सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-08-27 06:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (21 अगस्त, 2023 से 25 अगस्त, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

यदि बहुमत के फैसले को खारिज कर दिया जाता है तो किसी मध्यस्थ की असहमतिपूर्ण राय को अवॉर्ड के रूप में नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना कि यदि बहुमत के फैसले को रद्द कर दिया जाता है तो असहमतिपूर्ण राय को अवार्ड के रूप में नहीं माना जा सकता। इस मामले में तीन सदस्यीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के बीच विवाद में एक अवार्ड पारित किया था। निर्णय में अधिकांश प्रश्नों पर एकमत था, जबकि कुछ प्रश्नों पर मध्यस्थों में से एक का असहमतिपूर्ण दृष्टिकोण था।

केस टाइटलः हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण - 2023 लाइव लॉ (एससी) 704- 2023 आईएनएससी 768

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परीक्षण पहचान परेड संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन नहीं, आरोपी टीआईपी में शामिल होने से इनकार नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड का आयोजन संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन नहीं है। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि एक आरोपी इस आधार पर खुद की टीआईपी कराने से रोक नहीं सकता कि कि उसे इसके लिए मजबूर किया जा सकता है।

पीठ ने समवर्ती हत्या की सजा के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए टीआईपी पर ये टिप्पणियां कीं। अपील में उठने वाले मुद्दों में से एक यह था कि क्या कोई आरोपी इस आधार पर टीआईपी, जिसे जांच अधिकारी ने कराने का प्रस्ताव किया है, में भाग लेने से इनकार कर सकता है कि उसे टीआईपी में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

केस टाइटलः मुकेश सिंह बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) - 2023 लाइव लॉ (एससी) 703 - 2023 आईएनएससी 765

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बिलकिस बानो केस - 'क्या उसे वकालत करने की अनुमति दी जा सकती है?' दोषी के वकील के रूप में काम करने के बारे में बताए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने गुरुवार को मौखिक रूप से कहा कि कानून को एक महान पेशा माना जाता है। यह टिप्पणी तब आई जब बिलकिस बानो के बलात्कारियों में से एक के वकील ने अदालत को सूचित किया कि वह अब गुजरात में मोटर वाहन दुर्घटना दावा वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहा है।

इतना ही नहीं, न्यायाधीश ने राज्य बार काउंसिल में एक वकील के नामांकन पर दोषसिद्धि के प्रभाव के बारे में भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा कि क्या किसी दोषी को दोषसिद्धि के बाद भी लॉ प्रैक्टिस करने का लाइसेंस दिया जा सकता है?

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान कई हत्याओं और हिंसक यौन उत्पीड़न के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों को छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पिछले साल, स्वतंत्रता दिवस पर राज्य सरकार द्वारा सजा माफ करने के उनके आवेदन को मंजूरी मिलने के बाद दोषियों को रिहा कर दिया गया था।

केस टाइटल : बिलकिस याकूब रसूल बनाम भारत संघ एवं अन्य। | रिट याचिका (आपराधिक) नंबर 491/2022

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मणिपुर हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई मामलों को असम स्थानांतरित किया, गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से जजों को नामित करने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मणिपुर जातीय हिंसा से संबंधित यौन हिंसा के मामलों को, जिन्हें सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया है, असम में स्थानांतरित करने के लिए कई निर्देश जारी किए।

कोर्ट ने आदेश में कहा, "मणिपुर में समग्र वातावरण और आपराधिक न्याय प्रशासन की निष्पक्ष प्रक्रिया सुनिश्चित करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए" यह आवश्यक है। न्यायालय ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से सीबीआई मामलों को संभालने के लिए गुवाहाटी में अदालतें नामित करने को कहा। जांच एजेंसी द्वारा रिमांड, हिरासत के विस्तार, वारंट जारी करने आदि के लिए आवेदन गुवाहाटी में नामित न्यायालयों के समक्ष किए जा सकते हैं।

