वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के एक साल बाद तक साथ न रहने पर डिक्री धारक को विवाह विच्छेद का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Amir Ahmad

8 Aug 2024 1:43 PM IST

  • वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के एक साल बाद तक साथ न रहने पर डिक्री धारक को विवाह विच्छेद का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    40 साल से अलग रह रहे जोड़े के विवाह विच्छेद के आदेश को बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश की मांग की हो, लेकिन ऐसे आदेश के पारित होने के एक साल बाद तक साथ न रहने पर पति विवाह विच्छेद का आदेश मांग सकता है।

    हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 13 (1ए) (ii) में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के पारित होने के एक साल या उससे अधिक समय बाद तक साथ न रहने पर तलाक देने का प्रावधान है।

    जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने कहा

    “हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1ए) (आई) [एसआईसी] इस बात में कोई संदेह नहीं छोड़ती कि एक पक्षकार, जिसे वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश दिया गया हो, तलाक का दावा कर सकता है यदि उस आदेश को उनके पति या पत्नी द्वारा प्रभावी नहीं किया जाता, या उसका पालन नहीं किया जाता।”

    दोनों पक्षकारों का विवाह 1979 में हुआ था। 1984 में प्रतिवादी-पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए मुकदमा दायर किया, जिसे उनके पक्ष में एकतरफा आदेश दिया गया। एक वर्ष से अधिक समय तक साथ रहने में विफल रहने पर फैमिली कोर्ट ने पक्षकारों के बीच विवाह को भंग करने का आदेश पारित किया।

    विवाह विच्छेद के आदेश को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि दोनों पक्ष दिवाली 1984 के दौरान एक साथ रह रहे थे। तर्क के समर्थन में कहा गया कि अपीलकर्ता-पत्नी ने दिवाली के दौरान अपने पति को 5000/- रुपये दिए थे। हालांकि, अपीलकर्ता के पिता ने अपने बयान में उक्त तथ्य का खंडन किया।

    न्यायालय ने देखा कि प्रतिवादी-पति विवाह विच्छेद के आदेश के हकदार हो गए, क्योंकि 1984 से दोनों पक्षकारों के बीच कोई सहवास नहीं था। यह देखते हुए कि दोनों पक्ष 40 वर्षों से अलग-अलग रह रहे थे, न्यायालय ने दोनों पक्षों के बीच विवाह विच्छेद के फैमिली कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा।

    मामला टाइटल- माया देवी बनाम भूरा लाल [प्रथम अपील संख्या - 808/2003

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