हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2021-10-03 05:00 GMT

देशभर के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (27 सितंबर 2021 से 1 अक्टूबर 2021 तक) क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

एमपी हाईकोर्ट ने पुरुष, महिला, विचाराधीन कैदियों और दोषियों को अलग-अलग जेलों में रखने की व्यवस्था पर राज्य से जवाब मांगा

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को जेल और सुधार सेवा महानिदेशक (मध्य प्रदेश) से जेल की स्थिति रिपोर्ट मांगी। इस रिपोर्ट में पुरुष और महिला कैदियों के साथ-साथ विचाराधीन और दोषी कैदियों को अलग-अलग जेलों में रखने की व्यवस्था का उल्लेख किया गया है।

न्यायमूर्ति राजीव कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह आदेश मप्र आबकारी अधिनियम की धारा 34 (2) के तहत दर्ज अपराध के संबंध में दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।

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फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में काम करने की अच्छी स्थिति सुनिश्चित करें: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम राज्य के उपायुक्तों से कहा

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने गुरुवार को काम करने की स्थिति और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में माहौल पर चिंता व्यक्त करते हुए असम राज्य के उपायुक्तों को ट्रिब्यूनल में काम करने की अच्छी स्थिति सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति सुमन श्याम की खंडपीठ ने महत्वपूर्ण रूप से यह देखते हुए कि ट्रिब्यूनल के सदस्यों को मामलों की सुनवाई करने और सोफे पर बैठकर आदेश पारित करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि उन ट्रिब्यूनलों में एक कुर्सी और एक टेबल जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, निम्नलिखित आदेश जारी किया:

केस का शीर्षक - XXX XXX XXX बनाम असम सरकार और तीन अन्य।

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"सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा आम आदमी का उत्पीड़न सामाजिक रूप से घृणित": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व सैनिक की प्रताड़ना के मामले में निष्पक्ष जांच का आदेश दिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय सेना के एक पूर्व सैनिक के मामले में निष्पक्ष जांच और तत्काल कार्रवाई का आदेश दिया है। सैनिक ने आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने मई में उन्हें प्रताड़ित और अपमान‌ित किया था। उन्हें कथित तौर पर जबरन एक पुलिस स्टेशन ले जाया गया था, जहां उन्हें निर्वस्त्र किया गया और एक खाट पर बांध दिया गया। पुलिस अधिकारियों ने लगातार दो घंटों तक "डंडों" से उन्हें बेरहमी से पीटा।

जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि पब्‍लिक ऑफिसर्स द्वारा आम आदमी का उत्पीड़न सामाजिक रूप से घृणित और कानूनी रूप से अस्वीकार्य है। कोर्ट ने कहा कि एक सामान्य नागरिक राज्य या उसके उपकरणों की ताकत के खिलाफ श‌िकायत करने या लड़ने के बजाय,...अवांछनीय कामकाज के दबाव के आगे झुक जाता है।

केस का शीर्षक - रेशम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य

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तलाक के मुकदमे का स्थानांतरण- पति की सुविधा पर पत्नी की सुविधा को प्राथमिकता दी जाती है : राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट (जयपुर बेंच) ने गुरुवार को तलाक के मामले को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली एक महिला/पत्नी की याचिका पर विचार करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को पति की सुविधा की तुलना में महिला वादियों की सुविधा को अधिक महत्व और उन पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

न्यायमूर्ति चंद्र कुमार सोंगारा की पीठ ने आगे कहा, ''कानूनी कार्यवाही को एक अदालत से दूसरे में स्थानांतरित करने की अनुमति आमतौर पर उनकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए दी जानी चाहिए और अदालतों को महिला वादियों को अनुचित कठिनाइयों में डालने से बचना चाहिए।''

केस का शीर्षक - श्रीमती एकता धधीच बनाम राजेंद्र प्रसाद शर्मा

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'डॉक्टरों को दर-दर नहीं भटकाया जाना चाहिए': दिल्ली हाईकोर्ट ने पीजी कोर्स के लिए अस्पतालों से स्टडी लीव की मांग करने वाली याचिका स्वीकार की