न्यायालय ने आगे कहा कि पीड़ित और गवाह असम न्यायालयों में शारी‌रिक रूप से पेश होने के बजाय, मणिपुर में अपने स्थानों से वर्चुअल रूप से साक्ष्य देने के लिए स्वतंत्र होंगे।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मणिपुर राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा दिए गए सुझावों को स्वीकार करते हुए निर्देश पारित किए। मेहता ने कहा था कि मणिपुर में विशेष समुदायों से संबंधित जजों के बारे में कुछ चिंताएं हो सकती हैं; इसके अलावा, आरोपियों के स्थानांतरण को लेकर भी सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि मुकदमों को पड़ोसी राज्य असम में एक निर्दिष्ट अदालत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

केस टाइटलः डिंगांगलुंग गंगमेई बनाम मुतुम चुरामणि मेईतेई और अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (सिविल) डायरी नंबर 19206/2023 और अन्य संबंधित मामले

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बिलकिस बानो केस - सुप्रीम कोर्ट का पिछला फैसला सजा माफी आदेश के न्यायिक पुनर्विचार पर रोक नहीं लगाएगा : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिलकिस बानो मामले में 'न्यायिक औचित्य' के तर्क को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा, हम समन्वय पीठ के फैसले पर कोई निर्णय नहीं कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि 2021 का फैसला जिसने गुजरात सरकार को सज़ा माफी के आवेदनों पर विचार करने की अनुमति दी, बाद में पारित छूट आदेशों पर पुनर्विचार करने पर रोक नहीं लगाएगा। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान कई हत्याओं और हिंसक यौन उत्पीड़न के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों को छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पिछले साल, स्वतंत्रता दिवस पर गुजरात सरकार द्वारा सजा माफ करने के उनके आवेदन को मंजूरी मिलने के बाद दोषियों को रिहा कर दिया गया था।

दोषियों की ओर से और इससे पहले राज्य सरकार की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर-जनरल एसवी राजू ने यह तर्क दिया कि बिलकिस बानो के बलात्कारियों की सजा सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले का पालन करती है, जिसमें गुजरात राज्य को समय से पहले रिहाई के उनके आवेदनों का निपटान करने के लिए कहा गया था। इस प्रकार, अदालत को राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से संबंधित किसी भी मुद्दे पर पुनर्विचार करने का अधिकार नहीं है।

केस टाइटल : केस टाइटल : बिलकिस याकूब रसूल बनाम भारत संघ एवं अन्य। | रिट याचिका (आपराधिक) नंबर 491/2022

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जब पुरुष और महिला लंबे समय तक एक साथ रहते हैं तो कानून उसे विवाह मानता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि जब एक पुरुष और एक महिला लंबे समय तक लगातार एक साथ रहते हों तो विवाह की धारणा बन जाती है।

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने कहा, ''जब एक पुरुष और एक महिला लंबे समय तक एक लगताार एक साथ रहते हैं तो कानून का अनुमान विवाह के पक्ष होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है, उक्त अनुमान खंडन योग्य है और इसका खंडन निर्विवाद सबूतों के आधार पर किया जा सकता है। जब कोई ऐसी परिस्थिति हो, जो ऐसी धारणा को कमजोर करती हो तो अदालतों को उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यह बोझ उस पक्ष पर बहुत अधिक पड़ता है जो साथ रहने पर सवाल उठाना चाहता है और रिश्ते को कानूनी पवित्रता से वंचित करना चाहता है।''

केस टाइटलः श्रीमती शिरामाबाई पत्नी पुंडलिक भावे और अन्य बनाम कैप्टन फॉर ओआईसी रिकॉर्ड्स, सेना कॉर्प्स अभिलेख, गया, बिहार राज्य और अन्य, नागरिक अपील संख्या 5262/2023

