लागू होते हैं और यह अधिनियम “जेंडर न्यूट्रल” (लैंगिक रूप से निष्पक्ष) है।

जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने आदेश सुनाते हुए कहा, “POCSO अधिनियम एक प्रगतिशील कानून है, जिसका उद्देश्य बचपन की पवित्रता की रक्षा करना है। यह लैंगिक निष्पक्षता पर आधारित है और बच्चों की सुरक्षा करना इसका कल्याणकारी उद्देश्य है, चाहे उनका लिंग कोई भी हो।”

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मामूली अपराधों के लिए केवल FIR लंबित होना अनुकंपा नियुक्ति से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि FIR का लंबित होना विशेष रूप से छोटे अपराधों के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा पहले से स्वीकृत अनुकंपा नियुक्ति को रोकने का वैध कारण नहीं हो सकता। जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा, "जब तक आरोपी के खिलाफ आरोप तय नहीं हो जाते और उसे सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी नहीं ठहराया जाता तब तक उसे निर्दोष माना जाता है। यदि ऐसा है तो केवल FIR लंबित होने के आधार पर नियुक्ति से इनकार करना, वह भी छोटे अपराधों के लिए टिकने योग्य नहीं हो सकता।"

केस टाइटल: योग राज बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य।

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शेयरधारक को दी गई व्यावसायिक अग्रिम राशि, जिसका कंपनी के काम में उपयोग नहीं किया गया, आयकर अधिनियम के तहत डीम्ड लाभांश मानी जाएगी: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि जहां कोई कंपनी अपने किसी शेयरधारक को अग्रिम राशि प्रदान करती है और यह प्रदर्शित नहीं होता कि इस अग्रिम राशि का उपयोग कंपनी के व्यवसाय के लिए किया गया है, वहां आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2(22)(e) के अंतर्गत उस राशि को लाभांश माना जाएगा। न्यायालय ने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसने ऐसे अग्रिमों को लाभांश के रूप में जोड़ने को सही ठहराया था।

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