"सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा आम आदमी का उत्पीड़न सामाजिक रूप से घृणित": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व सैनिक की प्रताड़ना के मामले में निष्पक्ष जांच का आदेश दिया

LiveLaw News Network

2 Oct 2021 7:14 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय सेना के एक पूर्व सैनिक के मामले में निष्पक्ष जांच और तत्काल कार्रवाई का आदेश दिया है। सैनिक ने आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने मई में उन्हें प्रताड़ित और अपमान‌ित किया था। उन्हें कथित तौर पर जबरन एक पुलिस स्टेशन ले जाया गया था, जहां उन्हें निर्वस्त्र किया गया और एक खाट पर बांध दिया गया। पुलिस अधिकारियों ने लगातार दो घंटों तक "डंडों" से उन्हें बेरहमी से पीटा।

    जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि पब्‍लिक ऑफिसर्स द्वारा आम आदमी का उत्पीड़न सामाजिक रूप से घृणित और कानूनी रूप से अस्वीकार्य है। कोर्ट ने कहा कि एक सामान्य नागरिक राज्य या उसके उपकरणों की ताकत के खिलाफ श‌िकायत करने या लड़ने के बजाय,...अवांछनीय कामकाज के दबाव के आगे झुक जाता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "एक सामान्य नागरिक या एक आम आदमी शायद ही राज्य की ताकत या उसके उपकरणों का सामना करने के लिए तैयार है। सरकारी सेवक जनता के सेवक भी हैं और उनकी ताकत का इस्तेमाल हमेशा उनके सेवा के कर्तव्य के अधीन होना चाहिए। एक सार्वजनिक पदाधिकारी यदि दुर्भावनापूर्ण या दमनकारी कार्य करता है और ताकत के प्रयोग से उत्पीड़न और पीड़ा होती है तो यह ताकत का प्रयोग नहीं बल्कि इसका दुरुपयोग है। कोई कानून इसके खिलाफ सुरक्षा प्रदान नहीं करता है, किन जब यह मनमाने या मनमौजी व्यवहार के कारण पैदा होता है तो यह अपना व्यक्तिगत चरित्र खो देता है और सामाजिक महत्व ग्रहण कर लेता है।"

    इसके अलावा, य‌ह देखते हुए कि सरकार ने आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है और मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है, अदालत ने तीन महीने बाद भी राज्य पुलिस द्वारा प्रारंभिक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत न करने पर चिंता व्यक्त की।

    कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को तीन महीने के भीतर जांच और विभागीय कार्यवाही को तेजी से पूरा करने का निर्देश देते हुए कहा , "यह प्रथम दृष्टया प्रतिवादियों के आकस्मिक, अवैध और मनमाने दृष्टिकोण को दर्शाता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि कि आधुनिक समाज में कोई भी सत्ता इतनी अहंकारी नहीं हो सकती कि वह मनमाने ढंग से कार्य करे।

    संक्षेप में मामला

    पीड़ित (रेशम सिंह) 2 मई 2021 को अपनी मां और दो बहनों के साथ कार से पीलीभीत से लखीमपुर खीरी जा रहे थे। रास्ते में पुलिस अधिकारियों ने उन्हें रोका और पूछताछ की। उन्होंने कार के कागजात भी मांगे।

    पीड़ित के अनुसार, कागजात ढूढंने में कुछ समय लगा तो पुलिस अधिकारियों ने उन्हें गाली देना शुरू कर दिया। पीड़ित ने पुलिस अधिकारियों को गाली देने से रोका। उन्होंने कहा कि वे ऐसा न करें क्योंकि उनके साथ महिलाएं भी यात्रा कर रही हैं। पीड़ित ने पुलिस अधिकारियों को यह भी बताया कि वह सेना के सेवानिवृत्त सदस्य हैं।

    इसके बाद पुलिस अधिकारी उनपर भड़क गए। उन्होंने पीड़ित और उनके परिजनों को धमकी दी कि वे उन्हें सबक सिखाएंगे। इसके बाद उन्होंने गाली-गलौज करते हुए पीड़ित को लाठियों से पीटना शुरू कर दिया।

    कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों ने पीड़ित की मां और बहनों को भी पीटना शुरू कर दिया। वे बिना किसी महिला पुलिसकर्मी की मदद लिए उन्हें थाने ले गए। पीड़ित के अनुसार, जबरन थाने ले जाने के बाद पीड़ित को निर्वस्त्र कर खाट पर बांध दिया गया। पुलिसक‌र्म‌ियों ने लगातार दो घंटे तक "डंडे", मुट्ठी और पैर से उन्हें बेरहमी से पीटा।

    कथ‌ित रूप से सिख पहचान के कारण भी पीड़ित के साथ दुर्व्यवहार किया गया। उसकी पगड़ी फाड़ी गई, बाल खींचे गए, उसे लाठियों से पीटा गया- जिससे उसकी पीठ और कूल्हों पर गंभीर चोटें आईं। प‌ीड़ित के अनुसार, पुलिस अधिकारी शारीरिक यातना देने तक नहीं रुके। उन्होंने पीड़ित को और अधिक अपमानित करने की धमकी दी और कहा कि सबक सिखाने के लिए वे उसके बाल काट देंगे।

    केस का शीर्षक - रेशम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य

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