भारत की निंदा किए बिना फेसबुक पर 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' लिखना राजद्रोह नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
Shahadat
23 Aug 2025 12:47 PM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक रेहड़ी-पटरी वाले को ज़मानत दी, जिस पर फेसबुक पर "पाकिस्तान ज़िंदाबाद" टाइटल के साथ प्रधानमंत्री की एआई-जनित तस्वीर साझा करने का आरोप है।
न्यायालय ने टिप्पणी की कि भारत के खिलाफ बोले बिना किसी अन्य देश की प्रशंसा करना राजद्रोह नहीं है, क्योंकि इससे विद्रोह, हिंसा या अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा नहीं मिलता।
राज्य सरकार के तर्क को खारिज करते हुए जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा:
"मातृभूमि की निंदा किए बिना किसी देश की प्रशंसा करना राजद्रोह का अपराध नहीं है, क्योंकि इससे सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को बढ़ावा नहीं मिलता। इसलिए प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता को अपराध से जोड़ने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं है।"
याचिकाकर्ता पर 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' शब्दों के साथ प्रधानमंत्री की एआई-जनित तस्वीर साझा करने का आरोप लगाया गया। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि यह पोस्ट भड़काऊ और राष्ट्रहित के विरुद्ध है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह एक गरीब, अनपढ़ रेहड़ी-पटरी वाला है, जो सूचना देने वाले की दुकान के बाहर एक छोटा-सा फल का ठेला लगाता है। वह सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म चलाने में असमर्थ है। उसका फ़ेसबुक अकाउंट उसके बेटे ने बनाया था। सूचना देने वाले के पास उसका मोबाइल फ़ोन है और उसने विवादास्पद रील शेयर कर दी, क्योंकि दोनों के बीच पैसों से जुड़ा विवाद था।
याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि वह निर्दोष है और उसे झूठा फंसाया गया। FIR में लगाए गए आरोप भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के प्रावधानों को पूरा नहीं करते।
जवाब में राज्य ने तर्क दिया कि याचिका खारिज कर दी जानी चाहिए, क्योंकि जब यह पोस्ट किया गया था, उस समय भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध तनावपूर्ण थे और पाकिस्तान ज़िंदाबाद लिखना राष्ट्रविरोधी था।
न्यायालय ने कहा कि शिकायत में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे पता चले कि भारत सरकार के प्रति कोई नफ़रत या असंतोष व्यक्त किया गया हो।
न्यायालय ने आगे टिप्पणी की कि इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पहले ही ज़ब्त किया जा चुका है और आरोपपत्र में यह नहीं दर्शाया गया कि याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।
इस प्रकार, न्यायालय ने याचिकाकर्ता को ज़मानत देते हुए कहा कि उसे हिरासत में रखने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
Case Name: Suleman V/s State of H.P.

