हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-08-11 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (05 जुलाई, 2024 से 09 अगस्त, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

बिना मंजूरी के वन भूमि को गैर-वन गतिविधियों के लिए पुनर्निर्मित नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 की कठोर आवश्यकताओं पर जोर देते हुए एक याचिकाकर्ता के खिलाफ बेदखली के आदेश को बरकरार रखा है। न्यायालय ने वन क्षेत्रों को अनधिकृत उपयोग से बचाने के लिये डिज़ाइन किए गए कानूनी ढाँचे को रेखांकित करते हुए कहा कि आवश्यक अनुमोदन के बिना वन भूमि को गैर-वन गतिविधियों के लिये पुनर्निर्मित नहीं किया जा सकता है।

जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस बिपिन चंद्र नेगी ने अपने फैसले में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 की सख्त आवश्यकताओं को रेखांकित किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि "वन भूमि का उपयोग गैर-वन उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है, जैसा कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 की धारा 2 में भी परिभाषित और समझाया गया है।

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पति के स्वस्थ और सक्षम रहने पर पत्नी को CrPC की धारा 125 के तहत रखरखाव का पूर्ण अधिकार: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक सक्षम, सक्षम पति से CrPC की धारा 125 के तहत एक पत्नी का रखरखाव का अधिकार पूर्ण है, बशर्ते कोई अयोग्य कारक न हो।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि बेरोजगारी, खराब व्यावसायिक परिस्थितियों, परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति जिम्मेदारियों या चिकित्सा व्यय के कारण रखरखाव का भुगतान करने में असमर्थता का पति का दावा इस अधिकार से इनकार करने के लिए अपर्याप्त है।

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अवैध रूप से बर्खास्त कर्मचारी को, यह मानते हुए कि बर्खास्तगी कभी हुई ही नहीं, सभी लाभ पाने का अधिकार: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन पाठक की एकल पीठ ने एक याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि जिस कर्मचारी को अवैध रूप से नौकरी से निकाला गया है, उसे उन लाभों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए जो उसे नौकरी से निकाले जाने पर मिलते।

अदालत ने मामले में पाया कि 1992 में याचिकाकर्ता की अवैध नौकरी से निकाले जाने को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने विभिन्न दौर की मुकदमों के माध्यम से बरकरार रखा था। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की नौकरी से निकाले जाने की अवधि के लिए कोई गलती नहीं थी। इसलिए, उसे उन लाभों से वंचित करना अनुचित था जो उसे अवैध नौकरी से निकाले जाने पर मिलते।

केस नंबर: डब्ल्यू.पी.(एस) नंबर 6054 ऑफ 2022

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वीजा की परवाह किए बिना विदेशी महिला को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत 'साझा घर' में रहने का अधिकार: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि विदेशी नागरिक होने के बावजूद, एक महिला को घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत वीजा की स्थिति की परवाह किए बिना "साझा परिवार" में रहने का अधिकार है। जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम का उद्देश्य महिला की नागरिकता से संबंधित नहीं है।

अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून और विदेशी अधिनियम, 1946 को एक-दूसरे के साथ मिलाकर नहीं देखा जाना चाहिए। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि घरेलू संबंध का मतलब केवल भारतीय नागरिकों के बीच का संबंध नहीं होता, बल्कि यह उन सभी व्यक्तियों पर लागू होता है जो एक साझा घर में रहते हैं या रह चुके हैं, चाहे उनकी नागरिकता कुछ भी हो।

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पुलिस मुठभेड़ में कथित रूप से फर्जी व्यक्ति की मौत होने पर FIR दर्ज करना अनिवार्य: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया है कि जब भी किसी व्यक्ति की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो जाती है तो एक प्राथमिकी अनिवार्य रूप से दर्ज की जानी चाहिए, जो कथित रूप से फर्जी है। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने 2013 में पुलिस मुठभेड़ में राकेश की मौत के मामले में पुलिस छापेमारी दल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की याचिका खारिज कर दी।

उपराज्यपाल ने घटना की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए थे, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि मृतक के पिता की ओर से गवाहों द्वारा कथित रूप से कोई भी अवैध या अवैध कार्य पुलिस टीम के सदस्यों द्वारा नहीं किया गया था।

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वरिष्ठ नागरिक के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की मांग करने वाले आवेदन पर डीएम अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने का आदेश दे सकते हैं: उत्तराखंड हाईकोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार (7 अगस्त) को कहा कि वरिष्ठ नागरिक के शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप करने वाले अतिचारी को बेदखल करने की मांग करने वाला आवेदन उत्तराखंड के जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत विचारणीय होगा।

हालांकि अधिनियम वरिष्ठ नागरिक को अतिचारी को बेदखल करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर करने की अनुमति नहीं देता है, लेकिन उत्तराखंड माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण नियम 2011 की व्याख्या करने पर, अदालत ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर किया गया आवेदन जिला मजिस्ट्रेट को अतिचारी को बेदखल करने का निर्देश देने का अधिकार भी देगा।

केस डिटेलः नीना खन्ना बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य, रिट याचिका संख्या 2582/2021 (एम/एस)

