केवल योग्यता होने से पदोन्नति का कोई अधिकार नहीं मिलता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया

Update: 2024-12-28 03:47 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया कि पदोन्नति कोई मौलिक अधिकार नहीं है तथा किसी पद के रिक्त होने की तिथि से इसका दावा नहीं किया जा सकता, न ही केवल योग्यता होने से पदोन्नति का कोई अधिकार मिलता है।

वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने उस तिथि से पदोन्नति की मांग की, जिस दिन वह पद के लिए पात्र हुई थी।

इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए जस्टिस नमित कुमार ने कहा,

"यह कानून का एक सुस्थापित प्रस्ताव है कि पदोन्नति एक मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, पदोन्नति के लिए विचार मौलिक अधिकार है जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने "अजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य" में माना है। यह भी सुस्थापित है कि न तो रिक्ति होने की तिथि से पदोन्नति का दावा किया जा सकता है और न ही पात्रता प्राप्त करने की तिथि से। याचिकाकर्ता को 31.01.2020 को अकाउंटेंट के पद पर पदोन्नत किया जा चुका है। उसे रिक्ति होने या पात्रता प्राप्त करने की तिथि से पदोन्नति का दावा करने का कोई निहित अधिकार नहीं है।"

कोर्ट ने आगे आई. चुबा जमीर और अन्य बनाम नागालैंड राज्य और अन्य (2010) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि "केवल पात्रता पदोन्नति के लिए कोई अधिकार प्रदान नहीं करती है।"

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का मामला यह नहीं है कि उसके किसी जूनियर को उसकी पदोन्नति की तिथि से पहले अकाउंटेंट के पद पर पदोन्नत किया गया हो।

याचिकाकर्ता पूनम रानी ने दलील दी कि शुरू में उन्हें नीलामी रिकॉर्डर के पद पर नियुक्त किया गया और 02.05.2013 के आदेश के तहत उन्हें मंडी पर्यवेक्षक-सह-शुल्क कलेक्टर के पद पर पदोन्नत किया गया। पदोन्नति का अगला चैनल अकाउंटेंट के पद पर है और उक्त पद वर्ष 2015 में रिक्त हो गया और याचिकाकर्ता 2016 में पात्र हो गई।

इसके बाद उन्हें 31.01.2020 को पहले ही उक्त पद पर पदोन्नत किया जा चुका है और उसी दिन उक्त पद से रिटायर भी हो गई।

प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद न्यायालय ने कहा कि यह कानून का सुस्थापित प्रस्ताव है कि पदोन्नति मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, पदोन्नति के लिए विचार एक मौलिक अधिकार है।

कोर्ट ने कहा,

इसी तरह यह भी सुस्थापित है कि न तो रिक्ति होने की तारीख से और न ही पात्रता प्राप्त करने की तारीख से पदोन्नति का दावा किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्मल चंद्र सिन्हा बनाम भारत संघ एवं अन्य, [2008(2) एससीटी 675] के निर्णय पर भरोसा करते हुए इस बात पर जोर दिया गया कि पदोन्नति उस तिथि से प्रभावी होती है, जिस दिन उसे प्रदान किया जाता है, न कि उस तिथि से जब पद रिक्त होता है या पद सृजित होता है।

न्यायालय ने भारत संघ एवं अन्य बनाम मनप्रीत सिंह पूनम आदि, [2022(6) एससीसी 105] का भी उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया कि केवल रिक्ति होने से ही किसी कर्मचारी को पूर्वव्यापी पदोन्नति का अधिकार नहीं मिल जाता है, खासकर तब जब पदोन्नति के नियमों में निर्धारित चयन प्रक्रिया शामिल हो।

केस टाइटल: पूनम रानी बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य

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