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सरकारी अधिकारियों को तलब करने के लिए अदालतों के लिए दिशानिर्देश तय करेंगे: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि वह सरकार से जुड़े मुकदमे में अदालतों के समक्ष सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति से संबंधित दिशानिर्देश तय करेगा। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के विशेष सचिव (वित्त) और सचिव (वित्त) को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए घरेलू सहायता और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के निर्देशों का अनुपालन न करने पर हिरासत में ले लिया गया था। शीर्ष अदालत ने पहले हिरासत में लिए गए अधिकारियों की तत्काल रिहाई का निर्देश दिया था और आदेश पर रोक लगा दी थी।

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'अभियोजक का राज्य, आरोपी और अदालत के प्रति कर्तव्य है; वे किसी पक्षकार के प्रतिनिधि नहीं हैं': सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18.08.2023) को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता और पूर्व सांसद (सांसद) प्रभुनाथ सिंह को 1995 के दोहरे हत्याकांड के मामले में दोषी ठहराते हुए निचली अदालत द्वारा उन्हें बरी किए जाने और पटना हाईकोर्ट के इसकी पुष्टि करने के फैसले को पलट दिया।

शीर्ष अदालत ने मामले में ट्रायल कोर्ट के पीठासीन अधिकारी के 'निंदनीय आचरण' की कड़ी आलोचना की, जिसके परिणामस्वरूप अदालत के अनुसार ट्रायल के विभिन्न चरणों में न्याय में बाधा उत्पन्न हुई। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि आपराधिक ट्रायल में तीन मुख्य हितधारक, यानी, जांच अधिकारी, बिहार राज्य पुलिस का हिस्सा, लोक अभियोजक और न्यायपालिका, अपने संबंधित कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाने में बुरी तरह विफल रहे।

केस : हरेंद्र राय बनाम बिहार राज्य, 2015 की आपराधिक अपील संख्या 1726

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यदि बहुमत के फैसले को खारिज कर दिया जाता है तो किसी मध्यस्थ की असहमतिपूर्ण राय को अवॉर्ड के रूप में नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना कि यदि बहुमत के फैसले को रद्द कर दिया जाता है तो असहमतिपूर्ण राय को अवार्ड के रूप में नहीं माना जा सकता। इस मामले में तीन सदस्यीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के बीच विवाद में एक अवार्ड पारित किया था। निर्णय में अधिकांश प्रश्नों पर एकमत था, जबकि कुछ प्रश्नों पर मध्यस्थों में से एक का असहमतिपूर्ण दृष्टिकोण था।

केस टाइटलः हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण - 2023 लाइव लॉ (एससी) 704- 2023 आईएनएससी 768

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किसी पोस्ट पर सेवानिवृत्ति की आयु वैसी ही एक अन्य पोस्ट पर सेवानिवृत्ति की आयु के आधार पर नहीं बढ़ाई जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना कि कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु पूरी तरह वैधानिक नियमों द्वारा निर्धारित की जाती है। यह माना गया कि भले ही नौकरी के दो पदों पर समान कार्य हों, यह समानता किसी कर्मचारी की सेवा शर्तों में बदलाव की गारंटी नहीं देती है (सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज बनाम बिकार्टन दास)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “सेवानिवृत्ति की आयु हमेशा किसी विशेष पद पर नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले वैधानिक नियमों द्वारा शासित होती है। इसलिए, भले ही यह कहा जाए कि दोनों पदों पर काम की प्रकृति समान है, यह किसी कर्मचारी की सेवा शर्तों को बढ़ाने या बदलने का आधार नहीं हो सकता है क्योंकि प्रत्येक पद अपने स्वयं के नियमों द्वारा शासित होता है।

उड़ीसा हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने किसी कर्मचारी की नौकरी के प्रति समर्पण के आधार पर उसकी सेवानिवृत्ति आयु निर्धारित करने के न्यायालय के अधिकार पर सवाल उठाए।