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वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के एक साल बाद तक साथ न रहने पर डिक्री धारक को विवाह विच्छेद का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

40 साल से अलग रह रहे जोड़े के विवाह विच्छेद के आदेश को बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश की मांग की हो, लेकिन ऐसे आदेश के पारित होने के एक साल बाद तक साथ न रहने पर पति विवाह विच्छेद का आदेश मांग सकता है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 13 (1ए) (ii) में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के पारित होने के एक साल या उससे अधिक समय बाद तक साथ न रहने पर तलाक देने का प्रावधान है।

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने कहा “हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1ए) (आई) [एसआईसी] इस बात में कोई संदेह नहीं छोड़ती कि एक पक्षकार, जिसे वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश दिया गया हो, तलाक का दावा कर सकता है यदि उस आदेश को उनके पति या पत्नी द्वारा प्रभावी नहीं किया जाता, या उसका पालन नहीं किया जाता।”

मामला टाइटल- माया देवी बनाम भूरा लाल [प्रथम अपील संख्या - 808/2003

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सहदायिक हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति से संबंधित भूमि के किसी भी विशिष्ट हिस्से को अपने हिस्से के अलावा किसी और को ट्रांसफर नहीं कर सकते: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति से संबंधित भूमि के एक हिस्से की बिक्री के मुद्दे पर चर्चा की। न्यायालय ने इस सवाल पर फैसला सुनाया कि क्या सहदायिक के हिस्से के अलावा किसी खास भूमि के टुकड़े को ट्रांसफर किया जा सकता है।

इस सवाल का नकारात्मक जवाब देते हुए जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा, “हालांकि सहदायिक या सह-हिस्सेदार अपने हिस्से की सीमा तक हस्तांतरित कर सकता है लेकिन वह किसी खास भूमि के टुकड़े को हस्तांतरित नहीं कर सकता। इसलिए अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं ने सहदायिक/सह-हिस्सेदार का हिस्सा खरीदा है, फिर भी वे किसी विशिष्ट भूमि के हकदार नहीं हैं।

केस टाइटल- अहमद खान और अन्य बनाम भास्कर दत्त पांडे और अन्य

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कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया में कंपनी के खिलाफ GST की धारा 73 के तहत आदेश पारित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि माल और सेवा कर अधिनियम 2017 (GST Act)की धारा 73 के तहत आदेश उस कंपनी के खिलाफ पारित नहीं किया जा सकता, जो दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016 के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के तहत है।

GST Act की धारा 73 एक उचित अधिकारी को कार्यवाही शुरू करने का अधिकार देती है। यदि वह संतुष्ट है कि किसी भी कर का भुगतान नहीं किया गया, या कम भुगतान किया गया, या गलत तरीके से वापस किया गया, या जहां किसी भी करदाता द्वारा कर से बचने के लिए धोखाधड़ी या किसी जानबूझकर गलत बयान या तथ्यों को छिपाने के कारण के अलावा किसी भी कारण से इनपुट टैक्स क्रेडिट का गलत तरीके से लाभ उठाया गया है या उसका उपयोग किया गया।

केस टाइटल- बीजीआर एनर्जी सिस्टम्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

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समय पर खाना न बनाना, पति से घर के काम करवाना, जैसे मामूली घरेलू मामले आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट इंदौर ने आत्महत्या के लिए उकसाने के हालिया मामले में पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप, जैसे कि समय पर खाना न बनाना, अपने पति से घर के काम करवाना और अपने भाई की शादी में शामिल होना, मामूली घरेलू मुद्दे हैं, जो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 107 के तहत परिभाषित उकसाने की सीमा को पूरा नहीं करते।

जस्टिस हिरदेश ने संगीता को बरी कर दिया, जिस पर अपने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है और आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने या उकसाने के ठोस सबूतों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

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उधार वाहन चलाने वाले व्यक्ति का कानूनी उत्तराधिकारी दुर्घटना में चोट या मृत्यु के लिए मुआवजे का दावा नहीं कर सकता: गुहाटी हाईकोर्ट

गुहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के एक फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें उधार ली गई मोटरसाइकिल चला रहे एक मृत व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारियों को 2,54,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया था, इस आधार पर कि किसी वाहन का उधारकर्ता किसी और के स्वामित्व वाले वाहन का उपयोग करते समय दुर्घटना में घायल हो जाता है या मर जाता है। उसके कानूनी उत्तराधिकारी मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 163 ए के तहत मुआवजे का दावा नहीं कर सकते।

जस्टिस पार्थिवज्योति सैकिया की सिंगल जज बेंच ने कहा: "निंगम्मा में, यह माना गया है कि जहां भी कोई व्यक्ति, एक भुगतान चालक के अलावा, किसी और के स्वामित्व वाले वाहन का उपयोग करता है, तो असली मालिक के जूते में कदम रखता है। उस स्थिति में, उधार लिए गए वाहन का उपयोगकर्ता पहला पक्ष बन जाता है, तीसरा पक्ष नहीं। जब किसी वाहन का उधारकर्ता यानी पहला पक्ष किसी और के स्वामित्व वाले वाहन का उपयोग करते समय दुर्घटना में घायल हो जाता है या मर जाता है, तो उसके कानूनी उत्तराधिकारी 1988 के अधिनियम की धारा 163-ए के तहत मुआवजे का दावा नहीं कर सकते हैं।

