घरेलू हिंसा और क्रूरता साबित करने के लिए पत्नी ने पारिवारिक बातचीत को गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया हो तो वह साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य: गुजरात हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

6 Aug 2024 9:23 AM GMT

  • घरेलू हिंसा और क्रूरता साबित करने के लिए पत्नी ने पारिवारिक बातचीत को गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया हो तो वह साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि पति और उसके परिवार के खिलाफ घरेलू हिंसा और क्रूरता के दावों को पुख्ता करने के लिए पत्नी ने पारिवारिक बातचीत को गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया है तो वह साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है। साथ ही "पारिवारिक मामलों" में ऐसे सभी दस्तावेज उनकी प्रासंगिकता की परवाह किए बिना या भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार साबित किए जाने पर भी स्वीकार्य हो जाते हैं।

    हाईकोर्ट ने फैसले में ऐसी रिकॉर्डिंग की प्रासंगिकता पर जोर दिया, भले ही वे पति और ससुराल वालों की जानकारी के बिना बनाई गई हों।

    ज‌स्टिस गीता गोपी की एकल पीठ ने 16 जुलाई को दिए अपने फैसले में कहा, "आवाज की पहचान पर सवाल नहीं उठता, क्योंकि यह पत्नी ही है, जो पति और ससुराल वालों की आवाज पहचान रही है। अपने वैवाहिक जीवन में वह उनके साथ रही हैं। हालांकि रिकॉर्डिंग पति और परिवार के सदस्यों की जानकारी के बिना है, लेकिन सीडी के जरिए रिकॉर्ड की गई और रिकॉर्ड पर रखी गई बातचीत घरेलू हिंसा के मामले में प्रासंगिक है। पत्नी ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार हैश वैल्यू और धारा 65बी सर्टीफिकेट पेश कर प्रथम दृष्टया यह साबित कर दिया है कि रिकॉर्ड की गई बातचीत में कुछ मिटाया नहीं गया या छेड़छाड़ नहीं की गई है।"

    उल्लेखनीय है कि हैश वैल्यू किसी विशिष्ट डिजिटल साक्ष्य के लिए एक अद्वितीय फिंगरप्रिंट का हवाला देता है।

    टेप रिकॉर्ड की गई बातचीत स्वीकार्य

    हाईकोर्ट ने फैसले में श्री राम रेड्डी आदि बनाम श्री वीवी गिरि (1970), और यूसुफ़ाली इस्माइल नागरी बनाम महाराष्ट्र राज्य (1967) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि टेप-रिकॉर्ड की गई बातचीत स्वीकार्य है बशर्ते कि "बातचीत मुद्दे के लिए प्रासंगिक हो", आवाज़ "पहचानी" गई हो और टेप-रिकॉर्ड की गई बातचीत की सटीकता " कुछ भी मिटाने की संभावना को समाप्त करके साबित की गई हो"।

    हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में पत्नी के रूप में याचिकाकर्ता ने एक सीडी, एक ट्रांसक्रिप्ट और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी के तहत एक सर्टीफिकेट प्रस्तुत किया, जिसमें सीडी में मौजूद आवाजों की पहचान मौजूद है।

    घरेलू हिंसा मामले में प्रासंगिक परिवार के बीच बातचीत

    परिवार के सदस्यों के बीच बातचीत को "प्रासंगिक मामला" बताते हुए जस्टिस गोपी ने कहा, "पत्नी के रूप में याचिकाकर्ता उस क्रूरता को साबित करना चाहती है, जिसका सामना उसने वैवाहिक घर की चारदीवारी में किया। सीडी में दर्ज आवाज की पहचान पर तब कोई सवाल नहीं रह जाता जब याचिकाकर्ता पत्नी के रूप में यह घोषित करती है कि यह उसके पति और परिवार के अन्य सदस्यों की आवाज है, जिनके साथ वह अपनी शादी की तारीख से अकेली रह रही थी। सीडी की सत्यता हैश वैल्यू को रिकॉर्ड में रखकर साबित की गई है।"

    कोर्ट ने यह टिप्पण‌ियां एक महिला की ओर से दायर संशोधन आवेदन में की, जिसमें मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायालय के आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिसने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत क्रूरता के दावों को पुष्ट करने के लिए "फॉरेंसिक विशेषज्ञ के माध्यम से आवश्यक तकनीकी तुलना/जांच" के लिए अपने पति की आवाज के नमूने लेने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के साथ बातचीत रिकॉर्ड की थी और कथित तौर पर उसके साथ हुई क्रूरता के सबूत के तौर पर एक सीडी पेश की थी।