जस्टिस पारदीवाला द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया है, “हम यह समझने में विफल हैं कि अदालत किसी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति की आयु कैसे तय कर सकती है, यह कहते हुए कि वह अपनी नौकरी के प्रति बहुत समर्पित है। सेवानिवृत्ति की आयु हमेशा वैधानिक नियमों और अन्य सेवा शर्तों द्वारा नियंत्रित होती है। '

दोषी के वकील के रूप में काम करने के बारे में बताए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की सुप्रीम कोर्ट की पीठ उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस), आयुष मंत्रालय की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि प्रतिवादी (सीसीआरएएस का एक कर्मचारी) आयुष मंत्रालय के तहत काम करने वाले आयुष डॉक्टरों पर लागू सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने के लाभ का हकदार है।

केस टाइटल: सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज बनाम बिकर्तन दास

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सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान को अंतरिम राहत दी, 2007 के हेट स्पीच केस में आवाज का नमूना जमा करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को अंतरिम राहत देते हुए ट्रायल कोर्ट के उस आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी, जिसमें उन्हें 2007 के नफरत भरे भाषण मामले में आवाज का नमूना जमा करने का निर्देश दिया गया था।

जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ समाजवादी पार्टी (सपा) नेता आजम खान की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हेट स्पीच वाले भाषण मामले में उनकी आवाज का नमूना देने के निर्देश के खिलाफ याचिका दायर की गई थी, जिससे अगस्त 2007 में रामपुर में सभा दिये गए एक सार्वजनिक भाषण की तुलना उनके द्वारा दिए गए सीडी-रिकॉर्डेड भाषण से की जा सके।

पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एक विशेष न्यायाधीश के इस निर्देश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कल कोर्ट को बताया था कि पूर्व विधायक द्वारा विशेष अनुमति याचिका दायर करने के बावजूद, विशेष न्यायाधीश ने उनके आवाज के नमूने के संग्रह को स्थगित करने से इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट उनकी याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए सहमत हो गया। आज जब मामला उठाया गया तो पीठ ने तुरंत याचिका पर नोटिस जारी किया और विधायक को इस बीच अपनी आवाज का नमूना जमा करने से सुरक्षा दी।

पीठ ने कहा, "प्रतिवादी को नोटिस जारी करें। इस बीच अक्टूबर 2022 के आदेश के माध्यम से ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों पर और जुलाई 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखे गए आदेश पर अंतरिम रोक रहेगी।"

केस टाइटल - मोहम्मद आजम खान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 10108/2023

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धारा 149 आईपीसी - गवाह से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह प्रत्येक आरोपी के विशिष्ट कृत्य के बारे में ग्राफिक डिटेल्स के साथ बताएगा : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 149 से जुड़े मामले में, एक गवाह से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह आरोपी के उस विशिष्ट प्रत्यक्ष कृत्य के बारे में ग्राफिक विवरण के साथ बात करेगा, जिसके लिए प्रत्येक आरोपी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

इस मामले में अपीलकर्ताओं-अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 149 और 148 सहपठित धारा 302 के तहत समवर्ती रूप से दोषी ठहराया गया। अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि अभियुक्तों के साथ-साथ लगभग 14 अन्य अभियुक्त हथियारों से लैस थे और उन्होंने बंदूक और लकड़ी के लट्ठों से खेत में जाकर वहां काम कर रहे तीन लोगों पर हमला कर दिया और उनकी हत्या कर दी।

केस टाइटल : भोले बनाम मध्य प्रदेश राज्य | 2023 लाइव लॉ (एससी) 669 | 2012 का सीआरए 889-890

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विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक कैद में रखना गरिमा और स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है: सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस मामले में नाइजीरियाई आरोपी पर लगाई गई जमानत शर्तों में ढील दी

