हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
12 Oct 2025 10:00 AM IST

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (06 अक्टूबर, 2025 से 10 अक्टूबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
यूपी राज्य में गोद लेना केवल रजिस्टर्ड डीड द्वारा ही हो सकता है, केवल नोटरीकृत दत्तक ग्रहण विलेख अमान्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17(3) में राज्य संशोधन के आधार पर केवल पंजीकृत दत्तक ग्रहण विलेख यूपी राज्य में मान्य है। न्यायालय ने कहा कि केवल गोद लेने के दस्तावेज का नोटरीकरण इसे उत्तराधिकार साबित करने के लिए वैध नहीं बनाता है।
जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने की, "यूपी राज्य में लागू अधिनियम, 1956 की संशोधित धारा 16(2) और यूपी राज्य में लागू अधिनियम, 1908 की धारा 17 (1)(एफ) और (3) को संयुक्त रूप से पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि 01.01.1977 के बाद यूपी राज्य में कोई भी गोद लेना केवल एक पंजीकृत विलेख के माध्यम से हो सकता है, अन्यथा नहीं।"
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बिना सबूत के जीवनसाथी पर बार-बार बेवफाई का आरोप लगाना, प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना क्रूरता है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बिना किसी सबूत के बार-बार जीवनसाथी पर बेवफाई का आरोप लगाना और उत्पीड़न के साथ-साथ व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना क्रूरता का चरम रूप है। यह रेखांकित करते हुए कि विवाह विश्वास और सम्मान पर टिका है, जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा: "क्रूरता इस बात में नहीं है कि व्यभिचार साबित हुआ या नहीं, वास्तव में यह नहीं था, बल्कि आरोपों की लापरवाह, कलंकपूर्ण और असत्यापित प्रकृति में निहित है। विवरण पुष्टि या सबूत के बिना जीवनसाथी पर बेवफाई का आरोप लगाना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है बल्कि स्वाभाविक रूप से क्रूर भी है।"
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असफल निविदाकर्ता अंतिम चरण में निविदा शर्तों को चुनौती नहीं दे सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने हाल ही में कहा कि किसी निविदा प्रक्रिया में भाग लेने वाले और बाद में असफल घोषित किए गए पक्ष को बाद के चरण में विशेष रूप से प्रक्रिया के काफी आगे बढ़ जाने के बाद निविदा शर्तों को चुनौती देने की अनुमति नहीं दी जा सकती। जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने अवनि परिधि एनर्जी एंड कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर रिट याचिका खारिज की, जिसमें तकनीकी मूल्यांकन और संपूर्ण निविदा प्रक्रिया को चुनौती देते हुए आरोप लगाया गया कि इसने एक सरकारी आदेश का उल्लंघन किया।
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दूसरी महिला से बेटी का जन्म पति के अवैध संबंध को साबित करता है, पत्नी का अलग रहना जायज़: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि दूसरी महिला से बेटी का जन्म स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पति का अपनी पहली पत्नी से विवाहित रहते हुए भी उसके साथ संबंध है। न्यायालय ने कहा कि इस आचरण ने पत्नी को अलग रहने के लिए मजबूर किया, इसलिए उस पर परित्याग का आरोप नहीं लगाया जा सकता। जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने टिप्पणी की: "बेटी का जन्म... स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि या तो अपीलकर्ता पहले से ही किसी के साथ संबंध में था या उसके बाद संबंध विकसित हुए... प्रतिवादी को अलग रहने के लिए मजबूर किया गया।"
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दिल्ली सरकार प्राइवेट स्कूलों की फीस का नियमन केवल मुनाफाखोरी रोकने के लिए कर सकती है, फीस संरचना को नियंत्रित करने के लिए नहीं: हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के शिक्षा निदेशालय (DOE) को गैर-सहायता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों की फीस संरचना को केवल मुनाफाखोरी, शिक्षा के व्यावसायीकरण और कैपिटेशन फीस वसूली पर अंकुश लगाने के लिए आवश्यक सीमा तक ही विनियमित करने का अधिकार है। चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि सरकार ऐसे स्कूलों पर व्यापक प्रतिबंध नहीं लगा सकती या फीस वृद्धि का आदेश नहीं दे सकती।
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एजेंसी ने सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में फैसला स्वीकार किया: CBI ने बॉम्बे हाईकोर्ट में बताया
