अगर पति ने सुलह के लिए बाद की कोशिशें की हैं तो तलाकनामा में 'अपरिवर्तनीय' शब्द का इस्तेमाल तलाक को अमान्य नहीं करताः केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

28 Sep 2021 6:32 AM GMT

  • अगर पति ने सुलह के लिए बाद की कोशिशें की हैं तो तलाकनामा में अपरिवर्तनीय शब्द का इस्तेमाल तलाक को अमान्य नहीं करताः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पूर्व न्याय‌िक अधिकारी की पूर्व पत्नी की ओर से दायर अपील को खारिज़ कर दिया। पत्नी ने अपील में उसे भेजे गए तलाकनामे को इस आधार पर अवैध घोष‌ित करने की मांग की थी कि उसमें 'अपर‌िवर्तनीय' शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

    जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि इस मामले में एक वैध तलाक देने की पूर्व-आवश्यकताएं पूरी की गईं।

    पीठ ने कहा, "अगर बाद की घटनाओं नहीं हुई होतीं तो हम निश्चित रूप से इस आधार पर तलाक की घोषणा को अवैध मानते। हालांकि मौजूद सबूतों से यह ‌दिखता है कि तलाक की घोषणा के बाद भी 18.05.2017 को वास्तव में सुलह के प्रयास किए गए थे, जिसमें परिवार के सदस्यों ने भाग लिया था, हालांकि वो असफल रहे। पक्षों के आचरण से पता चलता है कि उन्होंने 01.03.2017 को सुनाए गए तलाक को उस तारीख से कभी भी अपरिवर्तनीय नहीं माना।"

    इस पृष्ठभूमि में इस प्रकार निर्देशित किया गया, "... तलाकनामा में 'अपरिवर्तनीय' शब्द के उपयोग के बावजूद, प्रतिवादी को तलाक अहसन की घोषणा कर चुके व्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए, जो कि केवल तीन चांद माह की अवधि की समाप्ति पर अपरिवर्तनीय हो गया था, जो कि तलाक की एकल घोषणा के तुरंत बाद हुआ था।"

    तथ्य

    अपीलकर्ता सजनी ए ने 2009 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश बी कलाम पाशा से शादी की थी।

    शादी के समय प्रतिवादी विधुर थे। उन्हें पहली शादी से दो बच्चे भी थे। अपीलकर्ता ने बताया कि उनका जीवन सौहार्दपूर्ण था, हालांकि सितंबर 2016 में प्रतिवादी ने कथित रूप से उन्हें उनके मायके छोड़ दिया और उन्हें ससुराल वापस नहीं लौटने या बिना किसी नोटिस के संपर्क नहीं करने के लिए कहा।

    बाद में अपीलकर्ता को 01.03.2017, (जिस पर गलती से 2018 दर्ज था) का एक तलाकनामा प्राप्त हुआ,‌ जिसके जवाब में उन्होंने ऐसी परिस्थितियों से इनकार किया, जिनमें तलाक की घोषणा की अनुमति दी जाए।

    बाद में उसे पता चला कि प्रतिवादी ने एक छोटी लड़की के साथ दूसरी शादी कर ली है। इसलिए, अपीलकर्ता ने उक्त आधार पर तलाक को अमान्य घोषित कराने के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उन्होंनें फैमिली कोर्ट के समक्ष वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक परिणामी डिक्री की भी मांग की। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी द्वारा सुनाए गए तलाक को वैध पाया और याचिका खारिज़ कर दी।

    आपत्तियां

    अपीलकर्ता ने एडवोकेट एम. वनाजा के माध्यम से दलील दी कि तलाकनामा वैध नहीं था।

    उनका प्राथमिक तर्क यह था कि तलाकनामा में 'अपरिवर्तनीय' शब्द ने तलाक की घोषणा को अवैध बना दिया क्योंकि यह प्रतिवादी के इरादे को स्पष्ट रूप से प्रमाणित करता है कि वह तीन चंद्र माह की अवधि के दौरान अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार नहीं था।

    प्रतिवादी की ओर से पेश हुए एडवोकेट बाबू करुकपदाथ ने बताया कि सत्र न्यायाधीश ने 'तलाक अहसन' का उच्चारण किया था और इसमें 'अपरिवर्तनीय' शब्द का इस्तेमाल केवल याचिकाकर्ता को फैसले की गंभीरता के बारे में सचेत करने के लिए किया गया था।

    उन्होंने कहा कि तलाक की घोषणा के बावजूद वह तलाक को रद्द करने के लिए तैयार थे यदि याचिकाकर्ता मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिए तैयार हो जाती, और यह 18.05.2017 को मध्यस्थों की उपस्थिति में हुई सुलह वार्ता से प्रमाणित है।

    निष्कर्ष

    तलाक और भरणपोषण संबंध‌ित कानून का विश्लेषण करते हुए कोर्ट ने शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [(2017) 9 एससीसी 1] के ऐतिहासिक फैसले को याद किया ।

    उक्त फैसले में तीन तलाक की प्रथा में बेंच ने बहुमत से तत्काल अपरिवर्तनीयता को आपत्तिजनक और अवैध पाया गया था। पीठ के अनुसार, इसने प्रथा को 'स्पष्ट रूप से मनमाना' बना दिया।

    कोर्ट ने कहा कि तत्काल अपरिवर्तनीयता के पहलू में स्वतंत्र पहलू--तात्कालिकता और अपरिवर्तनीयता- शामिल हैं, दोनों ही इस प्रथा को कानूनी रूप से घृणित बनाते हैं।

    (1) सुलह के प्रयास

    मौजूदा मामले में इस पहलू पर कोई विवाद नहीं था कि दो मध्यस्थों के कहने पर दो बार सुलह के प्रयास किए गए, जो व्यर्थ साबित हुए। इसलिए, बेंच ने कहा कि कुन्हिमोहम्मद बनाम आयशाकुट्टी - [2010 (2) केएलटी 71] के अनुसार इस मामले में एक वैध तलाक की घोषणा के लिए पूर्व-आवश्यकताएं पूरी की गई थीं।

    (2) अपरिवर्तनीयता

    अदालत ने पाया कि तलाकनामा में 'अपरिवर्तनीय' शब्द का इस्तेमाल पूर्व पति द्वारा अपीलकर्ता को एक सूचना का संकेत था कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार नहीं था।

    कोर्ट ने यह भी देखा कि पार्टियों के आचरण ने सुझाव दिया कि उन्होंने 01.03.2017 को सुनाए गए तलाक को उस तारीख से कभी भी अपरिवर्तनीय नहीं माना। तलाक की घोषणा के एक साल के भीतर प्रतिवादी ने दूसरी महिला से भी शादी कर ली।

    "उक्त परिस्थितियों में हमें लगता है कि प्रतिवादी की ओर से चूक को तलाक के उच्चारण के तरीके में एकमात्र अनियमितता के रूप में माना जाएगा..."

    कोर्ट ने माना कि तलाकनामा में 'अपरिवर्तनीय' शब्द के उपयोग के बावजूद इसे तलाक अहसन माना जाना चाहिए, जो कि केवल तीन चंद्र माह की अवधि की समाप्ति पर अपरिवर्तनीय हो जाता है...।

    केस शीर्षक: ए सजनी बनाम डॉ बी कलाम पाशा

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