सुप्रीम कोर्ट ने नाइजीरियाई आरोपी पर लगाई गई जमानत की शर्त में ढील देते हुए कहा कि विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक कैद में रखना गरिमा और स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है। जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि लंबे समय तक मुकदमे का सामना कर रहे आरोपी की स्वतंत्रता पर अदालत का ध्यान जाना चाहिए।

केस टाइटल- इजीके जोनास ओरजी बनाम नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो | लाइव लॉ (एससी) 670/2023 | सीआरए 2468/2023

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निवारक हिरासत - अनुच्छेद 22(4)(ए) के तहत तीन महीने की सीमा सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट तक प्रारंभिक चरण पर लागू होती है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बंदी की अपील को खारिज कर दिया, जिसने आंध्र प्रदेश में बूट-लेगर्स अधिनियम, डकैत, नशीली दवाओं के अपराधियों, गुंडों, अनैतिक तस्करी अपराधियों और भूमि कब्जा करने वालों की खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1986 (अधिनियम) के तहत निवारक हिरासत के आदेश को चुनौती दी थी।

न्यायालय चेरुकुरी मणि बनाम मुख्य सचिव, आंध्र प्रदेश सरकार (2015) 13 SCC 722 में अपनाए गए दृष्टिकोण से असहमत था कि यदि राज्य सरकार का लक्ष्य किसी व्यक्ति को अधिकतम 12 महीने की अवधि के लिए हिरासत में रखना है, तो प्रारंभिक हिरासत आदेश तीन महीने के लिए जारी किया जाना चाहिए।उसके बाद संविधान के अनुच्छेद 22(4)(ए) की व्याख्या के आधार पर कम से कम तीन विस्तार दिए जा सकते हैं।

केस : पेसाला नुकराजू बनाम आंध्र प्रदेश सरकार

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सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (21 अगस्त, 2023 से 25 अगस्त, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

एक बार जब नियुक्ति अवैध घोषित कर दी जाती है और शुरू से ही अमान्य हो जाती है तो कोई कानूनी रूप से सेवा में बने नहीं रह सकता और वेतन का दावा नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

असम की एक सहायक शिक्षिका ने वेतन भुगतान के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक केस दायर किया था। उसे 2001 के बाद से वेतन जारी नहीं किया गया था। मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्रारंभिक शिक्षा निदेशक ने जब एक बार नियुक्ति को अवैध और शून्य घोषित कर दिया हो तो कैंसिलेशन ऑर्डर को चुनौती देने के अभाव में सेवा में बने रहना अप्रतिरक्ष्य हो जाता है।

केस टाइटल: श्रीमती डुलु डेका बनाम असम राज्य

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किसी पक्षकार या उनके वकील की अनुपस्थिति में भी आपराधिक पुनर्विचार याचिका पर गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि पुनर्विचार याचिका पर विचार करने के मापदंडों के अनुसार, पक्षकार या पक्षकार के वकील की अनुपस्थिति में भी पुनर्विचार याचिका पर गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने मदन लाल कपूर बनाम राजीव थापर, (2007) 7 एससीसी 623 में फैसले का उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया कि एक आपराधिक अपील को डिफ़ॉल्ट के लिए खारिज नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही यह माना गया कि यह नियम आपराधिक पुनर्विचार पर भी लागू होगा।

केस टाइटल: ताज मोहम्मद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, आपराधिक अपील नंबर- (एसएलपी (सीआरएल) नंबर 5298/2023 से उत्पन्न)

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हाईकोर्ट कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न तय किए बिना नियमित दूसरी अपील स्वीकार नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने अपील पर सुनवाई करते हुए सीपीसी की धारा 100 से संबंधित कानून की स्थापित स्थिति को दोहराया। न्यायालय ने कहा कि प्रावधान स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि पहली अपीलीय अदालत तथ्यों के प्रश्नों पर अंतिम अदालत है, लेकिन केवल अगर कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न है तो दूसरी अपील पर विचार किया जा सकता और हाईकोर्ट द्वारा ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए जा सकते हैं। कानून का जवाब दिया जाना चाहिए।