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि उसने 13 दिसंबर, 2018 को स्पेशल कोर्ट का फैसला "स्वीकार" कर लिया है, जिसमें सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और सहयोगी तुलसीराम प्रजापति के कथित "फर्जी" मुठभेड़ मामले में 22 पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया गया। चीफ जस्टिस श्री चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम अंखड़ की खंडपीठ से पूछे जाने पर बताया गया कि एजेंसी ने अभी तक उक्त फैसले को चुनौती देने का कोई फैसला नहीं लिया।
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सीनियरिटी का पुनर्मूल्यांकन किए बिना आरक्षित वर्ग को लगातार पदोन्नति का लाभ देना समानता के अधिकार का उल्लंघन: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 में निहित समानता का सिद्धांत निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण शासन की आधारशिला है। अदालत ने कहा कि सेवा पदोन्नति के संदर्भ में यह सिद्धांत यह अनिवार्य करता है कि किसी भी कर्मचारी को - चाहे वह आरक्षित वर्ग का हो या सामान्य वर्ग का - पद में समानता प्राप्त होने के बाद स्थायी रूप से लाभ या हानि की स्थिति में नहीं रखा जाना चाहिए।
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विशेष धार्मिक समूह को निशाना बनाने का आरोप लगाने वाला व्हाट्सएप मैसेज BNS की धारा 353(2) के तहत दुश्मनी बढ़ाने का अपराध हो सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी विशेष धार्मिक समुदाय के लोगों को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाते हुए कई लोगों को व्हाट्सएप मैसेज प्रसारित करना प्रथम दृष्टया भारतीय न्याय संहिता (BNS) धारा 353(2) के तहत धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी, घृणा और दुर्भावना को बढ़ावा देने का अपराध माना जाएगा।
जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता (अफाक अहमद) के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने कथित तौर पर व्हाट्सएप पर कई व्यक्तियों को एक भड़काऊ मैसेज भेजा था।
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केवल पट्टे के विकल्प के साथ सेल एग्रीमेंट, मकान मालिक-किरायेदार संबंध समाप्त नहीं करता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि जब सेल एग्रीमेंट में संपत्ति को बेचने या पट्टे पर देने का विकल्प होता है तो मकान मालिक-किरायेदार संबंध बना रहता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 54 के अनुसार, "सेल एग्रीमेंट क्रेता के पक्ष में कोई स्वामित्व स्थापित नहीं करता, क्योंकि यह केवल विक्रय समझौता है, न कि संपत्ति का विक्रय या हस्तांतरण, जो विक्रय समझौते का विषय है।"
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धार्मिक परिवर्तन के कथित पीड़ित भी दूसरों को धर्म बदलने पर प्रेरित करें तो होंगे अपराधी: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि जो लोग धार्मिक परिवर्तन (religious conversion) के "पीड़ित" होने का दावा करते हैं, उन्हें भी उस अपराध के लिए आरोपित किया जा सकता है यदि वे बाद में अन्य लोगों को धर्म परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करते हैं।
कोर्ट ने उन कई पुरुषों की दलील खारिज कर दी, जिन्हें धार्मिक परिवर्तन के आरोप में नामजद किया गया था, कि वे स्वयं धर्म परिवर्तन के पीड़ित हैं और उनके खिलाफ FIR गलत है। कोर्ट ने कहा कि यदि ये लोग धर्म परिवर्तन करने के बाद किसी अन्य व्यक्ति को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित नहीं करते, तो उन्हें धार्मिक परिवर्तन का पीड़ित कहा जा सकता था।
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पहली तलाक याचिका खारिज होने पर भी अलग आधार पर दूसरी याचिका दायर की जा सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि एक ही आधार पर तलाक की याचिका खारिज होने पर भी, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत दूसरे आधार पर तलाक की याचिका दायर करने में कोई रोक नहीं है।
जस्टिस मनीष कुमार निगम ने कहा— “हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत किसी एक आधार पर याचिका का निर्णय, दूसरे आधार पर तलाक की याचिका दायर करने पर रोक नहीं लगाता। यदि पहली याचिका खारिज होने के बाद भी पक्षकार को दूसरी याचिका दायर करने की अनुमति मिलती है, तो संशोधन के माध्यम से नए आधार जोड़ने में कोई बाधा नहीं है।”