दिल्ली हाईकोर्ट ने कई डॉक्टरों की तरफ से दायर उन याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है, जिसमें नियोक्ता-अस्पतालों को आगे की शिक्षा, NEET PG पूरी करने के लिए स्टडी लीव देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि डॉक्टरों को केवल एनओसी और अन्य अनुमति प्राप्त करने के लिए दर-दर नहीं भटकाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरों को आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए अस्पताल से मिलने वाली एनओसी पर्याप्त होनी चाहिए, और स्टडी लीव के लिए अलग से आवेदन करने की आवश्यकता एक अनावश्यक विचार प्रतीत होता है।

केस का शीर्षक- डॉ रुचिता घिलोरिया व अन्य बनाम चिकित्सा अधीक्षक व अन्य

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"कोई नियम नहीं है कि गरीब अंगदान नहीं कर सकते': केरल हाईकोर्ट ने प्राधिकरण को असंबंधित ‌किडनी प्रत्यारोपण की याचिका पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि डोनर की खराब आर्थिक पृष्ठभूमि अंग दान के लिए बाधा नहीं है। कोर्ट ने डिस्ट्रिक्ट लेवल अथॉराइजेशन कमेटी के आदेश के ‌खिलाफ दायर याचिका को अनुमति दी।

कमेटी ने एक महिला के अंगदान के आवेदन को इस आधार पर खार‌िज कर दिया था कि वह एक गरीब परिवार से आती है। जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा, "मैं प्रतिवादी के तर्क को समझ नहीं पा रहा हूं। केवल इसलिए कि डोनर एक गरीब परिवार का है, अंग दान करने में कोई बाधा नहीं है ... ऐसा कोई नियम नहीं है कि गरीब लोग अंग दान नहीं कर सकते हैं। गरीब होना पाप नहीं है। हमारे देश में कई बड़े दिल वाले लोग हैं और वे उन्हें बचा सकते हैं। इस तरह हम अमीर और गरीब के बीच के अंतर को कम कर सकते हैं।"

केस शीर्षक: रीजा पी. और अन्य बनाम जिला स्तरीय प्राधिकरण समिति

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जावेद अख्तर मानहानि केस: मुंबई कोर्ट ने कंगना रनौत की 'लॉस्ट फेथ इन द कोर्ट' ट्रांसफर याचिका पर मजिस्ट्रेट से जवाब मांगा

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने अभिनेत्री कंगना रनौत द्वारा दायर उनके खिलाफ गीतकार जावेद अख्तर द्वारा दायर मानहानि मामले को स्थानांतरित करने की याचिका पर अंधेरी मजिस्ट्रेट से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने यह जवाब अभिनेत्री की उस टिप्पणी के संदर्भ में मांगा जिसमें उन्होंने कहा था कि अदालत से उनका विश्वास उठ गया है। मुंबई में प्रभारी सीएमएम एसटी दांडे ने कहा कि वह अभिनेत्री के आरोपों पर पहले मजिस्ट्रेट आरआर खान की प्रतिक्रिया चाहती हैं।

जज ने अख्तर के जवाब को रिकॉर्ड पर ट्रांसफर याचिका पर भी लिया, जहां उन्होंने कंगना पर केवल कार्यवाही में देरी करने का प्रयास करने का आरोप लगाया।

केस शीर्षक: कंगना रनौत बनाम महाराष्ट्र राज्य

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मां की कार्य प्रतिबद्धता उसे उसके बच्चे की कस्टडी के लिए अनुपयुक्त नहीं बनाती: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि एक नाबालिग का 'कल्याण' केवल इस आधार पर तय नहीं किया जा सकता है कि किस माता-पिता के पास अधिक खाली समय है। कोर्ट ने आगे कहा कि एक व्यस्त अभिनेत्री की कार्य प्रतिबद्धताएं उसे उसके बच्चे की कस्टडी के लिए अनुपयुक्त नहीं बनाती हैं।

जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जमादार की खंडपीठ ने अपने नाबालिग बेटे की कस्टडी के लिए अनुच्छेद 226 के तहत पति की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, अदालत ने उन्हें मुलाक़ात के अधिकार की अनुमति दी।

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जूनियर वकीलों की पीड़ा को अनदेखा नहीं कर सकते: केरल हाईकोर्ट ने बार काउंसिल को अनिवार्य स्टाइपेंड लागू करने में देरी के लिए फटकार लगाई

केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य बार काउंसिल को 2018 में जारी सरकार के आदेश को लागू नहीं करने पर फटकार लगाई। इस आदेश में जूनियर वकीलों को प्रत्येक को 5,000 रुपये का वजीफा देने का निर्देश दिया गया है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा: "कोर्ट यह दिखावा नहीं कर सकता कि उसे जूनियर वकीलों की पीड़ा दिखाई नहीं दे रही है।" बार काउंसिल ने स्पष्ट किया कि सरकारी आदेश को लागू करने में देरी चल रही महामारी के कारण हुई।

केस का शीर्षक: एडवोकेट धीरज रवि और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य

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'हमारे देश में मुकदमों को पूरा होने में समय लगता है': केरल हाईकोर्ट ने आपराधिक मामलों में अभियुक्तों को पासपोर्ट जारी करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए

केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में गुरुवार को आपराधिक कार्यवाही में शामिल व्यक्तियों को पासपोर्ट जारी करने की अनुमति देते समय आपराधिक अदालतों द्वारा विचार किए जाने वाले दिशानिर्देशों जारी किए।

न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस ने पिछले पांच वर्षों से नए पासपोर्ट जारी करने की प्रतीक्षा कर रहे एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए कहा: "मजिस्ट्रेट द्वारा किसी आरोपी को विदेश यात्रा करने की अनुमति देना बहुत महत्वपूर्ण होगा। खासकर जब यह विदेश यात्रा करने के लिए एक नागरिक के मौलिक अधिकार और मुकदमे के दौरान आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने की आवश्यकता को संतुलित करने की प्रक्रिया होगी।"

केस शीर्षक: थादेवोस सेबेस्टियन बनाम क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय और अन्य।

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"इसमें सालों लगेंगे":कोर्ट ने दिल्ली दंगों के मामले में सुनवाई में देरी पर चिंता व्यक्त की

दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को यूएपीए और आईपीसी के तहत आरोपों से जुड़े दिल्ली दंगों के बड़े षड्यंत्र के मामले में सुनवाई में देरी पर चिंता व्यक्त की और अभियोजन पक्ष से केवल उन दस्तावेजों के संबंध में जवाब दाखिल करने को कहा जो सीआरपीसी की धारा 207 के तहत आरोपी व्यक्तियों द्वारा पेश किए गए आवेदनों में नहीं दिए जा सकते।

यह टिप्पणी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की ओर से आई जिन्होंने कहा कि यदि सभी आरोपी व्यक्ति अलग-अलग तारीखों पर सीआरपीसी की धारा 207 के तहत आवेदन दाखिल कर रहे हैं और अभियोजन उन सभी में जवाब दाखिल करने का विकल्प चुनता है, इससे मुकदमे की सुनवाई में देरी होगी क्योंकि ऐसे आवेदनों में तर्कों को अलग से सुना जाना है।

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'बलात्कार पीड़िता की गरिमा को बरकरार रखा जाना चाहिए, जिरह में निंदनीय प्रश्नों को रोकना जज का कर्तव्य': बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने निचली अदालतों को चेतावनी दी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि बलात्कार पीड़िता की गरिमा की रक्षा की जाए और जिरह के दरमियान पूछताछ का मकसद पीड़िता का अपमान करना या उसे परेशान करना न हो।

जस्टिस साधना जाधव और जस्टिस सारंग कोतवाल की पीठ ने निचली अदालतों को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 148, 151 और 152 का इस्तेमाल करने की ताकीद की है। साथ ही कहा है कि अदालतें जिरह की ऐसी द‌िशा को रोक दें। पीठ ने पीड़िता को भी याद दिलाया है कि उसे बचाव पक्ष के वकीलों के प्रश्नों के जवाब देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

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'सभी गवाहों के परीक्षण के बाद ही आरोपी का अपराध स्थापित किया जा सकता है': कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कार मामले की फिर से सुनवाई के निर्देश दिए

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निचली अदालत द्वारा एक नाबालिग से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को बरी करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी द्वारा वांछित सभी गवाहों के परीक्षण के बाद ही आरोपी का अपराध स्थापित किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति एम आई अरुण की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर अपील की अनुमति देते हुए कहा, "मामला फिर से निचली अदालत के पास भेजा जा रहा है ताकि अभियोजन पक्ष को आवश्यक सबूत पेश करने की स्वतंत्रता दी जा सके।"

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"यह एक गंभीर मामला, इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता", दिल्ली हाईकोर्ट ने रोहिणी कोर्ट हॉल के अंदर हुई गोलीबारी की घटना का स्वत: संज्ञान लिया