केस टाइटल: भाग्यश्री अनंत गांवकर बनाम नरेंद्र@ नागेश भारमा होल्कर एवं अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 12163/2023

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अनुच्छेद 370 | सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 की 'आत्म-सीमित' प्रकृति के संबंध में विचार किया, पूछा जेएंडके संविधान कैसे भारतीय संसद को बाध्य कर सकता है ? [ दिन -9]

जम्मू-कश्मीर क्षेत्र को विशेष स्वायत्तता प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चल रही सुनवाई नौवें दिन तक पहुंच गई। कार्यवाही का संचालन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ द्वारा किया जा रहा है और इसमें जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।

जैसे ही याचिकाकर्ताओं ने अपनी अंतिम दलीलें पेश कीं, पीठ ने वकील से व्यावहारिक प्रश्न पूछे। अनुच्छेद 370 की 'आत्म-सीमित' प्रकृति के संबंध में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की मौखिक टिप्पणियां विशेष रूप से उल्लेखनीय रहीं कि अनुच्छेद 370 आगे की कार्रवाई होने तक एक 'प्रोटेम प्रावधान' प्रतीत होता था। सुनवाई के दौरान सीजेआई ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन से पूछा कि क्या जम्मू-कश्मीर के संविधान को एक सर्वोपरि दस्तावेज के रूप में देखा जाएगा, जिसे भारतीय संविधान की प्राथमिकता में लागू किया जाएगा और क्या जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा द्वारा लिए गए फैसले भारतीय संसद को बाध्य कर सकते हैं ?

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"हम इस तरह से जमानत बेचना कैसे शुरू कर सकते हैं": सुप्रीम कोर्ट ने कहा आम तौर पर जमानत की कठिन शर्तें नहीं लगाई जानी चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (23 अगस्त) को इस बात पर जोर दिया कि कठिन शर्तों के साथ जमानत केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दी जानी चाहिए, सामान्य मामलों में नहीं। पीठ ने कहा कि सुनवाई से पहले हिरासत का इस्तेमाल केवल तभी किया जाना चाहिए जब समाज के लिए स्पष्ट खतरा हो या वास्तविक चिंता हो कि आरोपी सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है या गवाहों को प्रभावित कर सकता है। अदालत ने यशिक जिंदल बनाम भारत संघ (2023) के मामले का भी हवाला दिया और कहा कि इसी तरह का रास्ता अपनाने की जरूरत है।

केस टाइटल : मुर्सलीन त्यागी बनाम यूपी राज्य

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सशर्त बिक्री द्वारा बंधक' और 'पुन: हस्तांतरण की शर्त के साथ बिक्री' के बीच अंतर : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में एलआर के माध्यम से प्रकाश (मृत) बनाम जी आराध्या एवं अन्य मामले में 'सशर्त बिक्री द्वारा बंधक' और 'पुन: हस्तांतरण की शर्त के साथ बिक्री' की अवधारणाओं को समझाया है।

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (टीपीए) की धारा 58 (सी) का उल्लेख करते हुए, न्यायालय ने कहा, “नकारात्मक में एक काल्पनिक कल्पना जोड़ी गई थी कि एक लेनदेन को तब तक बंधक नहीं माना जाएगा जब तक कि उस दस्तावेज़ में पुनर्भुगतान की शर्त शामिल न हो जिसका उद्देश्य बिक्री को प्रभावित करना है।"

केस : एलआर द्वारा प्रकाश (मृत) बनाम जी आराध्या एवं अन्य।

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मणिपुर हिंसा: जजों की समिति ने पीड़ितों की राहत के लिए विभिन्न दिशा-निर्देश मांगे (रिपोर्ट का सारांश पढ़ें)

