'सभी गवाहों के परीक्षण के बाद ही आरोपी का अपराध स्थापित किया जा सकता है': कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कार मामले की फिर से सुनवाई के निर्देश दिए
LiveLaw News Network
1 Oct 2021 9:45 AM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निचली अदालत द्वारा एक नाबालिग से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को बरी करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी द्वारा वांछित सभी गवाहों के परीक्षण के बाद ही आरोपी का अपराध स्थापित किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति एम आई अरुण की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर अपील की अनुमति देते हुए कहा,
"मामला फिर से निचली अदालत के पास भेजा जा रहा है ताकि अभियोजन पक्ष को आवश्यक सबूत पेश करने की स्वतंत्रता दी जा सके।"
आरोपी संतोष को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(n) और POCSO ACT की धारा 5(j)(ii) और 6 के तहत आरोपों से बरी कर दिया गया।
अभियोजन पक्ष ने अपनी अपील में तर्क दिया कि अपने मामले को साबित करने के लिए, उसने आरोप पत्र में उल्लिखित अन्य गवाहों के परीक्षण के लिए अदालत की अनुमति का अनुरोध किया था।
हालांकि, निचली अदालत ने इस आधार पर कि पीड़िता और अन्य भौतिक गवाह मुकर गए हैं, ने अभियोजन पक्ष की अन्य गवाहों से पूछताछ करने की प्रार्थना को खारिज कर दिया और आरोपी को बरी कर दिया।
यह तर्क दिया गया कि बच्चे और आरोपी का डीएनए परीक्षण नहीं किया गया है और ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की जांच करने वाले डॉक्टर सहित अभियोजन पक्ष द्वारा अन्य गवाहों के परीक्षण की अनुमति नहीं देने में गलती की है।
अदालत ने रिकॉर्ड का अध्ययन करने पर कहा कि अभियोजन पक्ष ने निचली अदालत के समक्ष बच्चे का आरोपी के साथ संबंध के लिए डीएनए परीक्षण कराने के लिए आवश्यक आवेदन नहीं किया था। इसने कहा कि वे अब मुड़कर यह तर्क नहीं दे सकते कि ट्रायल कोर्ट ने आवश्यक डीएनए परीक्षण की अनुमति नहीं देने में त्रुटि की है।
आगे कहा,
"आम तौर पर, ट्रायल कोर्ट की ओर से अभियोजन पक्ष को अपना मामला साबित करने के लिए चार्जशीट में उल्लिखित गवाहों की जांच करने की अनुमति देना अनिवार्य है। हालांकि तत्काल मामले में पीड़ित लड़की के रूप में उसके पिता, मां, भाई और बहन ने अभियोजन के मामले का समर्थन नहीं किया है, ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर कि सभी भौतिक गवाह मुकर गए हैं, ने गवाहों की आगे के परीक्षण की अनुमति नहीं दी है और आरोपी को बरी कर दिया।"
अभियोजन पक्ष की दलीलों पर ध्यान देते हुए कि उसके पास मैरिट के आधार पर एक अच्छा मामला है और वह आरोपी और बच्चे के संबंध में डीएनए परीक्षण कराने के लिए आवश्यक आवेदन करेगा जो अभियोजन के मामले को साबित करेगा।
पीठ ने कहा,
"अभियुक्त द्वारा वांछित सभी गवाहों के परीक्षण के बाद ही आरोपी का अपराध स्थापित किया जा सकता है। अभियोजन पक्ष का यह एक विशिष्ट मामला है कि आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए उसके पास आवश्यक सबूत हैं और डीएनए परीक्षण कराने के लिए आवश्यक आवेदन करना जरूरी है और आरोपी के झूठे वादे पर ही गवाह मुकर गए हैं।"
अभियोजन पक्ष की दलीलों और मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने स्पष्ट रूप से आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को आवश्यक सबूत पेश करने की अनुमति नहीं दी।
पृष्ठभूमि
29.04.2019 को, पीड़िता के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि आरोपी ने उसकी 16 वर्षीय बेटी को विश्वास दिलाया कि वह उससे शादी करेगा और जब घर में कोई नहीं था, तो उसने आकर जबरन उसके साथ यौन संबंध स्थापित किया। आरोप है कि इसके बाद आरोपी बिना किसी को बताए अपने पैतृक स्थान भाग गया।
केस का शीर्षक: कर्नाटक राज्य बनाम संतोष
केस नंबर: आपराधिक अपील संख्या 414 ऑफ 2021
आदेश की तिथि: 3 सितंबर, 2021
उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट विजया कुमार मजगे, ए / डब्ल्यू एडवोकेट रश्मि जाधव; प्रतिवादी के लिए एडवोकेट एन आर रविकुमार