दिल्ली हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली पीठ ने रोहिणी कोर्ट हॉल के अंदर हुई गोलीबारी की घटना का स्वत: संज्ञान लिया है।

चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की खंडपीठ ने शुरुआत में कहा, "यह एक गंभीर मामला है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।" कोर्ट ने दिल्ली पुलिस आयुक्त, गृह मंत्रालय और केंद्रीय कानून मंत्रालय को प्रतिवादी पक्षों के रूप में शामिल किया। कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सहित दिल्ली के सभी बार एसोसिएशन को भी प्रतिवादी के रूप में जोड़ा है।

केस शीर्षक: कोर्ट ऑन इट्स मोशन बनाम पुलिस आयुक्त और अन्य।

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मां द्वारा अपने बच्चे को स्तनपान कराना अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों रूप में संरक्षित अधिकार; शिशु को स्तनपान कराने का अधिकार भी मां के अधिकार के साथ आत्मसात: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बच्चे को स्तनपान कराना मातृत्व का एक महत्वपूर्ण गुण है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के रूप में संरक्षित है।

न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने अपने आदेश में कहा, "घरेलू कानून और अंतरराष्ट्रीय कानून के आलोक में स्तनपान कराने वाली मां के एक अपरिहार्य अधिकार के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता है। इसी तरह, स्तनपान कराने वाले शिशु के भी स्तनपान के अधिकार को मां के अधिकार के साथ आत्मसात किया जाना चाहिए। यकीनन, यह समवर्ती अधिकारों का मामला है, मातृत्व की यह महत्वपूर्ण विशेषता भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों की छत्रछाया में सुरक्षित है।"

केस नंबर: डब्ल्यू.पी.नं.16729/2021

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'अदालतें खेल का मैदान नहीं हैं और मुकदमेबाजी एक शगल नहीं है': बॉम्बे हाईकोर्ट ने व्यावसायिक विवाद में परेशान करने वाला आवेदन दायर करने पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक वादी पर "खिजाऊ और शरारती" आवेदन दायर करने के लिए भारी जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम प्रतिवादी विरोधी नहीं है और वाणिज्यिक विवादों के शीघ्र निस्तारण के लिए है। जस्टिस गौतम पटेल ने वादी ला फिन फाइनेंशियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को डिफेंडेंट मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड को दो सप्ताह के भीतर 25 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश देते हुए कहा, "इस तरह के वादी समझेंगे कि अदालतें खेल का मैदान नहीं हैं, और मुकदमेबाजी एक शगल नहीं है।"

केस शीर्षक: ला फिन फाइनेंशियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड

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राज्य सरकार द्वारा केवल मुजावर को दत्ता पीठ में अनुष्ठान करने की अनुमति देना हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों के धर्म के अधिकार का उल्लंघन: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि चिकमगुलुरु में पवित्र गुफा मंदिर दत्ता पीठ में केवल एक मुजावर (मुस्लिम पुजारी) को अनुष्ठान करने की अनुमति देने वाला सरकार का आदेश रद्द किया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार का यह आदेश दोनों समुदायों (हिंदू और मुस्लिम) को संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "राज्य सरकार का आदेश हिंदुओं को उनकी आस्था के अनुसार पूजा करने से रोककर और मुजावर को उनकी आस्था के विपरीत पूजा करने के लिए मजबूर करके संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत गारंटीकृत दोनों समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।"

केस का शीर्षक: श्री गुरु दत्तात्रेय पीठ देवस्थान संवर्धन समिति एंड कर्नाटक राज्य

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'बाल संन्यास' वैध है; नाबालिग के स्वामी बनने पर कोई वैधानिक या संवैधानिक रोक नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने "बाल संन्यास" की वैधता को बरकरार रखा है। कोर्ट ने बुधवार को कहा कि नाबालिग के स्वामी बनने पर कोई कानूनी रोक नहीं है। कार्यवाहक चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सचिन शंकर मखदूम की खंडपीठ ने एक रिट याचिका को खारिज़ करते हुए उक्त फैसला सुनाया। याचिका में 16 वर्षीय अनिरुद्ध सरलतया (अब वेदवर्धाना तीर्थ) को उडुपी स्थ‌ित श‌िरूर मठ का पीठाधिपति नियुक्त किए जाने के फैसले को चुनौती दी गई थी।