मणिपुर जातीय हिंसा में सुप्रीम कोर्ट की ओर से 10 अगस्त 2023 को दिए फैसले के मद्देनजर कोर्ट द्वारा गठित समिति ने तीन रिपोर्ट पेश कीं, जिनमें उचित दिशा-निर्देश मांगे गए । इन रिपोर्टों में समिति ने कई उपाय सुझाये हैं।

इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने की। फैसले में कोर्ट ने पीड़ितों के लिए मानवीय कार्यों की निगरानी के लिए तीन महिला जजों की एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था।

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टीपी एक्ट | यदि उसी विलेख में प्रतिहस्तांतरण की शर्त निर्दिष्ट ना हो तो लेनदेन को 'सशर्त बिक्री द्वारा बंधक' नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 58 (सी) के तहत किसी भी लेनदेन को गिरवी नहीं माना जाएगा, जब तक कि दस्तावेज में प्रतिहस्तांतरण (reconveyance) की शर्त शामिल न हो।

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने एक मामले को निस्तारित करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एक ही दिन में दो दस्तावेजों को निष्पादित किया गया था, एक बिक्री विलेख था और दूसरा पुनर्खरीद विलेख (Buyback Deed) का पुनर्संग्रहण/समझौता था।

केस टाइटल: प्रकाश (मृत) कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा बनाम जी आराध्या और अन्य, सिविल अपील नंबर 706/2015

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सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा, इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि जम्मू-कश्मीर संविधान लागू होने के बाद अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया [दिन 8]

सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 को निरस्त करने के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान अनुच्छेद 370 संबंधी याचिकओं पर बहस के आठवें दिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस तर्क को स्वीकार करने के प्रति अपनी आपत्ति व्यक्त की कि जम्मू-कश्मीर संविधान बनने के बाद अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया था।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर संविधान बनने के बाद अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त होने का परिणाम यह होगा कि भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर में लागू होगा और भारतीय संविधान में कोई भी आगे का विकास जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं हो सकेगा। इस दलील पर सीजेआई ने असहमति जताते हुए पूछा, '' ऐसा कैसे हो सकता है? ''

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सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ और महत्वपूर्ण अंतिम सुनवाई वाले मामलों के समक्ष लिखित प्रस्तुतियां दाखिल करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए

सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने मंगलवार (22 अगस्त) एक सर्कुलर जारी किया जिसमें संवैधानिक पीठों और महत्वपूर्ण अंतिम सुनवाई मामलों (Final Hearing Cases) के समक्ष लिखित प्रस्तुतियां (Written Submission) और संकलन दाखिल करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए व्यापक दिशानिर्देश दिए गए हैं।

मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) में निर्धारित दिशानिर्देश, लिखित प्रस्तुतियों की सॉफ्ट कॉपी दाखिल करने और मौखिक तर्कों के लिए आवश्यक दस्तावेजों, नियमों, मिसालों और समयसीमाओं के कॉमन संकलन के लिए एक स्ट्रक्चर फ्रेमवर्क निर्धारित हैं।

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अपने शरीर पर केवल महिला का ही अधिकार है; अबॉर्शन पर अंतिम निर्णय महिला को ही लेना है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दोहराया कि महिला को अपने शरीर पर अकेले अधिकार है और वह इस सवाल पर अंतिम निर्णय लेने वाली है कि क्या वह अबॉर्शन कराना चाहती है। अदालत ने यह टिप्पणी 25 वर्षीय बलात्कार पीड़िता की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की याचिका स्वीकार करते हुए की।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने यह आदेश पीड़िता की वर्तमान याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिसने गुजरात हाईकोर्ट द्वारा राहत से इनकार किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