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न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपराध की जांच के लिए अभियुक्तों के वॉइस सैंपल मांगने का अधिकार: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि न्यायिक मजिस्ट्रेटों के पास अपराध की जांच के लिए अभियुक्तों सहित व्यक्तियों को वॉइस सैंपल देने का आदेश देने का अधिकार है।

रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए जस्टिस गीता गोपी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 16 जुलाई को अपने निर्णय में कहा, "न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास किसी व्यक्ति को उसकी वॉइस सैंपल देने का आदेश देने का अधिकार है, ऐसा आदेश किसी अभियुक्त के विरुद्ध भी दिया जा सकता है जो अपराध की जांच के उद्देश्य से हो।”

केस टाइटल - जेआईएल डब्ल्यू/ओ प्रियांक मनुभाई चोकसी बनाम गुजरात राज्य और अन्य।

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घरेलू हिंसा और क्रूरता साबित करने के लिए पत्नी ने पारिवारिक बातचीत को गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया हो तो वह साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि पति और उसके परिवार के खिलाफ घरेलू हिंसा और क्रूरता के दावों को पुख्ता करने के लिए पत्नी ने पारिवारिक बातचीत को गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया है तो वह साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है। साथ ही "पारिवारिक मामलों" में ऐसे सभी दस्तावेज उनकी प्रासंगिकता की परवाह किए बिना या भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार साबित किए जाने पर भी स्वीकार्य हो जाते हैं।

हाईकोर्ट ने फैसले में ऐसी रिकॉर्डिंग की प्रासंगिकता पर जोर दिया, भले ही वे पति और ससुराल वालों की जानकारी के बिना बनाई गई हों।

केस टाइटलः जेआईएल W/O प्रियांक मनुभाई चोकसी बनाम गुजरात राज्य और अन्य।

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प्रभावी रूप से समाप्त हो चुके विवाह में तलाक न देना पति और पत्नी दोनों के प्रति 'क्रूरता' है: उत्तराखंड हाईकोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक जोड़े को, जो शादी के केवल 25 दिन बाद अलग हो गए थे, यह कहते हुए तलाक दिया कि ऐसा न करना क्रूरता होगी क्योंकि विवाह प्रभावी रूप से समाप्त हो गया।

चीफ जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने कहा कि चूंकि वे करीब पांच साल से अलग रह रहे थे, इसलिए उनके बीच 'भावनात्मक जुड़ाव' या 'समझौता' की कोई गुंजाइश नहीं थी। नैनीताल ‌स्थित पीठ ने कहा, "इस विवाह के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह कहा जा सकता है कि यह विवाह एक मृत विवाह से अधिक कुछ नहीं है, और यदि दोनों पक्षों को तलाक नहीं दिया जाता है, तो यह दोनों पक्षों के साथ क्रूरता होगी...।"

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आपसी सहमति से तलाकशुदा जोड़ा फिर से शादी कर सकता है, लेकिन HMA के तहत अपील में तलाक के फैसले को चुनौती नहीं दे सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 13-बी के तहत आपसी सहमति से विवाह विच्छेद के खिलाफ अपील इस आधार पर स्वीकार्य नहीं होगी कि जोड़ा फिर से पति-पत्नी के रूप में साथ रहना चाहता है।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा, "पक्षकारों को बाद में अपने शपथ-पत्र वापस लेने और सुलह की इच्छा जताने की अनुमति देना यह कहकर कि उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया और अब वे साथ रहना चाहते हैं, न्यायालय की अवमानना और झूठी गवाही के बराबर होगा। इसके अतिरिक्त, यह व्यवहार न्यायालय के अधिकार को कमजोर करेगा। इसकी कार्यवाही का अपमान करेगा और इसके फैसले का मजाक उड़ाएगा।"

केस टाइटल- XXX बनाम XXX

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घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही के ‌खिलाफ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 (डीवी एक्ट) की धारा 12 के तहत कार्यवाही को चुनौती देने वाली धारा 482 सीआरपीसी के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट (कामाची बनाम लक्ष्मी नारायणन, 2022 लाइव लॉ (एससी) 370) और मद्रास हाईकोर्ट (अरुल डेनियल बनाम सुगन्या और अन्य संबंधित मामले 2022 लाइव लॉ (मद्रास) 467) के निर्णयों पर भरोसा करते हुए यह फैसला सुनाया।

केस टाइटलः सुमन मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 481

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X कॉर्प सार्वजनिक कार्य नहीं करता, रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि X कॉर्प जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था, सार्वजनिक कार्य नहीं करता या सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन नहीं करता और भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी नहीं है।

जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म निजी कानून के तहत प्राइवेट यूनिट के रूप में काम करता है और किसी भी सरकारी कर्तव्य या दायित्वों का पालन नहीं करता है।

केस टाइटल- संचित गुप्ता बनाम भारत संघ और अन्य।

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