POCSO Act की धारा 29 के तहत दोष का अनुमान साक्ष्य के अभाव में नहीं लगाया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में दोषसिद्धि खारिज की
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत यौन उत्पीड़न के एक मामले में दो व्यक्तियों को बरी किया। कोर्ट ने उक्त आदेश यह देखते हुए दिया कि एक्ट के तहत कुछ अपराधों को करने के लिए उकसाने या प्रयास करने के लिए धारा 29 के तहत अनुमान साक्ष्य के अभाव के कारण नहीं लगाया जा सकता।
POCSO Act की धारा 29 के अनुसार, जहां किसी व्यक्ति पर इस अधिनियम की धारा 3, 5, 7 और धारा 9 के तहत कोई अपराध करने या करने के लिए उकसाने या प्रयास करने के लिए मुकदमा चलाया जाता है तो विशेष न्यायालय यह मान लेगा कि ऐसे व्यक्ति ने अपराध किया है या करने के लिए उकसाया है या करने का प्रयास किया है, जैसा भी मामला हो, जब तक कि इसके विपरीत साबित न हो जाए।
जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संजय वशिष्ठ की खंडपीठ ने कहा,
"अपीलकर्ताओं का कथित अपराध संदेह से परे साबित नहीं हुआ। यहां तक कि अधूरे साक्ष्य के अभाव में POCSO Act की धारा 29 के तहत अनुमान लागू नहीं होगा।"
अदालत ने आगे कहा कि आरोप लड़की ने ही लगाए, जिनकी गहन जांच की जरूरत है।
FIR में आरोप लगाया गया कि नाबालिग लड़की-जो उस समय 13 साल की बताई गई- का 2018 में अपहरण किया गया और बरामद होने पर उसने बताया कि 2017 में अन्य आरोपी ने उसके साथ बलात्कार किया। ट्रायल कोर्ट ने एक को POCSO Act की धारा 4 के तहत 20 साल की सजा सुनाई; धारा 363, 366 और दूसरे को धारा 6 POCSO Act के तहत 20 साल की सजा सुनाई।
प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले को संदिग्ध पाया; इसने कहा कि लड़की ने अपने बयान में न्यायालय के समक्ष नया संस्करण प्रस्तुत किया, जो अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं करता।
कोर्ट ने कहा,
“पीड़िता ने कहीं भी यह नहीं कहा कि उसे उस स्थान से बरामद किया गया, जैसा कि जांच दल के आधिकारिक गवाहों द्वारा बताया गया। इस न्यायालय को यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि झूठे बयानों और पुलिस अधिकारियों की सुविधा के कारण पीड़िता की बरामदगी की कहानी संभवतः पुलिस द्वारा स्वयं ही गढ़ी गई। इसलिए अभियोजन एजेंसी द्वारा पेश की गई पीड़िता की बरामदगी पूरी तरह से झूठी प्रतीत होती है।”
खंडपीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अभियोजन पक्ष के सभी गवाह एक-दूसरे के साथ भौतिक रूप से विरोधाभासी हैं। इसलिए इसने कहा, “जांच एजेंसी द्वारा पेश की गई पीड़िता की बरामदगी पूरी तरह से झूठी है।”
खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला,
“रिकॉर्ड पर उपलब्ध अन्य परिस्थितियों के साथ-साथ मेडिकल साक्ष्य से यह पता चलता है कि अपूर्ण मेडिकल साक्ष्य हैं। पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाने का आरोप पूरी तरह से साबित नहीं हुआ है।”
इसने आगे बताया कि जिरह के दौरान जांच अधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा कि घटनास्थल के पास रहने वाले व्यक्तियों से आरोपी द्वारा लड़की के अपहरण के संबंध में कोई जांच नहीं की गई।
मेडिकल रिकॉर्ड को देखते हुए कोर्ट ने कहा,
"मेडिकल साक्ष्य और रिकॉर्ड पर उपलब्ध अन्य परिस्थितियों से यह पता चलता है कि मेडिकल साक्ष्य अधूरा है। पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाने का आरोप पूरी तरह से साबित नहीं हुआ।"
2017 में बलात्कार के संबंध में कोर्ट ने कहा कि कोई सबूत रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया और लड़की द्वारा कथित घटना की तारीख भी नहीं बताई गई।
राकेश बनाम हरियाणा राज्य पर भरोसा किया गया, जिसमें हाईकोर्ट ने माना था कि धारा 29 के तहत वैधानिक अनुमान तब लागू होता है, जब किसी व्यक्ति पर POCSO Act की धारा 5 और 9 के तहत अपराध करने के लिए मुकदमा चलाया जाता है। इसके विपरीत साबित करने के लिए आरोपी पर उल्टा बोझ डाला जाता है। कोर्ट ने यह भी माना कि इसका मतलब यह नहीं है कि अभियोजन पक्ष के पास अपराध का गठन करने वाले प्राथमिक तथ्यों को स्थापित करने का कोई नियम नहीं है।
दोषसिद्धि खारिज करते हुए न्यायालय ने पाया,
"जांच ठीक से नहीं की गई और जांच अधिकारी पूरे साक्ष्य एकत्र करने के अपने कर्तव्य को निभाने में विफल रहा है।"
न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि अभियुक्त को तत्काल रिहा किया जाए और अपील स्वीकार की जाए।
केस टाइटल: वीरेंद्र बनाम हरियाणा राज्य और एक अन्य अपील