केस टाइटल- XYZ बनाम गुजरात राज्य | डायरी नंबर 33790/2023

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न्यायेतर स्वीकारोक्ति कमजोर सबूत है, अगर यह स्वैच्छिक, सच्चा और प्रलोभन से मुक्त साबित हो तो इस पर भरोसा किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना कि हालांकि न्यायेतर स्वीकारोक्ति (Extra-Judicial Confession) को आम तौर पर सबूत के कमजोर टुकड़े माना जाता है, फिर भी वे स्वैच्छिक, सच्चे और प्रलोभन से मुक्त साबित होने पर सजा के लिए आधार के रूप में काम कर सकते हैं। अदालत को स्वीकारोक्ति की विश्वसनीयता के बारे में आश्वस्त होना चाहिए और यह मूल्यांकन आसपास की परिस्थितियों को ध्यान में रखता है।

सुप्रीम कोर्ट ने पवन कुमार चौरसिया बनाम बिहार राज्य मामले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया, "आम तौर पर यह सबूत का कमजोर टुकड़ा है। हालांकि, न्यायेतर स्वीकारोक्ति के आधार पर किसी दोषसिद्धि को बरकरार रखा जा सकता है, बशर्ते कि स्वीकारोक्ति स्वैच्छिक और सच्ची साबित हो। यह किसी भी प्रलोभन से मुक्त होना चाहिए। ऐसी स्वीकारोक्ति का साक्ष्यात्मक मूल्य उस व्यक्ति पर भी निर्भर करता है, जिससे यह किया गया है। मानवीय आचरण के स्वाभाविक क्रम के अनुसार, आम तौर पर कोई व्यक्ति अपने द्वारा किए गए अपराध के बारे में केवल ऐसे व्यक्ति को ही बताएगा जिस पर उसे अंतर्निहित विश्वास हो।'

केस टाइटल: मूर्ति बनाम टीएन राज्य

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'सोशल मीडिया पर मैसेज फॉरवर्ड करने वाला व्यक्ति उसकी सामग्री के लिए उत्तरदायी', सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ अपील पर विचार करने से इनकार कर दिया। उक्त फैसले में हाईकोर्ट ने महिला पत्रकारों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के आरोप में अभिनेता और भाजपा नेता एसवी शेखर के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था। शेखर पर आरोप था कि उन्होंने अप्रैल 2018 में अपने फेसबुक अकाउंट पर कथित तौर पर महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक और अश्लील टिप्पण‌ियां फॉरवर्ड की थी, जिसके बाद उन पर मामले दर्ज किए गए थे।

केस टाइटलः एसवीई शेखर बनाम एआई गोपालसामी, Special Leave to Appeal (Crl.) No(s). 9522- 9525/2023

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सुप्रीम कोर्ट ने लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैज़ल की दोषसिद्धि को निलंबित करने का आदेश रद्द किया; केरल हाईकोर्ट से नए सिरे से निर्णय लेने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के प्रयास के मामले में लोकसभा सांसद मोहम्मद फैजल की सजा को निलंबित करने के केरल हाईकोर्ट के आदेश को मंगलवार को रद्द कर दिया और हाईकोर्ट से छह सप्ताह के भीतर नया निर्णय लेने को कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले को हाईकोर्ट में वापस भेजते समय माना कि दोषसिद्धि के निलंबन का लाभ हाईकोर्ट के नए फैसले तक जारी रहेगा, जिससे एनसीपी के सदस्य फैज़ल, लक्षद्वीप का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम बने रहेंगे।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने "सजा पर रोक लगाने के आवेदन पर विचार करने के तरीके के संबंध में कानून की सही स्थिति पर विचार नहीं किया है।"

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में नये चुनाव की संभावना और उससे होने वाले भारी खर्च पर विचार किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह दोषसिद्धि को निलंबित करने का कारक नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को "उचित परिप्रेक्ष्य में और इस अदालत के विभिन्न निर्णयों को ध्यान में रखते हुए आवेदन पर विचार करना चाहिए था।"

केस टाइटल: लक्षद्वीप केंद्र शासित प्रशासन बनाम मोहम्मद फैज़ल और अन्य। विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 1644/2023 और अन्य संबंधित मामले

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