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BNS, BNSS और BSA में IPC, CrPC और IEA की धाराएं भी लिखना जरूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि अब से जिन मामलों या याचिकाओं में नए आपराधिक कानूनों — जैसे भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) — का उल्लेख किया जाएगा, उनमें पुराने कानूनों — भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) — की संबंधित धाराएं भी साथ में लिखना जरूरी होगा।
जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि याचिकाओं और अपीलों में केवल नए कानूनों की धाराएं लिखने से अदालत और वकीलों को काफी असुविधा होती है, क्योंकि अभी कई मामलों में पुराने और नए प्रावधानों की तुलना आवश्यक होती है।
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बाल कल्याण समिति के आदेश के तहत नाबालिग की कस्टडी को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में चुनौती नहीं दी जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जब नाबालिग बच्चे की कस्टडी किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 के तहत बाल कल्याण समिति (CWC) द्वारा पारित न्यायिक आदेश के अनुसार सौंपी गई हो तो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस सैयद कमर हसन रिज़वी की खंडपीठ ने एक मां द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उसने अपने 11 वर्षीय बेटे की कस्टडी की मांग करते हुए दावा किया था कि वह उसकी प्राकृतिक अभिभावक है।
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रिटायरमेंट के बाद अनुशासनात्मक कार्यवाही अमान्य: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद किसी सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती और पेंशन से वसूली तभी संभव है, जब लापरवाही या धोखाधड़ी के कारण सरकार को वित्तीय नुकसान पहुंचाने का कोई विशिष्ट आरोप विधिवत रूप से स्थापित और सिद्ध हो जाए।
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Section 336(2) Municipalities Act | ट्रांसफर ऑर्डर के लिए अधिकारी की सहमति आवश्यक नहीं, प्रतिनियुक्ति से भिन्न: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 336(2) के अंतर्गत ट्रांसफर ऑर्डर प्रतिनियुक्ति के माध्यम से ट्रांसफर नहीं माना जा सकता, क्योंकि इस प्रावधान में अधिकारी की सहमति का प्रावधान नहीं है, जो प्रतिनियुक्ति के लिए आवश्यक है। अदालत ने कहा कि धारा 336(2) के अंतर्गत आदेश जारी होने के बाद अधिकारी/कर्मचारी के पास स्थानांतरित स्थान पर कार्यभार ग्रहण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता।
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पीड़िता का आरोपी से परिचित होना और स्वेच्छा से उसके कमरे में जाना, उसे यौन उत्पीड़न के लिए ज़िम्मेदार ठहराने का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी महिला का आरोपी से परिचित होना, उसे आरोपी द्वारा उसके साथ किए गए कथित यौन उत्पीड़न के लिए ज़िम्मेदार ठहराने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस अमित महाजन ने कहा, "सिर्फ़ इसलिए कि पीड़िता आरोपी को जानती थी या उसके साथ उसके मधुर संबंध थे, उसे यौन उत्पीड़न के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।"
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बार एसोसिएशन के सदस्यों को हटाने को चुनौती देने वाली राज्य बार काउंसिल के समक्ष याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक बार एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा अपने अवैध निष्कासन के खिलाफ उत्तर प्रदेश राज्य बार काउंसिल के समक्ष दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस सरल श्रीवास्तव और जस्टिस अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ ने नरेश कुमार मिश्रा और तीन अन्य द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जिन्हें एकीकृत बार एसोसिएशन, माटी, कानपुर देहात की आम सभा के सदस्यों के पद से हटा दिया गया।
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ZP Election Rules 1994 | COVID के दौरान वर्चुअल उपस्थिति में याचिका का वर्चुअल रूप से दाखिल होना नियम 4(3) का पर्याप्त अनुपालन: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यदि कोई चुनाव याचिका याचिकाकर्ता द्वारा स्वयं ई-फाइल की जाती है और COVID-19 के दौरान याचिका प्रस्तुत करते समय याचिकाकर्ता अपने वकील के साथ कोर्ट के समक्ष वर्चुअल रूप से उपस्थित होता है तो यह उत्तर प्रदेश जिला पंचायत (सदस्यता से संबंधित चुनावी विवादों का निपटारा) नियम, 1994 के नियम 4(3) का 'पर्याप्त अनुपालन' माना जाएगा, जिसके अनुसार चुनाव याचिका व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत की जानी आवश्यक है।