    याचिका को खारिज करते हुए मजिस्ट्रेट अदालत ने फैसला सुनाया कि कानून के तहत किसी भी "स्पष्ट प्रावधान" के अभाव में, "अदालतों को किसी भी व्यक्ति को वॉयस स्पेक्ट्रोग्राफ टेस्ट से गुजरने का आदेश देने का अधिकार" देने के लिए ऐसा निर्देश पारित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी माना कि चूंकि "अपराध की कोई जांच नहीं हुई है" इसलिए यह आदेश भी पारित नहीं किया जा सकता है। इसके बाद महिला ने सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने उसकी याचिका को खारिज कर दिया और मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को "पूर्ण" करार दिया। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    जियाउद्दीन बुरहानुद्दीन बुखारी बनाम बृजमोहन रामदास मेहरा और अन्य, (1975) और आरएम मलकानी बनाम महाराष्ट्र राज्य (1972) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के मद्देनजर हाईकोर्ट ने कहा कि "रिकॉर्ड पर पेश की गई सीडी स्वीकार्य साक्ष्य होगी"।

    ऐसे मामलों से निपटने वाले मजिस्ट्रेटों को घरेलू हिंसा अधिनियम के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए

    जस्टिस गोपी ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही को ऐसे दृष्टिकोण से देखने के महत्व पर प्रकाश डाला, जो पीड़ित व्यक्तियों के रूप में पत्नियों सहित महिलाओं की सुरक्षा पर जोर देता है, और पतियों और उनके परिवार के सदस्यों जैसे प्रतिवादियों को संबोधित करता है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि कार्यवाही का उद्देश्य हिंसा की शिकार महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना और समाज में घरेलू हिंसा की पुनरावृत्ति को रोकना और नागरिक कानूनों में त्वरित उपाय प्रदान करना है।

    घरेलू हिंसा मामलों से निपटने वाले मजिस्ट्रेटों से अधिनियम के उद्देश्य को ध्यान में रखने का आह्वान करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, "इस प्रकार, उस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, मजिस्ट्रेटों को धारा 28(2) के तहत धारा 12 या धारा 23 की उप-धारा (2) के तहत आवेदन के निपटान के लिए अपनी स्वयं की प्रक्रिया निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है। प्रत्येक कार्यवाही इस तरह से संचालित की जानी चाहिए जो प्रकृति में समावेशी हो। विधानमंडल ने संरक्षण अधिकारियों की सेवाएं लेने के लिए अधिनियम के कार्य के निर्वहन में मजिस्ट्रेट की सहायता करने का भी इरादा किया है"।

    कोर्ट ने आगे कहा कि संबंधित मजिस्ट्रेट की सहायता करना तथा घरेलू हिंसा की शिकायत प्राप्त होने पर घरेलू घटना की रिपोर्ट बनाना संरक्षण अधिकारियों का कर्तव्य है।

    हाईकोर्ट ने आगे कहा कि धारा 12 डीवी एक्ट के तहत आवेदन पीड़ित व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या पीड़ित की ओर से डीवी एक्ट के तहत एक या अधिक राहत की मांग करने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है। इस प्रावधान के अनुसार मांगी गई राहतें हो सकती हैं- घरेलू हिंसा के कृत्यों से हुई चोटों के लिए मुआवजे या क्षति के लिए मुकदमा दायर करने के ऐसे व्यक्ति के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना मुआवजे/क्षतिपूर्ति के भुगतान का आदेश।

    हाईकोर्ट ने आगे जोर दिया कि प्रावधान यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि "समाज में घरेलू हिंसा का कोई और अपराध न हो"।

    जस्टिस गोपी ने आगे बताया कि संरक्षण अधिकारियों की अनिवार्य भागीदारी, पार्षदों की सेवाओं और कल्याण विशेषज्ञों की सहायता से मजिस्ट्रेट डीवी एक्ट के तहत कार्यवाही को संभालने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित है। धारा 28(2) मजिस्ट्रेट को धारा 12 के तहत आवेदनों के निपटान के लिए अपनी स्वयं की प्रक्रिया अपनाने के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करती है।

    जस्टिस गोपी ने यह भी माना कि महिला की याचिका खारिज करना डीवी एक्‍ट के उद्देश्यों के अनुरूप नहीं है। इन्हीं टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायालय के आदेशों को रद्द कर दिया और महिला की याचिका को स्वीकार कर लिया।

    केस टाइटलः जेआईएल W/O प्रियांक मनुभाई चोकसी बनाम गुजरात राज्य और अन्य।

    एलएल साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (गुज) 103

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