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बेटा यह कहकर पिता के मकान में रहने पर जोर नहीं दे सकता कि उसने नवीनीकरण में योगदान दिया है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत बेदखली के आदेश को बरकरार रखा

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (वरिष्ठ नागरिक अधिनियम) के तहत एक बेटे और उसकी पत्नी के खिलाफ पिता के कहने पर बेदखली के आदेश को बरकरार रखा।

इस मामले में पिता ने उपहार या किसी अन्य विलेख के जर‌िए पुत्र को विचाराधीन मकान हस्तांतरित नहीं किया था। बेटे ने यह कहकर दावा कायम रखने की कोशिश की कि उसने मकान के भूतल के जीर्णोद्धार में योगदान दिया है।

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पल भर में नहीं हुए दिल्ली के दंगे; सरकार के कामकाज को अस्त-व्यस्त करने की सोची समझी कोशिश : हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हेड कांस्टेबल रतन लाल मर्डर केस में मो. इब्राहिम को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में जो दंगे हुए थे, वे "पल भर" में नहीं हुए थे और "सरकार के साथ-साथ सामान्य जीवन को बाधित और अव्यवस्थित करने का एक सुविचारित प्रयास था।"

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या और पिछले साल राष्ट्रीय राजधानी को हिलाकर रख देने वाले उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान एक डीसीपी को सिर में चोट लगने के संबंध में आदेश पारित करते हुए यह टिप्पणी की। (एफआईआर 60/2020 पीएस दयालपुर)।

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तलाक की डिक्री पर रोक के दौरान दूसरा विवाह करना : बाद में अपील खारिज होने पर आईपीसी की धारा 494 के तहत कोई अपराध नहीं बनताः केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना है कि यदि कोई पक्ष उस समय दूसरी शादी कर लेता है, जब पहली शादी के तलाक की डिक्री की अपील लंबित हो, तो वह भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 494 के तहत द्विविवाह के अपराध का दोषी नहीं होगा, अगर बाद में तलाक की अपील खारिज हो जाती है।

द्विविवाह का आरोप लगाने वाली शिकायत को रद्द करने की मांग करते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका को अनुमति देते हुए, अदालत ने फैसला सुनाया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 15 हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 28 को ओवरराइड नहीं करती है, जो अपील का अधिकार प्रदान करती है।

केस का शीर्षक- मनोज बनाम केरल राज्य व अन्य

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अगर पति ने सुलह के लिए बाद की कोशिशें की हैं तो तलाकनामा में 'अपरिवर्तनीय' शब्द का इस्तेमाल तलाक को अमान्य नहीं करताः केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पूर्व न्याय‌िक अधिकारी की पूर्व पत्नी की ओर से दायर अपील को खारिज़ कर दिया। पत्नी ने अपील में उसे भेजे गए तलाकनामे को इस आधार पर अवैध घोष‌ित करने की मांग की थी कि उसमें 'अपर‌िवर्तनीय' शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि इस मामले में एक वैध तलाक देने की पूर्व-आवश्यकताएं पूरी की गईं। पीठ ने कहा, "अगर बाद की घटनाओं नहीं हुई होतीं तो हम निश्चित रूप से इस आधार पर तलाक की घोषणा को अवैध मानते। हालांकि मौजूद सबूतों से यह ‌दिखता है कि तलाक की घोषणा के बाद भी 18.05.2017 को वास्तव में सुलह के प्रयास किए गए थे, जिसमें परिवार के सदस्यों ने भाग लिया था, हालांकि वो असफल रहे। पक्षों के आचरण से पता चलता है कि उन्होंने 01.03.2017 को सुनाए गए तलाक को उस तारीख से कभी भी अपरिवर्तनीय नहीं माना।"

केस शीर्षक: ए सजनी बनाम डॉ बी कलाम पाशा

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रमी कौशल का खेल: केरल हाईकोर्ट ने ऑनलाइन गेम रमी पर से प्रतिबंध हटाया

केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को केरल गेमिंग अधिनियम, 1960 की धारा 14A के तहत जारी एक सरकारी अधिसूचना में संशोधन को रद्द कर दिया। इस कानून के तहत राज्य में ऑनलाइन रमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

केरल हाईकोर्ट के इस फैसले से ऑनलाइन कौशल-गेमिंग उद्योग को बड़ी राहत मिली है। न्यायमूर्ति टीआर रवि ने कहा कि अधिसूचना मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत गारंटीकृत व्यापार और वाणिज्य के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीकृत समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

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